दोस्तों जैसा आपको मालुम ही है, भारतीय भूमि ऋषि मुनियों, योगियों, तपस्या करने वालों की भूमि रही है. इन ऋषि मुनियों, योगियों में बीसवीं सदी के महान् योगी, दार्शनिक आचार्य रजनीश (ओशो)का नाम भी युगों-युगों तक अमर रहेगा. उनकी योग-साधना में मानवीय चेतना के हर पहलू का ध्यान रखा गया है. हम यहाँ आचार्य ओशो की जीवनी (Biography Of Osho). और उनसे जुड़ी वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाला है. जिसके बारे में आप अबसे पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, ओशो की आस्चर्यजनक जानकारी.
उन्होंने अपनी पढ़ाई जबलपुर में पूरी की और बाद में वो जबलपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के तौर पर काम करने लगे. उन्होंने अलग-अलग धर्म और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन देना शुरू किया. प्रवचन के साथ ध्यान शिविर भी आयोजित करना शुरू कर दिया. शुरुआती दौर में उन्हें आचार्य रजनीश के तौर पर जाना जाता था. नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने नवसंन्यास आंदोलन की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया.
आचार्य ओशो उन विभूतियों में से एक थे, जिन्होंने पांच विकार अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष का अपना नया सिद्धान्त प्रतिपादित किया था. बुद्ध पुरुषों की महान् धारा में उन्होंने एक नये मनुष्य, एक नये जगत् और एक नयी मनुष्यता का सृजन किया था. ओशो के अनुसार नया मनुष्य “जोरबा दि बुद्धा” है, जों बुद्ध की भांति भौतिक और आध्यात्मिक आनन्द से पूर्ण एक समग्र अविभाजित मनुष्य है. इसके साथ-साथ आचार्य ओशो ने राजनीति, कला, विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन, जनसंख्या वृद्धि, परमाणु विज्ञान के घातक प्रयोगों पर भी अपने महत्त्वपूर्ण विचार रखे थे. उनके अनुसार सच्ची मृत्यु समस्त प्रकार की पीड़ाओं से मुक्ति है.
कौन थे ओशो? ओशो का जीवन परिचय (Biography Of Osho)
आचार्य ओशो रजनीश का जन्म मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गांव में 11 दिसम्बर, 1931 को हुआ था. उनका बचपन का नाम रजनीश चन्द्रमोहन जैन था. ओशो के पिता का नाम बाबुलाल जैन उर्फ़ स्वर्गीय देवतार्थ भारती था. जो कपडें के एक व्यापारी थे. आपकी माता का नाम सरस्वती बाई जैन उर्फ़ माँ अमृत सरस्वती था. उनके माता-पिता तारनापंथी जैन समुदाय से संबंधित थे. रजनीशजी (आचार्य ओशो) का परिवार जैन धर्मावलम्बी था. बचपन से ही रजनीश निर्भीक तथा स्वतन्त्र विचारों के धनी थे. ओशो को तैराकी बहुत पसंद थी, वे 100 फीट ऊंचे पुल से नदी में छलांग लगाना और उसे तैरकर आसानी से पार करना उन्हें बहुत प्रिय था.
ओशो का जीवन दर्शन माहत्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, भगवान श्री कृष्ण, भगवान शिव, जीजस (Jesus Christ) आदि धार्मिक प्रवर्तकों, सूफी सन्तों व महान् दार्शनिकों से समन्वित रहा है. प्रेम की चेतना से ईश्वर को पाना यह उनके जीवन दर्शन का सार रहा है. ओशो का जन्म 11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ था. जन्म के वक्त इनका नाम चंद्रमोहन जैन था. बचपन से ही उन्हें दर्शन में रुचि पैदा हो गई. ऐसा उन्होंने अपनी किताब ‘ग्लिप्सेंस ऑफड माई गोल्डन चाइल्डहुड’ में लिखा है.
आचार्य ओशो विद्यालय तथा महाविद्यालयों में वे वाद-विवाद जैसी प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अपने ओजस्वी प्रवक्ता होने का परिचय देते रहे. साथ ही साथ उन्होंने कई धार्मिक रूढ़ियों और मुड़ता पर अपने दबंग विचार दिये. मुल्ला, पण्डितों, पादरियों को भी उन्होंने सच्चे जीवन दर्शन का ज्ञान कराया था. सन् 1957 में सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी में प्रथम गोल्ड मेडल लेकर दर्शनशास्त्र की परीक्षा उत्तीर्ण की और वहीं पर वे दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त हुए.
Summary
नाम | रजनीश चन्द्रमोहन जैन |
उपनाम | आचार्य रजनीश, ओशो |
जन्म स्थान | मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गांव |
जन्म तारीख | 11 दिसंबर, 1931 |
वंश | जैन |
माता का नाम | सरस्वती बाई जैन |
पिता का नाम | बाबुलाल जैन |
पत्नी का नाम | अविवाहित |
उत्तराधिकारी | योगेश ठक्कर |
भाई/बहन | विजय कुमार खाते, शैलेंद्र शेखर, अमित मोहन खाते, अकलंक कुमार खाते, निकलंक कुमार जैन,बहन- रसा कुमारी, स्नेहलता जैन, निशा खाते, नीरू सिंघाई |
प्रसिद्धि | दार्शनिक |
रचना | ग्लिप्सेंस ऑफड माई गोल्डन चाइल्डहुड |
पेशा | संत महात्मा |
पुत्र और पुत्री का नाम | अविवाहित |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | मध्यप्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, अंग्रेजी |
मृत्यु | 19 जनवरी 1990 |
मृत्यु स्थान | पुणे महाराष्ट्र |
जीवन काल | लगभग 59 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | ओशो की जीवनी (Biography Of Osho) |
ओशो भारत भ्रमण पर कब निकले?
ओशो 9 वर्ष तक अध्यापन के साथ-साथ पुरे भारत भ्रमण पर निकले थे. आध्यात्मिक जन-जागरण हेतु उन्होंने जो उपदेश दिया, उसे सुनने 60 से 70 हजार तक की भीड़ भी एक ही सभा में जमा हो जाती थी. जो उन्हें मन्त्रमुग्ध होकर सुना करती थी. 1968 में उन्होंने ध्यान पद्धति विकसित की, और सन 1970 में वे बम्बई आ गये थे.
बम्बई आकर उन्होंने भौतिकतावादी संस्कृति से ऊब चुके लोगों को नया जीवन दर्शन दिया. उनके इस जीवन दर्शन से पश्चिम विशेषत: प्रभावित हुआ. पश्चिमी देशों से आयी हुई लाखों नवयुवतियां तथा नवयुवक उनके विचार दर्शन से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गये थे.
आचार्य ओशो के विचार एवं कार्य
आचार्य ओशो ने अपने नाम से भगवान् शब्द को कुरूप मानकर हटा दिया था. ओशो ने कहा: मैं अब गौतम बुद्ध हो गया हूं. मेरा नाम मैत्रेय बुद्ध है. आचार्य ओशो का जीवन दर्शन भगवान को ईश्वर नहीं मानता था. उनका कहना था कि उस प्रत्येक व्यक्ति को भगवान कहा जा सकता है, जो कि आनन्द की अवस्था में पहुंच गया है. ओशो के अनुसार उनको ईश्वर में तनिक विश्वास नहीं है. जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने जगत का निर्माण किया है. जगत् तो स्वयं सृजनशील है. मैं संन्यासी उन्हें कहता हूं जिनका न कोई धर्म हो और न जिनका नाम किसी धार्मिक स्थानों से जुड़ा हो. ओशो के अनुसार मानवीय व्यक्तित्व को धर्म ने बहुत हानि पहुंचाई है.
आचार्य ओशो के अनुसार धर्म ने मनुष्य की यौन भावनाओं का दमन करने की कोशिश की है. सेक्स और यौन भावना पापपूर्ण, घिनौना कार्य नहीं है. ओशो के अनुसार यौन प्रतिबन्धों से ऊपर उठकर प्रेम को चेतना के स्तर तक पहुंचा दो, चाहे जिससे प्रेम करो. जब तुम्हें यह छूट होती है, तब तुम स्वतन्त्रता से प्रेम करते हो. ओशो के अनुसार प्रेम तुम्हारे पांव की बेड़ी नहीं बनता, मुक्त प्रेम जैविक स्तर से उठकर चेतना के उस स्तर तक पहुंच जाता है. जहां किसी भी प्रकार का बन्धन नहीं रह जाता है. ऐसे में ही चेतना की यह अवस्था आध्यात्मिक प्रेम की मनोभूमि तैयार करती है.
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आचार्य ओशो रजनीश के अनुसार आध्यात्मिक प्रेम न तो स्त्री और पुरुष के बीच में होता है. इसमें आतुरता शरीर के लिए नहीं, सर्वोच्च सत्ता के बीच होती है. अंश और पूर्ण के बीच, बिन्दु और सागर के बीच स्थित है. इस स्थिति में सम्भोग समाधि की ओर ले जाता है. ओशो ने बताया है, प्रेम भावना की ऊंचाई है, यही आनन्द परमानन्द है, जिसमें न तो अहंकार होता है और न अतीत न भविष्य का भय होता है. सारी संस्कृतियां, सारे धर्म, सारे महात्मा इस उन्मुक्त प्रेम के विरोधी हैं. इस प्रेम में मेरापन का अहं तथा आत्मा, मृत्यु का कोई भय नहीं. प्रेम की इस अवस्था में दिमाग का सारा कचरा निकल जाता है. व्यक्ति साक्षी भाव से अपने तन-मन को देखता है. और वो पूर्ण रूप से आध्यात्मिक हो जाता है.
आचार्य रजनीश के अनुसार कुण्डलिनी ध्यान, मेडीटेशन, मिस्टिक रोज ध्यान-गौतम बुद्ध की वियश्पना ध्यान पद्धति के इस समन्वित रूप में शरीर को उछल-कूद, चिल्लाने, शिशु की तरह व्यवहार करने, रोने, हंसने के साथ-साथ साक्षी भाव से देखने की साधना कुछ घण्टे होती थी. इस जीवन दर्शन से बहुत बड़ा समाज प्रभावित रहा है. यह इसकी एक विशिष्ट उपलब्धि रही है.
ओशो की रोचक जानकारी
- ओशो 1974 में उन्होंने पुणे में आश्रम की स्थापना की, जहां देश तथा विदेश के अनेक दार्शनिकों के विचारों का गूढ़ सन्देश व प्रवचन दिया.
- उनके (ओशो) के प्रवचनों का संग्रह 500 से भी अधिक संग्रहों में प्रकाशित हुआ. विश्व की 30 भाषाओं में उनका अनुवाद किया गया, उनकी 650 से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुईं.
- सन् 1981 तक ओशो ने देश-विदेश की यात्राएं शुरू कीं. वे अपने आवास से सुबह और शाम दो बार प्रवचन देने हेतु तथा नये प्रेमियों को दीक्षा देने के लिए दो बार ही निकला करते थे.
- सन् 1980 में तो उनके नये दर्शन का विरोध करते हुए कट्टरवादी हिन्दू संगठनों ने उनकी हत्या की घोषणा भी की थी.
- इसी बीच अस्वस्थ होने के कारण उन्हें जून 1981 को अमेरिका ले जाया गया. स्वस्थ होने के पश्चात् ओशो ने अमेरिका के ओरेगॉन राज्य में 64 हजार एकड़ की जमीन खरीदी, अमेरिकी शिष्यों के आमन्त्रण पर उन्होंने वहीं बसना स्वीकार कर लिया था.
- अमेरिका में 60 लाख डॉलर में खरीदी गयी इस भूमि को 3 वर्षो में रजनीश के शिष्यों ने आध्यात्मिक नगर में परिवर्तित कर इसका नाम रजनीशपुरम् कर डाला, जहां रजनीश मन्दिर का शानदार सभागह बनाया गया, जिसमें 25 हजार लोगों की बैठने की क्षमता थी.
- यहां पर जैन ढंग के उद्यान लगवाये गये, सुख-सुविधाओं और विलासिता से भरे होटल उनके अनुयायियों के लिए बनाये गये.
- रजनशिपुरम् में घोड़े, गायों, मुरगियों के साथ-साथ येमू पाले गये.
- रजनीश ट्रस्ट के पास अपार धन-सम्पदा उनके शिष्यों द्वारा अर्जित की गयी, अमेरिका में आचार्य रजनीश ओशो को 86 रॉल्स रॉयस कारें भेंट की गयीं थी.
- यहां के कट्टरपंथी ईसाइयों के साथ मिलकर उनकी सचिव मां शीला ने गहरा षड्यन्त्र रचा था. रजनीशपुरम् का दुष्प्रचार करते हुए इसे नष्ट करने में विरोधियों का साथ दिया, भेद खुलने पर मां शीला सितम्बर 1985 को रजनीशपुरम् से भाग खड़ी हुईं. इसी बीच रजनीश मौन हो गये, अचानक पुन: प्रवचन देने लगे.
- उनके जीवन सत्यों से घबराकर 1985 में अमरीकी सरकार ने ओशो पर अप्रवास नियमों के उल्लंघन के साथ 35 मनगढ़न्त आरोप मढ़ दिये.
- बिना किसी वारंट के उन्हें कैद कर बदूक की नोक पर हाथ-पैर में हथकड़ी व बेड़िया पहना दी गयीं, एक जेल से दूसरी जेल घुमाते हुए 5 घण्टे की यात्रा को 8 दिन में पूरा किया गया था.
- ओशो को अनेक शारीरिक यातनाएं देकर अमरीकी की संघीय सरकार ने उन्हें थैलियम नामक स्लो पॉइजन दिया.
14 नवम्बर, 1885 को अमेरिका छोड़कर ओशो भारत पहुंचे. यहां की तत्कालीन सरकार ने उनकी उपेक्षा करनी शुरू की. - वे नेपाल चले गये, फरवरी 1986 में अन्य देशों की यात्रा करते समय उन्हें अमेरिकी विरोध का सामना करना पड़ा था.
- 1986 में पूना तथा बम्बई के ओशो कम्यून इंटरनेशनल आश्रम में रहकर अपने क्रान्तिकारी विचारों से धार्मिक पाखण्डों का विरोध किया. समाज के अनेक बुद्धिजीवी, संगीतज्ञ, साहित्यकार, नर्तक, कवि, शायर, फिल्मी हस्तियां सहित 10 हजार उनके अनुयायी थे. इन्होंने उन्हें भगवान् तथा ओशो नाम दिया था.
- 26 दिसम्बर, 1988 को उन्होंने अपने नाम से भगवान् हटा दिया, मौन तथा प्रवचन के माध्यम से अपना जीवन दर्शन व्यक्त करते हुए जनवरी 1990 को सायं पांच बजे उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया था.
महान साधु संतों की जीवनी
आचार्य रजनीश (ओशो) का अंतिम समय और विवाद
ओशो सन 1985 वे भारत वापस लौट आए, भारत लौटने के बाद वे पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित अपने आश्रम में रहने लगे. उनकी मृत्यु 19 जनवरी, 1990 में हो गई. पुणे स्थित उनकी समाधि पर लिखी इस बात से ओशो की अहमियत का अंदाजा लगाया जा सकता है. “न कभी जन्मे, न कभी मरे. वे धरती पर 11 दिसंबर, 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच आए थे.”
1857 ईस्वी क्रांति और उसके महान वीरों की जीवनी
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FAQs
ANs- ओशो मूल रूप से मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गांव के रहने वाले थे. उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से पुणे महराष्ट्र में हुई थी.