सिखों के 9वे गुरु तेग बहादुर धर्मात्मा और सदाचारी व्यक्ति थे. उनका जन्म ऐसे समय हुआ था. जब देश में मुगलों का शासन था. सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक दृष्टि से मुगलों को छोड़ अन्य किसी जाति या धर्म को उतने अधिकार व स्वतंत्रता नहीं थी, जितनी मुगलों को थी. औरंगजेब तो अत्यंत निर्दई, कटर तथा संकीर्णतावादी मुसलमान था. सभी धर्मों को मिटाकर वह मुसलमान बनाने पर तुला हुआ था. कई हिंदुओं को तो उसने बलपूर्वक मुसलमान बना डाला था. ऐसे ही अत्याचारों से त्रस्त होकर कश्मीरी हिंदू गुरु तेग बहादुर के पास आए थे. जिन की रक्षा हेतु गुरु तेग बहादुर ने अपना जीवन दान तक दे डाला था. हम यहाँ गुरु तेग बहादुर की जीवनी (Biography of Guru Tegh Bahadur) और उसने जुड़ी वो अद्भुत, रोचक, आश्चर्यजनक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आपको आज से पहले पता नहीं होगी.
गुरु तेग बहादुर कौन थे? तेग बहादुर जी का जीवन परिचय
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म अमृतसर में सन1678 को वैशाख कृष्ण पंचमी को हुआ था. तेग बहादुर जी को बचपन में त्याग मल के नाम से पुकारा जाता था. उनके पिता का नाम हरगोविंद तथा माता जी का नाम जानकी देवी था. अपने पिता की मृत्यु के बाद वे माता तथा पत्नी गुजरी सहित बाकला नामक गांव में रहने लगे. 5 वर्ष की अवस्था से ही वे एकांत में विचार मगन रहा करते थे. उनकी ऐसी दशा देखकर उनके पिता ने उनके बारे में यह बता दिया था, कि वह कोई महान धर्मात्मा बनेगा. अपने बड़े भाइयों के परिवार द्वारा रचे गए सड़ यंत्रों से परेशान होकर वे संसार से विरत होकर सिख धर्म का प्रचार करने के लिए निकल पड़े. पंजाब के कई स्थानों का भ्रमण करते हुए, वे प्रयागराज, काशी, गया भी गए थे.
राजस्थान के जयपुर महाराजा के पुत्र राम सिंह के प्रस्ताव पर वे कामरूप आसाम गए थे. वहां पर उन्होंने कामरूप के राजा तथा राम सिंह के मध्य बिना किसी खून खराबे के बटवारा करवा दिया. वहां से वे बिहार, पटना आए, पटना में माता और पत्नी को छोड़ पंजाब चल पड़े थे. इसी बिच उनकी पत्नी गुजरी देवी ने सुंदर पुत्र को जन्म दिया जिनको गुरु गोविंद सिंह के नाम से जाना जाता है. पंजाब आनंदपुर में उन्होंने कुछ दिनों बाद माता पत्नी तथा पुत्र गोविंद राय (गुरु गोविंद सिंह) को बुला लिया था.
Summary
नाम | तेग बहादुर |
उपनाम | गुरु तेग बहादुर जी, त्याग मल |
जन्म स्थान | अमृतसर |
जन्म तारीख | सन 1678 को वैशाख कृष्ण पंचमी |
वंश | — |
माता का नाम | जानकी देवी |
पिता का नाम | हरगोविंद |
पत्नी का नाम | गुजरी |
उत्तराधिकारी | गुरु गोविंद सिंह |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | सिखों के 9वे गुरु |
रचना | — |
पेशा | गुरु, स्वतंत्रता सेनानी |
पुत्र और पुत्री का नाम | गुरु गोविंद सिंह |
गुरु/शिक्षक | गुरु हरकिशन साहिब |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, कश्मीर, हरयाणा |
धर्म | सिख |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, पंजाबी, गुरुमुखी |
मृत्यु | सन 1732 की नाग पंचमी |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
जीवन काल | 54 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Guru Tegh Bahadur |
गुरु तेग बहादुर के चमत्कार और शहीदी
गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों को औरंगजेब के द्वारा बलपूर्वक मुसलमान बनाने की पीड़ा सुनी. और जब कश्मीरी पंडित उनकी शरण में आए, तो उनके 5 वर्षीय पुत्र गोविंद राय ने भी अपना बलिदान देकर कश्मीरी पंडितों की रक्षा करने की बात अपने पिताजी को कही. इस पर गुरु तेग बहादुर सिंह ने औरंगजेब को यह चुनौतीपूर्ण संदेश दिया. कि सर्वप्रथम वे उन्हें मुसलमान बनाने के लिए तैयार करें और उसके बाद पंडितों को. औरंगजेब यह सुनकर गदगद हो गया. उसने सोचा उनके सारे अनुयायी भी मुसलमान बन जाएंगे. औरंगजेब ने उन्हें जल्दी दिल्ली बुलवा लिया. गुरु तेग बहादुर रास्ते में धर्मा उपदेश देते हुए वे दिल्ली जाने लगे. तो उनके शिष्यों ने कहा औरंगजेब बड़ा ही जालिम बादशाह है.
वह हिंदुओं तथा सिखों से बराबर की शत्रुता रखता है. गुरु तेग बहादुर जी ने कहा सच्चा सन्त किसी के भय से अपना जीवन धर्म नहीं छोड़ता है. गुरु तेग बहादुर निर्भता के साथ औरंगजेब के समक्ष जा खड़े हुए. तब औरंगजेब ने गुरु जी से कहा, यदि तू सच्चा फ़क़ीर है. तो अपनी करामात और कमाल दिखा. तब गुरु तेग बहादुर जी ने कहाँ कमाल और करामात तो बाजीगर दिखाया करते हैं. इस्लाम ने भी सदाचार, प्रेम और दया का पाठ पढ़ाया है. गुरु तेग बहादुरजी ने कहाँ इस्लाम सच्चा है तो खुदा भी इस दुनिया में और किसी और धर्म को पैदा नहीं होने देता. बलपूर्वक धर्म परिवर्तन करवाना अधर्मियों का काम है.
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यह सुनकर औरंगजेब क्रोधित हो उठा, बादशाह के हट के आगे गुरु तेग बहादुर ने कहा मेरी करामात यही है. कि मेरी गर्दन में बंधा हुआ मंत्र लिखा जो खर्चा है. उस पर तुम्हारी तलवार का वार भी कुछ नहीं कर सकेगा. चाहो तो परीक्षा ले लो. औरंगजेब ने जल्लाद से तलवार चलाने को कहा. तलवार के चलाते ही गुरु की गर्दन कटकर गिर गई. सारे दरबार में चुपी सी छा गई. उनकी गर्दन से खोलकर वो ताबीज वाला परचा पढ़ा गया. तो उसमें लिखा था, “सर दिया है, सार नहीं” आगे चलकर यह बलिदान औरंगजेब के तख़्त को हिला कर रख दिया था. सन 1732 की नाग पंचमी के दिन गुरु तेग बहादुर जी का महाबलिदान दिया गया था.
तेग बहादुर जी की शिक्षाएं
गुरु तेग बहादुर सच्चे अर्थों में मानवतावादी धर्म के समर्थक थे. हिंदू धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों का जो बलिदान दिया. उसके कारण हिंदू धर्म में भी उनके त्याग और बलिदान को हमेशा याद किया जाता रहेगा. उन्होंने सच ही कहा था, सभी प्राणियों को अपने अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है. किसी भी व्यक्ति पर अपने धर्म को जबरन थोपना एक अधर्मी का काम होता है.
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FAQs
Ans- गुरु तेग बहादुर साहिब सिखों के नौवें गुरु थे, उनका बचपन का नाम त्याग मल था.