दोस्तों हम यहाँ शेयर करने वाले है, महाराष्ट्र के महान संतों में से एक सन्त तुकाराम जी की जीवनी (Biography of Sant Tukaram). और और उनसे जुड़ी वो रोचक जानकर जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. दोस्तों सन्त तुकाराम जी एक शूद्र परिवार से आते है. लेकिन उन्होंने सभी को जात पात और आपसी बेर से दूर भगवान की भक्ति और समाज कल्याण पर जोर दिया था. महाराष्ट्र की भूमि को संतो की भूमि कहा जाता है. महाराष्ट्र कई महान संतो की जन्म भूमि भी है. इस पवित्र भूमि पर समर्थ गुरु रामदास, संत ज्ञानेश्वर एवं संत नामदेव और संत जनाबाई की जन्म भूमि रही है। संत तुकाराम जी भी इन संतो में एक थे. जिन्होने दुष्टों के अत्याचार को भी हंसकर सहन किया. ईर्ष्या, द्वेष, दम्भ, वैर-भाव से दूर इस भोले-भाले सन्त ने जनसाधारण को शक्ति तथा अपनी अभंगवाणी से सीधा-सरल मार्ग सुझाया था.
भक्तिमार्ग को कठिन बताने वाले उच्चवर्गीय लोगों ने इनके अस्तित्व को मिटाने हेतु यथासम्भव प्रयास किये. पर जिस पर ईश्वर की कृपादृष्टि हो, उसका संसार भला क्या बिगाड़ पायेगा. संत तुकाराम महाराज महाराष्ट्र के भक्ति अभियान के 17 वी शताब्दी के कवी-संत थे. वे समनाधिकरवादी, व्यक्तिगत वारकरी धार्मिक समुदाय के सदस्य भी थे. तुकाराम अपने अभंग और भक्ति कविताओ के लिए जाने जाते है. और अपने समुदाय में भगवान की भक्ति को लेकर उन्होंने बहुत से आध्यात्मिक गीत भी गाये है. जिन्हें स्थानिक भाषा में कीर्तन कहा जाता है. उनकी कविताए विट्ठल और विठोबा को समर्पित होती थी.
सन्त तुकाराम जी कौन थे? तुकाराम जी का जीवन परिचय
दोस्तों सन्त तुकाराम जी का जन्म पुणे में इन्द्रायणी नदी के तट पर बसे देहु नामक गांव में सन् 1608 को एक शूद्र परिवार में हुआ था. जैसे कि वे स्वयं को “शूद्रवंशी जन्मलों.” अर्थात् मेंने शूद्र वेश में जन्म लिया है ऐसा कहते थे. उनके पिता बोल्होबा मोरे और माता का नाम कनकाई था उनकी दो पत्नियां थीं, एक का नाम रखुबाई था. जिनका दमे की बीमारी से उसका निधन हो गया था. और दूसरी पत्नी का नाम जीजाई था, जिससे उन्हें तीन लड़के और तीन लड़कियां हुईं. उनमें से बड़े पुत्र नारायण बाबा आजीवन ब्रह्माचारी रहे. तुकारामजी ने बनिये का धन्धा अपनाया था, किन्तु इस धन्धे में लोग उन्हें सीधा-सरल जानकर ठग लिया करते थे.
उनका परिवार कुनबी समाज से था. तुकाराम के परिवार का खुद का खुदरा ब्रिक्री और पैसे उधारी पर देने का व्यवसाय था. साथ ही उनका परिवार खेती और व्यापार भी करता था. उनके पिता विठोबा के भक्त थे, विठोबा को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है.
Summary
नाम | तुकाराम |
उपनाम | सन्त तुकाराम जी |
दर्शन | वारकरी, वैष्णव संप्रदाय |
जन्म स्थान | देहु गांव, पुणे |
जन्म तारीख | 1608 ईस्वी |
वंश | शूद्रवंशी |
माता का नाम | कनकाई |
पिता का नाम | बोल्होबा मोरे |
पत्नी का नाम | रखुबाई और |
प्रसिद्धि | अभंग, भक्ति, कविता |
रचना | तुकाराम की एक सौ कविता |
पेशा | कवी, सन्त, दार्शनिक |
बेटा और बेटी का नाम | विठोबा, नारायण, महादेव |
गुरु/शिक्षक | बाबाजी चैतन्य |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | महाराष्ट्र |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 19-मार्च-1650 पंढरपुर |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Sant Tukaram (संत तुकाराम जी की जीवनी) |
संत तुकाराम जी के चमत्कार
शूद्र संत तुकाराम ने जब ईश्वर के भजन-कीर्तन के साथ-साथ मराठी में अभंगों की रचना की. तो उनके अभंगों की पोथी को देखकर सवर्ण ब्राह्मणों ने उनकी यह कहकर निन्दा की कि तुम्हें निम्न जाति का होने के कारण यह सब अधिकार नहीं है. यहां तक कि रामेश्वर भट्ट नामक एक ब्राहाण ने उनकी सभी पोथियों को इन्द्रायणी नदी में बहा आने के लिए कहा. साधु प्रवृत्ति के तुकाराम ने सभी पोथियां नदी में प्रवाहित कर दीं. कुछ देर बाद जब उन्हें ऐस करने पर पश्चाताप हुआ, तो वे वहीं विट्ठल मन्दिर (हरी मंदिर) के सामने बैठकर रोने लगे. तेरह दिनों तक शूखे-प्यासे वहीं पड़े रहे. 14 वें दिन स्वयं विट्ठल भगवान ने प्रकट होकर उनसे कहा: ”तुम्हारी पोथियां नदी के बाहर पड़ी थी, संभालो अपनी पोथियां” जब देखा तो सचमुच ऐसा ही हुआ था.
एक बार ऐसे ही कुछ दुष्ट, ईर्ष्यालु ब्रहमणों ने एक दुश्चरित्र महिला को उन्हें बदनाम करने हेतु अकेले पाकर भेजा।संत तुकाराम जी के हृदय की पवित्रता देखकर वह स्त्री अपने कर्म पर लज्जित होकर पछतायी थी.
महाराज शिवाजी संत तुकाराम जी से क्यों मिले?
दोस्तों एक बार महाराज शिवाजी संत तुकाराम जी के दर्शन करने के लिए उनकी कीर्तन सभा में आये हुए थे. कुछ मुसलमान सैनिक बादशाह की आज्ञा से शिवाजी को धर-पकड़ने वहां पहुंचे. तुकारामजी ने अपनी चमत्कारिक शक्ति से वहां बैठे सभी लोगों को शिवाजी का रूप दे दिया. मुसलमान सैनिक अपना सिर पीटते हुए वहा से खाली हाथ ही लौट गये. 1630-31 में पड़े भयंकर अकाल व महामारी से तुकाराम जी ने गांव की रक्षा भी की थी.
सन्त तुकाराम जी की अभंग,साखियाँ, कविता एवं रचनाये
हिन्दी पद-
- काहे रोवे आगले मरा.
- आप तरे त्याकी कोण बराई.
- जग चले उस घाट कौन जाय.
- काहे भुला सम्पत्ति घोरे.
- बार-बार काहे मरत अभागी.
- खेलो आपने रामहि सात.
- तीनसों हम करवों सलाम.
- राम कहे त्याके पगहूँ लागूँ.
- मेरे राम को नाम जो लेवे बारों-बार.
- राम कहो जीवना फल सो ही.
साखियाँ
- चित्त मिले तो सब मिले.
- तुका संगत तीन्हसे कहिए.
- तुका बस्तर बिचारा क्या करे रे.
- लोभी के चित्त धन बैठे.
- सन्त पन्हयाँ लेव खड़ा.
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FAQs
Ans- संत तुकाराम जी पुस्तक का नाम तुकाराम की एक सौ कविता है.