Kashmir War 1947-1948 || कश्मीर का इतिहास और युद्ध 1947-1948

By | September 11, 2023
Kashmir War 1947-1948
Kashmir War 1947-1948

कश्मीर का इतिहास (History of Kashmir) Kashmir War 1947-1948

Kashmir War 1947-1948- सम्राट अशोक का कश्मीर पर शासन रहा, सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के मानने वाले थे. तथा साथ में इसके प्रचारक भी थे. अतः कश्मीर में बौद्ध धर्म का विस्तार करने के लिए उन्होंने ब्राह्मणवाद से त्रस्त लोगों को बौद्ध धर्म में शामिल किया. सम्राट अशोक ने मुजन्तीका नाम के एक व्यक्ति को पहली बार कश्मीर घाटी में बौद्ध धर्म के प्रचार के रूप में भेजा. उन्होंने कश्मीर में कई स्तूपों और विहारों की स्थापना की. श्रीनगर शहर की स्थापना सम्राट अशोक ने पंड्रेथन स्थान पर रखी थी. सम्राट अशोक के निधन के बाद कश्मीर में स्थानीय राजा जालौक ने अपना प्रभुत्व कायम किया. प्रथम शताब्दी में कुषाण राजवंश का दिन अधिकृत कश्मीर पर स्थापित हुआ कुषाण राजवंश का आधिपत्य कश्मीर पर इस्थापित हुआ.

कुषाण राजा का शासन सन 178 तक चला. इसके बाद, गोनन्द राजवंश का शासन काल में ब्राह्मणवाद को स्थापित करने का प्रयास किया गया. लेकिन तब तक बौद्ध धर्म की जड़े कश्मीर के समाज में गहराई तक समा चुकी थी. लेकिन ब्राह्मणवाद को पुनः स्थापित करने का परिणाम यह हुआ कि, वहां दर्शन ओ का विलय हुआ और शैववाद का जन्म हुआ. कश्मीरी पंडितों का तभी से शैववाद पर विश्वास बना हुआ है.

Summary

राज्य का नामजम्मू कश्मीर
राज्य का उपनामपृथ्वी का स्वर्ग
राजधानीकेंद्र शासित प्रदेश/श्रीनगर (मई–अक्टूबर)/जम्मू (नवम्बर-अप्रैल)
स्थापना31 अक्टूबर 2019
जम्मू कश्मीर राज्य में में कितने जिले है20 जिले
प्रसिद्ध शहरजम्मू, श्रीनगर, पहलगाम
राज्य की जनसंख्या1 करोड़ 25 लाख (लगभग)
क्षेत्रफल6,309 वर्ग मील
प्रमुख भाषाहिंदी/उर्दू/कश्मीरी/डोगरी/अंग्रेजी
साक्षरता77%
लिगं अनुपात1000/850 (लगभग)
सरकारी वेबसाइटWWW.jk.gov.in
Kashmir War 1947-1948

मिहिरगुल/मिहिरकुल का कश्मीर पर कब्जा

छठी शताब्दी के शुरू में हूण शासक मिहिरगुल जब भारत से हार कर कश्मीर आया, तो उसे वहां शरण दी गई. लेकिन उसने कुछ दिनों बाद में सत्ता पलट कर कश्मीर पर अपना कब्जा स्थापित किया. मिहिरगुल के शासनकाल में एक अत्तातायी व्यवस्था कायम हुई. अतः सन 530 ईसवी में मिहिरगुल द्वारा आत्महत्या करने के बाद को गोनन्द राजवंश के उत्तराधिकारी एक बार फिर से शासन पर काबिज हो गए. मिहिरगुल के आतंकी राज्य ने स्थानीय जनता में जागरूकता उत्पन्न की. जिसने राजा की शक्ति पर नियंत्रण स्थापित करने की आवश्यकता अनुभव की.

इसलिए राजा को सत्ता से बेदखल करने का अधिकार रखने वाली एक मंत्री परिषद का गठन किया. इस परिषद में गोनन्द राजवंश के अंतिम शासक युधिस्टर पर कुशासन का आरोप लगाकर सत्ता से बेदखल कर दिया. और उनके बदले एक बाहरी शासक प्रतापादित्य को शासन करने के लिए आमंत्रित किया. इनके शासन के साथ, कश्मीर घाटी उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के शासन में चली गई. विक्रमादित्य के राजवंश ने 192 वर्ष तक कश्मीर पर शासन किया. अंतिम राजा जयेंद्र पर भी मंत्री परिषद ने कुशासन का आरोप लगाया, और उनके स्थान पर राजा संधिमती को स्थापित किया. कुशासन करने वाले राजा को सत्ता से बेदखल करने से यह स्पष्ट होता है. कि कश्मीर में राजशाही पर एक संवैधानिक नियंत्रण भी था. जबकि भारत के दूसरे राज्यों में राजा ही सर्वशक्तिमान होता था.

कश्मीर में हिन्दू शासकों का स्वर्ण काल कब था?

राजा सिंधमति द्वारा शासन संभालने से लेकर सन 884 तक कश्मीर में हिंदू शासन का स्वर्ण काल कहा जाता है. इस काल में कला, साहित्य, स्थापत्य कला एवं संविधानिक विकास में काफी प्रगति हासिल की गई. लेकिन सन 884 के बाद 450 वर्ष वर्षों तक कश्मीर का इतिहास षड्यंत्रों,आक्रमणों और राज हत्याओं का इतिहास रहा. इस दौरान मोहम्मद गजनवी ने सन 1015 में असफल आक्रमण किया था. और इसके बाद सन 1319 में भी तार-तारा राजा दुलचा ने भी घाटी पर आक्रमण किया था. लेकिन तार-तारा और उसकी फौज राज्य से वापस जाते समय बर्फ में दबकर समाप्त हो गई थी. लेकिन पश्चिम तिब्बत के राजकुमार रिनछिन ने दुलचा के आक्रमण के पहले ही कश्मीर में घुसपैठ कर ली थी.

शासक सहदेव राजगद्दी छोड़कर किश्तवाड़ भाग गया था. जिससे राजकुमार रिनछिन को राज्य सत्ता पर काबिज होने में आसानी हुई. एक रोचक बात ये हुई कि राजकुमार रिनछिन “शैव मत” ग्रहण करना चाहते थे. लेकिन रूढ़िवादी ब्राह्मणों ने उन्हें “शैव मत” में शामिल करने से इंकार कर दिया. इसलिए उन्होंने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया और अपना नाम राजा सदर-उद-दीन रख लिया. इस तरह वह कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक बन गया. लेकिन 1332 में उसका निधन हो गया, और उसके शासन का कार्यकाल छोटा रह गया. तब उसकी पत्नी कोटा रानी ने पूर्व राजा सहदेव के भाई उदयानन्द को सत्ता संभालने के लिए आमंत्रित किया. हालांकि सदर-उद-दीन का बेटा हैदर बड़ा हो चुका था.

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लेकिन कश्मीर पर शीघ्र ही एक और लुटेरा डरविन ने आक्रमण कर दिया, और राजा उदयानन्द अपने भाई की तरह भागकर लद्दाक चला गया. लेकिन एक स्थानीय जागीरदार शाहमीर के सहयोग से कोटा रानी ने डरविन को खदेड़ भगाने में सफलता प्राप्त की. इससे शाहमीर स्थानीय जनता के बीच काफी लोकप्रिय हो गया. लेकिन रानी ने उदयानन्द को ही फिर सत्ता संभालने को आमंत्रित किया. और सन 1338 ईस्वी में उदयानन्द के निधन के बाद कोटा रानी ने स्वय कश्मीर की गद्दी संभाली.

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कश्मीर में मुस्लिम राजवंश की नींव कैसे पड़ी?

श्रीनगर में कश्मीर का दबदबा बढ़ जाने के कारण कोटा रानी ने अपना राज्य मुख्यालय अंदर कोर्ट के निकट स्थानांतरित कर लिया. अंदरकोट सुमवल के निकट था. जो कभी कश्मीर की राजधानी थी. वहां जाने के बाद कोटा रानी ने अपने विश्वासी दरबारी भीषण को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया. इस तरह कोटा रानी द्वारा अपेक्षित किए जाने के कारण शाहमीर ने विद्रोह का झंडा उठाया, जिससे स्थानीय जनता ने भरपूर समर्थन दिया. शाहमीर ने अंदरकोट पर हमला किया. जिसमें प्रधानमंत्री भीषण की मौत हो गई और कोटा रानी ने आत्मसमर्पण कर दिया. और शाहमीर ने उसे उनसे शादी की पेशकश की. लेकिन कोटा रानी ने आत्महत्या कर ली, इस तरह शाहमीर ने 1339 में सुल्तान शमस-उद-दीन का किताब लेकर राज्य में औपचारिक तौर पर मुस्लिम शासन की स्थापना की.

इस तरह राज्य में मुस्लिम शासन का तेजी से विस्तार हुआ. कहते हैं कि ब्राह्मणों की रूढ़िवादी धर्म परिवर्तन में योगदान दिया। शाहमीर का 1342 ईस्वी में निधन हो गया. लेकिन राज्य में मुस्लिम शासन निबोध तरीके से चलता रहा. शाहमीर के निधन के एक सौ वर्ष बाद जैन-उल-आबदीन ने कश्मीर मुसलमानों के बीच उस कला व दस्तरकारी को लोकप्रिय बनाया, जिसके लिए आज भी विश्व प्रसिद्ध है. लेकिन सन 1587 इसी में बादशाह अकबर ने कश्मीर पर अपना आधिपत्य जमा कर कश्मीर की 250 वर्षो की स्वतंत्रता छीन ली. और मुगलों ने कश्मीर पर 1752 ईस्वी तक शासन किया.

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जब अफगान राजशाही ने कश्मीर पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया. मुगलों ने विशेषकर शहंशाह जागीर ने कश्मीर को विशेष रूप में श्रीनगर को विख्यात बाग़ प्रदान किये. अफगान राजशाही में 67 वर्ष तक कश्मीर पर शासन किया. तब सिखों ने सन 1819 ईस्वी में उस पर अपनी सत्ता कायम कर दी. उधर जम्मू काफी समय से डोगरा राजपूत वंश के अधीन रहा. 18वीं सदी के अंत तक राजा रंजीत देव के कारण जम्मू का कुछ महत्व बढ़ गया.

सिख राजवंश की नींव कश्मीर में कब किसने डाली?

जम्मू के आसपास के इलाके किश्तवाड़, भदरवाह, भिम्बर और राजौरी में स्थानीय जागीरदार आपस में काफी लड़ते रहते थे. इसलिए 19वीं सदी के शुरू में यह सब पंजाब के राजा रणजीत सिंह के प्रभुत्व में आ गए. रणजीत सिंह को उनके तीन भतीजे गुलाब सिंह, ध्यान सिंह और सुचेत सिंह मदद करते थे. ध्यान सिंह महाराजा का मंत्री बन गया जबकि गुलाब सिंह ने सन 1820 ईस्वी में राजौरी के जागीरदार को पकड़कर नाम कमाया. जम्मू की रियासत पर तब तक सिखों ने कब्जा कर लिया था. महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू इलाका गुलाब सिंह को राजा की उपाधि प्रदान कर दे दिया. कुछ दिन बाद ध्यान सिंह को राजौरी और मुजफ्फराबाद के बीच पूंछ का राजा बना दिया गया. जबकि सुचेत सिंह को जम्मू के पूर्व में रामनगर का जागीदार बना दिया गया.

अगले 15 वर्षों में तीनों भाइयों ने मिलकर विशेषकर सबसे बड़े भाई गुलाब सिंह ने पड़ोस की सभी रियासतों पर अपना कब्जा जमा लिया. लेकिन सन 1840 ईस्वी में ज्ञान सिंह की हत्या हो गई, और सुचेत सिंह युद्ध में हार गया. और उसके बेटे हीरा सिंह की भी हत्या कर दी गई. फलस्वरुप गुलाब सिंह सभी जागीरदारों का मालिक बन गया. लेकिन पूँछ उसके हाथ नहीं लगा, जिसे लाहौर सरकार ने अपने नियंत्रण में कर लिया था. लेकिन सन 1844 तक गुलाब सिंह ने जम्मू प्रांत में शामिल सभी जागीरो पर अपना अधिकार जमा लिया था.

राजा गुलाब सिंह द्वारा स्कार्दू, लेह, लद्दाख, बाल्टिस्तान पर कब्जा

लद्दाख संभवतः कभी चीनी तिब्बत का हिस्सा रहा था. 17 वी शताब्दी के शुरू में स्कार्दू के बाल्ती प्रमुख ने इस पर कब्जा कर लिया था. बाद में यह जागीर लगभग स्वतंत्र रही. 18वीं सदी में एक मुगल जागीरदार ने लद्दाख पर हमला किया था. लेकिन कश्मीर के मुस्लिम गवर्नर की सहायता से इस हमले को विफल कर दिया गया. तब से लेकर सन 1834 ईस्वी तक लद्दाख कश्मीर के तहत एक स्वतंत्र जागीरा रहा. स्कार्दू के राजा के तहत सन 1840 तक बाल्टिस्तान भी स्वतंत्र रहा. लेकिन राजा गुलाब सिंह की फौज ने जोरावर सिंह और दीवान हरिचंद के नेतृत्व में सन 1834 से 1842 ईस्वी के बीच लद्दाख और बाल्टिस्तान पर कब्जा कर लिया था.

1841ईस्वी में घाटी में सेना के विद्रोह को कुचलने के लिए राजा गुलाब सिंह को गुलाम मोईनुद्दीन के साथ भेजा गया था. विद्रोही सेना ने कश्मीर घाटी के गवर्नर मियांसिंह की हत्या कर दी थी. यह अभियान सफल रहा और गुलाब सिंह के निकट मित्र और उस पर आश्रित रहने वाले गुलाम मोहिउद्दीन को कश्मीर का गवर्नर नियुक्त कर दिया गया. इस तरह जम्मू के राजा का कश्मीर घाटी पर भी प्रभुत्व जम गया.

राजा गुलाब सिंह और अंग्रेजो के मध्य संधि?

सन 18 सो 42 ईस्वी तक राजा गुलाब सिंह ने जम्मू और आसपास के इलाकों को अपने अधिपत्य में कर लिया. और लद्दाख, बाल्टिस्तान पर भी अपना कब्जा जमा लिया. लेकिन राज्य विस्तार का गुलाब सिंह का यह षड्यंत्र सन 18 सो 45 ईस्वी में विफल हो गया. जब एक सिख फौज ने आक्रमण करके उसे आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य कर दिया. उस पर ₹68 लाख का जुर्माना किया गया. उसे अपने भूभाग का नुकसान भी उठाना पड़ा. लेकिन इसके तत्काल बाद अंग्रेजों और सिखों के बीच लड़ाई शुरू हो गई. और लाहौर के सिख दरबार ने राजा गुलाब सिंह की सेवाएं एक मंत्री के रूप में ले ली. लेकिन गुलाब सिंह ने दोहरा खेल खेला उसने सिख और अंग्रेजों के बीच शांति संधि की वार्ता संपन्न होने के बाद पुरस्कार मांगा.

क्योंकि गुलाब सिंह का उस में महत्वपूर्ण योगदान था. ब्रिटिश सरकार ने उसकी मांग मान ली, और उसे वर्तमान जम्मू कश्मीर राज्य का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया. लेकिन इसके बदले में ब्रिटिश सरकार ने राजा गुलाब सिंह से 75 लाख रुपए ले लिए. जम्मू कश्मीर सत्ता का यह स्थानांतरण और संधि और अमृतसर संधि के माध्यम से किया गया. राजा गुलाब सिंह का सन 18 सो 57 में निधन हो गया और रणवीर सिंह उसका उत्तराधिकारी बना. सन 1885 तक जम्मू कश्मीर पर रणवीर सिंह का शासन रहा, फिर प्रताप सिंह ने सत्ता संभाली.

लेकिन उनके संतानहीन निधन के बाद सन 1925 ईस्वी में महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर की सत्ता संभाली. राजा हरि सिंह 26 अक्टूबर सन 1947 तक जम्मू कश्मीर के राजा रहे. इसके बाद भारत व पाकिस्तान को स्वतंत्रता मिलने पर पाकिस्तान द्वारा उत्पन्न परिस्थितियों ने उसे भारतीय संघ में विलय करने को मजबूर कर दिया.

कश्मीर युद्ध 1947-1948 होने के मुख्य कारण क्या थे?

उत्तर से दक्षिण 640 किमी और पूर्व से पश्चिम 480 किमी के क्षेत्र वाला जम्मू कश्मीर और लद्दाख तीन भागों में विभाजित है. सन 1946 ईस्वी में कश्मीर के महाराजा हरी सिंह के विरुद्ध कश्मीर में हिंदी भाषा की शिक्षा, और गौ हत्या पर लगे प्रतिबंध के विरोध में एक मुस्लिम अध्यापक मोहम्मद शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर छोड़ो आंदोलन का श्रीगणेश किया था. यह युवक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का छात्र था. जिसने कश्मीर लौटकर एक हाई स्कूल में अध्यापक की नौकरी की. महाराजा हरि सिंह ने उस पर राजद्रोह का मुकदमा कायम कर कश्मीर से निष्कासित कर दिया था. इस कार्रवाई के बाद मुस्लिम वर्ग ने उसे अपना नेता मान लिया. तथा उसने मुस्लिम कॉन्फ्रेंस नामक संस्था बनाकर सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र करना शुरू कर दिया.

शेख अब्दुल्ला को जेल जाना पड़ा, शेख अब्दुल्लाह पंडित जवाहरलाल नेहरू के मित्र थे. अतः पंडित जवाहरलाल नेहरु कश्मीर छोड़ो आंदोलन के समर्थन में अपने मित्र शेख अब्दुल्लाह की सहायता करने हेतु श्रीनगर गए. महाराजा हरि सिंह ने पंडित नेहरू को बंदी बनाकर दिल्ली वापस लौटने को विवश किया. यही कटुता पंडित नेहरू और कश्मीर महाराजा हरी सिंह के आगे चलकर कश्मीर की वर्तमान समस्या का कारण बनी. संभवत इसी कारण महाराजा हरि सिंह ने 15 अगस्त 1947 को विलय का निर्णय कर भारत और पाक दोनों देशों को यथास्थिति बनाए रखने का संदेश भेज दिया था.

महाराजा हरी सिंह द्वारा मोहम्मद अली जिन्ना का पाकिस्तान विलय प्रस्थाव ठुकराना और कश्मीर पर कबाइलियों का आक्रमण

मोहम्मद अली जिन्ना ने जो पाकिस्तान के संस्थापक थे. महाराजा हरी सिंह से कश्मीर पाकिस्तान में विलय करने को कहा. महाराजा द्वारा पाकिस्तान में विलय करने से मना करने के बाद पाक सीमा से लगे कश्मीर राज्य के गांव में कबाइलियो के आक्रमण कराकर कश्मीर राज्य में आतंक उत्पन कर दिया. भारत की ओर से तत्कालीन रियासती राज्यमंत्री गोपाल स्वामी आयंगर और कांग्रेस के नेता आचार्य कृपलानी महाराज को भारत में विलय के लिए सहमत कराने में असफल होने पर. गृहमंत्री सरदार पटेल ने विशेष प्रयतन किये गए. 18 अक्टूबर 1947 ईस्वी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के तत्कालीन सर संघ चालक श्री माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने श्रीनगर पहुंच कर महाराजा से भेट की.

भारत के वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भी महाराजा को समझाने का प्रयत्न किया परंतु असफल रहे. पाकिस्तान ने निराशाजनक स्थिति में 20 अक्टूबर 1947 ईस्वी को कबाइलियो के भेष में अपनी पाक सेना द्वारा आक्रमण कर दिया. इन हमलो के दौरान पाकिस्तान द्वारा इतना दबाव बनाया गया कि जम्मू कश्मीर राज्य के पास दो ही विकल्प शेष रह गए थे. कि या तो वह पाकिस्तान में सम्मिलित हो जाए. जिससे भारतीय सेना इस हमले को नाकाम कर दे. या पाकिस्तान के समक्ष समर्पण कर के कश्मीर लोगों की सुरक्षा व समान की पाकिस्तान से दया की भीख मांगे. लेकिन पाकिस्तान के समक्ष समर्पण कर के कश्मीरी लोगों की सुरक्षा व सम्मान की कोई गरंटी नहीं थी. तथा इसका यह अर्थ भी लगाया जाता है कि जम्मू कश्मीर में हिंसा और उत्पीड़न के समक्ष समर्पण कर दिया.

Kashmir War 1947-1948

24 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत में विलय संबंधी प्रस्ताव भेज दिया. परंतु भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू मौन साधे बैठे रहे. क्योंकि पंडित नेहरू चाहते थे, कि पहले महाराजा गद्दी छोड़े और अपने सभी अधिकार शेख अब्दुल्ला को सौंप दे. उधर कबाइलियो लूटमार बलात्कार करते रहे. मोहम्मद अली जिन्ना ने घोषणा कर दी कि 27 अक्टूबर 1947 को ईद का त्योहार श्रीनगर में मनाएंगे. रियासती सेना के सर्वोच्च कमांडर ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह मुट्ठी भर सैनिकों के साथ 2 दिन तक उड़ी सेक्टर में लड़े और अंत में वीरगति को प्राप्त हो गए.

जम्मू एंड कश्मीर का भारत में विलय कब हुआ?

25 अक्टूबर सन 1947 को रक्षा समिति की एक बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता लॉर्ड माउंटबेटन ने की जो उन दिनों स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे. कश्मीर समस्या का हल करने के लिए निर्णय लिया गया. कि कश्मीर को तुरंत सहायता पहुंचाई जाए. इस बात पर भी चर्चा हुई कि किसी भी प्रकार से सेना की तैनाती वहां की स्थिति का निरीक्षण करने के बाद ही की जाएगी. इस कार्य हेतु श्री वी पी मैनन को लेफ्टिनेंट कर्नल मानिक शाह के साथ श्रीनगर भेजा गया. श्रीनगर की स्थिति बहुत तेजी के साथ खराब होती जा रही थी. 26 अक्टूबर 1947 को वी पी मेनन ने रक्षा समिति को अवगत कराते हुए, कश्मीर को आक्रमणकारियों से बचाने की आवश्यकता पर बल दिया.

रक्षा समिति ने इस पर अपनी सहमति दी कि भारत सरकार को महाराजा के प्रस्ताव को मान लेना चाहिए. मैनन वापस जम्मू चले आये. महाराजा की उस समय तक जम्मू में ही थे. महाराजा को सैनिक सहायता तथा जम्मू व कश्मीर राज्य को भारत में मिलाने के अनुरोध के साथ दिल्ली लौट आए.

26 अक्टूबर 1947 को महाराजा ने जम्मू कश्मीर को भारत में विलय करने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए. तथा स्वतंत्र भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने इसकी स्वीकृति प्रदान की. इस प्रकार जम्मू कश्मीर भारत में विलय होकर वैधानिक अधिकार प्राप्त कर लिया.

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Kashmir War 1947-1948

FAQs

Q- जम्मू एंड कश्मीर का भारत में विलय कब हुआ था?

Ans- 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा ने जम्मू कश्मीर को भारत में विलय करने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे.

भारत की संस्कृति

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