दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, संत ज्ञानेश्वर जी की जीवनी (Biography of Sant Dnyaneshwar Ji). और उनके के चमत्कार. तो दोस्तों चलते है और जानते है ज्ञानेश्वर जी की वो रोचक जानकारी जिसके बारे में अब से पहले अनजान थे. इस लिए मित्रों बने रहे हमारे साथ अंत तक संत ज्ञानेश्वर जी की अद्भुत जानकारी के लिए.
संत ज्ञानेश्वर जी के पिता ने जवानी में ही गृहस्थ जीवन का परित्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया था. परंतु गुरु आदेश से उन्हें फिर से गृहस्थ-जीवन शुरु करना पड़ा. इस घटना को समाज ने मान्यता नहीं दी और इन्हें समाज से बहिष्कृत होना पड़ा. ज्ञानेश्वर के माता-पिता से यह अपमान सहन नहीं हुआ. और बालक ज्ञानेश्वर के सिर से उनके माता-पिता का साया सदा के लिए उठ गया था.
Biography of Sant Dnyaneshwar Ji (संत ज्ञानेश्वर जी की जीवनी)
महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के आलंदी गांव में सन् 1275 में श्रावण बदी अष्टमी को एक प्रज्ञावान पुत्र ज्ञानेश्वर का जन्म हुआ, जिसे प्रारम्भ में ज्ञानोबा या ज्ञानदेव कहा जाता था. आपके पिता जी का नाम विट्ठलपंत कुलकर्णी और माता जी का नाम रुक्मिणी देवी था. आप चार भाई बहिन थे जो महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत हुए . आपके बड़े भाई का नाम निवृत्तिनाथ था जो महाराष्ट्र के सन्तों में प्रसिद्ध हुए. आपकी दो बहने थी जिनके नाम सोपानदेव और मुक्ताबाई था.
संत ज्ञानेश्वर जी ने मात्र 15 वर्ष की अवस्था में 9 हजार पृष्ठों की ज्ञानेश्वरी गीता लिखी, जिसमें मराठी के 700 ओवी, छन्द, 46 भाषाओं सहित शामिल हैं. जनसाधारण की भाषा में लिखी गयी इस गीता में ज्ञान, कर्म और शक्ति योग का अनूठा समन्वय है. “ज्ञानेश्वरी गीता” मराठी में होने के कारण जनसामान्य द्वारा अत्यन्त लोकप्रिय हो गयी और घर-घर पढ़ी जाने लगी, तो कट्टरपंथी ब्राह्मणों ने इसका पुरजोर विरोध किया. ज्ञानेश्वरी गीता व उनके उपदेशों में मानवतावादी मूल्यों की प्रधानता है. ईश्वर सभी जातियों का है, जो पिछड़े और निम्न जातियों के साथ समस्त प्राणियों में निवास करता है, ऐसा उनका विचार था.
संत ज्ञानेश्वर जी कौन थे?/Summeay
नाम | संत ज्ञानेश्वर जी |
उपनाम | ज्ञानोबा और ज्ञानदेव |
जन्म स्थान | पुणे जिले के आलंदी गांव |
जन्म तारीख | सन् 1275 में श्रावण बदी |
वंश | कुलकर्णी |
माता का नाम | रुक्मिणी देवी |
पिता का नाम | विठ्ठलपंत कुलकर्णी |
पत्नी का नाम | शादी नहीं की |
पुस्तक | “ज्ञानेश्वरी गीता” मराठी में |
बेटा और बेटी का नाम | शादी नहीं की |
गुरु/शिक्षक | स्वामी रामानन्द |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | महाराष्ट्र |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | मात्र 21 वर्ष की आयु में समाधि धारण |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Sant Dnyaneshwar Ji (संत ज्ञानेश्वर जी की जीवनी) |
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संत ज्ञानेश्वर जी के चमत्कार और अंतिम समय
श्री संत ज्ञानेश्वर जी महाराष्ट्र के उन धार्मिक गुरुवों और संतो में से एक थे, जिन्होंने दलित जातियों के उद्धार हेतु इस संसार में जीवन धारण किया था. मात्र 21 वर्ष की आयु में समाधि धारण करने वाले ज्ञानेश्वर जी ने अपने चमत्कारों से अज्ञान रूपी अन्धकार में डूबे हुए लोगों को मानवता का सच्चा ज्ञान कराया था. ज्ञानेश्वर जी का इस धरती पर जन्म लेना किसी चमत्कार से कम नहीं था. कहा जाता है कि उनकी माता रुक्मिणी को छोड़कर उनके पिता ने सन्यास धारण कर लिया था. एक दिन स्वामी रामानन्द नाम के सन्त रामेश्वर की यात्रा पर जाते-जाते महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के आलंदी गांव में में रुके थे. आपकी पूजय माता जी श्रीमती रुक्मिणी जी ने स्वामी रामानन्द के श्रद्धाभाव से चरण छुए थे.
स्वामी रामानंद जी का रुक्मणी जी को आशीर्वाद
संत स्वामी रामानन्द ने उन्हें पुत्रवतीभव का आशीर्वाद दे डाला. आपकी माता जी श्रीमती रुक्मिणी जी ने स्वामी रामानन्द से प्रश्न किया कि: उनके पति विट्ठलपंत कुलकर्णी गृहस्थ जीवन छोड़कर वे संन्यासी हो गये है. ऐसे में शास्त्रों की दृष्टि में वह धर्म की मर्यादा कैसे भंग कर सकती है? स्वामी रामानन्द की प्रेरणा ने रुक्मिणी को काशी (Varansi) जाने हेतु प्रेरित किया. स्वामी रामानन्द ने विट्ठलपंत कुलकर्णी को समझा-बुझाकर रुक्मिणी के साथ आलन्दी ग्राम भेज दिया. गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने के उपरान्त कुलकर्णी दम्पती ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जो निवृत्तिनाथ के नाम से विख्यात महाराष्ट्र के सन्तों में प्रसिद्ध हुआ. तथा उसके बाद संत ज्ञानेश्वर जी का जन्म हुआ था.
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विट्ठलपंत कुलकर्णी और माता रुक्मिणी जी के बच्चों के जन्म लेने के बाद इनकी तकलीफें तब बढ़ गयीं, जब कुछ कट्टरपंथी पण्डितों ने संन्यासी होकर भी गृहस्थ जीवन जीने की वजह से विट्ठलपंत कुलकर्णी और उनकी पत्नी रुक्मिणी जी को धर्मभ्रष्ट और कलंकी कहकर समाज और जाति से बहिष्कृत कर दिया. इस संकटकाल में दोनों पति-पत्नी ने अपने बच्चों के साथ अनेक कष्टों उघैर अपमान की पीड़ा का सामना किया.
संत ज्ञानेश्वर जी के चमत्कार
वैसे तो संत ज्ञानेश्वर जी के बहुत चमत्कार किये, हम यहाँ कुछ चमत्कार आपके साथ साझा कर रहे है. निवृत्ति के उपनयनसंस्कार हेतु जब कोई ब्राह्मण साथ नहीं आया, तो आपके पिता जी पूरे परिवार को लेकर व्यंबकेश्वर चले आये. यहां पर प्रसिद्ध योगी गहनीनाथ से निवृति ने दीक्षा ली. यहाँ के पण्डितों ने ज्ञानेश्वर जी का उपनयन संस्कार विट्ठलपंत कुलकर्णी और माता रुक्मिणी चारों बच्चों को प्रायश्चित स्वरूप देह त्यागने पर स्वीकार किया. आज्ञा मानकर कुलकर्णी विट्ठलपंत और रुक्मिणी चारों बच्चों को अनाथ, असहाय छोड़कर प्रयाग में जल समाधिस्थ हो थे.
सन 1288 में पैठण के ब्राह्मणों ने चारों भाई-बहिनों निवृत्तिनाथ, संत ज्ञानेश्वर जी और दो बहन सोपानदेव और मुक्ताबाई की शुद्धि करवाकर समाज में सम्मिलित कर लिया. 1298 ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी गीता नामक मराठी भाषा में ग्रन्थ लिखा. आठ हजार पृष्ठ के इस ग्रन्थ में गीता का भावार्थ मराठी के ओवी छन्दों में सरल ढंग से लिखा.
संत ज्ञानदेव संघर्षमय जीवन
विसोबा नाम का एक ब्राह्मण, जो हमेशा आपको और आपके भाई बहनो को परेशान करने के साथ-साथ लोगों को यह कहकर धमकाता था कि जो इन धर्मभ्रष्ट भाई-बहिनों का साथ देगा, उसे जाति से बहिकृत कर दिया जायेगा. एक बार मुक्ताबाई की इच्छा गरम परांठे खाने की हुई. कुम्हारों के पास खाना पकाने वाला तवा और बर्तन लेने जाने पर विसोबा ने कुम्हारों को उन्हें देने से रोक दिया. मुक्ताबाई के इस दु:ख से दुखी होकर ज्ञानेश्वर ने अपने प्राणायाम के बल पर पीठ को तवे की तरह तपा लिया और उस पर मुक्ताबाई ने परांठे सेंके. पंडित विसोबा यह सब देखकर अवाक रह गया. वह अफ़सोस करते हुए उनके चरणों पर गिर पड़ा.
संत ज्ञानदेव संघर्षमय जीवन और चमत्कार
एक बार संत ज्ञानेश्वर जी पैठण पहुंचे, तो वहां पण्डितों की सभा में जाने पर उनकी बहस शुरू हुई. ज्ञानेश्वर ने बहस में कहा “परमेश्वर सभी प्राणियों में निवास करते हैं. इस पर वहां मौजूद पंडितो ने यह कहकर ताना मारा तब तो इस भैंसे में भी भगवान होंगे. तब संत ज्ञानदेव ने कहा: ”इसमें झूठ क्या है ?” एक पण्डित ने भैंसे की पीठ पर कोड़े बरसाते हुए कहा: “तुम्हारी पीठ पर इसके निशान दिखाओ ?” अगले ही पल में संत ज्ञानदेव की पीठ पर वही निशान और घाव के साथ बहता हुआ खून नजर आने लगा.
यहां तक कि संत श्री ज्ञानदेव ने उस भैंस के मुख से वैदिक मन्त्रों का उच्चारण भी करवाया था. अब तो पण्डितों को आपके ईश्वरीय अंश का बोध होने लगा था. संत ज्ञानेश्वर जी ने एक स्त्री के पति को जीवित करने का चमत्कार भी कर दिखाया था. आपके प्रमुख चमत्कारों में चांगदेव नामक सिद्ध सन्त-जो गोदावरी नदी के किनारे रहते थे-से सम्बन्धित चमत्कार उल्लेखनीय है.
संत श्री ज्ञानदेव वारकरी सम्प्रदाय के संप्र्दाय माने जाते हैं. इस सम्प्रदाय के मानने वाले आषाढ़ी कार्तिकी एकादशी के दिन आपकी समाधिस्थल पर मेले में एकत्र होकर अपना श्रद्धाभाव व्यक्त करते हैं.
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FAQs
Ans- भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुणे जिले के आलंदी गांव में सन् 1275 में श्रावण बदी अष्टमी को संत ज्ञानेश्वर जी का जन्म हुआ था.
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