भारतीय धर्मों में सिख धर्म का अपना विशेष योगदान रहा है इस धर्म में ऐसे कई संप्रदाय और धार्मिक गुरु हुए हैं. जिनमें किसी संप्रदाय में गृहस्थ जीवन वर्जित था. तो किसी संप्रदाय में गृहस्थ जीवन का कोई बाधक नहीं था. गृहस्थ जीवन का पालन करते हुए जिन लोगों ने अपने आदर्शों और विचारों से आध्यात्मिक उन्नति की उनमें गुरु अर्जुन देव का नाम सर्वोपरि है. गुरु अर्जुन देव शिखो को के पांचवें गुरु थे. हम यहाँ गुरु अर्जुन देव जी की जीवनी (Biography of Guru Arjun Dev Ji)और उनसे जुड़ी रोचक जानकारी आपके साथ शेयर करने वाले है. इस लिए दोस्तों गुरु अर्जुन देव जी की अद्भुत जानकारी के लिए बने रहे हमारे साथ अंत तक.
गुरु अर्जन देव जी कौन थे?
गुरु अर्जन देव शिखो को के पांचवें गुरु थे. गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 1620 वैशाख कृष्ण सप्तमी (15-अप्रैल-1563) को गोविंदवाल अमृतसर पंजाब में हुआ था. उनके पिता गुरु राम दास जी थे जो सीखो के चौथे गुरु थे, तथा माता बीबी भानी धार्मिक संस्कार संपन्न थे. गुरु अर्जन देव अपने माता-पिता के परम भक्त थे, और धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे. उनके दो विवाह हुए, पहला विवाह मोडगांव के चंद्र दास खत्री की कन्या रामदेवजी से हुआ. रामदेवजी से कोई संतान नहीं थी. दूसरा विवाह गंगादेवी जी से हुआ था. दूसरी पत्नी गंगा देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम हरगोविंद था. जो सिखों के छठे गुरु भी हुए थे.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸ਼ਿਖੋ ਦੇ ਪੰਜਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 1620 ਵੈਸਾਖ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਸਪਤਮੀ (15-ਅਪ੍ਰੈਲ-1563) ਨੂੰ ਗੋਵਿੰਦਵਾਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ਸੀ. ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਿਤਾ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਸਨ, ਜੋ ਵਿਦਿਆ ਦੇ ਚੌਥੇ ਗੁਰੂ ਸਨ, ਅਤੇ ਮਾਤਾ ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਇੱਕ ਧਾਰਮਿਕ ਆਗੂ ਸਨ. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਆਪਣੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸਨ, ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਸਨ. ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੋ ਵਿਆਹ ਸਨ, ਪਹਿਲਾ ਮੋਡਗਾਓਂ ਦੇ ਚੰਦਰ ਦਾਸ ਖੱਤਰੀ ਦੀ ਪੁੱਤਰੀ ਰਾਮਦੇਵ ਜੀ ਨਾਲ ਸੀ. ਰਾਮਦੇਵ ਜੀ ਤੋਂ ਕੋਈ ਬੱਚਾ ਨਹੀਂ ਸੀ. ਦੂਜਾ ਵਿਆਹ ਗੰਗਾਦੇਵੀ ਜੀ ਨਾਲ ਹੋਇਆ. ਦੂਜੀ ਪਤਨੀ ਗੰਗਾ ਦੇਵੀ ਦੇ ਘਰ ਜੋ ਪੁੱਤਰ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ, ਉਸ ਦਾ ਨਾਂ ਹਰਗੋਵਿੰਦ ਸੀ. ਜੋ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਛੇਵੇਂ ਗੁਰੂ ਵੀ ਸਨ.
Summary
नाम | गुरु अर्जुन देव |
उपनाम | अर्जुन देव, शहीदों के सरताज एवं शान्तिपुंज, ब्रह्मज्ञानी |
जन्म स्थान | गोविंदवाल अमृतसर पंजाब |
जन्म तारीख | 15-अप्रैल-1563 |
वंश | सोढ़ी खत्री |
माता का नाम | बीबी भानी |
पिता का नाम | गुरु राम दास जी |
पत्नी का नाम | रामदेव जी, गंगादेवी जी |
प्रसिद्धि | तरण तारण का निर्माण, दरबार साहब निर्माण (गोल्डन टेम्पल अमृतसर), करतारपुर शहर बसाया, गुरु ग्रंथ साहब का संकलन तथा संपादन किया |
पेशा | धार्मिक गुरु, कवि |
बेटा और बेटी का नाम | हरगोविंद |
गुरु/शिक्षक | गुरु रामदास जी |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | पंजाब |
धर्म | सिख |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 30 मई, सन् 1606 ईस्वी |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Guru Arjan Dev Ji (गुरु अर्जुन देव की जीवनी) |
गुरु अर्जुन देव जी का सिख धर्म के लिए क्या योगदान दिया?
गुरु अर्जुन देव ने अमृतसर में मंदिर बनवाया, जिसे हरमंदर साहब या दरबार साहब भी करते हैं. इस मंदिर में गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा की जाती है. उन्होंने तरण तारण का निर्माण कर वहां एक तालाब बनवाया. व्यास और सतलज नदियों के बीच शहर बसाया उसे आज करतारपुर के नाम से जानते हैं. उनके कई धार्मिक तथा व्यक्तिगत शत्रु थे. जिन्होंने उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचे मुगल बादशाह अकबर का मंत्री बीरबल अर्थ मंत्री चन्दूशाह उनका भाई प्रिथिया जिन्होंने उनके पुत्र हरगोविंद को जहर देकर मारने का षड्यंत्र किया था.
अपने संघर्ष में जीवन में उन्होंने शांति गंभीरता समाज एकता,छमा शक्ति का परिचय दिया. धर्म से विचिलित हुए बिना उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की. गुरु ग्रंथ साहब का संकलन तथा संपादन किया. चारों गुरुओ की यथार्थ वाणी की संग्रह किया. कबीरदास, रैदास, फरीद, जय देव आदि की रचनावो को भी श्लोको और गुरु वाणी में लिखवाया. 43 वर्ष की आयु में गुरु अर्जुन देव को धर्म की वेदी पर बलिदान होना पड़ा था. चन्दूशाह का भाई प्रिथिया बादशाह अकबर से झूठी शिकायत कर उनके कान भरे की, गुरु ग्रंथ साहब में मुस्लिम पैगंबर के बारे में निंदा लिखी हुई है. बादशाह ने उनसे गुरुग्रंथ साहब को नष्ट करने तथा दो लाख जुर्माना देने को कहा. उन्होंने अस्वीकार करते हुए, कहाँ न तो हिंदुओं के बारे में कुछ लिखा और न ही मुसलमानों के बारे में.
गुरु अर्जुन देव जी कैसे शहीद हुए?
मुगल बादशाह जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव को जेल खाने में डालते ही मानसिक यातनाएं देनी शुरू कर दी. उन पर गरम गरम रेत डाली गई, जलती हुई लाल कढ़ाई में बिठाया गया. माया और धर्म का पर्दा उनके भीतर से हट चूका था. तो सतगुरु का प्रकाश रोम रोम में लोकगीत हो रहा था. 5 दिन लगातार कारागार में बिताने के बाद. उन्होंने रावी नदी में स्नान करने की इच्छा जताई. स्नान करने के लिए निकले तो लोगो ने देखा. उनका शरीर पूरी तरह से फफोलो से भरा हुआ था. पर उनके चेहरे पर सद्गुरु की ज्योति थी, वे वाहेगुरु वाहेगुरु जाप करते हुए आगे बढ़ रहे थे.
1663 ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 30 मई, सन् 1606 के दिन उन्होंने अपने शरीर की केंचुली छोड़ दी. दुस्ट दृष्ट चंदूशाह की दयावान धार्मिक पुत्रवधू इस समाचार को पाकर मूर्छित हो गई और उसने भी अपनी देह त्याग दिया था. सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव गुरु ने गुरु ग्रंथ साहब की रचना और पंजाब में स्वर्ण मंदिर के निर्माण के रूप में बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ याद किया जाता रहेगा. धन्य है वह महापुरुष जिन्होंने अपने आदर्शों के लिए मरना स्वीकार किया पर सिद्धांतों से समझौता करना स्वीकार नहीं किया था.
गुरु अर्जुन देव जी का गुरुद्वारा कहाँ है?
दोस्तों जब मुगल शासक जहांगीर के आदेश के मुताबिक, गुरु अर्जन देव जी को पांच दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गईं थी. लेकिन उन्होंने शांत मन से सबकुछ सहा, अंत में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत् 1663 (30 मई, सन् 1606) को उन्हें लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवे पर बिठाया. उनके ऊपर गर्म रेत और तेल डाला गया.
लगातार यातनाओ के कारण गुरु अर्जन देव जी मूर्छित हो गए. तो उनके शरीर को रावी की धारा में बहा दिया गया. उनके स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया, जो वर्तमान में लाहौर पाकिस्तान में है. दोस्तों गुरु अर्जन देव जी का पूरा जीवन मानव सेवा को समर्पित रहा है. वे दया और करुणा के सागर थे. वे समाज के हर समुदाय और वर्ग को समान भाव से देखते थे. उनके सामाजिक जागृति और कार्य के लिए भारत उनका हमेसा ऋणी रहेगा.
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FAQs
Ans- सीखो के पांचवे गुरु अर्जुन देव जी की मृत्यु वर्तमान पाकिस्तान के लाहौर में 30 मई, सन् 1606 को हुई थी.