Story of Bhakt Balak Dhruv || भक्त बालक ध्रुव की कहानी, वरदान

By | December 26, 2023
Story of Bhakt Balak Dhruv
Story of Bhakt Balak Dhruv

प्रस्तावना

हमारे देश में धार्मिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक कथाओं में ऐसे महान बालकों के उदाहरण मिलते हैं. इन्होंने अपनी मात्र भक्ति, गुरु भक्ति तथा ईश्वर भक्ति से समस्त देश को चमत्कृत कर रखा था. आरुणि, उपमन्यु एकलव्य, श्रवण कुमार के साथ नाम आता है भक्त: बालक ध्रुव का. हम यहाँ भक्त ध्रुव की कहानी (Story of Bhakt Balak Dhruv) भक्त बालक ध्रुव का ईश्वर का वरदान और उनसे जुड़ी वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप आज से पहले अनजान थे, तो दोस्तों चलते है और जानते है भक्त बालक ध्रुव आश्चर्जनक जानकारी.

भक्त बालक ध्रुव कौन थे?

दोस्तों हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार भक्त बालक ध्रुव भगवान विष्णु के महान तपस्वी और भक्त थे. इनकी कथा श्रीमद्भागवत पुराण और विष्णु पुराण में आती है, उसके अनुसार भक्त बालक ध्रुव उत्तानपाद जिनको स्वयंभू मनु के नाम से जाना जाता है के पुत्र थे. बालक ध्रुव की माता का नाम सुनीति था. ध्रुव ने बचपन में ही घरबार छोड़कर तपस्या करने की ठानी थी. ब्रह्मा जी के पुत्र स्वायम्भुव मनु और शतरूपा के अत्यन्त प्रतापी पुत्र उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थीं. उनमें से उनकी छोटी पत्नी सुरूचि पर महाराज का अत्यधिक प्रेम था. उससे उनको जो पुत्र हुआ, उस का नाम उत्तम रखा था. उत्तानपाद महाराज की बड़ी रानी सुनीति के पुत्र का नाम था ध्रुव था.

Summary

नामभक्त बालक ध्रुव
उपनामध्रुव
जन्म स्थानउत्तर प्रदेश
जन्म तारीख
वंशमनु
माता का नामसुनीति
पिता का नामउत्तानपाद (स्वयंभू मनु)
पत्नी का नाम
उत्तराधिकारीउत्तम
भाई/बहनउत्तम
प्रसिद्धिध्रुवलोक के राजा, धुर्व तारा
रचना
पेशाराजा पुत्र
पुत्र और पुत्री का नाम
गुरु/शिक्षकस्वयंभू मनु
देशभारत
राज्य क्षेत्रभारत
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषासंस्कृत, हिंदी
मृत्यु
मृत्यु स्थान
जीवन काल
पोस्ट श्रेणीStory of Bhakt Balak Dhruv (भक्त बालक ध्रुव की कहानी)
Story of Bhakt Balak Dhruv

भक्त बालक ध्रुव की कथा, बालक ध्रुव तारा कैसे बना?

श्रीमद्भागवत पुराण और विष्णु में भक्त बालक ध्रुव की कथा है. इनके अनुसार, बालक ध्रुव के पिता का नाम उत्तानपाद की दो पत्नियां थीं. सुनीति और सुरुचि, ध्रुव सुनीति का पुत्र था. एक बार सुरुचि ने बालक ध्रुव को यह कहकर राजा उत्तानपाद की गोद से उतार दिया कि मेरे गर्भ से पैदा होने वाला ही गोद और सिंहासन का अधिकारी है. बालक ध्रुव अपनी मां सुनीति के पास पहुंचा और अपने साथ हुए अपमान का वर्णन किया.

माता सुनीति बालक ध्रुव को उसे भगवान की भक्ति के माध्यम से ही लोक-परलोक के सुख पाने का रास्ता सूझाया. फिर बालक ध्रुव ने घर छोड़ दिया, और वन में देवर्षि नारद की कृपा से ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र की दीक्षा ली। इस नाम का जाप करते हुए यमुना नदी के किनारे मधुवन में बालक ध्रुव ने तप किया. इतने छोटे बालक की तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु ने भक्त बालक ध्रुव को ध्रुवलोक प्रदान किया. दोस्तों कहाँ जाता है, आकाश में दिखाई देने वाला ध्रुव तारा बालक ध्रुव का ही प्रतीक है.

Story of Bhakt Balak Dhruv (भक्त बालक ध्रुव की कहानी)

एक समय की बात है महाराजा उत्तानपाद अपनी छोटी रानी के बेटे उत्तम को गोद में लेकर प्यार कर रहे थे. ऐसे में बालक ध्रुव भी अपने पिता की गोद में बैठने के लिए मचलने लगा. बालक ध्रुव जैसे ही पिता की गोद में बैठने को उद्द्त हुआ, छोटी रानी सुरुचि ने उसे धक्का दे दिया. बालक ध्रुव इस अपमान से बहुत दुखी हो गया था. वह अपनी माता सुनिति के पास जाकर रोने लगा. सुनिति ने उसे समझाया बेटे इस तरह दुःखी नहीं होते. यदि तुम्हें इससे भी बड़ा आसान चाहिए, तो तुम एकनिष्ठ भाव से उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करो. यदि तुम एकाग्रमन से ईश्वर की आराधना करोगे, तो ईश्वर तुम्हारे सारे दुःख दूर कर देंगे. अतः तुम नारायण भगवान की स्तुति करो.

अपनी माता के इन वचनों को सुनकर बालक ध्रुव नारायण भगवान की कृपा प्राप्त करने वन की और निकल पड़ा. मार्ग में बालक ध्रुव को देवऋषि नारद जी मिले. नारद जी ने बालक ध्रुव को समझाया, तुम्हारे लिए यह तप बड़ा ही कठिन होगा. बालक ध्रुव को लाख भय और प्रलोभन दिखाने पर भी उसकी अविचल भक्ति के दृढ़ संकल्प को देखकर नारद ने उसे भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र की दीक्षा दी. बालक ध्रुव ने नारद जी के मंत्र का अखण्ड जाप करने लगा. पहले महीने में फलाहार, फिर फलाहार छोड़कर कुछ बेर इत्यादि खाए. कुछ महीनों बाद वृक्ष टूटे पत्ते खाये, फिर सूखी घास खायी.

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3 माह 9 दिन की साधना के बाद केवल जल पर निर्वाह किया. फिर जल का त्याग कर वायु का सेवन किया. 5 माह में एक पैर पर खड़े रहकर तपस्या में रमा रहा. अब उसने तीन लोको के तीन तत्वों के आधार पर भगवान को अपने हृदय में ध्यानस्थ कर लिया. उसके सांस लेना बंद कर देने के कारण, तीनों लोको के प्राणियों ने सांस लेना जैसे त्याग दिया. उसके सांस त्याग पर तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई, प्रतीत हुआ जैसे संसार की सब सांस रुक गई है.

बालक ध्रुव को ईश्वर भक्ति का वरदान

बालक ध्रुव की ऐसी अविचल अनन्य भाव से भरी हुई भक्ति को देखकर नारायण भगवान गरुड़ पर सवार होकर बालक ध्रुव के सामने आए. बालक ध्रुव नारायण भगवान को अपने सामने साक्षात देख कर आनंद विभोर हो गया. भगवान नारायण का स्पर्श पाते ही, उसके हृदय में तत्वज्ञान का प्रकाश हो गया. वह संपूर्ण विधाओं में जैसे प्रवीण हो गया. भगवान नारायण ने कहा मैं तुम्हारे हृदय की बात जान गया हूं. मैं तुम्हें वह पद वह स्थान देना चाहता हूं जो कि दूसरों के लिए दुर्लभ है. सभी ग्रह नक्षत्र तारे उसकी प्रदक्षिणा करेंगे. तुम पृथ्वी पर दीर्घकाल तक शासन करने के बाद ब्रह्मांड के केंद्र में रहोगे। इधर ध्रुव के वन जाने पर राजा उत्तानपाद काफी दुखी थे.

वे ध्रुव की माता सुनीति के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने लगे. ध्रुव के साथ हुए दुर्व्यवहार पर लज्जित थे. जैसे ही उन्हें ध्रुव के लौटने का समाचार मिला, तो वे अपने प्रतिनिधियों, हाथी, घोड़ों एवं रानियों सहित उन्हें ससम्मान लेने के लिए निकल पड़े. उन्हें जैसे ही बालक ध्रुव आता हुआ दिखाई पड़ा, वे प्रणाम कर भूमि पर लेट गए और बालक ध्रुव को गले लगा लिया. ध्रुव की वीमाता सुरुचि ने ध्रुव को प्रणाम किया, उसने उसे गोद में उठा लिया. वह सुनीति तथा ध्रुव के इस पुण्य कार्य की प्रशंसा करने लगी. इधर कुछ दिनों बाद महाराज ने वैराग्य धारण किया और ध्रुव का राज्यअभिषेक कर दिया. उसके पश्चात वे तपोवन चले गए.

उपसंहार

बालक ध्रुव ने सांसारिक भोगों से निवृत्त होकर केवल ईश्वर के ध्यान में अपना समय व्यतीत किया. प्रजा को सुखी और संपन्न रखने का अपना कर्तव्य पूर्ण किया. जब उन्होंने संसार त्यागने की इच्छा की, तो दिव्य विमान में भगवान के प्रतिनिधि उन्हें लेने आए. बालक ध्रुव ने अपनी माता का स्मरण किया, उनकी कृपा से सभी को स्वर्ग लोक का सुख प्राप्त हुआ. इस तरह ध्रुव विराजे, ध्रुव तारे में. ब्रह्मांड में चमकता हुआ ध्रुव तारा, वही उनका ज्योतिर्मय ध्यान है. ध्रुव समस्त संसार में अविचल, अटल, दृढ़ भक्ति के पर्याय माने जाते हैं.

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FAQs

Q- भक्त बालक ध्रुव (Story of Bhakt Balak Dhruv) की माता का क्या नाम था?

Ans- भक्त बालक ध्रुव की माता का नाम सुनीति था, जो राजा उत्तानपाद की पहली पत्नी थी.

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