प्रस्तावना- हिंदू धर्म और संस्कृति में राम हमारे महान चारित्रिक आदर्श रहे हैं. मानव अवतार में वे एक सामान्य मानव की भांति लीलाएं करते हैं. तो अलौकिक अवतारी पुरुष के रूप में भी दिव्य शक्तियों के पुंज हैं. भारतीय जनमानस में उनकी मर्यादा पुरुषोत्तम लोकनायक की छवि अपार श्रद्धा का कारण है. वे संसार में अन्याय और अत्याचार का विनाश करने के लिए. तथा अपने भक्तों के कल्याण के निमित्त जन्म लेते हैं. भगवान श्रीराम सर्वशक्तिमान, प्रजापालक, सर्वअंतर्यामी, पारब्रह्म हैं. सर्वगुणआधार हैं, क्षमा, दया, शूरता, नीति, सत्य, मातृ- पितृभक्त, मित्र तथा भक्तवत्सल है. उनका प्रत्येक कार्य कविता एवं अनुकरणीय है. उनका लीला चरित्र पढ़कर कोई भी उनकी भक्ति के सागर में निमग्न हुए बिना नहीं रह सकता है. हम यहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जीवनी (Biography of Maryada Purushottam Lord Shri Ram).
और उनसे जुड़ी वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. दोस्तों साथ ही आप जानेगे, भगवान श्रीराम किसके वंसज थे. श्रीराम जी के कितने भाई थे. भगवान श्रीराम ने कितने वर्ष वनवास काटा था. श्रीराम ने रावण को क्यों मारा था. माता सीता की परीक्षा श्रीराम जी ने क्यों ली थी. लव और कुश किसके बेटे थे. भगवान राम के गुरु कौन थे. ऐसे तमाम सवालों के जवाब आपको इस पेज पर मिलेंगे. तो दोस्तों चलते है और जानते है भगवान श्री राम की आश्चर्जनक जानकारी.
Summary
नाम | राम/श्री राम/श्रीरामचन्द्र |
उपनाम | श्रीरघुवरजी, श्रीरघुनन्दनजी, व्रिशा, वैकर्तन (सुर्य का अन्श), श्रीरामचंद्रजी , श्रीदशरथसुतजी, श्रीकौशल्यानंदनजी, श्रीसीतावल्लभजी |
जन्म स्थान | अयोध्या, उत्तर प्रदेश |
जन्म तारीख | — |
वंश | रघुकुल |
माता का नाम | कौशल्या |
पिता का नाम | महाराज दशरथ: |
पत्नी का नाम | सीता |
उत्तराधिकारी | लव और कुश |
भाई/बहन | शांता, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न |
प्रसिद्धि | मर्यादा पुरुषोत्तम राम, रावण पर विजय |
इनका जिक्र किस पुस्तक में मिलता है | वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, विष्णु पुराण, भागवत पुराण |
पेशा | राजा, वनवासी |
पुत्र और पुत्री का नाम | लव और कुश |
गुरु/शिक्षक | गुरु वशिष्ठ |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | सम्पूर्ण भारत |
धर्म | हिन्दू सनातन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, संस्कृत |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | सरयू नदी, अयोध्या |
जीवन काल | — |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Maryada Purushottam Lord Shri Ram |
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का अलौकिक जीवन परिचय
रामचंद्र जी इक्ष्वाकु वंश क्षत्रिय परिवार में जन्मे थे. त्रेता युग में जन्म लेने वाले राम सूर्यवंशी भी कहलाते हैं. अवतारी रूप में तो वह भगवान विष्णु के अवतार हैं. वे अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे. राजा दशरथ की तीन रानियों- कोशल्या, केकई, सुमित्रा में से कौशल्या के पुत्र भगवान श्री राम जी थे. ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें शिक्षा दी, उनके आश्रम में लक्ष्मण के साथ रहकर उन्होंने ताड़का और सुबाहु का वध किया.
ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में रहकर शस्त्र विद्या सीखी. राजा जनक के यहां आयोजित सीता स्वयंवर में, शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर सीता को जीता. सीता जी से पाणीग्रहण किया, राज्य अभिषेक के समय विमाता केकई ने उदासी मन्थरा के कहने पर राजा के पद से उन्हें वंचित करा दिया. विमाता कैकयी ने राजा दशरथ से दो वरदान मांगे. जिनमे पहला, राम को चौदह वर्ष का वनवास और दूसरा भरत को राजगद्दी था.
भगवान श्री राम वनवास क्यों गए?
विमाता केकई के आज्ञा का पालन करने हेतु, श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मण सहित वन को चले गए थे. जहां वे वनों, पर्वतों तथा ऋषियों के आश्रम में भटकते रहे. पंचवटी में शूर्पणखा की विवाह याचना को अस्वीकार किया. किंतु राम के छोटे भाई लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक, कान काटे जाने पर व्यथित बहन की पुकार को सुनकर लंकापति रावण दौड़ा चला आया. प्रतिशोध स्वरूप रावण ने साधु वेश में आकर माता सीता का हरण किया. जटायु के साथ संघर्ष के बाद ही रावण आकाश मार्ग से सीता जी को हर ले गया. लंका में स्थित अशोक वाटिका में सीता से विवाह का निवेदन किया.
राम और लक्ष्मण सीताजी को खोजते हुए भटकते भटकते जंगल पहुंचे. वहां सुग्रीव, अंगद, जामवंत आदि से उनकी दोस्ती हुई. पवन पुत्र हनुमान जी अशोक वाटिका में सीता जी को देख कर आए. और उनसे मुद्रिका मांग लाये. हनुमान जी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर लंका में आग लगा दी. रावण के छोटे भाई विभीषण तथा वानरों के सहयोग से रामचंद्र जी ने रावण का वध किया था. फिर लक्ष्मण सीता सहित अयोध्यापुरी लौट आए. लोक निंदा की वजह से गर्भवती सीता जी को जंगल में छोड़ दिया. वाल्मीकि आश्रम में लव तथा कुश दो तेजस्वी पुत्र को जन्म देकर सीता जी धरती की गोद में समा गई. कालांतर में लव और कुश को राज्य सोपकर राम जी ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया.
भगवान श्रीराम जी के कार्य
राम जी का चरित्र व उनके कार्य भारतीय हिंदू समाज के लिए महान आदर्श है. जन्म से लेकर स्वर्ग जाने तक उनके सारे कार्य सामान्य मनुष्य के रूप में होते हुए भी अलौकिक हैं. ईश्वरीय शक्ति से परिपूर्ण हैं. उनका जन्म ही संसार में अधर्म और अत्याचार के नाश के लिए हुआ था. पूर्व जन्म में अपने भक्तों को जो वचन उन्होंने दिए थे. उन्हीं वचनों का पालन भी त्रेतायुग में करते हैं. प्रजापालक, धर्म रक्षक, आज्ञाकारी, सीता के पति राम, भाई प्रेमी राम, दीन-दुखियों के राम, अपने इन सभी रूपों में श्रेष्ठ कार्य करते हैं.
प्रजापालक राम
भगवान श्रीराम प्रजा के सच्चे हितैषी थे. तुलसीदास जी ने अपनी पुस्तक रामचरित्रमानस में राम को प्रजा के सच्चे पालक के रूप में बताते हुए यह आदर्श स्थापित किया है. कि राम के राज्य में प्रजा अत्यंत सुखी थी. उन्हें चोर डाकू आदि किसी का भय नहीं सताता था. प्रजा अत्यंत निश्चित थी, संपन्न थी. ऐसा रामराज्य स्थापित था, कि चाहे व्यक्ति किसी भी कुल जाति या वंशिका का हो सब के साथ समानता का व्यवहार होता था.
भक्तवत्सल राम
भगवान श्री राम अपने भक्तों पर कृपा करने वाले हैं. वे अपने भक्तों का उद्धार करने वाले दयालु, व करुणानिधान हैं. उनका नाम स्मरण करने मात्र से ही भक्तों को उनकी कृपा का प्रसाद मिल जाता है. वाल्मीकि जी के मरा- मरा कहने पर भी, उन्होंने उसे अपने जीवन से मुक्ति दिला कर उनका उद्धार कर दिया था. शबरी नामक भी भीलनी के जूठे बेर खाकर वह उसे जन्म जन्मांतरओं का सुख प्रदान कर जाते हैं. वही केवट, गुह, निषाद जैसे निम्न कुल में जन्मे अपने भक्तों को गले लगाकर उनके प्रति समानता और अपार वात्सल्य भाव प्रकट करते हैं. जटायु जैसे पक्षी को अपनी गोद में बिठाकर उसके स्वर्ग तक जाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं. श्राप ग्रस्त अहिल्या को पाषाण रूप से स्त्री रूप प्रदान करने वाले राम उसके जीवन को धन्य कर देते हैं. वही विभीषण तथा रावण दोनों को ही स्वर्ग का सुख देते हैं.
धर्मरक्षक राम
भगवान श्रीराम का अवतरण (Biography of Maryada Purushottam Lord Shri Ram) इस पृथ्वी पर धर्म के रक्षक के लिए ही हुआ था. राम आश्रमों में राक्षसों के उत्पात से पीड़ित ऋषि-मुनियों की रक्षा करते थे. माता तथा पिता की आज्ञा का पालन करना राम के जीवन का परम धर्म था. अतः निसंकोच वनवास चले गए थे. प्रजा के प्रति धर्म की रक्षा, पत्नी धर्म की रक्षा, मित्रधर्म का पालन एक भक्तों के प्रति ईश्वरीय धर्म का पालन राम के श्रेष्ठ चारित्रिक आदर्श हैं.
सीता के प्रिय राम
भगवान श्री राम सीता जी को जितने अधिक प्रिय थे. उतनी ही उनकी प्राण प्रिय सीताजी थी. स्वयंवर में सीता जी को अपने सौर्य के बल पर विजित कर लाते हैं. एक पति के रूप में अयोध्या में सर्वस्व सुख प्रदान करते हैं. वनवास के समय सीताजी की प्रत्येक इच्छा की पूर्ति राम का परम धैर्य था. सीता जी का हरण होने पर वे इतने आकुल-व्याकुल हो उठते थे. मानो सीता जी के बिना, यह संसार उनके लिए कोई मायने नहीं रखता. सीता जी की खोज में पशु पक्षियों से पता पूछते, करुण विलाप करते राम उनकी मुक्ति के लिए यथासंभव प्रयास करते हैं. उनके द्वारा की गई शक्ति पूजा सीता जी के लिए ही तो थी. लोकनिंदा के भय से सीताजी की अग्नि परीक्षा लेकर भी उनका त्याग उनकी विवशता है. सीता जी के पृथवी में समा जाने पर वे संसार से विरक्त होकर स्वर्ग चले गए थे.
आज्ञाकारी राम
श्री राम क्षत्रिय कुल में जन्मे थे. उनमें छत्रियोचित वीरता साहस तथा सौर्य था. चाहे राक्षसों का विनाश हो, बली का वध हो, लंकापति रावण से किया हुआ युद्ध हो, राम का सौर्य सर्वत्र व्याप्त है.
उपसंहार
त्रेतायुग में जन्म लेने वाले राम, हिंदुओं के धार्मिक आदर्श हैं, उनके आराध्य हैं. लोकोपकारी, प्रजारक्षक, धर्मरक्षक राम, एक आदर्श पुरुष हैं, भ्राता है, मित्र हैं. उनका प्रादुर्भाव सामान्य मानव की तरह होकर भी अलौकिक दिव्य शक्ति संपन्न है. वे सर्वशक्तिमान, आदि, अनंत, सर्वव्यापी है. उनकी सत्ता निरंतर है, वे कालजयी, विश्वविजयी, नीतिवान, युगपुरुष हैं. अहंकार से विहीन पुरुष हैं, जो अकारण अपने क्रोध को प्रकट नहीं करते। समस्त सृष्टि में उनका ही स्वरूप व्याप्त है. वे मात्र उपदेशक ही नहीं है, उनका कार्य और व्यवहार उनके श्रेष्ठ चारित्रिक गुणों का आदर्श हैं.
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FAQs
Ans- राजा दशरथ की पत्नी और रामजी की सौतेली माँ कैकयी ने राजा दशरथ से दो वरदान मांगे. जिनमे पहला, राम को चौदह वर्ष का वनवास और दूसरा भरत को राजगद्दी था. इस वचन को पूरा करने के लिए रामजी वनवास गए थे.
Ans- भगवान श्रीराम के दो पुत्र हुए लव और कुश.
Ans- श्रीराम विष्णु के अवतार थे.
Ans- रामजी के छोटे भाई लक्मण जी ने सरयू नदी की जलसमाधि लेने से राम जी इस से आहत होकर जल समाधि का निर्णय लिया। वे सरयू नदी के अंदर गए और भगवान विष्णु का अवतार ले लिया. इस तरह भगवान श्रीराम ने मानव शरीर त्याग दिया और बैकुंठ धाम चले गए थे.