दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, भगवान श्रीकृष्ण की जीवनी (Biography of Shri Krishna) और उनसे जुड़ी वो रोचक और अद्भुत जानकारी जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है, “लोकनायक”, “लोकरंजक”, लोककल्याणकारी एवं दिव्य रूप में उन्हें अपार श्रद्धाकारी श्रीकृष्ण जी का जीवन परिचय (Biography of Shri Krishna) और आश्चर्यजनक जानकारी. साथियों आप यहाँ जानेगे, श्रीकृष्णा का प्रादुर्भाव एवं जीवन चरित्र, भगवान श्रीकृष्ण की अलौकिक लीलाएं. और श्रीकृष्णा एवं रुक्मिणी का विवाह प्रसंग, श्रीकृष्ण और नरकासुर प्रसंग, शिशुपाल वध और श्रीकृष्ण, शान्तिदूत श्रीकृष्ण, द्रौपदी के चिररक्षक श्रीकृष्ण, पाण्डवों के रक्षक श्रीकृष्ण विशेष जानकारी. साथ ही आप जानेगे, श्रीकृष्ण जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण जी किस के अवतार थे. श्रीकृष्ण जी किस से प्रेम करते थे. भगवान श्रीकृष्ण ने कैसे राक्षसों का विनाश किया था.
बहुत से पाठको के सवाल है, जैसे श्री कृष्ण को क्या खाना पसंद है?. श्रीकृष्ण अपनी माँ से क्या शिकायत करते थे?. कृष्ण के 12 नाम कौन कौन से हैं?. भगवान श्री कृष्ण की उम्र कितनी थी?. राधा की मृत्यु कैसे हुई, श्री कृष्ण का दूसरा नाम क्या है?. भगवान कृष्ण की मृत्यु के बाद क्या हुआ था?. तो दोस्तों चलते है, और जानते है भगवान श्री कृष्ण जी की रोचक और अद्भुत जानकारी.
श्रीकृष्ण जी का जीवन परिचय
भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्री के 12 बजे हुआ था. कृष्ण जी का जन्म मथुरा (उत्तर प्रदेश) की जेल में हुआ था. वे माता देवकी और पिता यदुकुल वासुदेव की 8वीं संतान थे. यदुकुल वसुदेव की दूसरी पत्नी का जो पुत्र हुआ, वह बलराम के नाम से प्रसिद्ध हुआ. भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, अष्टमी के दिन हुआ था. उनके पिता का नाम यदुकुल वासुदेव था और उनकी माता का नाम देवकी था, लेकिन उनका पालन-पोषण नंदबाबा और यशोदा ने किया था और इन्ही को इनका माता-पिता माना जाता है. श्री कृष्ण का विवाह रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, मित्रविंदा, भद्रा, सत्या, लक्ष्मणा, कालिंदी से हुआ था.
श्री कृष्ण जी की संतानों का नाम प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, सांब थे. उनके परिवार में उनके अलावा रोहिणी (विमाता), बलराम (भाई), सुभद्रा (बहन), गद (भाई) भी थे. कृष्ण को अक्सर मोर-पंख वाले पुष्प या मुकुट पहनकर चित्रित किया जाता है, और अक्सर बांसुरी बजाते हुए उनका चित्रण हुआ है. श्रीकृष्ण को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का 8 वां अवतार माना जाता है. कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के नाम से भारत, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, अमेरिका, रूस, यूरोप, जापान सहित विश्वभर में मनाया जाता है.
वसुदेव जन्मे शिशु को लेकर ब्रज ग्राम अपने मित्र नन्द के यहां पहुंचे. उसके एवज में वे यशोदा की कन्या को लेकर आये. कंस पुत्री को मारने हेतु उद्यत हो उठा, तभी उसे सुनायी पड़ा. अरे मूर्ख ! तू मुझे क्या मारता है, तुझे मारने वाला तो पृथ्वी पर जन्म ले चुका है. नन्द-यशोदा के यहां पलने वाले इसी तेजस्वी पुंज का नाम कृष्ण था, जिनका जन्म ही अत्याचारियों का अन्त करने के लिए हुआ था. नन्द और माँ यशोदा के लाडले बाल कृष्ण जी की बाल-लीलाओं से सम्पूर्ण ब्रजमण्डल मोहित और रोमांचित होता था.
Summary
नाम | श्री कृष्ण |
उपनाम | कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव |
जन्म स्थान | मथुरा |
जन्म तारीख | भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र |
वंश | यदुकुल |
माता का नाम | देवकी |
पिता का नाम | वासुदेव |
पत्नी का नाम | रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, मित्रविंदा, भद्रा, सत्या, लक्ष्मणा, कालिंदी |
उत्तराधिकारी | प्रद्युम्न |
भाई/बहन | रोहिणी, बलराम, सुभद्रा, गद(भाई) |
प्रसिद्धि | शान्तिदूत श्रीकृष्ण |
रचना | गीता |
पेशा | भगवान, |
पुत्र और पुत्री का नाम | प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, सांब |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू सनातन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | बृज, हिंदी |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | — |
जीवन काल | 125 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Shri Krishna (श्री कृष्ण की जीवनी) |
भगवान् राम और भगवान कृष्ण हमारे लिए एक चारित्रिक आदर्श ही नहीं हैं, वरन् मनुज अवतारों में भी दिव्य और अलौकिक शक्तियों के पुंज हैं. वे दोनों भारतीय जीवन का आदर्श हैं. हमारी महान् धार्मिक, सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं. राम अपने समूचे स्वरूप में मर्यादा पुरुषोतम हैं, तो कृष्ण लीला पुरुषोतम हैं. यह कहना अत्युक्ति नहीं होगी कि भारतीय जनमानस में भगवान श्रीकृष्ण की लौकिक एवं अलौकिक छवि इतनी अधिक विमोहित कर देने वाली है कि समूचा जनमानस उन्हें “लोकनायक”, ” घनश्याम”,“लोकरंजक”, लोककल्याणकारी एवं दिव्य रूप में उन्हें अपार श्रद्धा से पूजता है. वे योगेश्वर हैं, अर्थात् सम्पूर्ण योगों के स्वामी हैं.
श्रीकृष्ण जी भगवान विष्णु के कोनसे अवतार थे?
श्री कृष्ण को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का 8 वां अवतार माना जाता है. सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सबसे पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं. श्रीकृष्ण साधारण व्यक्ति न होकर ‘युग पुरुष’ थे. उनके व्यक्तित्व में भारत को एक प्रतिभा सम्पन्न ‘राजनीतिवेत्ता’ ही नही, एक महान् ‘कर्मयोगी’ और ‘दार्शनिक’ प्राप्त हुआ, जिसका ‘गीता’ ज्ञान समस्त मानव-जाति एवं सभी देश-काल के लिए पथ-प्रदर्शक के रूप में है.
भगवान कृष्ण की पूजा लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है. वे लोग जिन्हें हम साधारण रूप में नास्तिक या धर्म निरपेक्ष की श्रेणी में रखते हैं. निश्चित रूप से ‘श्रीमद् भगवद्गीता’ से प्रभावित हैं, ‘गीता’ किसने और किस काल में कही या लिखी यह शोध का विषय है. लेकिन ‘गीता’ को कृष्ण से ही जोड़ा जाता है.
भगवान श्री कृष्ण के चमत्कार
दोस्तों भगवान कृष्ण कालिया मर्दन तथा कंस द्वारा भेजे गये पूतना, बकासुर, अघासुर, केशी जैसे दुष्ट राक्षसओ को मार डालते हैं. वर्षा के देवता इन्द्र के कोप से सम्पूर्ण ब्रजवासियों को बचाते हैं. राक्षस कंस के प्राणघाती वार से अपनी तथा दाऊ बलराम की रक्षा करते हुए अपनी अलौकिक शक्तियों से सभी को अचम्भित करते हैं.
चाणूर, मुष्टिक जैसे पहलवानों के साथ-साथ कुट, शल, तोषक से सामना करते हुए उनका वध करते हैं. मामा कंस तो कृष्ण की शक्ति से इतना घबरा गया था. कि वह श्रीकृष्ण के साथ-साथ सम्पूर्ण ब्रज और गोप-ग्वालों की हत्या करना चाहता था. वह श्रीकृष्ण पर अचानक वार कर देता है. निहत्थे किशोर कृष्ण शक्तिशाली कंस का साहस से सामना थे. और उसका वध कर देते हैं. मथुरा की प्रजा खुशी से झूम उठती है. देवकी, वसुदेव, उग्रसेन को कारावास से मुक्त कर पुन: उग्रसेन को राज्य सौंपकर चले जाते हैं. इधर कंस की मृत्यु से बौखलाये श्वसुर जरासंध कृष्ण और बलराम को मारने हेतु मथुरा को घेर लेते है.
इस युद्ध में जरासंध पराजित हो जाता है, वह कालवयन के साथ मिलकर यादवों का नाश करना चाहता है. रातो-रात श्री कृष्ण सम्पूर्ण यादवों, गाय-बैलों को द्वारिकापुरी भेज देते हैं. जरासंध और कालवयन की सेना हाथ मलती रह जाती है. कालवयन कृष्ण को अकेले पाकर उनका वध करने झपट पड़ता है. कृष्ण, मुचकुंद योगी की गुफा में छिप जाते हैं. और मुचकुंद पर पीताम्बर डाल देते हैं. पीछा करता हुआ कालवयन, मुचकुंद को कृष्ण समझकर पदाघात करता है. मुचकुंद की योगाग्नि में जलकर वह भस्म हो जाता है. इसी प्रकार वे अपनी योगमाया से कौरवों का वध कर द्रौपदी के चीरहरण से उसकी रक्षा करते हैं.
श्री कृष्ण का विवाह रुक्मणी से क्यों हुआ था?
रुक्मिणी कुण्डीनपुर के राजा भीष्मक की बेटी थीं. जरासंध चाहता था कि रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से हो. और रुक्मणी यह चाहती थीं उनका विवाह कृष्ण से हो.अत: कृष्ण को उन्होंने सन्देशा भेजा कि वह उनके सिवा किसी और से विवाह नहीं करेगी. उस दुष्ट शिशुपाल से तो सौ जन्मों में भी नहीं. इतना सन्देश पाते ही, श्री कृष्ण का धड़धड़ाता हुआ रथ राजगार्ग से निकलकर उस मन्दिर की ओर मुड़ गया. जहां से रुक्मिणी पूजन कर बाहर निकल रही थीं. सैनिकों के घेरे के बीच रुक्मिणी को अपने रथ में बिठाकर कृष्ण पूरे वेग से निकल चले. रास्ते में रुक्मिणी के भाई राक्मा ने विरोध किया.
तो श्रीकृष्ण ने उसका वध इसलिए नहीं किया, क्योंकि वे रुक्मिणी को दु:ख नहीं पहुंचाना चाहते थे. द्वारिका में रुक्मिणी और कृष्ण का विवाह हुआ जिनका पुत्र पराक्रमी प्रद्युम्न था. इनके अलावा भगवान श्री कृष्ण ने कालिंदी, मित्रविंदा, सत्या, जाश्वकती, भद्रा, लक्ष्मणा, सत्यभामा, रुक्मिणी-इन आठों से श्रीकृष्णा ने विवाह किया था. इन आठों विवाह के प्रसग अत्यन्त रोचक हैं. पर रुक्मणी विवाह इनसे थोड़ा अलग है.
भगवान श्री कृष्ण से कंस का क्या रिश्ता था?
रिस्ते में कंस भगवान श्री कृष्ण के मामा लगते थे. द्वापर काल में यमुना के तट पर यादवों का छोटा-सा राज्य था. ययाति के वंशज यादवों ने अपनी वीरता, परिश्रम एवं साहसपूर्ण कार्यो से काफी समृद्धि अर्जित की. उत्तर भारत में उस समय गणतान्त्रिक व्यवस्था के तहत अन्धक, वृष्णि, भोजकुल संगठित रूप में शासन करते थे. इन कुलों के वीरों के बीच आये दिन झड़पें हुआ करती थीं. अत: इनको संगठित बनाये रखने के लिए शुरकुल के नायक वसुदेव का विवाह अन्धक कुल के राजा उग्रसेन के छोटे भाई देवक की कन्या देवकी से करा दिया गया. वसुदेव की पांच बहिनों में से एक का विवाह हस्तिनापुर के राजा पाण्डु से हुआ.
वसुदेव की एक बहिन श्रुतश्रुवा का विवाह दमघोष से हुआ. शिशुपाल इसी श्रुतश्रुवा का पुत्र था. अन्धकों के राजा उग्रसेन के पांच पुत्रों और नौ पुत्रियों में कंस सबसे बड़ा था. उग्रसेन अत्यन्त सीधे, शान्त, धर्मप्रिय व्यक्ति थे. कंस बड़ा ही अहंकारी एवं क्रूर था. उसने पिता की दुर्बलता का लाभ उठाकर उनके साम्राज्य पर कब्जा कर लिया. देवकी के आठवें पुत्र के हाथों मारे जाने की आकाशवाणी सुनकर कंस ने देवकी तथा वसुदेव को बंदीगृह में डाल दिया. कंस ने एक-एक करके देवकी के छह पुत्रों को मार दिया. सातवां पुत्र देवकी के गर्भ में सात महीने ही रह सका.
भारत के प्रमुख युद्ध
वसुदेव की दूसरी पत्नी का जो पुत्र हुआ, वह बलराम के नाम से प्रसिद्ध हुआ. निरंकुश तथा अत्याचारी कंस को प्रतीक्षा थी देवकी के आठवें पुत्र की. कंस द्वारा पहरेदारों की संख्या बढ़ा दी गयी, ताकि जन्म लेते ही उसका अन्त कर दिया जाये. अर्द्धरात्रि को एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ. पहरेदार सोते रह गये, कारागार के समस्त द्वार खुल गये. वसुदेव जन्मे शिशु को लेकर ब्रज ग्राम अपने मित्र नन्द के यहां पहुंचे. उसके एवज में वे यशोदा की कन्या को लेकर आये. कंस पुत्री को मारने हेतु उद्यत हो उठा, तभी उसे सुनायी पड़ा: अरे मूर्ख! तू मुझे क्या मारता है, तुझे मारने वाला तो पृथ्वी पर जन्म ले चुका है.
श्री कृष्ण द्वारा दानवओ का विनाश
अपने आठों विवाह के पश्चात् श्री कृष्ण जी की अगली मुठभेड प्रागज्योतिषपुर के राजा नरकासुर से हुई थी. नरकासुर ने द्वारिका में आतंक मचा रखा था. श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम नरकासुर के पुत्रों के साथ ही उसके साथी मूर का सफाया किया था. युद्ध में नरकासुर के वध के बाद अपार धन तथा सोलह हजार स्त्रियां कैद में मिलीं. इन अभागी स्त्रियों ने अपना तन-मन श्री कृष्ण पर न्योछावर करना चाहा पर कृष्ण ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर उन्हें पति जैसा सम्मान देते हुए द्वारिका में स्थान दिया था. इस लिए कथनों में श्री कृष्ण की 16000 हजार रानियाँ बतयायी जाती है.
शिशुपाल वध : इन्द्रप्रस्थ नगरी में युधिष्ठिर के राजसूय यहा की तैयारियों एवं भव्य आयोजनों में भीष्म की आज्ञानुसार युधिष्ठिर और सहदेव ने श्रीकृष्ण का रवागत किया. तो यह बात चेदिराज शिशुपाल को नागवार गुजरी, वह रुक्मणी के कारण भगवान श्री कृष्ण के प्रति वैरभाव रखता था. वह यज्ञ मण्डप में चिल्लाकर वोला: ”यहां ऐश्वर्यशाली कृपाचार्य, अश्करथामा, दुर्योधन, शल्य, कर्ण के होते हुए श्री कृष्णा का कैसा सम्मान ?. अरे ! कुन्ती के डरपोक पुत्रों, तुमने इसका सम्मान क्यों किया ? यह इसके योग्य नहीं.
भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल
जैसे कुत्ता पृथ्वी पर गिरे हुए हविष्य सागग्री को चाटकर अपने आपको धन्य समझता है. ठीक उसी तरह विवाह की वेदी पर नपुंसक को ले जाना अन्धे को आईना दिखाना होता है. वैसे ही इस अयोग्य श्री कृष्ण का तुम सम्मान कर रहे हो. भीष्म को शिशुपाल ने कुलक-लकी, नपुंसक बूढ़ा कहा. भीम ने जब शिशुपाल को ऐसा करते रोकना चाहा. तो श्रीकृष्ण ने कहा: ”शिशुपाल मेरी बुआ का बेटा है. यदुवंशी है, मैं उराके सौ अपराध क्षमा कर सकता हूं. इसके बाद एक भी अपशब्द कहा, तो मैं सुदर्शन से इसका वध कर दूंगा. शिशुपाल कृष्ण को पुन: अपशब्द कहता हुआ ललकारने लगा. श्रीकृष्ण ने चमचमाते हुए सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया. श्रीकृष्ण ने उसकी सौ गालियों को बर्दाशत किया था.
शान्तिदूत श्रीकृष्ण
जब पाण्डव बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास व्यतीत करके आये. तो धृतराष्ट्र के समक्ष पाण्डवों ने अपना हा योजकर अनुरोध किया कि उन्हें आधा राज्य देकर न्याय करें. धृतराष्ट्र ने संजय को दूत बनाकर पाण्डवों के पास इसे अस्वीकार करते हुए भेजा. अब युद्ध निश्चित था, इधर युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से युद्ध की विभीषिका को टालने हेतु कहा. कौरवों से पांच गांव गांगे, तो कौरव पांच गाव तो क्या, सुई की नोक के बराबर तक की जमीन भी देने को तैयार नहीं थे. इधर द्रौपदी चाहती थी कि युद्ध हो ना हो, किन्तु उसके अपमान का बदला अवश्य मिलना चाहिए.
भगवान श्री कृष्ण हरितनापुर शान्ति का सन्देशा लेकर पहुंचे. और कौरवों की सभा में बोले: ”आपका मन सभी राजवंशों से श्रेष्ठ है. युद्ध में आपके सामने ही आपके पुत्रों व भतीजों तथा रिश्तेदारों का विनाश होगा. बारह वर्ष और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद पाण्डव जो चाहते हैं, दे दीजिये. धृतराष्ट्र ने इस पर अपनी लाचारी जतायी और दुर्योधन ने लाख समझाने पर यह कहा: हम युद्ध से नहीं डरते. शान्तिदूत कृष्ण के समझाने पर भी कौरव नहीं माने. परिणामरचरूप, महाभारत का भयानक युद्ध हुआ.
पाण्डवों के रक्षक श्रीकृष्णा
भगवान श्री कृष्णा पाण्डवों के परम हितैषी थे, कृष्ण पर उनका प्रेम भी सामान्य नहीं था, अपितु विशिष्ट था. अर्जुन के तो सखा, गुरु, ईश्वर श्री कृष्ण स्वय ही थे. यहां तक कि कुरुक्षेत्र के मैदान में उनका रथ भी श्रीकृष्ण ने हांका था. अर्जुन को जन्म और मृत्यु का रहस्य समझाते हुए कर्मयोग की शिक्षा दी, वही गीता है.
जयद्रथ के वध के समय उसके मायाजाल से अर्जुन की सहायता की. अर्जुन, नकुल, भीम, सहदेव को दिव्यास्त्र दिये. चीरहरण के समय द्रौपदी की लाज बचायी. लाखा महल में कौरवों द्वारा पाण्डवों को जलाकर मारने की योजना को निष्फल किया. अश्वत्थामा द्वारा द्रौपदी के पंचपुत्रों को मारने के षड्यन्त्र से बचाया. धृतराष्ट्र के लौह आलिंगन से भीम को बचाया. गांधारी द्वारा दिये गये श्राप को अपने ऊपर लेकर को बचाया. कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध के समय पाण्डवों की समय-समय पर रक्षा की थी.
श्रीकृष्ण का चरित्र भारतीय हिन्दू संस्कृति में ऐसा चरित्र है, जो लोकनायक, नरनारायण के रूप में जन-जन में असीम आस्था और श्रद्धा का प्रेरणास्त्रोत है. निराकार और साकार सभी रूपों में वे ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं. यशोदाजी ने उनके छोटे से मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्तियों को एकाकार होते हुए देखा था.
घनश्याम अलोकिक शक्तियों के पुंज हैं. लौकिक रूप में वे माता यशोदा के पुत्र के रूप में अपनी बाल-लीलाओं से सबको चमत्कृत करते हैं. महाभारत के युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाने वाले कृष्ण रक्षक, मित्र, संकटमोचन, उपदेशक, गुरु, ईश्वर, कर्म तथा योग की शिक्षा देने वाले योगेश्वर हैं. घनश्याम सम्पूर्ण संसार उनकी योगमाया से उत्पन्न है. वे श्री घनश्याम कालजयी अवतारी पुरुष हैं.
भारत के महान साधु संतों की जीवनी और रोचक जानकारी
Youtube Videos Links
FAQs
Ans- हिन्दू शास्त्रों में उल्लेखित है कि श्रीकृष्ण द्वापर के अंत में धरती पर 125 वर्ष तक रहे. उनकी इस आयु 5117 वर्ष को जोड़ दिया जाए, तो श्रीकृष्ण इस साल धरती पर अपने जीवन काल का 5243 वां वर्ष पूर्ण कर लेंगे
Ans- घनश्याम,अचला, अच्युत, अद्भुतह, आदिदेव, अदित्या, अजन्मा, अजया, अक्षरा, अमृत, अनादिह, आनंद सागर, अनंता, अनंतजीत, अनया, अनिरुद्धा, अपराजित, अव्युक्ता, बाल गोपाल, बलि, चतुर्भुज, दानवेंद्रो, दयालु, दयानिधि, देवाधिदेव, देवकीनंदन, देवेश, धर्माध्यक्ष, द्वारकाधीश, गोपाल, गोपालप्रिया, गोविंदा, ज्ञानेश्वर, हरि, हिरण्यगर्भा, ऋषिकेश आदि है.
Ans- भगवान श्रीकृष्ण के जाने के बाद रुक्मिणी और जांबवती ने भी देह त्याग दिया था. बलरामजी की पत्नी रेवती ने भी देह त्याग कर दिया। इसके बाद दुखी मन से अर्जुन द्वारिका से सभी बचे हुए लोगों को अपने साथ लेकर लौट पड़े और अर्जुन के द्वारिका से जाते हुए समुद्र ने द्वारिका नगरी (गुजरात)को डुबो दिया था.
Ans- श्री कृष्ण जी को दूध की तुलना में माखन-रोटी अधिक पसंद हैं.
Ans- राधा क्यों गोरी में क्यों कारा.
Ans- गोपियाँ माँ यशोदा से कृष्ण उनके वस्त्र चुरा लेते हैं. और कृष्ण उनकी मटकियाँ फोड़ देते हैं की शिकायत करती थी.