दोस्तों भारत की इस पवित्र भूमि पर एक से बढ़कर एक महान संतों ने जन्म लिया है. इन संतों और महात्माओं का जन्म उच्चे कुल और जाति में न होकर निम्न कुल में जन्म लेकर यह उदाहरण प्रस्तुत किया. कि जाति और कुल से भी बड़ा धर्म मानवता धर्म है. सच्ची श्रद्धा और भक्ति से कि गयीं मानव सेवा और ईश्वर सेवा ही जीवन की सार्थकता है. भगवान किसी ऊंची जाति विशेष का नहीं, वह तो अछूतों और दलितों के हृदय में भी वास करता है. हम यहाँ भारत के महान संतों में से एक सन्त सन्त शिरोमणि रैदास जी की जीवनी (Biography of Sant Raidas). और उनसे जुड़ी हुई वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, संत रविदास जी की आश्चर्यजनक जानकारी.
एक अनुयायी या जिज्ञासु होने के नाते आपके मन में बहुत सवाल चल रहे होंगे. जैसे सन्त सिरोमणि रैदास के चमत्कार कौन-कौन से है?. और रैदास जी का पैतृक व्यवसाय क्या था?. संत रविदास की पत्नी का नाम क्या था. संत रैदास जयंती क्यों मनाई जाती है?. रैदास जी का पूरा नाम क्या है?. रविदास जी किसकी भक्ति करते थे?. रैदास और रविदास में क्या अंतर है?. रैदास के चालीस पद कहाँ सम्मिलित है?. रविदास जी का दूसरा नाम क्या है?, आदि सवालो के जवाब आपको इस पेज पर मिलेंगे. तो दोस्तों बने रहे हमारे साथ अंत तक रैदास जी की अद्भुत जानकारी के लिए.
रैदास जी सच्चे भगवान के भक्त थे?
रैदास जी सच्चे भगवान के भक्त थे. भक्त किये बिना वे अन्न-जल तक ग्रहण नहीं करते थे. उनके चमत्कारिक जीवन से हम सभी आम मनुष्यों को यह प्रेरणा मिलती है. कि ईश्वर सच्चे हृदय में ही बसता है. सन्त रैदासजी के प्रमुख शिष्यों में कबीर, धन्ना, भगत पीपा तथा मीराबाई भी शामिल थीं. दोस्तों वर्तमान भारत के कोने-कोने में उनके अनुयायी करोड़ो की संख्या में मिलते हैं. रैदास जी को ही रविदासजी के नाम से भी जाने जाते हैं. रविदास जी की सबसे ज्यादा प्रसिद्धि उत्तरप्रदेश, पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र राज्यों में हैं. इन राज्यों में उनके भक्ति आंदोलन और भक्ति गीत प्रचलित हैं.
सन्त (रैदास) रविदास जी की जीवनी (Biography of Sant Raidas)
संत रविदास पंद्रहवीं (15) शताब्दी के एक महान संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे. वह निर्गुण भक्ति धारा के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख संत में से एक थे. सन्त रैदास जी का जन्म एक चर्मकार (चमार) परिवार में 1456 को वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनके पिता का नाम रघुजी (संतोख दास) और माता जी का नाम विनया (कलसांं) था, वे अत्यन्त ही दयालु एवं धार्मिक विचारों वाले थे. सन्त रैदास (रविदास) का जन्म धार्मिक और दयालु परिवार में हुआ था. बाल्यावस्था से ही रैदास का मन ईश्वर-भक्ति की ओर उन्मुख हो चला था. आपके पिता जी मल साम्राज्य के राजा नगर में सरपंच के रूप में काम करते थे. और उनके पास जूते बनाने और मरम्मत का अपना व्यवसाय था.
रैदास जी बचपन से ही बहुत बहादुर और अत्याधिक ईश्वर के प्रति समर्पित थे. बाद में उन्होंने उच्च कुल के लोगों द्वारा पैदा की गई बहुत सारी समस्याओं से जूझते हुए उनका सामना किया. रविदास जी ने लोगों को उनके लेखन के माध्यम से जीवन के तथ्यों का एहसास कराया. लोगों को सिखाया कि बिना किसी भेदभाव के हमेशा अपने पड़ोसियों से प्यार करो. गुरु संत रविदास 15 वीं शताब्दी के एक महान संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे. वह निर्गुण भक्ति धारा के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख संत में से एक थे और उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन का नेतृत्व करते थे. उन्होंने अपने प्रेमियों, अनुयायियों, समुदाय के लोगों, समाज के लोगों को कविता लेखन के माध्यम से आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए हैं.
विवाह करने की इच्छा न होते हुए भी माता-पिता का आदेश मानते हुए उन्होंने लोणा नाम की कन्या से विवाह किया था. जिनसे उनके एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी, जिनका नाम विजय दास रखा था. आप विवाह के बंधन में अधिक दिनों तक नहीं रह सके.
Summary
नाम | संत रविदास जी |
उपनाम | सन्त रैदास जी |
जन्म स्थान | वाराणसी उत्तर प्रदेश |
जन्म तारीख | विक्रमी संवत 1456 (1377 ईस्वी) |
वंश | चर्मकार (चमार) |
माता का नाम | विनया (कलसांं) |
पिता का नाम | रघुजी (संतोख दास) |
पत्नी का नाम | लोणा देवी |
प्रसिद्धि | महान संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक |
रचना | निरंजन देवा, दर्सन दीजे राम, तुम्हारी आस, पार गया, तुम चन्दन हम पानी, मन ही पूजा |
पेशा | महान संत |
बेटा और बेटी का नाम | विजय दास |
गुरु/शिक्षक | संत रामानन्द और कबीर साहेब |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू, सन्त |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 1528 ईस्वी |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Sant Raidas (संत रैदास की जीवनी) |
संत रैदास जी के चमत्कार
दोस्तों जब कोई सन्त-महात्मा उनके द्वार पर आते तो, रैदास जी बिना दाम लिये उनके लिए जूतियां तथा चप्पलें बना दिया करते थे. कहा जाता है कि उन्होंने अपनी कुटिया के पास भगवान् की एक मूर्ति रखकर उस पर छप्पर डलवाया था. इससे प्रसन्न होकर भगवान् ने साधु का रूप धारण करके उनकी ग़रीबी को दूर करने हेतु पारस पत्थर प्रदान किया. रविदास जी ने उस पत्थर को घर के छप्पर पर रख दिया, ताकि उनके मन में धन के प्रति मोह न जागे. चप्पल-जूते सीते हुए भगवान की भक्ति करते हुए रैदास को देखकर एक ब्राह्मण ने उनकी ईश्वर भक्ति पर ताना मारा कि: ”मेरी तरह गंगा जाकर स्नान-ध्यान करके साधना करोगे, तो ही ईश्वर मिलेगा.” मुझे गंगा तक जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. मन चंगा तो कठौती में गंगा.
एक बार ऐसे ही एक पंडित उपहास कर ही रहा था. कि चमड़ा धोने वाली कठौती से गंगाजी का हाथ सोने और मोतियों से जड़े कंगन के साथ प्रकट हुआ. रैदासजी ने वह कंगन ब्राह्मण के मांगने पर दान में दे दिया. सोने की कंगन पाकर ब्राह्मण ने यह झूठा प्रचार किया कि गंगा गैया ने उनकी भक्ति से प्रकट होकर यह सोने हीरे का कंगन उन्हें दिया है.
यह कंगन वहां की रानी तक जा पहुंचा, तो उसने वैसे ही दूसरे कंगन की मांग पंडित जी से कर डाली। ब्राह्मण रोता-गिड़गिड़ाता हुआ, रैदास जी के पास जा पहुंचा. सन्त रैदासजी ने गंगाजी से प्रार्थना कर दूसरा कंगन ब्राह्मण के लिए मांगा। उसे लेकर ब्राह्मण रानी के पास गया, उन्हें कंगन देकर किसी तरह अपनी आफत में फंसी जान बचायी थी.
सन्त रविदास जी के चमत्कार
एक बार ऐसे ही, सन्त रविदास ने कीर्तन-भजन के पश्चात् प्रसाद अपने हाथों से वितरित किया. वहां खड़े सेठजी ने रविदास जी के हाथों प्रसाद तो ले लिया, पर उसे धृणावश बाहर फेंक दिया. सौभाग्य से वह एक कुष्ठ रोगी पर जा गिरा. प्रसाद के चमत्कार का परिणाम यह हुआ कि, कुष्ठ रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो गया और सेठजी बीमार हो गये. सन्त की शरण में जाने पर उनकी आत्महीनता और बीमारी ठीक हो सकी.
कहा जाता है कि 120 वर्ष तक का जीवन जीकर रैदासजी ने अपने अन्तिम समय में शरीर का चर्म उतारकर अपना यज्ञोपवीत दिखाया, ताकि लोगों के मन से जातीय भेदभाव दूर हो सके. उन्होंने सारी उम्र इस मनुष्य जाती को जात पात के भेद के मिटाने में लगा दिया था. संत रविदास 15 वीं शताब्दी के एक महान संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे. वह निर्गुण भक्ति धारा के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख संत में से एक थे. और उन्होंने उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया था.
रैदास जी के चमत्कार
दोस्तों एक बार रविदास जी ने एक पंडित युवक की जान भूखे शेर के हाथों मारे जाने से बचा ली थी. जिसके बाद ब्राह्मण युवक उनके के करीबी मित्र बन गए थे, जबकि अन्य पंडित लोग उसकी दोस्ती से ईर्ष्या करते थे. और राजा से शिकायत करते थे. एक बार ऐसे ही उनके एक पंडित मित्र को राजा ने दरबार में बुलाया. और भूखे शेर द्वारा मारने की घोषणा की. जैसे ही भूखा शेर ब्राह्मण लड़के को मारने के लिए उसके पास आया. शेर गुरु रविदास जी को देखकर बहुत शांत हो गया और दूर चला गया. गुरु रविदास जी अपने पंडित मित्र को अपने घर ले आए. पंडित लोग और राजा बहुत लज्जित हुए, और उन्होंने गुरु रविदास जी की आध्यात्मिक शक्ति के बारे में महसूस किया और उनका अनुसरण करना शुरू कर दिया.
संत रैदास जी की शादी किस से हुई थी?
संत रैदास जी ईश्वर के प्रति उनकी आस्था, प्रेम और समर्पण उनके खानदानी व्यवसाय (मोची) से बिल्कुल ही विपरीत था. जिसके कारण उनके माता-पिता भी चिंतित रहने लगे थे. वे जल्द से जल्द रविदास जी का विवाह कर उन्हें जूता बनाने और मरम्मत के पारिवारिक पेशे में डाल देना चाहते थे. उनका विवाह छोटी उम्र में लोना देवी से हुआ था. लेकिन शादी के थोड़े दिनों बाद ही वे सांसारिक जीवन को छोड़, भगति मार्ग में चल पड़े थे. वे महान समाज सुधारदक थे.
रैदास जी शादी के बाद भी वह अपने पारिवारिक व्यवसाय पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे थे. क्योंकि वह सांसारिक मामलों के प्रति अधिक रुचि रखते थे. रैदास जी अपने इस तरह के व्यवहार के लिए, वह एक दिन अपने घर से अलग हो गए. ताकि उसके परिवार के लोगों से मदद लिए बिना अपने सभी सामाजिक मामलों का प्रबंधन किया जा सके.
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FAQs
Ans- सन्त रैदास (रविदास) जी के चालीस पद सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी सम्मिलित हैं.