Biography Of Adiguru Shankaracharya आदिगुरु शंकराचार्य जी

By | December 17, 2023
Biography Of Adiguru Shankaracharya
Biography Of Adiguru Shankaracharya

Biography Of Adiguru Shankaracharya Regenerator Of Sanatan Dharma In Hindi. दोस्तों आपको यहाँ आदिगुरु शंकराचार्य की वो रोचक जानकारी मिलेगी जिसके बारे में आप पहले अनजान थे. दोस्तों शंकराचार्य जी का जन्म दक्षिण भारत के केरल राज्य में सन 788 ईसवी में हुआ था. जब आपका जन्म हुआ, आस पास धर्म का नाश और फाखणड का बोलबाला था. मनुष्य धर्म के सच्चे रूप से अनजान होकर ढोंगियों और पाखण्डियों के भ्रम में पड़ा हुआ था. ऐसे समय में एक से महात्मा, धर्गगुरु की आवश्यकता थी, जो लोगों को धर्म का सही रूप बता सके. उस समय आदिगुरु शंकराचार्य संन्यास घारण कर हिन्दू वैदिक सनातन धर्म का सच्चा रूप लोगों तक पहुंचाया था.

शंकराचार्य कौन थे? उनका जीवन परिचय

Biography Of Adiguru Shankaracharya- आपका जन्म आज से साढ़े बारह सौ वर्ष के लगभग भारत के केरल राज्य के पूर्व में कालड़ी ग्राम में 788 ई॰ में भगवान् शंकर की कृपा से जन्म हुआ. भगवान् शंकर की कृपा से हुए जन्म की वजह से आपको बचपन में शंकर नाम मिला. आपकी माता आर्याम्बिका देवी और पिता शिवगुरु अत्यन्त धर्मनिष्ठ मनुष्य थे. आदिगुरु शंकराचार्य के पिता जी का देहावसान जब वे तीन वर्ष के थे तब ही हो गया था.

शंकराचार्य जी बचपन से असाधारण मेधासम्पन्न हो गए थे. आप तमिल भाषी होते हुए भी संस्कृत, गणित संगीत उतदि के साथ-साथ ग्रंथो का भी छोटी उम्र में गहरा ज्ञान प्राप्त कर लिया था. इतनी छोटी अवस्था में इतना ज्ञान दैवीय चमत्कार से कम नहीं था . उनकी विद्वता से प्रभावित होकर देश के कोने-कोने से लोग इनको सुनने आते थे. तथा अपनी समस्याओं का उचित हल पाकर सन्तुष्ट होकर चले जाते थे.

बाबा रामदेव जी के चमत्कार

https://youtu.be/ChQNNnW5BpI

Biography Of Adiguru Shankaracharya (आदिगुरु शंकराचार्य की जीवनी)

नामशंकराचार्य
उपनामशंकर
जन्म तारीख 788 ई
जन्म स्थानकेरल राज्य के पूर्व में कालड़ी ग्राम
पूरा नामआदिगुरु शंकराचार्य
माता का नामआर्याम्बिका देवी (सुभद्रा)
पिता का नामशिवगुरु
गुरु/शिक्षकआचार्य गोविन्द भगवत्पाद 
दर्शनअद्वैत वेदान्त
खिताब/सम्मान/उपनामसनातन धर्म का पुनरोद्धार, शिवावतार, आदि गुरु, जगतगुरु, धर्मचक्रप्रवर्तन
धर्महिन्दू धर्म (सनातन)
राष्ट्रीयताभारत
मृत्युसन 1821 में उत्तराखंड के केदारनाथ के पास 33 वर्ष की अल्प आयु में
पोस्ट श्रेणीBiography Of Adiguru Shankaracharya Regenerator Of Sanatan Dharma In Hindi
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आदि गुरु शंकराचार्य सन्यासी कैसे बने?

दोस्तों मात्र 8 वर्ष की अवस्था में शंकराचार्य जी के मन में वैराग्य लेने की अदम्य भावना जाग पड़ी. उन्होंने यह बात अपनी माँ को बतायी, मां यह सुनकर सनन रह गयी. क्यों की एक बालक शंकर और वो भी संन्यास लेने की बात कर रहा है. आपकी माता जी ने संन्यास लेने के लिए मना कर दिया था. एक बार बालक शंकर किसी पर्व के अवसर पर वे नदी के जल में उतरे थे, तो उन्हें एक मगर ने पकड़ लिया था. मां ने यह प्रार्थना की कि भगवान उनके बेटे को बचा लें, तो वे बोले: मां ! यदि तू मुझे शिवजी को अर्पण कर देगी, तो मेरे प्राण बच सकते हैं. और दोस्तों हुआ भी ऐसा ही जैसे ही उनकी माता ने वचन दिया ठीक है तुम सन्यासी बन जाना वो मगरमच्छ ने बालक शंकर को छोड़ दिया.

और इस तरह बालक शंकर जो आगे जाकर हिन्दू धर्म के बहुत बड़े आदिगुरु और धर्म रक्षक बने. बालक शंकर संन्यासी होकर जाने से पहले उन्होंने मां को यह वचन दिया था कि वे कहीं भी रहें, उनके अन्तिम समय में वे उनके पास ही रहेंगे. संन्यासी होकर वे भ्रमण करते हुए वन के एक पेड़ के नीचे थकान मिटाने लेटे थे, तो देखा कि एक सांप, मेंढक को अपने फन की छाया में रखकर गरमी से बचा रहा है. उन्होंने दिव्य ज्ञान से यह जान लिया कि यह अवश्य ही किसी महात्मा की भूमि है.

आदिगुरु शंकराचार्य यह पवित्र स्थान श्रुंगी ऋषि कें पवित्र आश्रम भूरि के रनप में ज्ञात हुआ. उन्होंने इस पवित्र भूमि में कोरी मठ के सका में स्थापित करने को संकल्प लिया. अपनी भ्रमण यात्रा में नर्मदा नदी के किनारे उनकी भेंट आचार्य गोविन्द भगवत्पाद से हुई. गुरु ने उनके दित्य ज्ञान से प्रभावित होकर उन्हें शंकराचार्य का नाम दिया.

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श्री जगत गुरु शंकराचार्य जी के चमत्कार

दोस्तों शंकराचार्य के बहुत चमत्कार किये लेकिन कुछ, शुरू की अवस्था के चमत्कारों में एक बार आपके गुरु श्री आचार्य गोविन्द भगवत्पाद एक गुफा में साधना कर रहे थे. तब वह भयंकर नदी में बाढ़ आया और उस गुफा तक पानी अंदर जाने लगा. तब शंकराचार्य जी ने एक घड़ा उस गुफा के द्वार पर रखा और वो नदी के उफान का पानी घड़े में ही समाने लगा. इस चमत्कार का पता आपके गुरु को लगा तो उन्होंने आपको काशी जाकर विश्वनाथ जाकर दर्सन करते हुए ब्रम्हासूत्रशाष्य लिखने को कहा.

दोस्तों जब आदिगुरु शंकराचार्य काशी वर्तमान वाराणसी पहुंचे, तो गंगा तट पर एक चाण्डाल का सामना हुआ. उसके स्पर्श से शंकराचार्य गुसा हो उठे. चाण्डाल ने हंसते हुए बालक शंकर से पूछा: आत्मा और परमात्मा तो एक है. जिस देह से तुम्हारा स्पर्श हुआ, अपवित्र कौन है?. तुम या तुम्हारे देह का अभिमान?. परमात्मा तो सभी की आत्मा में है. तुम्हारे संन्यासी होने का क्या अर्थ है, जब तुम ऐसे विचार रखते हो?. कहा जाता है कि चांडाल के रूप में साक्षात शंकर भगवान ने उन्हें दर्शन देकर ब्रह्मा और आत्मा का सच्चा ज्ञान दिया. इस ज्ञान को प्राप्त करके वे दुर्गम रास्तों से होते हुए बद्रीनाथ पहुंचे. यहां चार वर्ष रहकर तहारत पर भाष्य लिखा वहीं से केदारनाथ पहुंचे.

आदिगुरु शंकराचार्य जी ने किन किन ज्योति पीठ की स्थापना की थी?

आदिगुरु शंकराचार्य जी ने भारत की चार दिशाओं मैं मैसूर में श्रुंगेरी पीठ, जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ, द्वारिका में द्वारका पीठ, बद्रीनाथ में ज्योति पीठ की स्थापना की थी. आपने 16 वर्ष की अवस्था में ही अनेक धार्मिक ग्रन्थ लिखे. जिनमे ब्रह्मसूत्रभाष्य, गीताभाष्य, सर्ववेदान्त सिद्धान्त, विवेक चूड़ामाणी, प्रबोध सुधाकर तथा बारह उपनिषदों पर भाष्य लिखे, जिनको आधुनिक भारत में हिन्दू धर्म की अलख जगाने का काम किया है.

शंकराचार्य जी को क्यों याद किया जाता है?

आदिगुरु शंकराचार्य जी को हिन्दू वैदिक सनातन धर्म का सच्चा रूप लोगों के सामने रखा, वहीं यह बताया कि: आत्मा और परमात्मा एक है. इस आधार पर उन्होंने अद्वैतवाद के सिद्धान्त का प्रसार किया. धर्मभ्रष्ट, धर्मभ्रमित लोगों की आस्था हिन्दू धर्म के माध्यम से जगायी और समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम किया था.

आदिगुरु शंकराचार्य जी की रोचक जानकारी

  • तमिल भाषी होने के बाद भी शंकराचार्य जी ने बहुत ही छोटी उम्र में संस्कृत,गणित संगीत और शास्त्रों का बहुत गहरा ज्ञान प्राप्त कर लिया था.
  • शंकराचार्य जी ने बहुत ही छोटी उम्र 8 में वैराग्य का रास्ता अपना लिया था.
  • शंकराचार्य जी ने अपनी माँ को दिए वचनो के अनुसार उनके अंतिम समय में उनके पास होंगे, ठीक अंतिम समय में वे घूमते हुए अपनी माँ के पास पहुंच गए थे.
  • आदिगुरु शंकराचार्य जी ने कश्मीर से लेकर कन्यकुमारी तक और अटक से लेकर कटक तक पुरे भारत में यात्रा की थी, और अपने ज्ञान से अनेक विद्वानों से शास्त्रार्थ किये थे.
  • आदिगुरु शंकराचार्य जी ने भारत के चारो दिसाओ में पीठ/मठो की स्थापना की थी, द्वारका में द्वारका पीठ, बद्रीनाथ में ज्योति पीठ, जगन्नाथपुरी में गोर्वधन पीठ और मैसूरी में श्रृंगेरी पीठ की स्थापना की थी.

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FAQs

Q- आदिगुरु शंकराचार्य जी ने कौन कौन से ग्रंथ लिखे?

Ans- ब्रह्मसूत्रभाष्य, गीताभाष्य, सर्ववेदान्त सिद्धान्त, विवेक चूड़ामाणी, प्रबोध सुधाकर .

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