हम यहाँ सन्त एकनाथ की जीवनी (Biography of Sant Eknath). और उनसे जुड़ी वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है एकनाथ जी की आश्चर्यजनक जानकारी. दोस्तों साधु संतों की भूमि महाराष्ट्र में सन्त एकनाथजी का नाम और आदर बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है. यहाँ हजारों महान लोगो ने जन्म लिया है. महाराष्ट्र संत लोगो की जन्मभूमि भी कहा जाता है. संत ज्ञानेश्वर से लेकर, समर्थ गुरु रामदास, संत तुकाराम महाराज, संत नामदेव तक, और संत जनाबाई से लेकर संतगाडगे महाराज तक ने समाज के लोगो को सुधारने की कोशिश की.
ब्राहमण कुल में जन्मे इस सन्त एकनाथ जी ने कभी भी जाति के नाम पर किसी से भेदभाव नहीं किया. बल्कि उस समय की जातिवादी, ऊंच नीच जैसी छोटी सोच की भावना को लोगों के मन से निकालने का बहुत प्रयास किया. एक अर्थो में वे सन्त के साथ-साथ समाजसुधारक भी थे. अछूतों के प्रति उनके मन में ऐसा प्रेमभाव था. कि उनके पिता के वार्षिक श्राद्ध पर घर में बन रहे पकवानों की गन्ध पाकर कुछ अछूतों द्वारा भोजन की इच्छा प्रकट करते ही उन्हें सन्तुष्ट होने तक अपने घर बिठाकर भोजन कराते थे. हिन्दू धर्म में भक्ति आन्दोलन को आगे ले जाने में संत एकनाथ जी ने जो योगदान दिया वह बहुमूल्य है.
सन्त एकनाथ कोन थे? एकनाथ जी का जीवन परिचय
सन्त एकनाथजी का जन्म संवत् 1590 (1533 ईस्वी) में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में गोदावरी के निकट पैठण गांव में एक देशस्थ ऋग्वेदी ब्राहमण परिवार में हुआ था. एकनाथजी के पिता का नाम सूर्यनारायण और माता जी का नाम रुक्मणीबाई था. जब एकनाथजी बहुत छोटे बच्चे थे तभी इनकी माँ का स्वर्गवास हो गया था. ऐसी परिस्थति के कारण उनकी दादी चक्रवाणि मैं उन्हें प्यार से “एकमा” कहकर पालन पोषण किया.
छह वर्ष की अवस्था में यज्ञोपवीत होने के साथ ही उनकी बुद्धिमत्ता और तर्कशक्ति से बड़े-बड़े विद्वान् चकित रह जाते थे. एकनाथ जी बारह वर्ष की अवस्था में ही वे वैदिक धर्मशास्त्रों में पारंगत हो गये थे. गुरु की आज्ञा से उन्होंने धर्मपरायण, सेवाभावी गिरिजाबाई से विवाह किया था. आजीवन ईश्वर की साधना में लीन रहते हुए संवत् 1656 (1599 ईस्वी) को उनकी देह पंचतत्त्व में लीन हो गए.
Summary
नाम | सन्त एकनाथजी |
उपनाम | एकमा |
जन्म स्थान | पैठण गांव, औरंगाबाद, महाराष्ट्र |
जन्म तारीख | 1533 ईस्वी |
वंश | देशस्थ ऋग्वेदी ब्राहमण |
माता का नाम | रुक्मणीबाई |
पिता का नाम | सूर्यनारायण |
पत्नी का नाम | गिरिजाबाई |
प्रसिद्धि | अछूतों की सेवा, भक्ति आन्दोलन |
रचना | एकनाथीभागवत, भावार्थ रामायण, शुकाष्टक, चिरंजीव, आनंद-लहरी, स्वात्मा-सुख |
पेशा | दार्शनिक, संत, समाज सुधारक, कवी |
बेटा और बेटी का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | जनार्दन स्वामी |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | महाराष्ट्र |
धर्म | हिन्दू वैदिक |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | संवत् 1656 (1599 ईस्वी) |
जीवन काल | लगभग 66 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | संत एकनाथ जी की जीवनी (Biography of Sant Eknath) |
संत एकनाथ जी के चमत्कार
ईश्वर के परमभक्त एकनाथ जी के जीवन से अनेक चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हैं. दोस्तों कहा जाता है, कि वे जिस रास्ते से होकर गोदावरी नदी में नहाने जाते थे. उसी रास्ते एक दुष्ट मौलवी उन्हें नहाकर लौटते समय उन पर कुल्ला करके अपवित्र कर देता था. ये सिलसिला आये दिन होता था. एकनाथ जी कुछ न कहते, चुपचाप पुन: नहा कर लौट जाते थे.
एक दिन तो उस दुष्ट मौलवी ने एकनाथ जी पर 108 बार कुल्ले किये. और हर बार एकनाथ जी सनान करके आते. अंत में जब उसका मुंह थक गया, तो वह एकनाथ जी के पैरों पर गिरकर बोला: मैं आपका अपराधी हूं. एकनाथ जी बोले तुम्हारी वजह से मैंने एक ही दिन में 108 बार गोदावरी जैसी पवित्र नदी में स्नान का पुण्य कमाया है.
ऐसे ही एक बार कुछ दुष्ट ब्राह्मणों ने उनकी सज्जनता की परीक्षा लेने के लिए. एक बार एक व्यक्ति को उन्हें क्रोधित करने हेतु घर भेजा था. संत एकनाथ जी भगवद् भक्ति में रमे हुए थे. वह व्यक्ति उनकी पीठ पर चढ़ बैठा, तब संत एकनाथ जी हंसकर बोले तुम्हारी इतनी उतत्मीयता देखकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ.
उनके आस पास के ब्राह्मणों ने उनके इस कार्य की काफी निन्दा की. ब्राह्मणों ने भोजन करने से इनकार कर दिया. एकनाथ जी ने भक्तिभाव से पितरों का आवाहन किया. तब पितृगण सशरीर वहां उपस्थित हुए. यह देखकर ब्राह्मणों की आंखें फटी रह गयी थीं. ऐसे ही एक वेश्या के निमन्त्रण पर उसके घर जाकर एकनाथजी ने उसके हृदय में ईश्वर-भक्ति की ऐसी लगन लगायी कि उसने अपने जीवन को धन्य कर लिया.
गधे में रामेश्वरम् भगवान्
एक बार ऐसे ही एकनाथ जी और उनके साथी हरिद्वार से रामेश्वर में गंगाजल चढ़ाने हेतु वे कावड़ तीर्थयात्रा से लौट रहे थे. रास्ते में एक मरणासन्न प्यासे गधे को देखकर घड़े का सारा जल उसे पिला दिया दिया था. जिसका उनके साथियों ने काफी विरोध किया था. बाद में सभी को उसी गधे में रामेश्वरम् भगवान् के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
एकनाथ जी की रचनाएँ
दोस्तों एक अच्छा लेखक और संत ही समाज को अंधकार से प्रकार की और ले जाता है. इसी प्रकार संत श्री एकनाथ जी ने समाज को सुधारने के लिए जात पात से ऊपर मनुष्य में कोई न भेद के लिए प्रचार किया था. इस पर एकनाथ जी ने एक कविता भी लिखी थी. और उसमे कहा था की, जो इन्सान नीची जाती के होने के बाद भी जो पुरे मन से भगवान की भक्ति करता है. अपना सब कुछ भगवान को अर्पण करता है. ऐसा व्यक्ति किसी ब्राह्मण से भी बड़ा भक्त होता है.
संत एकनाथ ने भगवत पुराण को अपनी खुद की सरल भाषा में लिखा था. इसी किताब को उन्होंने “एकनाथीभागवत” नाम दिया था. उन्होंने रामायण को अलग शब्दों में लिखकर भावार्थ रामायण नाम की एक नयी किताब लिखी थी. उन्होंने “रुक्मिणी स्वयंवर” की भी रचना की थी. और इसमें कुल 764 पद (ओवी) थे. ये किताब आदि गुरु शंकराचार्य जी के 14 संस्कृत श्लोक पर आधारित है.
शुकाष्टक (447 ओवी), स्वात्मा-सुख (510ओवी), आनंद-लहरी (154ओवी), चिरंजीव पद, गीता सार और प्रह्लाद विजय जैसे ग्रंथ एकनाथ जी ने लिखे थे. उन्होंने मराठी में एक नए गीत की निर्मिती की थी जिसे ‘भारुड’ कहा जाता है. यह मराठी की एक बहुत ही प्रसिद्ध गीत रचना है.
सन्त एकनाथ जी की मृत्यु कैसे हुई थी?
दोस्तों सन्त एकनाथ जी का विचार था, कि केवल पूजा-पाठ से व्यक्ति ब्राह्मण नहीं होता. प्रत्येक व्यक्ति के सत्कर्म और उसकी शुद्ध आत्मा ही उसे महान् बनाती है. जो लोग जाति के नाम पर भेदभाव करते हैं. वे ढोंगी, पाखण्डी और अल्पज्ञानी हैं. पतितों और पीड़ितों की सेवा के साथ-साथ ईश्वर-भक्ति में रमे रहकर सन्त एकनाथजी ने सन् 1656 (1599 ईस्वी) को गोदावरी नदी के तट पर महासमाधि ले ली.
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FAQs
Ans- संत एकनाथ जी द्वारा रचित प्रमुख पुस्तक “एकनाथी भागवत” है.