हमारी भारतीय संस्कृति में शिष्यों की ऐसी परंपरा रही है, जिन्होंने अपनी अनुपम गुरुभक्ति तथा ईश्वरीय भक्ति से अपना नाम इतिहास में अमर किया। उनमें उपमन्यु की गुरुभक्ति और शिवभक्ति अत्यंत प्रसिद्ध है. हम यहाँ भक्त उपमन्यु की जीवनी (Biography of Bhakta Upamanyu). और भक्त उपमन्यु की गुरु परीक्षा और उनके सवालों की वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अबसे पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है भक्त उपमन्यु की आश्चर्यचकित जानकारी.
उपमन्यु कौन थे? उपमन्यु का जीवन परिचय (Biography of Bhakta Upamanyu)
दोस्तों गुरु भक्त आरुणि की भाति भक्त उपमन्यु महर्षि आयोद धौम्य के शिष्यों में से एक थे. इनके गुरु महर्षि धौम्य ने उपमन्यु को आश्रम की गाये चराने का काम दे रखा थे. भक्त उपमन्यु दिनभर वन में गाएं चराते थे, और सायँकाल आश्रम में लौट आया करते थे.
Summary
नाम | उपमन्यु |
उपनाम | भक्त उपमन्यु |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश |
जन्म तारीख | 4000 वर्ष पूर्व |
वंश | पुरोहित |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | मुनि व्याघ्रपाद |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | दूध के लिए शिव भक्ति |
रचना | — |
पेशा | गाय चराना |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | महर्षि आयोद धौम्य |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | ब्रज, हिंदी |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | — |
जीवन काल | — |
पोस्ट श्रेणी | भक्त उपमन्यु की जीवनी (Biography of Bhakta Upamanyu) |
भक्त उपमन्यु की गुरुभक्ति
प्राचीन काल में आश्रमकालीन शिक्षा पद्धति की प्रचलित परंपरा में शिष्यों अपने गुरुओं के यहां रहकर न केवल विद्या अर्जन करते थे. वरन उनकी सेवा भी करते थे. गुरु के लिए भिक्षाटन, गायों को चारा, गायों को चराना, खेतों की रखवाली आदि का काम भी करते थे. उपमन्यु अपने गुरु महर्षि आयोद धौम्य का अत्यंत आज्ञाकारी शिष्य था. उनकी हष्ट पुष्ट देह को देखकर गुरु ने उसकी परीक्षा लेनी चाहिए. कि देखा जाए उनके इस विषय में कितनी गुरु भक्ति है, कितना संयम, कितना धैर्य है. एक दिन गुरु ने इसी उद्देश्य से उपमन्यु से कहा. तुम्हारी इस हष्ट पुष्ट देह का क्या रहस्य है. उपमन्यु ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया, गुरुदेव में भिक्षाटन से जो कुछ भी प्राप्त करता हूं. उसे ही भोजन के रूप में ग्रहण करता हूं.
गुरु ने कहा कल से तुम भिक्षाटन से प्राप्त अन्न नहीं खाओगे. गुरु की बात पर बिना किसी प्रकार का संशय किए ही उपमन्यु ने स्वीकृति दे दी. अब उपमन्यु ने गुरु की आज्ञा मानकर विघटन से प्राप्त अन्न को खाना बंद कर दिया था. उसकी संगठित देह को देखकर गुरु ने पुनः कुछ दिनों बाद सवाल किया. तुम्हारे अन्न त्याग के बाद तुम्हारी देह जरा भी निर्बल नहीं हुई, तुम क्या करते हो. उपमन्यु ने उत्तर दिया गुरुदेव में दोबारा भिक्षाटन करता हूं. गुरु ने इसके लिए मना करते हुए कहा, ऐसा करके तो तुम लोगों पर अतिरिक्त बोझ डाल रहे हो. तुम्हें पुनः भिक्षाटन नहीं करना चाहिए. उपमन्यु ने कहा जो आज्ञा गुरुदेव. अब उसने दोबारा भिक्षाटन त्याग दिया था.
उपमन्यु की परीक्षा
कुछ दिनों बाद भी गुरु ने उपमन्यु को जस का तस देखा तो वही सवाल किया. तुम क्या खाकर इतने बलवान दिखते हो? उपमन्यु ने उत्तर दिया गुरुदेव में तो गायों का दूध पीता हूं. गुरु ने उपमन्यु फिर कहा इससे तो बछड़ों को दूध कम मिलता होगा. तुम दूध पीना बंद कर दो, उपमन्यु ने उत्तर में कहा जैसी आज्ञा गुरुदेव. उपमन्यु ने अब गायों का दूध पीना भी बंद कर दिया था. एक दिन गुरु ने उपमन्यु से वही सवाल किया, तुम गायों का दूध नहीं पीते हो तब भी इतने हष्ट पुष्ट कैसे हो.
उपमन्यु ने उत्तर दिया गुरुदेव अब तो मैं बछड़ो के फैन पर निर्भर हूं. गुरु ने कहा अब तुम फेन पीना भी बंद कर दो, इससे बछड़ों का पेट अधूरा रहता है. उपमन्यु ने गुरु के आदेश अनुसार सब छोड़ दिया था. अब वह पूर्णता उपवास करने लगा था. निरंतर उपवास से उसकी काया अत्यंत दुर्बल हो गई थी. एक दिन अत्यधिक भूख के कारण उपमन्यु आक के पत्तों को खा गया. जिसके कारण उसकी आंखों की दृष्टि चली गई थी. अंधा होकर वह एक कुएं में जा गिरा, रात को जब उपमन्यु नहीं आया तब गुरु महर्षि आयोद धौम्य उसे पुकारते हुए निकल पड़े. कुएं में गिरे हुए उपमन्यु ने गुरु को आवाज देकर कहा कि वह कुएं में गिर पड़ा है.
भक्त उपमन्यु की परीक्षा में कैसे पास हुए?
अब वह अंधा हो चुका है, गुरु ने सहनशक्ति और धैर्य की परीक्षा में उसे सफल होते देखकर गर्व एवं प्रसंता का अनुभव किया. उन्होंने उपमन्यु से कहा तुम मेरी परीक्षा में सफल हो गए हो, देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार से प्रार्थना करो कि वह तुम्हारी आंखों की ज्योति लौटा दे. उपमन्यु ने अश्विनी कुमारों की स्तुति की उनके आशीर्वाद से उपमन्यु ने नेत्र ज्योति पुनः प्राप्त की. इस तरह लगन, धैर्य, संयम और सच्ची गुरुभक्ति के कारण उपमन्यु संसार में प्रसिद्ध हुआ.
भक्त उपमन्यु की शिवभक्ति
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस संसार में कई भक्तोंगणों ने उनकी पूजा आराधना की है. भगवान शिव इस सृष्टि के एकमात्र ऐसे देवता हैं जिन्हें आशुतोष कहा जाता है. आशुतोष अर्थात थोड़ी सी पूजा आराधना में तुरंत ही प्रसन्न होने वाले भगवान। यदि प्रार्थना अलप साधनों में, तथा बिना किसी विधि विधान के शुद्ध मन से की गई हो. तो भी भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं. और मनोवांछित फल भी देते हैं. उपमन्यु जितना महान गुरुभक्त था, उतना ही महान शिवभक्त भी था. एक दिन उपमन्यु ने अपनी माता से दूध मांगा दूध तो उपमन्यु के यहां नहीं था. ऐसे में उसकी माता ने चावल का घोल बनाकर उसे यह कहकर दे दिया. कि यदि तुम्हें दूध पीना है, तो भगवान शिव की प्रार्थना करो.
वे प्रसन्न होकर दूध भात देंगे, ऐसा सुनकर उपमन्यु ने उनकी भक्ति हेतु माता के कहने पर वन जाकर ओम नमः शिवाय महामंत्र का जाप करना शुरू कर दिया. उसे वन में रहने वाले पिशाचों ने तरह-तरह से सताया. इस पर उपमन्यु जरा भी विचलित नहीं हुआ. उसके इस मंत्र जाप का प्रभाव यह हुआ कि पिशाचों का चित निर्मल हो गया. उपमन्यु के कठोर तप को देखकर भगवान से उसकी परीक्षा लेने हेतु इंद्र का रूप धारण कर उसके पास गये. उपमन्यु ने अपनी आंतरिक शक्ति से इंद्र बने शिव को पहचान लिया था. और उनसे कहा देवराज आपने मेरे सामने आकर बड़ी ही कृपा की है. मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं. इंद्र रूपी शंकर जी ने उपमन्यु पर प्रसन्न होकर कहा वत्स मैं तुम पर अति प्रसन्न हो मांगो तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हें इच्छित फल दूंगा.
भक्त उपमन्यु के सामने शिव और पार्वती कब प्रकट हुए है?
उपमन्यु ने कहा मैं भगवान शंकर का दास बनकर उनकी सेवा करना चाहता हूं. जब तक वे मुझे दर्शन नहीं दे देते है, तब तक मैं तप करना नहीं छोडूंगा. इतना सुनना था कि इंद्र बने शंकर जी ने स्वय की नींदा प्रारंभ कर दी. भगवान शंकर की निंदा सुनकर उपमन्यु दुखी और क्रोधित हुआ. उसने इंद्र का वध करने हेतु अभिमंत्रित भस्म उन पर फेंकी और शिव नंदा के प्रायश्चित अपने शरीर पर भस्म लगाने लगा. तब उसने देखा कि उसके समक्ष साक्षात भगवान शिव और पार्वती अपने वाहन नंदी बैल सहित खड़े हैं. ऐसा अद्भुत दृश्य देखकर उपमन्यु भावुक हो गया था. भगवान शिव ने उसकी अविचल भक्ति को देखकर उसके सारे दुख दूर कर दिए. उपमन्यु को दूध भात, खीर देकर शिव मंत्र की दीक्षा दी. ऐसी थी उपमन्यु की शिव भक्ति.
उपसंहार
इस तरह भक्त उपमन्यु अपने गुरु द्वारा ली गयी परीक्षा तथा भगवान शिव द्वारा ली गयी परीक्षा में सफल रहा. साक्षात् शिव-पार्वती जी का दर्शन कर उनका जीवन धन्य हो गया.
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FAQs
Ans- भक्त उपमन्यु के गुरु का नाम महर्षि आयोद धौम्य था.
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