The second battle of tarain || तराइन का दूसरा युद्ध

By | September 11, 2023
The second battle of tarain
The second battle of tarain

तराइन के पहले युद्ध 1191 ईस्वी की अपनी हार को मोहम्मद ग़ोरी कभी भूल नहीं पाया. उसने मध्य एशिया के खतरनाक लोगों की एक विशाल सेना एकत्रित की. और दूसरे वर्ष पुनः भारत पर आक्रमण करने की तैयारियां करने लगा. इधर पृथ्वीराज को 1 वर्ष का समय मिला, लेकिन उसने इसका लाभ नहीं उठाया. मोहम्मद ग़ोरी ने दूसरे वर्ष 120000 सेना लेकर पृथ्वीराज तृतीय के राज्य पर आक्रमण कर दिया. इस संकट को देखकर पृथ्वीराज तृतीय ने अन्य राजपूत राजाओं की सहायता की अपील की. कहा जाता है कि डेढ़ सौ छोटे-बड़े राजपूत राजाओं ने विदेशियों का सामना करने के लिए पृथ्वीराज के नेतृत्व को स्वीकार किया. इस प्रकार हिंदुओं ने एक बार उन्हें एकता तथा देशभक्ति का परिचय दिया. हम यहाँ तराइन का दूसरा युद्ध (The second battle of tarain) की वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे.

तराइन का दूसरा युद्ध कब और किस के मध्य हुआ था? (The second battle of tarain)

तराइन का दूसरा युद्ध मुहम्मद गौरी और भारत के तत्कालीन सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बीच लड़ा गया था. 1191 ईस्वी में तराइन के प्रथम युद्ध में हुई हार का बदला लेने के लिए. मुहम्मद गौरी ने भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान पर 1192 ईस्वी में दूसरा आक्रमण किया था. मोहम्मद ग़ोरी दूसरी बार भारत पर आक्रमण करने आया तब, भारत के लगभग राजपूत राजाओ ने पृथ्वीराज तृतीय का साथ दिया था. पर केवल कन्नौज के राजा जयचंद ने तराइन के दूसरे युद्ध में चौहानों का साथ नहीं दिया. पृथ्वीराज रासो के रचयिता चंद्रवरदाई ने लिखा है. कि जयचंद ने ही मोहम्मद ग़ोरी को तराइन तरौरी, हरियाणा में पृथ्वीराज के राज्य पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था. लेकिन आधुनिक इतिहासकार ,इसको सत्य नहीं मानते है.

फरिश्ता के अनुसार पृथ्वीराज तृतीय की सेना में लगभग 500000 घोड़े सवार सैनिक थे. तथा 30000 हाथी वाले सैनिक थे. तराइन के मैदान में दोनों सेनाओं का आमना-सामना हुआ. मोहम्मद ग़ोरी की सेना ने प्रातः अचानक भारतीय सेना पर आक्रमण कर दिया. उस समय भारतीय सेना आक्रमण करने को सहन करने के लिए त्यार नहीं थी. लेकिन भारतीय सैनिक जल्दी ही संभल गए. और उन्होंने शत्रु का डटकर मुकाबला किया. इस प्रकार मोहम्मद ग़ोरी कि सहसा आक्रमण करने की चाल विफल हो गयी थी. तब उसने अपनी सेना के भाग को पीछे रखकर, शेष को छोटे-छोटे दलों में भेजकर हिंदुओं पर चारों ओर से प्रहार किए. और फिर पीछे दौड़ने का बहाना किया.

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इस कूटनीतिक चाल से भारतीय सेना की स्थिति बिगड़ गई. इस समय मोहम्मद ग़ोरी में 12000 घोड़े सवार चुने हुए सेनिको को उसने रिजर्व में रखा हुआ था, को युद्ध के मैदान में झोक दिया. यद्पि राजपूतों ने युद्ध किया और वीरता का परिचय दिया, लेकिन सेनापति ने साहस का परिचय नहीं दिया. पृथवीराज युद्ध में मारे गए या पकड़े गए इतिहास में एक शोध का विषय है. इस युद्ध में पृथ्वीराज के भतीजे गोविंद राय वीरगति को प्राप्त हुए.

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1192 ईस्वी तराइन के दूसरे युद्ध के बाद भारत को क्या हानि हुई?

तराइन के दूसरे युद्ध का परिणाम यह हुआ, कि भारतीय इतिहास में निर्णायक और युग परिवर्तनकारी सिद्ध हुआ. हिंदुओं के गौरव का सूर्य सदैव के लिए डूब गया. और पृथ्वीराज तृतीय के बाद कोई ऐसा हिन्दू सम्राट नहीं बचा जो सब राजा, सामंतो की शक्ति को इकठा करके. मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा संगठित करके चला सके. वास्तव में इस युद्ध ने भारत में मुस्लिम सत्ता की नीव डाली. और मोहम्मद गौरी के लिए भारत विजय का सपना पूरा करना आसान हो गया था.

मोहम्मद ग़ोरी का तराइन के दूसरे युद्ध जितने के प्रमुख कारण क्या थे?

मोहम्मद गोरी ने इस युद्ध को जीतने के लिए ऐसे समय आक्रमण किया, जब पृथ्वीराज चौहान के सैनिक गहरी नींद में सो रहे थे. या सुबह के दैनिक कार्यों से निवृत्त हो रहे थे. ऐसी आशा नहीं थी, राजपूत सैनिक सावधानी में नहीं थे. राजपूत सैनिक आकस्मिक आक्रमण से आश्चर्यचकित रह गए. राजपूत सेना का पड़ाव एक लंबे चित्र में था. अतः सभी को इसकी जानकारी हुई नहीं हुई. योजनाबद्ध एवं आत्मिक हमले के कारण राजपूत सैनिक जहां हतोत्साहित हुए. वहां से अपने लड़ाई वाले हथियारों का कुशलता से प्रयोग भी नहीं कर पाए. इसके साथ उनको तुर्को की योजना अनुसार लड़ने के लिए मजबूत होना पड़ रहा था. वे अपनी सैनिक कार्यवाही भी सफलता से नहीं कर पा रहे थे.

ग़ोरी की योजना थी, कि राजपूत घोड़े सवार सैनिकों को अपनी सेना के समीप आने दिया जाए. जिससे वह अपने धनुष बाण का सही प्रयोग कर सकें. इस कार्यवाही से राजपूतों का संतुलन बिगड़ गया, जैसे ही राजपूत से निकट आने लगते पीछे की ओर चले जाते. राजपूत सेना के सेनिको को आगे. पीछे, दाएं, बाएं दौड़ाकर राजपूतों की सेना को परेशान करने लगे. परस्वो पर किए गए आक्रमणों से राजपूत सेना छीन भिन हो गई. और अपनी शक्ति का सही प्रदर्शन भी नहीं कर सकी. इस प्रकार यह युद्ध साय 3:00 बजे तक लगातार चलता रहा. राजपूत सेना बुरी तरह थक चुकी थी, साथ ही भूखे प्यासे तथा दैनिक क्रियाओ निवर्त न होने के कारण सैनिकों की युद्ध क्षमता रुक सी गई थी. ये ही प्रमुख कारण थे, जिनसे पृथ्वीराज तृतीय की सेना की 1192 ईस्वी तराइन के दूसरे युद्ध में हार हुई थी.

तराइन के दूसरे युद्ध से भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

तराइन का युद्ध भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटना थी. इसके परिणाम स्वरूप राजपूतों (राजस्थान, गुजरात, पंजाब, मध्य प्रदेश, हिमाचल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड) की सैन्य शक्ति का विनाश हो गया था. तथा भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना के लिए मार्ग खुल गए थे. पृथ्वीराज चौहान जैसे शक्तिशाली शासक का पतन होने से भारतीयों की राजनीतिक शक्ति इतनी कमजोर हो गई. कि मुस्लिम शासकों को रोकने के लिए किसी हिंदू शासक में साथ नहीं हो सका, पृथ्वीराज चौहान भारत का अंतिम हिंदू सम्राट था.

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FAQs

Q- तराइन का दूसरा युद्ध कब और किसके मध्य हुआ था?

Ans- मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच लड़ा गया था. 1191 ईस्वी में तराइन के प्रथम युद्ध में हुई हार का बदला लेने के लिए मुहम्मद गौरी ने भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान को हराया था.

Q- तराइन का दूसरा युद्ध कब लड़ा गया था?

Ans- तराइन का दूसरा युद्ध 1192 ईस्वी में तराइन तरौरी, हरियाणा में लड़ा गया था.

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