Biography of Rajarshi Ambareesh || राजर्षि अम्बरीष का जीवन परिचय

By | December 20, 2023
Biography of Rajarshi Ambareesh
Biography of Rajarshi Ambareesh

दोस्तों राजर्षि अम्बरीष सप्तद्वीपवती सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी के स्‍वामी थे. और उनकी सम्‍पत्ति कभी समाप्‍त होने वाली नहीं थी. राजर्षि अम्बरीष ऐश्‍वर्य की संसार में कोई तुलना न थी. कोई दरिद्र मनुष्‍य भोगों के अभाव में वैराग्‍यवान बन जाए, यह तो सरल है.किन्‍तु धन-दौलत होने पर विलास भोग की पूरी सामग्री प्राप्‍त रहते वैराग्‍यवान होना, विषयों से दूर रहना, महापुरुषों के ही वश का है. और यह भगवान की कृपा से ही होता है. राजा अम्बरीष की कथा ‘रामायण’, ‘महाभारत’ और पुराणों में विस्तार से वर्णित है. उन्होंने दस हज़ार राजाओं को पराजित करके ख्याति अर्जित की थी. वे भगवान विष्णु परम भक्त और अपना अधिकांश समय धार्मिक अनुष्ठानों में लगाने वाले धार्मिक व्यक्ति थे. हम यहाँ राजर्षि अम्बरीष की जीवनी (Biography of Rajarshi Ambareesh). और उनसे जुड़ी वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे.

राजर्षि अम्बरीष कौन थे? अम्बरीष का जीवन परिचय रोचक जानकारी

राजर्षि अम्बरीष इक्ष्वाकुवंशीय परमवीर राजा थे. यह भगीरथ के प्रपौत्र, वैवस्वत मनु के पौत्र और नाभाग के पुत्र थे. राजर्षि अम्बरीष चक्रवर्ती सम्राट थे, जब उन्हें यह अनुभूति हुई कि यह सारा वैभव स्वप्न देखे हुए पदार्थ की तरह मृत्युकारक और असार है. तो उन्होंने अपना सारा जीवन परमात्मा के चरणों में समर्पित करने का संकल्प लिया. अम्बरीष जी ने भगवान विष्णु के परमप्रिय भक्त बन गये थे. अम्बरीष जी ने दस हज़ार राजाओं को पराजित करके प्रतिष्ठा अर्जित की थी. वे भगवान विष्णु परम भक्त और अपना अधिकांश समय धार्मिक धर्म क्रिया में लगाने वाले धार्मिक व्यक्ति थे.

राजा राजर्षि अम्बरीष की कथा और इतिहास और ऋषि दुर्वासा को जीवन दान

दोस्तों एक बार की बात है, राजा अम्बरीष ने अपनी पत्नी समेत भगवान श्रीकृष्ण के प्यार प्राप्त करने के लिए एक वर्ष की सभी एकादशियों का व्रत रखा था. अन्तिम एकादशी के दूसरे दिन भगवान् की पूजा कर राजा गमन करना चाहते थे कि ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों सहित पधारे उनके दरबार में पधारे. महाराज अम्बरीष ने उनसे भोजन करने की प्रार्थना की. ऋषि दुर्वासा ने उनके भोजन के आमत्रण को स्वीकार कर लिया. और वे नित्य कर्म करने के लिए पास की यमुना तट पर चले गये. एकादशी के व्रत का पारण द्वादशी को ही होता है. अत: द्वादशी की एक ही घड़ी बाकी थी, द्वादशी में पारण न होने पर व्रत भग होता है. दूसरी और ऋषि दुर्वासा ध्यानस्थ हो गये थे.

राजा राजर्षि अम्बरीष ने वहां उपस्थित ब्राह्मणों से चर्चा कर अतिथि को भोजन कराये बिना भोजन करने के अपराध से बचने का उपाय और व्रत भंग न होने का उपाय पूछा था. ब्राह्मणों की आज्ञानुसार राजा ने गंगा जल से अल्पपान कर लिया और दुर्वासा जी की प्रतीक्षा करने लगे. राजमन्दिर में लौटने पर ऋषि दुर्वासा ने अपने तपोबल से यह जान लिया कि राजा राजर्षि अम्बरीष ने जल ग्रहण कर लिया है. राजा अम्बरीष ने ऋषि दुर्वासा को जब क्रोधित देखा, तो वे उनके सामने हाथ जोड़े अपराधी की तरह खड़े हो गये थे.

Summary

नामराजर्षि अम्बरीष
उपनामभगीरथ के प्रपौत्र
जन्म स्थान
जन्म तारीख
वंशइक्ष्वाकुवंशीय
माता का नाम
पिता का नामनाभाग
पत्नी का नाम
उत्तराधिकारी
भाई/बहन
प्रसिद्धिदस हज़ार राजाओं को पराजित करके ख्याति अर्जित की थी
रचना
पेशाराजा
पुत्र और पुत्री का नाम
गुरु/शिक्षकभगवान विष्णु
देशभारत
राज्य क्षेत्रउत्तर प्रदेश
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषासंस्कृत
मृत्यु
मृत्यु स्थान
जीवन काल
पोस्ट श्रेणीBiography of Rajarshi Ambareesh
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राजर्षि अम्बरीष जी ने ऋषि दुर्वासा जी की जान कैसे बचाई थी?

क्रुद्ध ऋषि दुर्वासा ने कहा: ”धर्म का निरादर करने वाले हे! धृष्ट राजा! तू भगवान विष्णु का भक्त हो ही नहीं सकता. तू तो स्वयं को ईश्वर मानता है, तूने अतिथि को भोजन कराये बिना स्वयं ही भोजन कर लिया है. अभी रुको में तुझे इसका फल चखाता हूं. यह कहकर ऋषि दुर्वासा जी ने मस्तक ने एक जटा उखाड़कर जोर से पृथ्वी पर पटकी, जिससे कालाग्नि सदृश कृत्या नाम की एक भयानक राक्षसी प्रकट हो गयी थी.

भयानक राक्षसी सदृश कृत्या ने पृथ्वी को अपने पैर से कंपाते हुए तलवार हाथ में लेकर राजा राजर्षि अम्बरीष की ओर दौड़ी पड़ी. परन्तु भगवान विष्णु के परम भगत अम्बरीष भगवान् भक्ति में अचल होकर वहीं खड़े रहे. भगवान् ने अपने भक्त की रक्षा हेतु सुदर्शन चक्र भेजा, जिससे उसी क्षण कृत्या भस्म राक्षसी हो गयी थी. अब सुदर्शन चक्र ऋषि दुर्वासा की खबर लेने उनके पीछे-पीछे दौड़ा. ऋषि दुर्वासा अपने प्राण बचाने इधर-उधर भागे, दसों दिशाओं और चौदह भुवनों में उन्हें बचने की कोई जगह नहीं मिली. तब वे अन्त में वैकुण्ठ जाकर वे भगवान विष्णुजी के श्री चरणों में गिर पड़े और बोले भगवान ! मेरा अपराध क्षमा करें.तब भगवान विष्णुजी ने कहा: ”मैं तो अपने भक्त के अधीन हूं. मुझे भक्तजन बहुत प्रिय हैं,अब आपकी रक्षा तो भक्त अम्बरीष ही कर सकते हैं.

भगवान विष्णु का आदेश पाकर ऋषि दुर्वासा उसी अवस्था में राजा राजर्षि अम्बरीष के पास पहुंचे. किन्तु इसी बीच राजा राजर्षि अम्बरीष ने तो भूखे ऋषि दुर्वासा के जाने पर उसी क्षण अन्न त्याग दिया था. वे जल पीकर रहने लगे थे, अम्बरीष जी के पास आते-आते ऋषि दुर्वासा को एक वर्ष लग गया था. तब तक राजर्षि अम्बरीष ने निराहार व्रत का पालन किया था. ऐसे महान थे, राजा राजर्षि अम्बरीष.

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ऋषि दुर्वासा ने राजा राजर्षि अम्बरीष के चरण पकड़ लिये, तब राजा राजर्षि अम्बरीष ने सुदर्शन की स्तुति करते हुए कहा: ”मेरे मन में ऋषि दुर्वासा जी के प्रति तनिक भी द्वेष नहीं है. भगवान! आप शान्त होकर ऋषि को इस संकट से मुक्त करें. सुदर्शन चक्र शान्त हो गया, राजा अम्बरीष ने ऋषि दुर्वासा को प्रेमपूर्वक भोजन कराया और स्वयं भी एक वर्ष बाद भोजन ग्रहण किया था.

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FAQs

Q- राजर्षि अम्बरीष जी कौन से वंश के थे?

Ans- राजर्षि अम्बरीष इक्ष्वाकुवंशीय परमवीर राजा थे.

Q- राजर्षि अम्बरीष के दादा का क्या नाम था?

Ans- राजर्षि अम्बरीष के दादा का नाम वैवस्वत मनु था.

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