प्रस्तावना
भगवान श्री कृष्ण जी के मथुरा जाने के पश्चात उनके परममित्रों में उद्धवजी का नाम विशेष महत्वपूर्ण है. वे उपंग नामक यादव के पुत्र थे, श्री कृष्ण के सखा एवं परामर्शदाता भी माने जाते हैं. वसुदेव के भाई देवनाग के पुत्र कृष्ण के चचेरे भाई के रूप में भी उनका परिचय दिया जाता है. वस्तुतः उद्धव परमयोगी, साधक तथा निर्गुण ब्रह्म के परम उपासक थे. हम यहाँ कृष्ण सखा उद्धव की जीवनी (Biography of Krishna Sakha Uddhav). और कृष्ण सखा उद्धव की वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अबसे पहले अनजान थे. तो मित्रों चलते है और जानते है, कृष्ण सखा उद्धव की आश्चर्यजनक जानकारी.
कृष्ण सखा उद्धव जी कौन थे? उद्धव जी का जीवन परिचय (Biography of Krishna Sakha Uddhav)
दोस्तों कृष्ण सखा उद्धव, भगवान श्रीकृष्ण के चाचा देवभाग के लड़के थे. जो आयु में श्रीकृष्ण से थोड़े बड़े थे. उनका असली नाम बृहदबल था. उद्धव भागवत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय सखा और साक्षात बृहस्पति के शिष्य थे. महामतिमान उद्धव वृष्णिवंशीय यादवों के माननीय मन्त्री थे. उनके पिता का नाम उपंग कहा गया है. और एक अन्य मत के अनुसार उद्धव जी वसुदेव के भाई देवभाग का पुत्र कहा गया है. अत: उन्हें श्रीकृष्ण का चचेरा भाई भी बताया गया है. एक अन्य मत के अनुसार उद्धव जी सत्यक के पुत्र तथा कृष्ण के मामा कहे गये हैं.
Summary
नाम | बृहदबल |
उपनाम | उद्धवजी, कृष्ण सखा उद्धव |
जन्म स्थान | मथुरा उत्तर प्रदेश |
जन्म तारीख | — |
वंश | यादव |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | देवभाग |
पत्नी का नाम | – |
उत्तराधिकारी | – |
भाई/बहन | श्री कृष्ण |
प्रसिद्धि | कृष्ण सखा, श्री कृष्ण के सन्देश वाहक |
रचना | – |
पेशा | कृष्ण जी के सलाहकार |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | बृहस्पति |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तरप्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | ब्रज भाषा, हिंदी, संस्कृत |
मृत्यु | 4000 वर्ष पूर्व |
मृत्यु स्थान | मथुरा |
जीवन काल | — |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Krishna Sakha Uddhav (कृष्ण सखा उद्धव की जीवनी) |
उद्धव और कृष्ण की दोस्ती (मित्रता)
मथुरा जाने के पश्चात कृष्ण जी वहां के राज वैभव, तथा व्यस्त जीवन में रहते हुए भी वृंदावन भूमि, ब्रज की वीथिकाओ, बृजबाओ,सखा-मित्रों, गोप-गोपियों के प्रेम को नहीं भुला पाए थे. ऐसी ही दशा गोप गोपी का तथा संपूर्ण ब्रिज की थी. कृष्ण सखा उद्धव जब भी अपने मित्र कृष्ण की यह दशा देखते तो उन्हें समझाते, कि उन्हें अपने इस प्रेम भाव को पूरी तरह विस्मृत करना होगा। कृष्ण जी उद्धव से हमेशा यही कहते ऐसा संभव नहीं है. मैं व्रजभूमि से जुड़ी हुई किसी जड़ चेतन वस्तु को नहीं भूल पाऊंगा। कृष्ण सखा उद्धव उनकी गहन प्रेमाअनुभूति को समझने में असमर्थ थे.
अतः उन्होंने कृष्ण जी से यह शर्त लगाई, कि उनका तथा गोपियों का उनके प्रति प्रेमभाव क्षणिक एवं मायावी है. वे सत्यता प्रमाणित कर सकते हैं. उनमें तथा उनके ज्ञान में इतनी शक्ति है, कि गोपियाँ भी अभी अपने प्रेम भाव श्री कृष्ण को भुला देगी. अपने मित्र उद्धव की बात सुनकर कृष्ण ने एक शर्त रखी, कि तुम मेरे प्रति एक बार गोकुल जाकर इस प्रेम भाव की परीक्षा कर आओ. गर्वभरी भावना लेकर तथा निर्गुण ब्रह्म के ज्ञान की गति लेकर उद्धव गोकुल पहुंचे.
योगी उद्धव एवं गोपियां
जब गोपियों को यह ज्ञात हुआ कि कृष्ण के परम मित्र उद्धव जब आये हुए हैं. यह खबर पाते ही गोपियां अत्यंत उत्साह से नंद बाबा के आंगन में एकत्र हो गई. अत्यंत आकुल-व्याकुल होकर कृष्ण जी का संदेशा जानने के लिए उत्सक हो उठी. संदेश पाते ही गोपियां और दुःखी हो गयी. क्यों कि कृष्ण जी से उनका मिलन शीघ्र संभव नहीं है. श्री कृष्ण के प्रेम तथा विरह में डूबी हुई गोपियों की विरहाकुल दशा देखकर उद्धव जी ने उन्हें सगुण ब्रह्म की उपासना करना छोड़ कर निगुण ब्रह्म की उपासना करने का उपदेश देना प्रारंभ कर दिया. उद्धव ने अत्यंत तर्क वितरक एवं चतुराई से निगुण ब्रह्म के ज्ञान को उनके जीवन की सार्थकता एवं शांति के लिए उपयुक्त बताया.
यह सुनते ही गोपियों ने उद्धव जी को अपनी बातों और शब्दों से निरुत्तर सा कर दिया। उन्होंने कहा है उद्धव! मन न भये दस बीस, एक हुतो सो गयो श्याम संग, को आराधो ईश. अथार्थ हमारे पास कोई 10 या 20 तो मन नहीं है, एक ही मन था वह तो कृष्ण के साथ चला गया. ऐसे में हम तुम्हारे निगुण ब्रह्म की उपासना कैसे करें. हम तो कृष्ण की उपासना करती हुई करोड़ों वर्षों तक उनकी प्रतीक्षा कर लेंगे. उद्धव पर व्यंग्य उपालम्भ करती हुई कहती है. तुम तो श्याम सुन्दर के सखा हो फिर भी अपने मित्र की भक्ति व प्रेम छोड़कर निगुण ब्रह्म का उपदेश दे रहे हो. एवं हम उस संपूर्ण लोकों के स्वामी योगेश्वर कृष्ण के बिना और किसी की उपासना करने में असमर्थ हैं.
गोपियों और उद्धव जी के मध्य संवाद
वे कहती हैं, हैं उद्धव तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की कौन है माता और कौन है पिता. उनकी क्या लीलाएं हैं. हमें समझाओ क्योंकि हम तो अपने प्रिय कृष्ण के विषय में सब कुछ जानती हैं. तुम निर्गुण ब्रह्म के ज्ञान की कौन सी गठरी लेकर आए हो. यदि हम तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की भक्ति करना भी चाहें, तो हमें कौन सा फल मिलेगा. तुम्हारे इस मूली के पत्तों की भक्ति के बदले तुम्हें अमृत क्यों दें. अमृत को छोड़कर कड़वा नीम क्यों ले. अथार्थ कृष्ण की भक्ति के बदले में हम निर्गुण ब्रह्म की भक्ति लेकर घाटे का सौदा क्यों करें। जाओ योगिनियों को उपदेश दो.
ऊधौ मन नहि हमारे, मन में रहियौ नाही नं ठौर।।
वे, ऊधौ भली भई ब्रज आये, मधुकर भलि कर आये।।
ऊधौ जोग जोग हम नाहीं, आयौ घोष बड़ो व्यौपारी।।
हमारे हरि हारिल की लकड़ी। कहकर उद्धव को अपने ज्ञान तथा भक्ति के प्रेमभाव और तर्क-विकृत से निरुत्तर कर देती है. कि उद्धव का सारा का सारा अभिमान ही जाता रहा. श्री कृष्ण ने उद्धव के इसी अभिमान को जानकर उसका खंडन करने के लिए ही, उसे ब्रजभूमि भेजा था. कृष्ण के प्रति अविचल, अटूट, एकनिष्ठ, अपार अवर्णिय प्रेम भाव को देखकर उद्धव जी भी कृष्ण के प्रेम में अनुरक्त होकर मथुरा लौटते हैं.
उद्धव का हृदय परिवर्तन
गोपियों के प्रेम भाव और उनके पत्र को लेकर उद्धव जी मथुरा लौटने लगे थे. उनके निर्गुण ब्रह्म ज्ञान का सारा घमंड चूर चूर हो चुका था. कृष्ण जी के दूत बन कर आए थे. अब तो वह कृष्ण के साथ गोप-गोपियों के भी भक्त भक्त बन चुके थे. राधा तथा गोपियों की विरह वेदना से दुखी उद्धव जी भी बहुत दुखी थे. उन्होंने कृष्ण के वियोग में परम दुखियारी गायों को भी देखा था. जो कृष्ण द्वारा गोदोहन के स्थानों को जाकर सुंगती थी, और अत्यंत अतुल होकर पछाड़ खाकर गिर जाती थी. गोपियों की तरह गायों की दशा भी बावली की थी. यह सब अनुभव कर उद्धव जी का हृदय पूर्ण परिवर्तन हो गया था. अब तो वह यशोदा, राधा, गोप-गोपियों तथा संपूर्ण ब्रजभूमि का संदेशा लेकर कृष्ण को एक बार ब्रिज बुलाने हेतु सोचते हुए चल पड़े थे.
उपसंहार
कृष्ण जी अलौकिक अवतार में जहां अपनी कर्मभूमि, जन्मभूमि, ब्रजभूमि से अत्यंत प्रेम करते थे. वहीं अलौकिक स्थिति में वे संपूर्ण मानव जाति से प्रेम करते थे. मथुरा आकर मानव जाति को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाना उनका परम कर्तव्य था. वही उद्धव के रूप में परमज्ञानी, प्रकांडपंडित निगुणोपासक उद्धव के ज्ञान अभिमान को तोड़ना और उन्हें भक्ति का सहज मार्ग दिखाना उनका परम धर्म था.
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FAQs
Ans- दोस्तों कृष्ण सखा उद्धव, भगवान श्रीकृष्ण के चाचा देवभाग के लड़के थे. जो आयु में श्रीकृष्ण से थोड़े बड़े थे. उनका असली नाम बृहदबल था. उद्धव भागवत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय सखा और साक्षात बृहस्पति के शिष्य थे.