प्रस्तावना
कृष्ण भक्ति शाखा के वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक निम्बार्काचार्य जी हैं. वे निम्बाक सम्प्र्दाय के प्रवर्तक कहे जाते हैं. उन्होंने द्वैताद्वैत के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था. अथार्थ जीव और ब्रह्म दोनों की सत्ता अलग-अलग है. ऐसा कहा जाता है, कि व्यास जी निंबार्काचार्य के समकालीन थे. उन्होंने सिद्धांतों की स्थापना के साथ-साथ 5 ग्रंथों का प्रणयन भी किया था. हम यहाँ निम्बार्काचार्य जी का जीवन परिचय (Biography of Nimbarkacharya). और उनसे जुड़ी वो रोचक और अद्भुत जानकारी यहाँ शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अबसे पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है निम्बार्काचार्य जी रोचक जानकारी.
निम्बार्काचार्य जी का जीवन परिचय (Biography of Nimbarkacharya)
निम्बार्काचार्य जी का जन्म 1162 ईस्वी के आसपास माना जा सकता है. वे मैसूर के बेल्लारी जिले के निम्बापुर नामक नगर में जन्मे थे. उनके बचपन का नाम नियमानन्द तथा आरुणि था. पिता का नाम तरुण मुनि तथा माता का नाम जयंती देवी था. अपने ब्रह्मपुत्र भाष्य में उन्होंने अपने गुरु का नाम नारद बताया है. कहा जाता है कि एक बार मथुरा (उत्तर प्रदेश) के कोई जैन साधु उन से चर्चा करने आए हुए थे. इस आध्यात्मिक चर्चा में दोनों इतने अधिक लीन हो गए, कि उन्हें समय का ध्यान ही नहीं रहा. जैन साधु के भोजन की बेला टल गई.
जिससे उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ, मन में कितनी वेदना हुई कि शांत भाव से ईश्वर का ध्यान करते बैठ गए. चमत्कार ऐसा हुआ कि आश्रम के नीम के वृक्ष के ऊपर सूर्य देवता अपना प्रकाश डाल रहे थे. उन्होंने जैन साधु को जैसे ही भोजन करवाया सूर्य देवता अंतर्ध्यान हो गए. नीम के वृक्ष के ऊपर अर्थात सूर्य का दर्शन कराने के कारण उनका नाम निम्बार्काचार्य पड़ गया. उनकी कर्मभूमि ब्रजमंडल रही वृंदावन, गोवर्धन, नीमगांव आदि स्थानों में घूम कर उन्होंने अपने सिद्धांतों का प्रचार किया. उनके प्रमुख चार शिष्य थे, उन्हें भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र का अवतार भी माना जाता है.
Summary
नाम | नियमानन्द |
उपनाम | निम्बार्काचार्य, आरुणि |
जन्म स्थान | निम्बापुर, मैसूर |
जन्म तारीख | 1162 ईस्वी |
वंश | – |
माता का नाम | जयंती दे |
पिता का नाम | तरुण मुनि |
पत्नी का नाम | – |
उत्तराधिकारी | – |
भाई/बहन | – |
प्रसिद्धि | संत, दार्शनिक |
रचना | वेदान्तसौरभ’, ‘वेदान्तकामधेनुदशश्लोक’, गीताभाष्य’, ‘कृष्णस्तवराज’, ‘गुरुपरम्परा’, ‘वेदान्ततत्वबोध’, ‘वेदान्तसिद्धान्तप्रदीप’, ‘स्वधर्माध्वबोध’, ‘ऐतिह्यतत्वसिद्धान्त’, ‘राधाष्टक’ आदि है |
पेशा | संत, दार्शनिक |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | नारद |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, संस्कृत, ब्रज |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | मथुरा |
जीवन काल | — |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Nimbarkacharya (निम्बार्काचार्य की जीवनी) |
निम्बार्काचार्य जी की रचनाएं व कार्य
निम्बार्काचार्य जी ने अपने सिद्धांतों की स्थापना के लिए 5 ग्रंथो का प्रणयन किया जो इस प्रकार है. वेदान्तसौरभ’, ‘वेदान्तकामधेनुदशश्लोक’, गीताभाष्य’, ‘कृष्णस्तवराज’, ‘गुरुपरम्परा’, ‘वेदान्ततत्वबोध’, ‘वेदान्तसिद्धान्तप्रदीप’, ‘स्वधर्माध्वबोध’, ‘ऐतिह्यतत्वसिद्धान्त’, ‘राधाष्टक’ आदि है. इनमें वेदान्तसौरभ’, ‘वेदान्तकामधेनुदशश्लोक’ ये दो ग्रन्थ ही वर्तमान में उपलब्ध हैं. ‘निम्बार्क सम्प्रदाय द्वैताद्वैतवादी है. निम्बार्काचार्य जी अनुसार जीवन पारब्रह्म का अंश है.
ईश्वर सबका नियंता है. वह जीवन अणु का दुष्टा है. ईश्वर को जीव भक्ति द्वारा प्राप्त कर सकता है. कृष्ण भक्ति में राधा और कृष्ण दोनों की ही प्रार्थना की जानी चाहिए. वामभाग में राधा के साथ कृष्ण जी उपाध्याय हैं. अतः श्री और लक्ष्मी दोनों ही रूपों में राधा कृष्ण के साथ प्रकट होती है. दांपत्य भक्ति ही श्रेष्ठ भक्ति है. उन्होंने भी मानवतावादी धर्म का प्रचार किया था.
उपसंहार
श्री निंबार्काचार्य के अनेक मंदिर उत्तर भारत में विद्यमान हैं. राजस्थान के सलेमाबाद में इस संप्रदाय की सबसे बड़ी गद्दी है. वृन्दावन में बड़ी पुंज आराधना स्थल है. आज भी उनके अनुयाई उत्तर भारत में मिलते हैं. भक्ति में द्वैताद्वैत के सिद्धांत के कारण उनका महत्व है.
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FAQs
Ans- निम्बार्काचार्य जी के प्रमुख पाँच शिष्य स्वामी हरिव्यासा देवकार्य,स्वामी स्वभूराम देवचार्य, स्वामी हरिप्रिया सरना देवकाचार्य, स्वामी ललिता सरना देवकाचार्य, स्वामि राधा सर्वेश्वरा सरना देवकाचार्य माने जाते है.
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