हम यहाँ सोमनाथ गुजरात का युद्ध (Battle of Somnath) किस किस के मध्य हुआ था. सोमनाथ मंदिर के युद्ध में हिन्दुओं की हार के मुख्य कारण क्या थे?. सोमनाथ के युद्ध क्यों हुआ, आदि समस्त रोचक और अद्भुत जानकारी के लिए इस पेज को अंत तक पढ़ना चाहिए. गजनी के सुल्तान मोहम्मद गज़नवी ने सिंहासन पर बैठने से पूर्व है भारत की विशाल धनसपदा की अनेक कहानियां सुनी थी. अतः उसने प्रतिज्ञा कि वह भारत पर पूर्ण शक्ति के साथ आक्रमण करेगा. सर्वप्रथम उसकी सत्ता को बगदाद के खलीफा ने स्वीकृति प्रदान की. वह अच्छे से जानता था, कि भारत राजनीतिक स्तर पर काफी कमजोर है. वहां के शासक आपस में ईर्ष्या और द्वेष के कारण एक दूसरे से घृणा करते हैं. तथा आपत्ति के समय एक दूसरे की सहायता नहीं कर सकेंगे.
अतः महमूद गजनी को इससे अच्छा अवसर मिलना कठिन था. अतः उसने भारत पर आक्रमण करने का पक्का इरादा बनाया. वह भारत की पूरी संपत्ति हड़पना चाहता था यही कारण है कि मोहम्मद गजनवी ने 1000 ई.से सन 1026 ईस्वी के बीच भारत पर लगातार 17 बार आक्रमण किए और समस्त उत्तरी भारत (पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश) को बुरी तरह रौंद डाला.
मोहम्मद गज़नवी कौन था?
महमूद गजनवी यमीनी वंश के तुर्क सरदार और गजनी के शासक सबुक्तगीन का बेटा था. महमूद गजनवी का जन्म 02 नवम्बर 971 ईस्वी में अफगानिस्तान के एक छोटे से शहर गजनी में हुआ था. उसने 27 साल की उम्र में ही गजनी गद्दी सम्भाल ली थी. महमूद गजनवी बचपन से भारती महादीप की बहुत सी बात सुन रखी थी, उसने भारत की दौलत के बारे में बचपन से सुनता आया था. महमूद ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था. वह भारत की संपत्ति लूटकर गजनी ले जाता था. आक्रमणों का यह सिलसिला 1001 से शुरु हुआ था और सन 1026 में सोमनाथ मंदिर लूट कर बंद हुआ था.
सुल्तान महमूद गजनवी ने भारत पर कितने आक्रमण किये और कब कब किये?
गज़नवी का भारत पर पहला आक्रमण कब हुआ था?
मोहम्मद गज़नवी ने भारत पर सर्वप्रथम आक्रमण 1000 ईसवी में सिंधु नदी के पश्चिम में प्रदेश में स्थित नगरों और किलो को लूटा. उसने रास्ते में जो भी गांव मिलता उसे आग लगा देता था. तथा गांव से उसे कुछ भी मिलता उसे लूटता हुआ आगे बढ़ता. जीते हुए स्थानों पर अधिकार जमा कर, वह वापस गजनी देश चला जाता था.
गज़नवी का भारत पर दूसरा आक्रमण कब हुआ था?
मोहम्मद गज़नवी ने 1 वर्ष बाद सन 1001 ईस्वी में पुनः भारत पर आक्रमण किया यह उसका दूसरा आक्रमण था. यह आक्रमण लाहौर के जयपाल राजा पर पूर्ण शक्ति के साथ किया. पेशावर के निकट भीषण संघर्ष हुआ परंतु सामरिक भूलो एवं कूटनीतिक चालों के अभाव में जयपाल को इस युद्ध में पराजित होना पड़ा. इस सफलता के बाद मोहम्मद गज़नवी का साहस और बढ़ गया. जिसने उसकी धन प्राप्ति की लालसा को और बढ़ा दिया.
मोहम्मद गज़नवी का भारत पर तीसरा आक्रमण कब हुआ था?
सन 1003 में मोहम्मद गज़नवी ने भारत पर फिर तीसरा आक्रमण किया. यह अक्रमण सिंधु नदी के पार जेलम नदी के किनारे स्थित भेरा राज्य पर केंद्रित रहा. यह राज्य उस समय विजय राज के अधिकार में था. वहां का दुर्ग सैनिक दृष्टिकोण से बड़ा महत्वपूर्ण था. इस युद्ध में मोहम्मद गज़नवी ने सफलता प्राप्त की.
मोहम्मद गज़नवी का भारत पर चौथा आक्रमण कब हुआ था?
सन 1006 ईस्वी मैं मोहम्मद गजनवी ने चौथा आक्रमण मुल्तान के शासक अब्दुल फतह दाऊद पर किया. इस अभियान में दाऊद को पराजय का मुंह देखना पड़ा, और मोहम्मद गज़नवी मुल्तान शहर को लूट कर वापस चलागया था.
गज़नवी का भारत पर पांचवा आक्रमण कब हुआ था?
सन 1007 इसी में मोहम्मद गजनवी ने भारत पर पांचवा आक्रमण किया, नवाब शाह पर किया गया गजनवी ने पांचवा आक्रमण नवासा पर किया. जिसमें उन्हें विजय प्राप्त हुई, इस युद्ध में काफी धन जनहानि हुई. लेकिन वह तो विदेशी आक्रमणकारी था उसे जो भी मिलता उसे ही इकट्ठा कर अपने देश गजनी गजनी ले जाता.
मोहम्मद गज़नवी का भारत पर छठा आक्रमण कब हुआ था?
सन 1008 में उसने छठा आक्रमण लाहौर के राजा आनंदपाल पर किया. इस युद्ध में आनंदपाल की हार हुई इस आक्रमण ने सीमांत भारत को भयभीत कर के रख दिया, कोई शासक उसका मुकाबला करने को तैयार नहीं था. अतः वह बड़ी आसानी से लूट खसोट करके अपने वतन लौट जाता था. यह युद्ध अत्यंत संघर्षपूर्ण एवं रोचक रहा.
मोहम्मद गज़नवी का भारत पर सातवां आक्रमण कब हुआ था?
सन 1009 ईस्वी में मोहम्मद गज़नवी ने सातवा आक्रमण पंजाब होते हुए नेपाल के नगरकोट पर किया. इससे पूर्व में लाहौर पर अपना अधिकार कर चुका था. नगरकोट से उसे भारी धन संपदा प्राप्त हुई. इसके बाद उसने लगातार आक्रमण का सिलसिला जारी रखा.
गज़नवी का भारत पर बारहवाँ आक्रमण कब हुआ था?
सन 1018-1019 ईस्वी में उसने बारहवाँ आक्रमण उत्तर प्रदेश के मथुरा और कन्नौज की विजय के उद्देश्य से किया. और वह सफल भी हुआ, मथुरा के सभी मंदिरों को उसने लूटा मंदिर की मूर्तियों को नष्ट किया. कन्नौज शहर को लूट कर ऊँटो व घोड़ों पर संपदा लाद कर ले गया. हिंदुओं के प्रति उसे घृणा थी. अतः उनके धार्मिक स्थलों को नष्ट करने में उसे अति आनंद आता था.
मोहम्मद गज़नवी का भारत पर तेरहवाँ आक्रमण कब हुआ था?
सन 1020 ईस्वी में उसने तेरहवाँ आक्रमण मध्य प्रदेश के कलिंजर पर किया. इस आक्रमण में भी वह सफल हुआ. मोहम्मद गजनी एक लुटेरा था, आक्रमण करने के बाद लूट खसोट कर वह वापस अपने देश गजनी चला जाता था. और पुनः तैयारी के साथ दूसरा आक्रमण कर देता था. इस प्रकार मोहम्मद गज़नवी भारत को लूटता रहा.
मोहम्मद गज़नवी का सोमनाथ मंदिर पर सत्रहवाँ आक्रमण कब हुआ था?
सन 1025 इसी में मोहम्मद गजनी ने भारत के विख्यात मंदिर सोमनाथ पर आक्रमण करने का निश्चय किया. यह मंदिर वर्तमान गुजरात के सरस्वती नदी के मुहाने पर अरब सागर के तट पर स्थित है . इसमें हजारों पुजारी रहते थे, भारतीयों की दृष्टि में किस मंदिर का विशेष महत्व था. इसी कारण समस्त भारत में इसकी विशेष मान्यता थी सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण के समय लाखों की संख्या में लोग एकत्रित होकर पुण्य प्राप्ति हेतु मंदिर दर्शन को पहुंचे थे. 1000 पुजारी प्रतिदिन पूजा के लिए निर्धारित थे. मंदिर का मंडप 56 रतंजलि भारी-भारी स्तंभों पर आश्रित था. मोहम्मद गज़नवी ने मदनी की सेना में लगभग 80000 संगठित योद्धा थे. जिनमें लगभग 30,000 नियमित अश्वरोही सेनीक थे, तथा शेष पैदल सैनिक के रूप में उसके समाजसेवी सैनिक थे.
उसने अपनी शक्ति का समूचा प्रयोग करने के लिए आपूर्ति व्यवस्था पर विशेष रूप से ध्यान दिया था. क्योंकि उसे कई विगत लड़ाई हो का भी अनुभव प्राप्त था. इसके साथ ही जलापूर्ति के लिए उसने 30000 ऊँटो पर पानी तथा अन्य आवश्यक सामग्री इस अभियान के लिए रखी थी. ताकि राजस्थान के रेगिस्तान की समस्याओं से सुरक्षा की जा सके. सोमनाथ के इस आक्रमण में राजपूतों की निश्चित संख्या का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। परंतु यह अनुमान है, कि लगभग 50000 सैनिक रहे होंगे. इसके साथ ही उनकी सैन्य शक्ति का समुचित उपयोग नहीं हो सका. अरब सागर के तट पर स्थित सोमनाथ मंदिर की किलाबंदी सुदृढ़ थी.
Battle of Somnath
और सतर्कता के साथ प्रत्येक दिशा से होने वाले आक्रमण का सामना किया जा सकता था. मोहम्मद गजनी ने कूटनीति से काम लिया और गुप्त रूप से अपनी सेना मंदिर की किलेबंदी में प्रवेश करा दी. महमूद गजनवी के आक्रमण के समय गुजरात का शासक भीम प्रथम था. 6 जनवरी सन 1026 ईस्वी को मोहम्मद की सेना देलवाड़ा गुजरात से सोमनाथ के मंदिर को घेरने के लिए तेजी के साथ आगे बढ़ी. उसने अपनी निर्धारित योजना के आधार पर कार्रवाई करना प्रारंभ किया. जिससे उसके कुछ सैनिक दुर्ग की प्राचीर को तोड़कर आगे बढ़ गए. इस दौरान अनेक मुठभेड़ हुई, जिसमें एक दो बार तो मोहम्मद गजनवी की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा. परंतु अपने दृढ़ इरादे के साथ ही राजपूतों की कमजोरियों का लाभ उठाते हुए मोहम्मद गजनवी ने अपना सैनिक अभियान जारी रखा.
सोमनाथ का युद्ध
इस बार की जोरदार का इस बार की जोरदार कार्यवाही से उसके सैनिक सोमनाथ मंदिर की ओर बढ़ने में सफल हो गए. जिस समय मोहम्मद गज़नवी की सेना मंदिर में प्रवेश कर रही थी. बहुत बड़ी संख्या में मंदिर के पुजारी तथा हिंदू जनता मंदिर की दीवार पर खड़ी होकर उपहासों तथा धमकियों द्वारा उसकी सेना का स्वागत कर रही थी.
ऐसी स्थिति में मोहम्मद गज़नवी ने अपनी सेना को अपने धर्म की दुहाई दी, तथा अल्लाह हू अकबर के उद्घोष के साथ ही अपना आक्रमण जारी रखा. अपने तीरों व तलवारों से हिंदुओं की लाशों के ढेर लगा दिए. लगभग 5000 हजार हिंदू सैनिक इस युद्ध में मारे गए. सोमनाथ मंदिर के पुजारी छत पर खड़े होकर तमाशा देख रहे थे.
कि मंदिर से भगवान शंकर से निकलकर अपने तीसरे नेत्र को खोल कर आक्रांताओं अफगानो का मुकाबला कर उनका विनाश करेंगे। इसके साथ ही मोहम्मद की सेना ने सोमनाथ के मंदिर में गुप्त मार्ग से प्रवेश किया. मोहम्मद गज़नवी ने अपनी गदा के द्वारा शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. किलेबंदी के सैनिकों ने भागकर समुद्र तट पर छुपने का प्रयास किया। किंतु मोहम्मद गज़नवी के पूर्व तैनात सैनिकों ने उनके मौत के घाट उतार दिया।
सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण के बाद भारत की सामाजिक, राजनीतिक एवं संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा
सोमनाथ मंदिर का समस्त एवं बहुमूल्य वस्तुएं मंदिर के विशाल दरवाजे लूट कर गजनी ले गया. इस प्रकार युद्ध की समाप्ति तो हो गई, परंतु यह सामरिक दृष्टिकोण से शायद इतना नहीं महत्वपूर्ण रहा. जितना सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से था. इस युद्ध ने यह प्रमाणित कर दिया, कि अपने कर्तव्य को छोड़कर केवल धार्मिक आस्था के आधार पर युद्धों में सुरक्षा और सफलता कभी संभव नहीं है. यदि हिंदू एवं मंदिर के पुजारियों ने आक्रमणकारियों का मुकाबला किया होता. तो मोहम्मद गज़नवी इस आक्रमण में कभी सफल नहीं हो सकता था.
मोहम्मद गज़नवी ने अपने पूर्व आक्रमण अपने पूर्वजों द्वारा हिंदुओं की कमजोरियों का अनुभव कर लिया था. जिनका लाभ उठाकर वह सदैव सफल होता रहा. मोहम्मद गज़नवी कि सेना से कभी भी भारतीय सेना आतंकित नहीं हुई. किंतु उसकी गलत नीतियों से भारी हानि उठानी पड़ी. मोहम्मद के आक्रमण के साथ ही भारतीय इतिहास पर कुछ स्थाई प्रभाव पड़े. जिन्हें संक्षेप में इस प्रकार किया जा सकता है.
- भारतीय संस्कृति का पतन होना शुरू हो गया था.
- अपार आर्थिक हानि उठानी पड़ी.
- भारत की सैनिक एवं राजनीतिक पोल खुल गई.
- मुस्लिम साम्राज्य के लिए द्वार खुल गए.
- भारत में इस्लाम धर्म का प्रसार प्रारंभ हो गया.
- मोहम्मद गज़नवी का साम्राज्य विस्तार भी हो गया.
सोमनाथ के युद्ध में हिन्दुओं की हार के मुख्य कारण क्या थे?
मोहम्मद गज़नवी के सफल आक्रमणों का कारण भारत में एकता का अभाव रहा. हिंदुओं की पराजय के प्रमुख कारणों में से एक कारण यह भी है. कि वे किसी एक के नेतृत्व में आक्रमण नहीं कर सकते थे. उनकी स्वार्थ भावना इतनी प्रबल हो चुकी थी कि वह व्यक्तिगत हितों की रक्षा के लिए जाति तथा देश के हितों का बलिदान कर देते थे. उनमें उद्देश्य की एकता का सर्वथा अभाव था. जिसके कारण वह संयुक्त होकर सूत्रों से लड़ सके. अपने सैनिक संगठन की इन त्रुटियों के कारण भी भारतीयों को बार-बार पराजय का मुंह देखना पड़ा. इसके साथ ही हिंदू राजा युद्ध में हाथियों का प्रयोग करते थे. जिससे उनके बिगड़ जाने पर स्वय की सेना के तहत नहस हो जाने का भी भय रहता था.
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FAQs
Ans- भारत 12 ज्योतिर्लिंग में से पहला नंबर सोमनाथ का मंदिर के शिव लिंग का आता है. इतिहास में इस मंदिर को सैकड़ो बार लुटा गया था.
Ans- सोमनाथ मंदिर को अंतिम बार मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 लुटा और गिरा दिया था
Ans- मोहम्मद गज़नवी द्वारा सोमनाथ मंदिर को तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया था. फिर सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया. और उसके बाद मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया. दोस्तों इस समय जो सोमनाथ का मंदिर खड़ा है. उसे तत्कालीन भारत के गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और 01-दिसम्बर-1955 को भारत के राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था.