हमारी भारतभूमि ऐसे आदर्शों और संकल्पों की गौरवभूमि रही है. जहां सत्यनिष्ठा, गुरु भक्त, ईश्वर भक्ति तथा अपने आदर्शों के लिए मर मिटने वाले लोग हुए हैं. जिन्होंने अपने व्यक्तित्व के गुणों से युगो-युगो तक अपना प्रभाव छोड़ा है. इनमें से कुछ ऐसे आदर्शवादी बालक हुए हैं, जिन्होंने अपने जीवन मूल्यों तथा संकल्प के लिए कभी किसी से समझौता नहीं किया. ऐसे संस्कारवान बालकों में भक्त ध्रुव, भक्त प्रहलाद, श्रवण कुमार, आरुणि, उपमन्यु तथा नचिकेता का नाम बड़े ही आदर्श प्रेरक के रूप में लिया जाता है. हम यहाँ जिज्ञासु नचिकेता की जीवनी (Biography Of Curious Nachiketa) और उसने जुड़ी रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप आज से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है नचिकेता की आश्चर्जनक जानकारी.
नचिकेता कौन थे? नचिकेता का जीवन परिचय
ऋषि कुमार नचिकेता वैदिक युग के एक तेजस्वी ऋषि बालक थे. इनके पिता उद्दालक ऋषि जिनको वाजश्रवा के नाम से जाना जाता है की सन्तान थे. नचिकेता की कथा हमे मूल रूप से कठोपनिषद् में उपलब्द होती है. अन्य ग्रंथों जैसे तैतरीय ब्राह्मण तथा महाभारत में भी इस कथा का वर्णन मिलता है.नचिकेता ने भौतिक वस्तुओं का परित्याग किया तथा यम से आत्मा और ब्रह्म विषय पर ज्ञान प्राप्त किया था. एक बार महर्षि वाजश्रवा ने ‘विश्वजीत’ यज्ञ किया और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि इस यज्ञ में मैं अपनी सारी संपत्ति दान कर दूंगा. वाजश्रवा महान विद्वान और चरित्रवान थे. हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महर्षि वाजश्रवा एक ब्राह्मण थे. इन्हें नचिकेता का पिता कहा गया है.
Summary
नाम | नचिकेता |
उपनाम | बालक नचिकेता |
जन्म स्थान | – |
जन्म तारीख | – |
वंश | गौतम |
माता का नाम | – |
पिता का नाम | उद्दालक |
पत्नी का नाम | – |
उत्तराधिकारी | – |
भाई/बहन | – |
प्रसिद्धि | यमलोक में नचिकेता ने वरदान मांगे |
रचना | – |
पेशा | राजा पुत्र |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | भारत |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | संस्कृत, हिंदी |
मृत्यु | – |
मृत्यु स्थान | – |
जीवन काल | – |
पोस्ट श्रेणी | Biography Of Curious Nachiketa (जिज्ञासु नचिकेता की जीवनी) |
नचिकेता की कहानी और नचिकेता का संकल्प
बालक नचिकेता वाजश्रवा का एकमात्र पुत्र था. उसके पिता वाजश्रवा ने स्वर्ग की अभिलाषा से यज्ञ का आयोजन करवाया था. वैदिक मंत्रों के उच्चारण से तथा विधि विधान से अनुष्ठान संपन्न होने के बाद उसके पिता वाजश्रवा ने यज्ञ की पूर्णाहुति दी. अनेक ऋषि मुनि वहां पधारे थे, यज्ञ उपरांत सभी को यह आशा की थी की वाजश्रवा सभी को दान दक्षिणा देंगे. यज्ञ की समाप्ति के पश्चात ब्राह्मणों का आशीर्वाद प्राप्त कर वाजश्रवा ने दक्षिणा देनी प्रारंभ की. किंतु वाजश्रवा ने धन संपत्ति के मोह में आकर निर्बल और बूढ़ी गायों को दान में देना प्रारंभ किया जिन्होंने दूध तक देना बंद कर दिया था.
वाजश्रवा की लोक निंदा हो रही थी. जिसे सुनकर पुत्र नचिकेता बहुत दुखी हुआ. अपने पिता की ऐसी कृपणता देखकर नचिकेता से रहा नहीं गया. खिन मन से वह अपने पिता के पास पहुंचकर बोला पिताश्री दान दक्षिणा में तो यजमानो को अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु देते हैं. आपने तो इसी गाये दी हैं, जिनका आपके लिए कोई उपयोग ही नहीं रह गया है. इससे आपको कोई पुण्य नहीं मिलेगा पिताश्री!. आप को सबसे प्रिय तो मैं हूं, आप मुझे दक्षिणा में क्यों नहीं दे देते. वाजश्रवा नचिकेता की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया. पर नचिकेता अपना प्रश्न दोराहता रहा. वाजश्रवा ने झुंझलाहट और क्रोध के मारे कह दिया जाओ मैंने तुझे मृत्यु को दे दिया. नचिकेता विनम्र भाव से बोला, पिताजी आप कुद्र मत हो मैं आपके आदेश का पालन करूंगा. मुझे मृत्यु के देवता यमराज के पास जाने की अनुमति दीजिए.
यमलोक में नचिकेता ने क्या वरदान मांगे?
नचिकेता ने यमराज के पास जाने का दृढ़ संकल्प कर लिया था. वह जब यमपुरी पहुंचा तो यमराज यमपुरी में नहीं थे. 3 दिनों तक यमराज के दरवाजे पर खड़ा रहा. यमराज लोटे तो बालक नचिकेता की दशा देखकर दुखी हुए. उन्होंने देखा कि बालक के चेहरे पर दृढ़ता की चमक थी. वह असाधारण बालक ही था. यमराज के सम्मुख भी बड़ी निडरता और स्वाभिमान के साथ खड़ा हुआ था. यमराज ने नचिकेता का यथोचित सत्कार किया, और उसके यहाँ आने का प्रयोजन पूछा. नचिकेता ने पिता तथा यज्ञ से संबंधित सारी जानकारी यमराज को बता दी. यमराज ने नचिकेता की पिताभक्ति और दृढ़ निश्चय से बहुत प्रसन्न हुआ. तथा उनके दरवाजे पर 3 दिन तक भूखे प्यासे रहने पर दुख प्रकट किया. उसके प्रायश्चित स्वरूप नचिकेता से तीन वरदान मांगने को कहा.
नचिकेता ने धर्मराज से पहला वर मांगा कि उनके पिता का क्रोध उस पर से शांत हो जाए. और वापस जाने पर वे उसे प्यार से बात करें. अपने दूसरे वरदान में नचिकेता ने यमराज से यह कहा कि मेरे पिता की तरह सभी स्वर्ग की अभिलाषा रखते हैं. क्योंकि वहाँ लोगो को बहुत सुख मिलता है. वहां न तो बुढ़ापा आता है, ना कोई रोग. वहां के निवासी हर समय है अलौकिक सुख का ही अनुभव करते रहते हैं. अतः आप उस आनंदपुर स्वर्ग को प्राप्त कैसे करें इसका उपदेश दीजिए. स्वर्ग के बारे में नचिकेता की इसी जिज्ञासा जानकर यमराज ने स्वर्ग प्राप्त करने की सारी विधियां नचिकेता को बताई. यमराज के पूछने पर बालक नचिकेता ने सारी विधियां जो की त्यों उन्हें सुना दी, तो यमराज से अब नचिकेता ने तीसरा वर यह मांगा कि वह उसे स्वर्ग का रहस्य बता दे.
नचिकेता ने यमराज से क्या सवाल किया?
वैसे उसे पृथ्वी की किसी भी वस्तु की अभिलाषा नहीं है. नचिकेता ने यमराज से यह सवाल किया कि. भगवान कुछ लोग आत्मा को मृत्यु के बाद अमर मानते हैं, कुछ लोग नहीं मानते हैं. मुझे कृपा कर आत्मा का रहस्य समझाइए. यमराज ने आखिरकार नचिकेता को आत्मा का रहस्य बताने के पहले बहुत से प्रलोभन दिए. किंतु शांत भाव से नचिकेता ने यही कहा कि संसार में किसी भी मनुष्य को सच्चा सुख नहीं मिलता. सारी इंद्रिया मनुष्य को असंतुष्टि देती है. यमराज की परीक्षा में नचिकेता खरा उतरा. यमराज ने उसे बताया आत्मा अजर अमर है. न तो यह पैदा होती है, न ही मरती है. यह बहुत गूढ़ है इसे वही समझ सकते हैं. जो सांसारिक आकर्षणों को ठुकरा कर साधना के मार्ग पर चलते हैं. ज्ञानी, संयमी, धैर्यमान ही आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं.
उपसंहार
बालक नचिकेता ने यमराज के उपदेशों का जीवन में पालन किया. वह एक धर्मात्मा वह महान ऋषि बना. नचिकेता के जीवन से हर व्यक्ति को इस बात की सीख अवश्य लेनी चाहिए. कि यदि दान दिया जाए, तो ऐसा दान दे जो किसी के काम आ सके. यदि दान निरपेक्ष और निस्वार्थ भाव से नहीं किया जाता तो उस दान का कोई मूल्य नहीं है. हमारी संस्कृति में नचिकेता जैसे बालक हुए हैं, जिन्होंने अपने पिता की भूल का उचित प्रायश्चित किया. तथा अपने पिता के लिए वरदान मांग लिया. संसार नचिकेता को उसके ऐसे ही गुणों के कारण हमेशा स्मरण रखेगा.
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FAQs
Ans- दुनिया का पहला जिज्ञासु नचिकेता माना जाता है.