सखी सम्प्रदाय क्या है?
दोस्तों हरिदासी या सखी सम्प्रदाय द्वैतवाद एवं विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय से अलग एक ऐसा सम्प्रदाय है. जहां श्रीकृष्ण जी का चरित्र और उसका मधुर पक्ष भक्तों का आलम्बन है. सखियों की कृष्ण के प्रति प्रेम भावना ही इस सम्प्रदाय का मूलाधार है. हरि का दास होते हुए भी सभी उसके प्रेम में रमण करते हुए भावविभोर हो जाते हैं. यही प्रेम ही भक्ति की ओर व्यक्ति को ले जाता है. हम यहाँ सखी सम्प्रदाय के महान पर्वतक स्वामी हरिदास जी की जीवनी (Biography of Swami Haridas). और उनसे जुड़ी हुई वो रोचक जानकारी आपके साथ शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब तक अनजान थे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है स्वामी हरिदास जी की अद्भुत और आश्चर्यजनक जानकारी.
स्वामी हरिदास जी कौन थे?
स्वामी हरिदास जी महान संगीतज्ञ और सखी सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे. स्वामी हरिदासजी का जन्म वृन्दावन मथुरा के निकट राजपुर नामक ग्राम में हुआ था. वे सनाढ्य जाति से बिलोंग करते थे. हरिदास जी के पिता का नाम (आशुधीर जी) गंगाधर और माता जी का नाम गंगादेवी (चित्रादेवी) था. तानसेन उन्हीं के शिष्य माने जाते हैं. उनकी आयु 95 वर्ष बतायी जाती है. उनका जन्मकाल विक्रमी संवत 1580 (1478 ईस्वी ) के आसपास माना जाता है.
दोस्तों सखी सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय की एक शाखा भी है. इस सम्प्रदाय के लोग प्रेम के सिद्धान्त को प्रमुख मानते हैं. भगवान का प्रेम-दर्शन ही इस सम्प्रदाय के लिए प्रमुख है. सखी सम्प्रदाय प्रेम को ही जीवन का सत्य मानता है. प्रेम की इस क्रीड़ा के लिए राधा और हरि दो रूपों का जन्म हुआ. इसके तीसरे रूप उनके सखीजन हैं. इस लीला के आनन्द को प्राप्त करने वाले चौथे रूप उनके भक्तगण हैं.
दोस्तों स्वामी हरिदास भक्त कवि, शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे. जिसे ‘हरिदासी संप्रदाय’ भी कहते हैं. इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है. स्वामी हरिदास वैष्णव भक्त थे, तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे. प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके शिष्य थे. सम्राट अकबर इनके दर्शन करने वृंदावन गए थे. स्वामी हरिदास जी द्वारा रचित ‘केलिमाल’ नामक ग्रंथ में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं. इनकी वाणी में रस और भावुक है, ये प्रेमी भक्त थे.
Summary
नाम | स्वामी हरिदास जी |
उपनाम | ललिता सखी |
जन्म स्थान | वृन्दावन मथुरा के निकट राजपुर गांव |
जन्म तारीख | 1478 ईस्वी |
वंश | सनाढ्य |
माता का नाम | गंगादेवी |
पिता का नाम | श्री आशुधीर जी |
पत्नी का नाम | हरिमति देवी |
प्रसिद्धि | केलिमाल ग्रंथ की रचना |
पेशा | महान संगीतज्ञ |
बेटा और बेटी का नाम | नहीं हुए |
गुरु/शिक्षक | श्री कृष्ण जी |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | मथुरा, उत्तरप्रदेश |
धर्म | हिन्दू सनातन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 1573 ईस्वी |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Swami Haridas |
केलिमाल ग्रंथ की रचना किस ने की थी?
केलिमाल स्वामी हरिदास जी द्वारा रचित एक ग्रंथ है. जिन्हें ललिता सखी का अवतार वृंदावन धाम में माना जाता है. हरिदास जी ने प्रमुख रूप से अंतरंग केली लीलाओं का वर्णन मुख्य इस ग्रंथ में किया है.
स्वामी हरिदास जी सखी सम्प्रदाय के प्रवर्तक कैसे बने?
दोस्तों कहाँ जाता है, एक बार अचानक दीपक की लो से उनकी पत्नी के जलकर मर जाने पर विरक्त होकर वृन्दावन मथुरा चले आये. कहा जाता है कि उन्हीं की उपासना के फलस्वरूप बांकेबिहारी की मूर्ति का प्राकट्य हुआ. जो आज भी वृन्दावन में विराजमान है. स्वामी हरिदास जी महान संगीतज्ञ थे. विक्रमी संवत 1630 (1573 ईस्वी) में महान संगीतज्ञ स्वामी हरिदास जी इस संसारिक दुनिया का त्याग कर दिया था.
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FAQs
Ans- स्वामी हरिदास जी महान संगीतज्ञ और सखी सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे.