Biography of Thakur Bilvamangal- बिल्वमंगल अपने प्रारंभिक जीवन में महान दुराचारी व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे. किंतु ईश्वर भक्ति से वह महान सदाचारी व्यक्ति कैसे बने, उनका जीवन इसी का एक उदाहरण है. श्रीकृष्णनकरणामर्त नाम के महान ग्रंथ की रचना उन्होंने अपनी मधुर लीलामयी छवि के माध्यम से कि. बिल्वमंगल के अन्य नाम में लीलाशुक, विल्वमंगलम स्वामी, विलवमंगलम स्वामीयार, ठाकुर बिल्वमंगल भी है. हम यहाँ बिल्वमंगल जी की जीवनी (Biography of Thakur Bilvamangal). और उनके जीवन की वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है बिल्वमंगल आचर्यजनक जानकारी.
बिल्वमंगल कौन थे? ठाकुर बिल्वमंगल का जीवन परिचय
दक्षिण भारत के गुलबर्गा ज़िला, आन्ध्र प्रदेश में कृष्णवेणी नदी वर्तमान में बहती है. कृष्णवेणी नदी के तट पर एक गांव में रामदास नाम का भक्त ब्राह्मण निवास करता था. वह ब्राह्मण बड़ा ही संत और साधु स्वभाव का था. उसी का एक पुत्र बिल्वमंगल था, पिता ने यथासाध्य पुत्र को धर्मशास्त्रों की शिक्षा दी. बिल्वमंगल पिता की शिक्षा तथा उनके भक्तिभाव के प्रभाव से बाल्यकाल में ही अति शान्त, शिष्ट और श्रद्धावान हो गये थे. पिता की मृत्यु के बाद कुसंगति में पड़कर वह इतना कूसंस्कारी हो गया. कि चिंतामणि नाम की वेश्या के यहां दिन-रात पड़ा हुआ पाप कर्म करता था.
Summary
नाम | बिल्वमंगल जी |
उपनाम | लीलाशुक, विल्वमंगलम स्वामी, विलवमंगलम स्वामीयार, ठाकुर बिल्वमंगल |
जन्म स्थान | गुलबर्गा ज़िला, आन्ध्र प्रदेश में |
जन्म तारीख | 8th century |
वंश | ब्राह्मण |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | रामदास |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | अपनी आंखें फोड़ ली |
रचना | — |
पेशा | कृष्ण भक्त |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | भगवान श्रीकृष्ण |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | आन्ध्र प्रदेश |
धर्म | हिंदू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, ब्रज |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | — |
जीवन काल | — |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Thakur Bilvamangal |
बिल्वमंगल पर वेश्या वाणी का क्या प्रभाव पड़ा!
इसलिये वह नदी के उस पार चिन्तामणि के घर दिन में नहीं जा सके. श्राद्ध की तैयारी हो रही थी. विद्वान कुलपुरोहित बिल्वमंगल से श्राद्ध के मंत्रों की आवृत्ति करवा रहे थे. परंतु उनका मन चिन्तामणि की चिन्ता में निमग्न था. उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. किसी प्रकार श्राद्ध समाप्त कर जैसे-तैसे ब्राह्मणों को झटपट भोजन करवाकर बिल्वमंगल चिन्तामणि के घर जाने को तैयार हुए. संध्या हो चुकी थी, लोगों ने समझाया कि भाई आज तुम्हारे पिता का श्राद्ध है, वेश्या के घर नहीं जाना चाहिये. परंतु कौन सुनता था. उनका हृदय तो कभी का धर्म-कर्म से शून्य हो चुका था.
लोगों ने उसे मना किया पर किसी की परवाह किए बिना बिल्वमंगल नदी तट पर जा पहुंचा. अचानक तूफान आ गया, इसके साथ ही मूसलाधार वर्षा होने लगी नाव से पार कराने वाला केवट ऐसे प्रतिकूल मौसम में जाने को तैयार नहीं था. अतः बिल्वमंगल ने उसे तरह तरह का प्रलोभन दिया हार कर बिल्वमंगल स्वय ही नदी पार करने की तय कर जाने लगा. उसने जिसे लकड़ी समझा था, वह एक स्त्री की जली हुई लाश थी. जिस समय व चिंतामणि के घर जा पहुंचा, चिंतामणि का घर बंद था. तो वह रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ गया जिसे रस्सी समझा था वह तो एक काला नाग था.
चिंतामणि को जब बिल्वमंगल बात बताई तो उस वेश्या ने धिक्कारते हुए कहाँ रे नीच ब्राह्मण! तू मुझ पर आसक्त होकर ऐसे कर्म कर रहा है. इतनी ही अनुरक्ति यदि तू भगवान के साथ रखता, तो तेरा जीवन धन्य हो जाता. इसे सुनकर बिल्वमंगल उल्टे पांव घर लौटे और भगवान कृष्ण के पवित्र चिंतन में निमग्न रहने का प्रयास करने लगा.
बिल्वमंगल ने अपनी आँखे क्यों फोड़ी थी?
कृष्णावेणी नदी के तट पर सोनगिरी नाम के महात्मा रहा करते थे. जिनसे दीक्षा लेकर बिल्वमंगल साधना करने लगा. एक दिन मंगल ने एक घर के दरवाजे पर एक सुंदर युवती को देखा. तो उसका मन पुनः मचल उठा वह उस दरवाजे पर जाकर बैठ गया. एक मलिन ब्राह्मण ने उसके इस तरह बैठने का कारण पूछा. इस पर बिल्वमंगल ने युवती को देखने की इच्छा की. ब्राह्मण ने बताया वह एक सेठ की पत्नी है, सेठ तथा उसकी धर्मपत्नी ने सोचा इसमें हानि की क्या है. उन्होंने मंगल को घर के अंदर बुला लिया. बिल्वमंगल के मन में पुनः वही लालसा जागृत हो गई.
अब बिल्वमंगल जो कि ईश्वर का भक्त था. तो अतः भगवान द्वारा दिए गए विवेकचुक्ष ने उसे यह सोचने को बाध्य कर दिया, कि वह नीच कर्म कर रहा है. ऐसा सोचते ही उसका हृदय शोक से भर गया उसने तत्काल ही बेल के पेड़ से दो कांटे तोड़े और यह कहते हुए उन कांटों से अपनी आंखें फोड़ ली. कि यदि वे अभागी आंखें ना होती तो ऐसा ना होता. उसकी आंखों से रुधिर की धारा बह निकली से तथा सेठ और उसकी पत्नी बहुत दुःखी हुए. इस घटना से बिल्वमंगल के चित का जो रहा सहा मेल था, वह भी साफ हो चुका था. अब उसका अंत करण निर्मल पवित्र विचारों से भर उठा था. प्रिय कृष्ण का ध्यान करते हुए उसकी आंखों से 24 घंटे अश्रु धारा बहती रहती थी.
ठाकुर बिल्वमंगल दुराचारी से साधु कैसे बने?
अपने प्रिय कृष्ण का ध्यान करते हुए बिल्वमंगल की आंखों से 24 घंटे अश्रु धारा बहती रहती थी. भूखे प्यासे इधर-उधर घूमते हुए बिल्वमंगल अपने पाप कर्मो का प्रायश्चित कर रहा था. अपने भगत के इस पश्चिताप को देखकर भगवान कृष्ण ने गोपालक के वेश में आकर उससे कहा. आप भूख और प्यास से व्याकुल हो रहे हो, कुछ मिठाई और जल लाया हूं आप इसे ग्रहण कीजिए. बिल्वमंगल ऐसा दुर्लभ प्रसाद पाकर धन्य हो गया था. इस तरह वह बालक उसे हर रोज अपने घर से लाकर कुछ न कुछ खिलाता था. बिल्वमंगल सोचने लगा स्त्री के मोह से छूटा तो बालक के मोह में आ फसा. बालक से अपने मन की व्यथा कहते हुए बिल्वमंगल ने वृंदावन जाने की इच्छा प्रकट की.
उस अंधे को भला कौन ले जाएगा, यह कहकर बिल्वमंगल रोने लगा. बालक ने कहा मेरी लाठी पकड़ो और मेरे साथ चलते चलो बालक का स्पर्श पाते ही उसे एक अलौकिक अनुभूति हुई. बिल्वमंगल अपने ज्ञान से पहचान गया, कि यह कोई साधारण बालक नहीं है साक्षात श्री कृष्ण जी है. उसने जोर से हाथ पकड़ते हुए कहा भगवान आप मुझे मत छोड़ना. भगवान ने हाथ छुड़ाया और उसे दिव्य दृष्टि प्रदान कर कहा अब तुम पूर्णता दुराचारी से सदाचारी बन गए हो.
इस प्रकार एक दुरात्मा भगवान की सच्ची भक्ति से महात्मा के रूप में जाना जाने लगा. बिल्वमंगल का चरित्र मानव को यह प्रेरणा देता है, कि हमारी आत्मा में दुर्गुण तथा सद्गुण दोनों ही विद्वान रहते हैं. व्यक्ति चाहे तो इनमें से सद्गुण को अपनाकर महानता को प्राप्त कर सकता है.
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Ans- ठाकुर बिल्वमंगल के अन्य नाम लीलाशुक, विल्वमंगलम स्वामी, विलवमंगलम स्वामीयार है.