Jhelum ka yuddh sikandar aur poras (झेलम का युद्ध)- छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व के उदय होते होते आर्य सभ्यता की विजय-विजयंती एक प्रकार से संपूर्ण उत्तरी भारत में फहराने लगी थी. फलत: उत्तरी भारत में आर्य सभ्यता के राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र स्थापित हो गए थे. राजनीतिक दृष्टि से उस समय केंद्रीय सत्ता का अभाव था. देश की राजनीति शक्ति के मुख्य केंद्र 16 महाजनपद थे. इन 16 महाजनपदों का परिचय हमें बौद्ध साहित्य अंगुत्तर निकाय से प्राप्त है. यह 16 महाजनपद निम्नलिखित थे. मगध, काशी, कौशल, वृज्जि, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पांचाल, मत्स्य, शूरसेन, अवंती, असस्क, गांधार, कम्बोज थे.
महात्मा बुध के समय भरत के इस देश भारत में 10 गणराज्य थे. इनका उल्लेख किस प्रकार मिलता है. शाक्य, कोलिय, मौर्य, मल, मल पावा के, बुली, लिच्छवि वंश, विदेह, माग, कालाम थे. इन 10 गणराज्य के नाम यहाँ वर्णित इस लिए किया जा रहा है कि सिकंदर के आक्रमण से पूर्व भारत की राजनीतिक स्थिति किस प्रकार थी. यह अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए उपयुक्त जनपदों में चार अन्य महत्वपूर्ण थे. कौशल, अवंती, वत्स तथा मगध इनका संक्षिप्त में अध्यन करना भी यहां आवश्यक है. Jhelum ka yuddh sikandar aur poras की रोचक अद्भुत जानकारी के लिए बने रहे अंत तक.
कौशल राजवंश का इतिहास
महात्मा बुद्ध के समय सबसे महत्वपूर्ण राज्य में एक कौशल राज्य था. प्रसेनजित के समय काशी राज्य भी कौशल राज्य के अधीन था. कौशल राज्य का संबंध मगध के राजा बिम्बिसार से था. फिर भी बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु से लड़ाई छिड़ गई. लड़ाई में कौशल राज्य की पराजय हुई और कौशल नरेश को अपनी पुत्री वजीरा का विवाह अजातशत्रु से करना पड़ा. दहेज में काशी राज्य अजातशत्रु को प्राप्त हुआ. अंत में मगध की साम्राज्यवादी नीति के कारण कौशल राज्य मगध राज्य में मिला लिया गया था.
अवन्ति राज्य का इतिहास
भगवान बुद्ध के समय अवन्ति राज्य का राजा प्रद्योत था. प्रद्योत के समय अवन्ति राज्य एक शक्तिशाली राज्य था. इस लिए प्रद्योत अपनी सैनिक शक्ति के बल पर चंद्र कहलाता था. पर प्रद्योत की मृत्यु के बाद उनकी राज्य दुर्लभ होने लगा. तथा उसकी दुर्बलता का लाभ उठाकर मगध ने उसे अपने राज्य में मिला लिया था.
वत्स साम्राज्य का इतिहास
काशी के दक्षिण और चेदि के उत्तर का भाग उस समय वत्स राज्य था. इसकी राजधानी कोसाम्बी थी जो प्रयागराज से लगभग 45 किलोमीटर दूर आधुनिक कोसम गांव है. जब गंगा नदी की भीषण बाढ़ से हस्तिनापुर नस्ट हो गया था. तब जनमेजय के पौत्र निचुक्ष ने कोसाम्बी को अपनी राजधानी बनाया था. बुद्ध के समय यहाँ का राजा उदयन था. उदयन के बाद वत्स राज्य की शक्ति कमजोर हो गयी थी.
मगध राज्य का इतिहास
आधुनिक बिहार के पटना तथा गया जिले इस महाजनपद के अन्तर्गत थे. ऐसा कहा जाता है, की बृहद्रथ नामक एक राजा ने माहत्मा भगवान बुद्ध के उदय के पहले मगध राज्य की नीव डाली थी. उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र जरासंध मगध का राजा बना था. वह बड़ा प्रतापी एवं शक्तिशाली राजा था. उसके पुत्र आयोग्य निकले, इस लिए इस वंस के राज्य का अंत हो गया था. ईसा पूर्व छठी शताब्दी में मगध में हर्यक कुल का शासन स्थापित हुआ था. हर्यक वंश का प्रथम राजा बिम्बिसार था. उसको श्रेणिक के नाम से भी जाना जाता है. उसके समय में मगध राज्य का विस्तार हुआ था. बिम्बिसार ने अंग राज्य पर हमला किया, तथा वहाँ के राजा ब्रह्मदत्त इस युद्ध में मारा गया था. और इस छेत्र को बिम्बिसार ने मगध राज्य में मिला लिया था.
बिम्बिसार एक कुशल राजनीतिज्ञ था, उसने वैवाहिक संबंधों के द्वारा मगध राज्य की शक्ति में वृद्धि की थी. कौशल नरेश प्रसेनजित की बहन कौशल देवी देवी से विवाह करके उसने एक लाख वार्षिक आय वाले काशी प्रांत को दहेज में प्राप्त कर लिया था. बिम्बिसार ने दूसरा विवाह वैशाली के लिच्छवि राजा चेटक की पुत्री चेल्ना से किया था, जिससे उसके राज्य की उत्तरी सीमा सुरक्षित हो गई थी. बिम्बिसार का तीसरा विवाह मद्र की राजकुमारी के साथ हुआ था, साथ ही उसने वत्स, मद्र, गांधार और कंबोज आदि राज्यों में अपने राजदूत भेजकर कूटनीतिक संबंध स्थापित किए.
मगध राज्य शक्तिशाली कब और कैसे हुआ था?
बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु ने उसके जीवन काल में ही मगध की सत्ता छीन कर बिम्बिसार को जेल में डाल दिया।सन 401 ईसवी पूर्व में बिम्बिसार की मृत्यु हो गई थी. अजातशत्रु साम्राज्यवादी नीति का समर्थक था. वह अपने पिता के शासनकाल में चंपा का शासन कर चुका था. उसने सर्वप्रथम कौशल नरेश प्रसेनजित पर आक्रमण करके उसे बंदी बना लिया. प्रसेनजित ने अपनी पुत्री का विवाह उसे करा दिया था. जो काशी का राज्य उन्हें दहेज़ स्वरूप उसे दे दिया गया था. अजातशत्रु ने दूसरा युद्ध वैशाली के लिच्छवि राजा से किया.
लिच्छवि संघ में फूट के कारण लिच्छवि वंस अजातशत्रु का सामना नहीं कर सके. लिच्छवि राज्य को अपने मगध राज्य में मिला लिया गया. इस प्रकार मगध में काशी, वैशाली के प्रदेश सम्मिलित हो गए. पुराणों के अनुसार अजातशत्रु ने 25 वर्षों तक शासन किया. बौद्ध ग्रंथ महावंश के अनुसार उसके पुत्र उदयन ने सन 456 ईसवी पूर्व में अजातशत्रु की हत्या की. और मगध की गद्दी पर बैठ गया. उदयन ने अपने शासनकाल में राजगृह के स्थान पर पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया था.
सिकंदर कौन था? उसने भारत पर आक्रमण क्यों किया था?
Jhelum ka yuddh sikandar aur poras- भारत के उत्तर पश्चिम में महत्वपूर्ण आक्रमण यूनान के राज्य मेसिडोनिया के शासक सिकंदर के नेतृत्व में हुआ था. सिकंदर का जन्म 20-जुलाई ईसा से 356 वर्ष पूर्व यूनान में हुआ था. उसके पिता का नाम फिलिप था, तथा प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु से उसने शिक्षा प्राप्त की थी. अपने पिता फिलिप की हत्या होने के बाद सिकंदर 20 वर्ष की आयु में मेसिडोनिया का शासक बना. 2 वर्ष बाद ईसा से पूर्व 334 वर्ष में 22 वर्ष की अवस्था में एशिया की विजय के लिए उसने प्रस्थान किया. एशिया माइनर से होता हुआ, सिकंदर 332 में पूर्व सीरिया तथा फिनिशिया पहुंचा.
फिनिशिया के नगर राजा ने 7 महीनों तक सिकंदर का प्रतिरोध किया. परंतु अंत में यूनानीयों ने नगर में प्रवेश किया. और वहां के निवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया. उसने 30000 लोगों को दास बना कर बेच दिया था. इसके बाद सिकंदर मिश्र देश की ओर बढ़ा, तथा उस पर विजय प्राप्त कर भूमध्य सागर के तट पर उसने सिकंदरीया नामक नगर की स्थापना की. इसके बाद सिकंदर पूर्व की ओर प्रस्थान किया, सिकंदर 321 एसवी पूर्व सितंबर में दर्जला नदी पार की तथा ईरान के सम्राट द्वारा सिकंदर तृतीय का सामना किया.
बहुत थोड़े प्रयास से उसे विजय प्राप्त हो गई. फारस का प्रसिद्ध नगर पारसीपॉलिस नष्ट हुआ. वहां का राजमहल जला दिया गया. कैप्सियन सागर की तट से होता हुआ सिकंदर खुरासान तथा पार्थिया को रोंद्ता हुआ तथा हिन्दुकुश पर्वत पार करता हुआ भारत की सीमा पर आ पहुंचा. बबैक्ट्रिया या बाख़्तर (तुषारिस्तान) विजय के बाद. अब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय कर दिया.
झेलम की लड़ाई से पूर्व सिकंदर महान की लड़ाई
Jhelum ka yuddh sikandar aur poras- भारत की राजनीतिक स्थिति सिकंदर महान के आक्रमण के लिए पूर्णतया अनुकूल थी. अतः उसकी सेना उत्तर पक्ष में भारतीय पर्वतीय प्रदेश से होकर पंजाब की ओर बढ़ी है. यह प्रदेश सदैव से ही युद्धप्रिय जातियों का निवास स्थान रहा है. इसलिए उसे यहां तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा था.
अशवायनौ और सिकंदर के मध्य युद्ध
सर्वप्रथम यहां के राजा है, हस्तिन ने पूरे 30 दिन तक अपनी राजधानी पुष्कलावती की रक्षा यूनान की सेना से की थी. अंत में राजा हस्तिन मारा गया. पुष्कलावती के 40000 पुरुष बंदी बनाए गए थे. तथा 230000 गाय- बेल को मकदूनिया भेज दिया गया था. नाइसा का आत्मसमर्पण यहाँ के 300 अभिजात कुलीनों ने जिनका प्रधान अकूफिस था. सिकंदर महान के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. 300 घोड़े सवार सेनिक सिकंदर की सेना में आकर मिल गए थे. अश्वकायनो से सिकंदर महान का युद्ध अश्वकायन जाती का अपने राज्य की रक्षा के लिए सिकंदर की सेना से युद्ध हुआ.
उनकी सेना में 20000 घोड़े 38000 पैदल तथा 30 हाथी थे. इस सेना का नेतृत्व उसकी रानी क्यूफिश ने किया। उसने अनेक दिनों तक अपनी राजधानी मशक की रक्षा की थी. इस युद्ध में पुरुषों की भांति स्त्रियों ने भी भाग लिया था. अंत में रानी युद्ध करते हुई मारी गई. उसके राज्य सिकंदर का अधिकार हो गया था.
झेलम की लड़ाई? झेलम की लड़ाई किस किस के मध्य हुई थी?
यूनान से एशिया विजय पर निकला सिकंदर महान रास्ते में जितने भी छोटे छोटे राजा आये. उनको हराता हुआ भारत की सीमा के पास आ पहुंचा. पर्वतीय प्रदेशों से होता हुआ, सिकंदर ईसा से 326 वर्ष पूर्व जनवरी महीने में सिंध नदी तट पर पहुंचा. आधुनिक कटक के पास ही एक स्थान पर एक पुल बनवाया गया. परंतु नदी के पार करने के पहले ही तक्षशिला के राजा आम्भी ने उनका आधिपत्य स्वीकार कर लिया. जब सिकंदर तक्षशिला पहुंचा तो राजा आम्भी ने सिकंदर को सम्राट माना और धन से उसकी सहायता की. महान इतिहासकार कटियर्स के अनुसार गांधार नरेश राजा आम्भी 10,000 मोटी तगड़ी भेड़, 8000 अच्छी नस्ल की गाय के साथ सिकंदर का स्वागत करने के लिए गया.
इससे प्रसन्न होकर सिकंदर ने राजा आम्भी को 5000 सैनिक भी दिए थे. सिकंदर राजा आम्भी के इस व्यवहार से ये आस्वस्त हो गया था आगे की यात्रा आसान है. यूनानियों ने जेलम तथा चिनाब नदी के मध्य स्थित प्रदेश के राजा पुरु (पोरस सैनी) के पास संदेश भेजा. कि वह सिकंदर की गुलामी स्वीकार कर ले. परंतु झेलम तथा चिनाब के राजा पुरु ने वापस सन्देश भेजा कि. वह उसे सेना के साथ युद्ध स्थल में ही मिलेगा. सिकंदर मई 326 को झेलम नदी के तट पर पहुंचा. और वहां के दूसरे तट पर पुरु को युद्ध के लिए प्रतीक्षा करते हुए पाया. यूनानी सेना कुछ समय तक वहां डेरे डाली रखी. पर जुलाई महीने में झेलम नदी उफान पर थी. यूनानी सैनिक झेलम नदी के ऊपर की ओर रातोंरात 16 मील चले गए. और नदी को पार कर लिया.
Jhelum ka yuddh sikandar aur poras
भारतीय पहरी स्तंभित रह गए की इन्होने झेलम को कैसे पार किया. झेलम का युद्ध मई 326 ईस्वी पूर्व आरम्भ हुआ. भारतीय पुरु की सेना तलवारों, भालो, 5 फुट ऊंचे धनुषों से लड़ रही थी. जिनके तीर प्राय तीन गज लम्बे थे. ये धनुष चलाने वाले अच्छे तीरंदाज थे. और उनके बाण, ढाल तथा कवच आदि भेदकर शत्रु के शरीर में प्रवेश कर जाते थे. पोरू पोरू पैदल सेना के हाथी घोड़े तथा रखी थी. परंतु इनमें से कोई लाभ नहीं हुआ.
और भारतीय सफल नहीं हो सके, उनके घोड़े सैनिक तथा 12000 सैनिक मारे गए एवं 10000 बना लिए गए पुरु जिसको यूनानी पोरस के नाम से से जानते हैं. युद्ध करते हुए घायल हो गया, पुरु की 9 घाव लगे थे. और घायल अवस्था में शत्रु द्वारा बंदी बना लिया गया. और उनको सिकंदर के सामने लाया गया. जब उसे पूछा गया कि तुम्हारे साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाए, तो पोरस ने उत्तर दिया था कि जिस प्रकार एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है. सिकंदर, पोरस के इस उत्तर को सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ. और उसने उसका राज्य कुछ जागीर मिलाकर वापस लौटा दिया। पोरस की इस पराजय के पश्चात आसपास के कुछ अन्य सामंतों ने भी सिकंदर की अधीनता स्वीकार कर ली थी.
सिकंदर से पोरस (पुरु) की हार के प्रमुख कारण क्या थे
जिस समय सिकंदर महान ने राजा पोरस पर आक्रमण किया. उसमें कुछ प्राकृतिक कारण और उसकी हार के लिए विशेष रूप से सहायक सिद्ध हुए यह कारण निम्न प्रकार थे(Jhelum ka yuddh sikandar aur poras).
- महान इतिहासकार कटियस का विचार है, कि रथों के कारण राजा पोरस को पर्याप्त क्षति हुई. क्योंकि घनघोर वर्षा के कारण भूमि दलदल हो गई थी. जिस पर घोड़ों के पैर नहीं रुकते थे. साथ ही रथों के पहिए उस दलदल में फस जाते थे. हाथी भी दलदल में विचलित हो गए थे. युद्ध भूमि की स्थिति पोरस की हार का एक प्रमुख कारण बनी थी.
- भारतीय राजा पोरस की सेना की टुकड़ियों बहुत बड़ी थी. जिन्हें युद्ध के मैदान में सुगमता से नहीं मोड़ा जा सकता था.
- युद्ध क्षेत्र में दलदल होने के कारण हाथियों के पैर ठीक प्रकार से टिक नहीं पा रहे थे. दलदल में फंसने से हाथियों ने अपनी ही सेना को रोंध डाला था.
- सिकंदर ने कुशलता के साथ सेना का संचालन किया था. उसका सैन्य संचालन पोरस की अपेक्षा अधिक उत्तम श्रेणी का था.
- नंबर 4 जब यूनानीयों ने हाथियों के पैर काटने शुरू कर दिए, तो हाथी उल्टे सीधे भागने लगे. जिससे पोरस की सेना के बहुत से घोड़ा सैनिक और पैदल सैनिक हाथियों द्वारा कुचले गए.
- भारत के राज्यों में एकता नहीं थी, राजा परस्पर संघर्ष करते रहते थे. और विदेशी आक्रमणकारी इसका लाभ उठाते थे. राजा राजा आम्भी का व्यवहार इसका प्रमुख उदाहरण है.
सिकंदर को भारत में निराशा हाथ क्यों लगी?
दोस्तों इसमें कोई दोराहा ही नहीं है, की राजा पोरस की वीरता से सिकंदर प्रभावित था. सिकंदर महत्वकांक्षी था, वो पूरी दुनिया को जितना चाहता था. पर उसने दुनिया के लगभग १५% भाग पर ही जीता पाया. भारत में उसने वर्तमान पंजाब से प्रवेश किया था. पर उनके सेनिको के ना करने पर आगे नहीं बढ़ा.
राजा पोरस मित्रता सिकंदर तत्कालीन गळॉगनिकाई राज्य के विरोध करने पर भी आगे बढ़ा. और उस पर विजय प्राप्त कर उसे पोरस को दे दिया था. इसके बाद उसने कठ नामक राज्य पर आक्रमण किया. सिकंदर और राजा पोरस की मिलीभगत शक्ति ने तो संगठित होकर उस जाति से युद्ध कर रही थी. साथ ही 5000 भारतीय भी इसके विरुद्ध लड़ रहे थे. किंतु कठ जाती अपने अभूतपूर्व संगठन एवं एकता के कारण सिकंदर के सैनिकों के दांत खट्टे करने में सफल रही. अतः इस युद्ध यवन सैनिकों का उत्साह ठंडा पड़ गया. आगे नन्द वंस का शक्तिशाली राज्य मगध था. जिसके सौर्य की कहानी सुनकर यूनानी सैनिकों ने भयभीत होकर आगे बढ़ने से मना कर दिया था. यह घटना 326 ईसवी पूर्व में घटित हुई थी.
सेना के आगे बढ़ने से इनकार करने पर सिकंदर ने उन्हें धन तथा यस का लालच दिया. महान इतिहासकार कटियस के शब्दों में उसने उसने अपने सेनिको में जान फुकने के लिए. अनेक निर्देश और मनोबल बढ़ाने के लिए भाषण दिए. पर सिकंदर के सेनिको को कोई फरक नहीं पड़ा था. अतः में सिकंदर को विवश होकर वापस लौटना पड़ा अपनी विजय के सीमा में यादगार बनाने के लिए उसने 50 हाथ ऊंची 12 धार्मिक अनुष्ठान बनवाये थे.
महान सिकंदर का अंतिम समय
लौटते समय सिकंदर ने सीबीओ तथा अन्य जातियों को हराया. जिनकी भौगोलिक स्थिति का पता नदियों के बार-बार मार्ग बदलने के कारण निश्चित रूप से नहीं हो सका. तत्पश्चात सिकंदर ने मूषिक, आक्सी, कैनाज तथा शैम्बू आदि अन्य राज्यों को जीता. इस प्रकार विजय करता हुआ सिकंदर सिंधु नदी के डेल्टा पर स्थित पाटील नगर तक पहुंच गया. वहां से सेना का एक भाग जल मार्ग द्वारा पश्चिम की ओर चला. और सिकंदर स्वय स्थल मार्ग से बलूचिस्तान होता हुआ मई 324 ईसवी पूर्व में सितम्बर 325-323 ईसवी पूर्व में बेबीलोन में उसकी मृत्यु हो गई सिकंदर सिंधु के पर्वती पर्वती है. भारतीय प्रदेश में मार्च 326 ईसवी पूर्व से सितंबर 325 ईसवी पूर्व तक केवल 19 महीने भारत में रहा. उसने पंजाब को पोरस तथा राजा आम्भी के संरक्षण में छोड़ दिया. भारत में यूनानी अधिपत्य 2 वर्ष से अधिक समय तक नहीं टिक पाया था.
भारत के महान साधु संतों की जीवनी
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1857 ईस्वी क्रांति और उसके महान वीरों की जीवनी
भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल
FAQs
Ans- झेलम की लड़ाई भारत के राजा पोरस यूनान के राज्य मेसिडोनिया के शासक सिकंदर के मध्य ३२६ हुई थी.