Biography of Sewa Murthy Thakkar Bapa- दोस्तों इस संसार की सबसे बड़ी सेवा मानव सेवा ही है. आदर्श पुरुष हमेसा समाज और मानव, जिव, जंतु, और मानव प्राणी के लिए सोचता और सेवा करता है. ऐसे ही आदर्श हमें सेवा की प्रतिमूर्ति ठक्करबापा के जीवन से मिलती है. उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी व्यक्ति किस तरह अपने कार्यो से महान् बन जाता है, यह ठक्करबापा का जीवन हमें बताता है. दोस्तों हम यहाँ महान समाज सेवक और हम सब के आदर्श सेवा मूर्ति ठक्कर बापा का जीवन परिचय (Biography of Sewa Murthy Thakkar Bapa). और उनकी वो रौचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है ठक्कर बापा की आचर्यजक जानकारी.
ठक्कर बापा कौन थे? ठक्कर बापा का जीवन परिचय
सेवा मूर्ति ठक्कर बापा का जन्म 29 नवम्बर सन् 1869 में भावनगर, काठियावाड़ गुजरात में एक सम्पन्न ठक्कर परिवार में हुआ था. ठक्कर बापा का बचपन का नाम अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर था. आपके पिता जी का नाम विट्ठलदास लालजी ठक्कर, और माता जी का नाम मुलीबाई था. बापा का परिवार बहुत बड़ा था, वह छः भाई थे भाइयों में एक बड़े और चार छोटे थे. ठक्कर बापा नाम उनको जब मिला जब वे सेवा के कारण सारे देशवासियों के बापा यानी पिता बन गए थे. ठक्कर बापा जी ने हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी. सन् 1891 में इंजीनियरिंग पास कर बी॰जी॰जे॰पी॰ रेलवे में इंजीनियर बन गए थे.
ठक्कर बापा के पिता मामूली हैसियत के आदमी और साधारण व्यापारी थे. ठक्कर बापा को सादगी किफायतशारी, शारीरिक श्रम, विनम्रता आदि गुण भी उन्हें अपने पिता से विरासत में मिले थे. बापा घोघारी, लोहाणा जाति के थे, जिसके भावनगर में कई घर थे. कट्टर वैष्णव होते हुए भी विट्ठलदास ने अपनी जाति समाज सुधार के लिए बहुत काम किए. उन्होंने अपनी बिरादरी के बच्चों के पढ़ाई के लिए व्यवस्था कराई, गरीब छात्रों की शिक्षा के लिए सहायता कोष स्थापित किया, लोहाणा छात्रावास का निर्माण कराया. उनके जीवन के आखिरी साल तो इस छात्रावास से उन्नति में ही बीते. इन सब सेवा-कार्यों का नतीजा यह हुआ कि वह अपनी जाति के मुखिया बन गए और नगरवासी उनका बड़ा आदर करने लगे.
ठक्कर बापा ने मानवता के लिए क्या कार्य किये?
Biography of Sewa Murthy Thakkar Bapa- सेवा मूर्ति ठक्कर बापा मानवता के पुजारी थे, उनके लिए यह असह्य था कि आदमी-आदमी के बीच ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, छूत-अछूत की बनावटी बंधन रहें. बापा भेदभाव की इन दीवारों को वह तोड़ देना चाहते थे, और इसके लिए उन्होंने बहुत कार्य भी किये. वह जानते थे कि जब तक राष्ट्र का कोई भी अंग दुर्बल रहेगा, तब तक देश पूरी तरह से ऊपर नहीं उठ सकता. यही कारण है कि उन्होंने अपने जीवन के ३७ वर्ष हरिजनों, आदिम जातियों तथा दलित वर्गों आदि की सेवा में लगाए. भारत का कोई भी कोना ऐसा नहीं बचा, जहां पहुंच कर ठक्कर बापा ने सेवा का कोई न कोई कार्य न किया हो.
दोस्तों सेवा मूर्ति ठक्कर बापा वर्ष 1934-1937 तक हरिजन सेवक संघ के महासचिव थे. वर्ष 1944 में सेवा मूर्ति ठक्कर बापा ने ‘कस्तूरबा गांधी नॅशनल मेमोरियल फण्ड’ की स्थापना की. इसी वर्ष इन्होने ‘गोंड सेवक संघ’ (वनवासी सेवा मंडल) की स्थापना की थी. सेवा मूर्ति ठक्कर बापा वर्ष 1945 में ‘महादेव देसाई मेमोरियल फण्ड’ के महासचिव बने थे. बापा कुछ समय तक संसद के सदस्य भी रहे, लेकिन इस पद का उपयोग भी उन्होंने हरिजनों के पक्ष को मजबूत करने के लिए ही किया. सेवा मूर्ति ठक्कर बापा के लिए भारत के पहले राष्ट्रपति डा०राजेंद्र प्रसाद के शब्दों में “जब-जब नि:स्वार्थ सेवकों की याद आएगी ठक्कर बापा की मूर्ति आंखों के सामने आकर खड़ी हो जाएगी.
1895 से 1900 भीषण अकाल में सेवा मूर्ति ठक्कर बापा का क्या योगदान था?
बापा जी के पिता विट्ठलबापा भी धर्मनिष्ठ और सेवाव्रती व्यक्ति थे. उनकी पत्नी की मृत्यु हो जाने के उपरान्त ठक्करबापा के जीवन का संघर्ष प्रारम्भ हो गया. जब वे 1895 से 1900 तक पोरबन्दर गुजरात में थे, तो उस समय भीषण अकाल पड़ा था. दोस्तों अकाल पीड़ितों पर से मिट्टी हटाते समय जब उन्होंने मरणासन्न अवस्था में पड़े मजदूर पति-पत्नी को जीवन के अन्तिम क्षणों में अपने तीन जीवित बच्चों को मिट्टी में गाड़ने का दुःखद दृश्य देखा, तो वे कांपकर रह गये और बहुत दुःखी हुए.
सेवा मूर्ति ठक्करबापा ने मिट्टी में गड़े हुए उन तीनों बच्चों को बाहर निकाला और उसके बाद तो उन्होंने मनुष्य मात्र की सेवा का जैसे सँकल्प ही ले लिया था. सेवा मूर्ति ठक्करबापा ने गुजरात के अकाल-पीड़ितों के लिए न केवल धन एकत्र किया, वरन् एक भोजनालय भी खोल दिया, जिसमें 600-700 लोग प्रतिदिन भोजन करते थे.
सेवा मूर्ति ठक्करबापा हर रोज सुबह उठकर पूजा-पाठ से निवृत होकर भोजनालय पहुंच जाते. वे सब लोगों के भोजनोपरान्त ही भोजन करते थे. वे गांव-गांव जाकर असाह्य लोगो को कम्बल तथा वस्त्रों का वितरण करते थे. उन्होंने पाया कि शंकरपुरा गांव में तो लोग खाने-पीने तो क्या, कपड़ों आदि के लिए भी मोहताज थे. उनको पता चला एक महिला झोपड़ी से इसीलिए बाहर नहीं आ रही थी. क्योंकि उसके तन पर एक भी वस्त्र नहीं था. भूख से पीड़ित उस महिला को देखकर ठक्करबापा का हृदय रो पड़ा. उन्होंने ”भील सेवा संघ” की स्थापना की, जहां आदिवासियों के लिए स्कूल, आश्रम खोले गए.
आदिवासियों के लिए सेवा मूर्ति ठक्कर बापा के प्रमुख कार्य क्या थे?
सेवा मूर्ति ठक्कर बापा (Biography of Sewa Murthy Thakkar Bapa) ने सन् 1932 में वे झालौद की सीमा पर बसे एक आदिवासी ग्राम बारिया में 22 मील पैदल चलते इसलिए पहुंचे थे. क्योंकि वहां के आदिवासी अपनी सारी जमा पूंजी शराब पीने में बरबाद कर देते थे. वहां जाकर उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं और विद्यार्थियों के साथ शराबबन्दी तथा अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध किया और उनको समझाया. तख्तियों पर उन्होंने लिख रखा था. शराब मत पियो, शराब पीने से बरबादी आयेगी, रोज नहाओ, रोज नहाने से शरीर साफ रहेगा, दाद, खुजली और नहरू नहीं निकलेंगे.
जादू-टोना करने वाले ओझाओं से मत डरो, वे लुटेरे हैं, तुम्हें ठग लेंगे. इस तरह के नारों को देखकर वहां से निकल रही राजा की सवारी ने ठक्कर बापा का विरोध किया था. तब वहां के राजा ने उन्हें रातों-रहात राज्य छोड़ने का हुक्म दिया. आधी रात को वे कैसे जाते, क्योंकि उनके साथ अन्य लोग भी थे. भील सेवा सघ का कार्य करते हुए बापा ने हर बालक आश्रम के सामने जमा कूड़े-करकट को स्वयं साफ किया. यह देखकर अन्य भी उनके पीछे-पीछे हो लिये थे.
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बापा ने टीलो के रूप में जमे हुए कचरे के ढेर को खुद-बखुद साफ किया. एक बार बाढ़ के समय अनाज बांटते ठक्करवापा ने 5 मील का रास्ता 7 घण्टे पैदल चलकर तय किया. 1943-44 के अकाल में तो कई गांवों में मुरदे जलाने के लिए भी लोग नहीं थे. बापा ने वहा जाकर भी भोजन, वस्त्र तथा दवाइयों का प्रबन्ध किया था.
सेवा मूर्ति ठक्कर बापा ने रात-रात जागकर समाज और मानवता के लिए कार्य किया. नो आखली में हरिजनों के मकानों को अंग्रेजों ने जला दिया था. बापा ने वहां जाकर दीन-दुखियों की सहायता की, हरिजन सेवक संघ में गांधीजी के साथ सेवाकार्य में जुटे रहे थे. एक बार तो वे मैले कपड़ों का गट्ठर लिये बाजार से धोबी के घर तक ले आये थे. उनका कहना था कि सेवाकार्य में किसी भी प्रकार की हिचक नहीं होनी चाहिए.
सेवा मूर्ति ठक्कर बापा के कार्य व विचार
ठक्कर बापा जी में ईमानदारी, सादगी किफायतशारी, शारीरिक श्रम, विनम्रता आदि बाल्यकाल से ही कूट-कूटकर भरी थी. जब वे हाईस्कूल में पढ़ते थे, तो उनके आगे-पीछे बैठने वाले विद्यार्थी उन्हें प्रश्नों के उत्तर पूछ-पूछकर परेशान कर डालते थे. वे उसके उत्तर हाशिये पर लिखकर बताते थे. जब उनकी कॉपी अध्यापक के सामने इस रूप में आयी, तो उन्हें फटकार लगती थी, पर उन्होंने इस सचाई से स्वीकार किया करते थे.
बापा इंजीनियरिंग के पद पर रहते हुए कई लोगों ने अपनी जमीन बचाने के चक्कर में उन्हें थैली भर -भरकर रुपयों का लालच देना चाहा. परन्तु वे रुपये लेना पाप समझते थे. उनके अधिकारियों द्वारा परेशान करने पर उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग सेवा से त्यागपत्र दे दिया, परन्तु रिश्वत लेना मंजूर नहीं किया. जब वे लोकनिर्माण विभाग में इंजीनियर थे, तो वहां पर bapa पर रिश्वत लेने का दबाव पड़ा. उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र देना उचित समझा.
सेवा मूर्ति ठक्कर बापा की मृत्यु कैसे हुई? उनका अंतिम समय!
सामाजिक सुधार, छुआ छूत, भीषण आकाल, ऊंच-नीच आदि से ऊपर मानवता सेवा पर देने का प्रचार प्रसार करते हुए उन्होंने सामाजिक चेतना की एक अलग अलख जगाई थी. ठक्कर बापा जी ने आदिवासी, भीलो, हरिजन के उथान के लिए अनेक संगठन बनाये और जन चेतना का कार्य किया. ठक्करबापा त्याग, सेवा, बलिदान तथा करुणा के साक्षात् पर्याय थे. उनका सम्पूर्ण जीवन पीड़ित मानवता की सेवा के लिए ही समर्पित था.
अपने सेवाभाव के कारण वे उन सन्तों की श्रेणियों में आ गये थे. बापा जी ने मानव कल्याण के लिए जीवन ग्रहण किया था. 81 वर्ष की अवस्था तक भी कार्य करते हुए 19 जनवरी, 1951 को इस महान् संत, समाज सुधारक ने अपना शरीर ईश्वर को समर्पित कर दिया था. हम ऐसे महान आत्मा को नमन करते है.
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FAQs
Ans- ठक्कर बापा समाज सुधारक, छुआ छूत, भीषण आकाल सेवा, ऊंच-नीच आदि से ऊपर मानवता सेवा को प्रथम रखने वाले एक महान संत थे. इनका जन्म 29 नवम्बर सन् 1869 में भावनगर, काठियावाड़ गुजरात में हुआ था.
Ans- सेवा मूर्ति ठक्कर बापा ने समाज सुधार, और दलित उत्थान के लिए अछूत सेवा भारत, भील सेवा मण्डल की स्थापना, हरिजन सेवक संघ मे कार्य, सेवक समाज मे कार्य, हरिजन ऋणमुक्ति सहकारी, समितियों के स्थापना, अकाल पीड़ित सेवा के प्रमुख कार्य थे.
Ans- सेवा मूर्ति ठक्कर बापा का बचपन और मूल नाम अमृतलाल ठक्कर था.
Ans- ठक्कर बापा का जन्म 29 नवम्बर सन् 1869 में भावनगर, काठियावाड़ गुजरात में हुआ था.
Ans- ठक्कर बापा को पहली पत्नी से एक लड़का हुआ था, लेकिन ५ वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गयी. उसके बाद बापा के कोई संतान नहीं हुई.
Ans- ठक्कर बापा का पहला विवाह ग्यारह-बारह वर्ष की आयु में ही हो गया था. कुछ समय बाद उनके एक लड़का हुआ, लेकिन दुर्भाग्य से वह पांच-छः साल का होकर चल बसा. उसके बाद उनके और कोई संतान नहीं हुई. उनकी पत्नी शुरू से ही बड़ी कमजोर थीं सन 1907 में उनका देहांत हो गया. इसके बाद अपने पिता के अनुरोध पर श्री ठक्कर बापा ने दूसरी शादी की, लेकिन उनकी वह पत्नी भी एक या दो साल से अधिक जीवित न रही.