Battle of Haldighati 1576 AD || हल्दीघाटी का युद्ध 1576 ई

By | September 11, 2023
Battle of Haldighati 1576 AD
Battle of Haldighati 1576 AD

Battle of Haldighati 1576 AD- हल्दीघाटी का युद्ध 1576 ईस्वी में मुगल सम्राट अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हुआ था. अकबर के सैनिकों की संख्या अधिक थी. उसके सैनिकों के पास अस्त्र-शस्त्र भी अधिक थे. महाराणा प्रताप ने अपने थोड़े से सैनिकों के साथ अकबर की सेना का सामना बड़ी वीरता के साथ किया था. यद्यपि वे युद्ध में पराजित हो गए थे. पर युद्ध के मैदान में उन्होंने जो सौर्य दिखाया था, उससे उनका नाम इतिहास में अमर हो गया. सन 1527 ईस्वी में बाबर ने राणा सांगा को खानवा (Rajasthan) के युद्ध में हराकर राजपूतों की स्वाधीनता को नष्ट कर दिया था. पर राणा सांगा की मृत्यु के बाद राजपूतों ने धीरे-धीरे अपने राज्य को पुनः प्राप्त कर लिया. मेवाड़ राज्य के भाग्य का सूर्य जो दोपहर की सूर्य की भांति चमक उठा था. महाराणा उदय सिंह ने तो उसे शक्तिशाली बना दिया था.

उदय सिंह के बाद जब महाराणा प्रताप ने शासन की बागडोर अपने हाथों में ली तो उस समय स्थति बड़ी विकट थी. दिल्ली का शासन अकबर के हाथों में आ चूका था. उसने अपनी स्थिति सुदृढ़ बना ली थी. राजस्थान के कई हिंदू राजाओं ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी. स्वय महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह भी अकबर से जा मिले थे. अकबर ने महाराणा प्रताप को भी अधीनता स्वीकार करने के लिए प्रयत्न किए, परंतु उसे सफलता नहीं मिली. महाराणा प्रताप स्वतंत्रता प्रेमी थे. प्रताप राजस्थान को ही नहीं समस्त भारत को विदेशी यवनो के चुगल से मुक्त कराना चाहते थे.

Summary

नामहल्दीघाटी
पुराना नामगोगुंदा
उपनाममेवाड़ की थर्मोपोली
लड़ाई कब हुई18 जून 1570 ईस्वी
लड़ाई किस के मध्य हुईचित्तौड़गढ़ के महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर
राज्यराजस्थान
जिलाराजसमंद
तहसीलराजसमंद
किस लिए प्रसिद्ध हैहल्दीघाटी के लड़ाई के लिए
भाषाहिंदी, मारवाड़ी
पर्यटक स्थलचेतक की समाधी, महाराणा प्रताप जी की समाधी, राजसमंद झील
सांसद का नामसुश्री दिया कुमारी
क्षेत्रमेवाड़
चुनावी क्षेत्र/तहसीलकुंभलगढ़, नाथद्वारा,आमेट, भीम, देवगढ़, रेलमगरा और राजसमन्द
पोस्ट श्रेणीBattle of Haldighati 1576 AD
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हल्दीघाटी युद्ध के क्या कारण थे?

पानीपत के द्वितीय युद्ध में सफलता प्राप्त करने के बाद. अकबर ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए प्रयास प्रारंभ कर दिए. जिसके परिणाम स्वरूप उसने अपनी उदार निति, कूटनीति, धार्मिक भावना, आर्थिक आधार तथा सैन्य शक्ति का खुलकर प्रयोग किया. अधिकांश शासको व सरदारों ने अकबर की उदार नीति से प्रभावित होकर अपने आप को उसके अधीन कर दिया। अकबर ने संत 1568 ईस्वी में चितौड़गढ़ जीता. इस अभियान में राजपूत सेनानायक जयमल तथा पन्ना वीरगति को प्राप्त हुए. महाराणा उदय सिंह प्रताप के पिता पहले ही अरावली की पहाड़ियों में चले गए थे. जिस समय अकबर ने राजपूतों के प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर चित्तौड़गढ़ पर अधिकार जमाया. उस समय उसने राणा प्रताप के राज्य के उपजाऊ तथा समृद्ध साली पूर्व प्रदेश भी अपने अधीन कर लीये.

स्थिति की गंभीरता को समझते हुए महाराणा प्रताप ने अपने राज्य के पछिम में पहाड़ियों में स्थित कुंभलगढ़ के किले में शरण लेकर अपने अधिकार के लिए लड़ने का संकल्प लिया. इसके लिए उन्होंने उदयपुर से 16 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित गोगुन्दनगर में अपना सैनिक केंद्र स्थापित किया. यह स्थान प्रति रक्षात्मक दृष्टिकोण से उत्तम तो था ही, अकबर के लिए सबसे बड़ा अवरोधक भी था. क्योंकि अकबर गुजरात की ओर बढ़ना चाहता था, और वह स्थान उसके मार्ग में था. अकबर ने इस स्थिति से निपटने के लिए बड़ी कूटनीति से काम लिया.

और महाराणा प्रताप के विरुद्ध राजपूत राजा मानसिंह को एक विशाल सेना का सेनापति बना कर भेजा. राजपूत राजा मानसिंह अकबर की अधीनता पहले ही स्वीकार कर चुका था. राणा प्रताप के साथ उसकी वंशानुगत शत्रुता थी. इसलिए इस सफलता को भुनाने के लिए उसने जून 1576 में हल्दीघाटी को चुना. इतिहास में यह युद्ध हल्दीघाटी का युद्ध के नाम से विख्यात हुआ.

Biography of Maharana Pratap

नामकुँवर प्रताप जी (श्री महाराणा प्रताप सिंह जी)
जन्म9 मई, 1540 ई.
जन्म भूमिकुम्भलगढ़, राजस्थान
पुण्य तिथि29 जनवरी, 1597 ई.
पिताश्री महाराणा उदयसिंह जी
माताराणी जीवत कँवर जी
राज्यमेवाड़
शासन काल1568–1597ई.
शासन अवधि29 वर्ष
वंशसुर्यवंश
राजवंशसिसोदिया
राजघरानाराजपूताना
धार्मिक मान्यताहिंदू धर्म
युद्धहल्दीघाटी का युद्ध
राजधानीउदयपुर
पूर्वाधिकारीमहाराणा उदयसिंह
उत्तराधिकारीराणा अमर सिंह
श्री महाराणा प्रताप के घोड़ा नामचेतक
Battle of Haldighati 1576 AD

1576 ईस्वी हल्दीघाटी युद्ध

मुग़ल सेना के साथ मानसिंह ने मांडलगढ़ के सैनिक अड्डे पर पड़ाव डाला. तथा सेना सहित गोगुन्दनगर से 14 मील उत्तर में था, खमनोर गांव की ओर बढ़ा. यह गांव दोनों ओर से अरावली पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थित था. जिसे हल्दीघाटी का क्षेत्र कहा जाता है. जब राणा प्रताप को मानसिंह के सेना सहित बढ़ने का समाचार मिला तो. उन्होंने सामना करने के लिए इस क्षेत्र के मैदान में 18 जून 1576 को अपनी सेना को सुनियोजित कर दिया.

हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना और महाराणा प्रताप की सेना में कितने सैनिक थे?

महाराणा प्रताप की सेना मुगल सेना की तुलना में संख्या की दृष्टि से कम अवश्य थी. परंतु उसमें साहस एवं बलिदान की भावना अवश्य ही सशक्त थी. घोड़े सवार सैनिक 3000, पैदल सैनिक 400 कुछ हाथी सेना, घुड़सवार सेना में राजपूत तथा अफगानी सेना के सैनिकों की प्रमुखता थी. जबकि पैदल सेना में धनुधारी भील जाति के अधिक सैनिक थे. राजपूत सेना के अगले भाग का नेतृत्व हकीम खां सूर, देदिया के भीम सिंह, चित्तौड़गढ़ के शहीद जयमल के पुत्र रामदास राठौड़, चुन्दोत आदि के द्वारा किया गया. जिसमें 800 घुड़सवार अफगानी तथा राजपूत सैनिक संगठित थे. दाएं पक्ष का नेतृत्व ग्वालियर के पूर्व नरेश राम सागर द्वारा किया गया. जिनके अधीन 500 घुड़सवार सैनिक थे. उनकी सहायता के लिए पूर्व नरेश के तीन बेटे तथा मंत्री भामाशाह अपने भाई ताराचंद के साथ थे.

बाय पक्ष का नेतृत्व मन्ना सिंह तथा झाला सिंह के द्वारा किया गया. जिनके अधीन 400 सैनिक थे. मध्य भाग का नेतृत्व में स्वय महाराणा प्रताप के द्वारा किया गया. जिनके अधीन लगभग 1300 कुशल घोड़े सवार राजपूत सैनिक थे. पृष्ठ भाग में हाथी सेना तथा 400 धनुर्धारी भील सैनिक थे.

Battle of Haldighati 1576 AD

मुगल सेना में सैनिकों की संख्या अधिक थी. उनकी कुल सैनिक संख्या लगभग 10000 हजार थी. उनके पास युद्ध लड़ने के लिए हथियार भी अधिक सुदृढ़ थे. इस सेना में 5000 मुगल 4000 कछवा राजपूत तथा 1000 हिन्दू सैनिक थे. इसमें हाथी सेना भी थी, मुगल सेना के पास बंदूकें वह तोपे भी थी. मुगल सेना में सबसे आगे बरहा के प्रसिद्ध सेनानी सैयद हाशिम के नेतृत्व में 85 घुड़सवार सैनिक तैनात थे. इसके बाद हरावल था, जिसमें राजपूत तथा मुगल सैनिक थे. जिनका नेतृत्व जगन्नाथ तथा ख्वाजा बक्स अली हसन खा कर रहे थे.

अग्रिम सेना का नेतृत्व माधव सिंह कछवा कर रहा था. करावल तथा हरावल सैन्य दलों के बीच तोपों तथा बंदूकों को लगाया गया था. मध्य भाग का नेतृत्व स्वय मानसिंह कर रहा था. मुगल सेना का सबसे शक्तिशाली दाया पक्ष था. जिसका नेतृत्व सय्यद खां के द्वारा किया जा रहा था. बायां पक्ष मुल्ला गाजी खां तथा लोकरन के नेतृत्व में था. तथा पृष्ठ मेहतर खां के नेतृत्व में था.

हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ था?

18 जून सन 1576 ईस्वी को हल्दीघाटी का युद्ध शुरू हुआ. इसमें राजपूत सेना की ओर से सर्वप्रथम घाटी के पश्चिम मुहाने से हकीम खां के नेतृत्व में अफगानी तथा रामदास राठौड़ के नेतृत्व में राजपूत सैनिकों ने आक्रमण किया. इस आक्रमण में मुगलों के घोड़े सवार सैनिकों को पीछे हटना पड़ा. इस आक्रमण से मुगल सेना में घबराहट पैदा हो गई. मुगल घोड़ा सवार पंक्तिवर्द होकर जवाबी हमला करने में असमर्थ थे.

मुगल सेनापति मानसिंह ने स्थिति को गंभीरता से लेते हुए, अग्रिम आरक्षण को भी युद्ध में लगा दिया. तथा अपनी तोप सेना और बन्दुक सेना को राजपूत सेना पर फायर करने के आदेश दिए. जिससे राजपूतों के परहार पर अंकुश लगाया जा सके. महाराणा प्रताप ने मुगल सेना के समक्ष अवरोध पैदा करने के लिए, हाथी सेना को लगाया. हाथी सेना के आगे बढ़ने से मुगल सेना में आतंक फैल गया था.

दोनों को से हाथी सेना को लगाया गया, हाथियों की भिड़ंत एवं चिंघाड़ से युद्ध क्षेत्र में पूरी तरह आतंक छा गया. इस युद्ध में मुगल सेना का गजमक्ता हाथी घायल हो गया. दोनों पक्षों में हाथियों में बड़ा संघर्ष हुआ. इस युद्ध में अनेक सेनापति शहीद हो गए. मुगल सेना के आरक्षी दल का नेतृत्व कर रहे माधव सिंह ने राणा प्रताप पर अपना दबाव डाला. महाराणा प्रताप अकेले ही युद्ध कर रहे थे. क्योंकि उनके अधिकांश सरदार अपनी वीरता के कारण शहीद हो चुके थे.

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मुगल सेना महाराणा प्रताप को चारों से घेरने में लग गई. महाराणा प्रताप घायल हो गए, राजपूत झाला, सरदार बिन्दा ने जब यह देखा कि राणा घायल हो चुके हैं. तो वह तेजी से राणा प्रताप की ओर बढ़े और उनके राजमुकुट को उतार कर अपने सिर पर रखकर लड़ना शुरू किया. जिससे शत्रु का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ. और महाराणा को सुरक्षित युद्ध क्षेत्र से बाहर किया जा सके. मुगल सेना ने झाला सरदार को घेर लिया, वह वीर अंतिम सांस तक लड़ते हुए शहीद हो गया.

महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह हल्दीघाटी युद्ध में राणा प्रताप की जान कैसे बचाई थी?

रण के मैदान से भागते हुए महाराणा प्रताप पर दो मुगल सैनिकों की दृष्टि पड़ी. उन्होंने चेतक के पीछे अपने घोड़े दौड़ा दिए. वह आहत महाराणा प्रताप पर पीछे से गोली चला कर मार डालना चाहते थे. इसी समय सहसा राणा के छोटे भाई शक्ति सिंह की दृष्टि मुगल सैनिकों पर पड़ी. शक्ति सिंह ने मुगलों के साथ मिलकर महाराणा के विरुद्ध लड़ रहा था. पर जब उसने राणा का पीछा करते हुए मुगल सैनिकों को देखा तो. उसके हृदय में भाई का प्रेम जाग उठा था. उसने सोचा एक तो राणा प्रताप है, जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाए हुए हैं. और एक मैं हूं जो देश के शत्रुओं से मिलकर अपने सगे भाई की मृत्यु का कारण बन रहा हूं. बस फिर क्या था, शक्ति सिंह ने दोनों मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया.

शक्ति सिंह ने राणा को आवाज लगाकर रुकने को कहा. जब राणा के पास शक्ति सिंह पहुंचा तो उस समय राणा का चेतक घोड़ा भी स्वर्ग सिधार चुका था. तब महाराणा प्रताप ने कहा शक्तिसिंह मेरे पास लड़ने की शक्ति नहीं है. और ना ही मेरे पास घोड़ा है, मुझे पकड़कर अकबर के पास ले जाओ. तुम्हें पुरस्कार मिलेगा या मुझे मार कर अपनी दुश्मनी को समाप्त करो!. पर यह क्या शक्तिसिंह ने अपनी टोप और तलवार राणा के चरणों में रख दी. उसने आंखों में आंसू भर कर कहाँ भैया मेरे अपराधों क्षमा कर दीजिए. महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने अपना घोड़ा देकर सुरक्षित स्थान के लिए प्रस्थान किया. इस तरह युद्ध में महाराणा प्रताप की हार हुई, उन्होंने गोलकुंडा खाली कर दिया और वे वन वन भटकने लगे.

Battle of Haldighati 1576 AD
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अकबर का मेवाड़ पर अधिकार कब हुआ?

जब तक राणा प्रताप वे जीवित रहे, अकबर की इच्छा पूरी नहीं हो सकी. वह मेवाड़ को जीतकर इस पर अपना अधिकार स्थापित नहीं कर सका. उसकी इच्छा तो उस समय पूर्ण हुई, जब 1591 ईस्वी में महाराणा प्रताप का स्वर्गवास हो गया. महाराणा प्रताप की स्वर्गवास के बाद मेवाड़ पर मुगलों का अधिकार हो गया. पर उसी समय से राणा के वंश के लोगों ने यह प्रतिज्ञा की. कि जब तक देश स्वतंत्र नहीं हो जाएगा, वे सोने चांदी के बर्तनों में खाना नहीं खाएंगे, गद्देदार पलंगों पर नहीं सोएंगे. सन 1947 में जब भारत देश आजाद हुआ तब राणा के वंशजो ने सोने और चांदी के बर्तनों में खाना खाया था.

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FAQs

Q- हल्दीघाटी की लड़ाई कब और किसके मध्य लड़ी गयी थी?

Ans- हल्दीघाटी की लड़ाई 18 जून 1576 को मेवाड़ के महाराणा प्रताप के घुड़सवारों और धनुर्धारियों और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच लडा गया था. जिसका नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह प्रथम ने किया था. हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप को मुख्य रूप से आदिवासी भील जनजाति का सहयोग मिला था, और उन्होंने गुरिल्ला वार पद्धति से मुगल सेना को नाको चने चबा दिए थे.

Q- महाराणा प्रताप सिंह जी के घोड़ा क्या नाम था?

Ans- चेतक.

भारत की संस्कृति

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