History and Tourist Places of Uttarakhand || उत्तराखंड का इतिहास

By | September 16, 2023
History and Tourist Places of Uttarakhand
History and Tourist Places of Uttarakhand

भारतीय मानचित्र पर उत्तराखंड को नए राज्य के रूप में अवतरित हुए अभी अधिक समय नहीं हुआ है. इस राज्य का गठन 9 नवंबर 2000 में किया गया था. इससे पहले यह उत्तर प्रदेश का एक अंग था, लगभग एक करोड़ 10 लाख की जनसंख्या वाला उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है. जो लगभग 53000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में विस्तृत है. देश के उत्तर मध्य में स्थित यह राज्य पूर्वोत्तर में चीन के स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत पश्चिमोत्तर में हिमाचल प्रदेश दक्षिण पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण पूर्व में नेपाल से घिरा हुआ है. उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून है. हम यहाँ उत्तराखंड का इतिहास और पर्यटन स्थल (History and Tourist Places of Uttarakhand) की वो अद्भुत जानकारी शेयर करेंगे. जिसके बारे में शायद अब तक अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, उत्तराखंड की रोचक जानकारी.

History of Uttarakhand (उत्तराखंड का इतिहास)

उत्तराखंड का शाब्दिक अर्थ उत्तरी क्षेत्र है. नए स्थाई राजधानी बनने तक देहरादून को इसकी स्थाई राजधानी के तौर पर चुना गया था. नैनीताल में इस राज्य के उच्च न्यायालय में स्थापित किया गया है. उत्तराखंड का इतिहास बहुत ही पुराना है. लोक कथा के अनुसार पांडव यहां आए थे. और विश्व के सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत, वह संभवत है रामायण की रचनाएं यही हुई थी, प्राचीन काल के दौरान इस राज्य में मानव निवास के प्रमाण मिलने के बावजूद यहां का इतिहास अधिक स्पष्ट नहीं हो पाया है.

यहां के अनेक क्षेत्रों में खुदाई से मिले शैलयाश्रयो से प्रागतिहासिक कालीन सभ्यता और संस्कृति के साथ से मिलते हैं. जिनकी अवधि 50000 वर्ष से 500000 वर्ष पूर्व तक मानी जाती है. पौराणिक ग्रंथों रामायण और महाभारत में मध्य हिमालय एवं उत्तराखंड का विस्तृत विवरण. केदारखंड मानस खंड और हिम्मत के रूप में मिलता है. हिंदू धर्म के पुनरुद्धार आदि शंकराचार्य के द्वारा हिमालय में बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना का उल्लेख आता है. जिसे हिंदुओं में चौथा मठ माना गया है.

उत्तराखंड राज्य की स्थापना कब और क्यों हुई?

संग 1949 में टिहरी गढ़वाल और रामपुर के दो स्वायत्त राज्यों को संयुक्त राज्य में शामिल किया गया. जो देश के संविधान को परिवर्तित होने के बाद उत्तर प्रदेश कहलाया. और यह नए भारतीय संघ का सविधान सम्मत राज्य बन गया. उत्तर प्रदेश का गठन होते ही यहां गड़बड़ी शुरू हो गई. यह महसूस किया गया कि राज्य की बहुत विशाल जनसंख्या और भौगोलिक आयामों के कारण लखनऊ में बैठी सरकार के लिए उत्तराखंड के लोगों के हितों का ध्यान रखना असंभव है. बेरोजगारी गरीबी पेयजल और उपयुक्त आधारभूत ढांचे जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव.

और क्षेत्र का विकास ना होने के कारण उत्तराखंड की जनता को नहीं राज्य की मांग करनी पड़ी. प्रारंभिक दौर में यह आंदोलन प्रभावशाली नहीं हो पाया. परंतु संग 1990 के दशक में यह जोर पकड़ गया. सन् 1994 में मुजफ्फरनगर जिले में रामपुर तिराहे पर स्थित शहीद स्मारक उस आंदोलन का मुख्य गवाह है. जहां 2 अक्टूबर सन 1994 को लगभग 40 आंदोलनकारी पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे. अंततः एक दशक में दीर्घकालीन संघर्ष के फल स्वरुप आदि क्षेत्र के सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों की पहचान और बेहतर प्रशासन के लिए राजनीतिक स्वायत्तता हेतु उत्तर प्रदेश को 2 हिस्सों में बांटकर नवीन राज्य उत्तराखंड बन गया.

उत्तराखंड की भूमि

वैसे तो उत्तराखंड की भूमि को पहाड़ी क्षेत्र माना जाता है. परंतु यहां मैदानी क्षेत्र भी बहुत है. बर्फ से ढकी चोटियों गहरी घाटियों गरजती जल धाराओं और सुंदर झीलों से युक्त. इस छेत्र भू-आकृति अत्यंत विविधता पूर्ण है. ऊंचे पहाड़ों के हिमनद गंगा, और यमुना नदी के स्रोत हैं. सबसे ऊंचे पर्वत शिखरों में से कुछ उत्तराखंड में स्थित है. जैसे नंदा देवी बदरीनाथ, सतोपंथ, त्रिशूल केदारनाथ, कामेट नीलकंठ अधिकांश छेत्रों को हिंदू धर्मावलंबी पूजनीय मानते हैं.

संस्कृति और राजनीति

संस्कृति और राजनीति की दृष्टि से यह राज्य दो हिस्सों में विभाजित है. पहला गढ़वाल और दूसरा कुमायूं है. इनमें से प्रत्येक को तीन भू-भागो में बाटा जा सकता है. जो पश्चिमोत्तर से उत्तर दक्षिण पश्चिम की ओर एक दूसरे के समानांतर चलती है. उत्तराखंड हिमाद्रि के नाम से प्रसिद्ध है. जहां जास्कर पर्वतमाला वह 3000 से 7000 मीटर की ऊंचाई वाला मुख्य हिमालय है. ज्यादातर उपरोक्त चोटियां इसी भूखंड में स्थित है.

हिमालय के बाद दक्षिण में 2000 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर हिमाचल नाम से प्रसिद्ध निम्न हिमालय स्थित है. जहां एक रेखा में दो पर्वत श्रंखला मंसूरी और नाग टीबा व पहाड़ी पर्यटन स्थल मसूरी, नैनीताल, नौकुचियताल, रानीखेत और बहुत ही सुंदर झीलें जैसे नैनीताल, भीमताल वह सातताल है. दक्षिण खंड में शिवालिक पहाड़ियां है. जो 300 से 3000 मीटर की ऊंचाई वाले तराई क्षेत्र में पाई जाती है. शिवालिक का दक्षिणी की सिरा संरचनत्मक अवसादो से बना है.

उत्तराखंड की मिट्टी

यहां पर विभिन्न प्रकार की मिट्टी मिलती है जो मृदा अपरदन के प्रति संवेदनशील है उत्तर में कंक्रीट वाली जो नदी के साथ बहकर आया हुआ कचरा से लेकर कठोर मिट्टी तक मिलती है. आगे दक्षिण में वनों की भूरी मिट्टी मिलती है. जो प्राय उतली, कंक्रीट और उपयुक्त जैविक अवयवों से युक्त होती है. निम्न हिमालय की तराई और शिवालिक पहाड़ियों पर भाबर मिट्टी पाई जाती है. जो अधिकतर खुरदरी बलुई से कंक्रीटली अत्यधिक और मुख्यता भंजन है. सुदूर दक्षिण पूर्व में पाई जाने वाली तराई की मिट्टी की सरचना चिकनी दोमट और वहीं बालू है. खाद की कुछ मात्रा से युक्त हो सकती है. इस मिट्टी में चावल धान और गन्ने की फसलों का अच्छा उत्पादन होता है.

उत्तराखंड का अपवाह तंत्र और नदियाँ

उत्तराखंड राज्य गंगा प्रणाली की अनेक नदियों द्वारा सिंचित है. सुदूर पश्चिमी नदी प्रणाली टोन्स और यमुना से मिलकर बनती है. इसके पूर्व में गंगा की प्रमुख सहायक नदियां भागीरथी, मंदाकिनी, अलकनंदा और पिंडर पिण्डर है. पूर्व में और आगे रामगंगा, और कोसी नदियां प्रवाहित होती है. दक्षिण पूर्व में बहने वाली नदियां सरजू, गोरीगंगा और घोलीगंगा है. यहां की घाटियां बारहमासी नदियों द्वारा निर्मित गहरे दरों से बनी है. इन नदियों को मुख्य हिमालय और जास्कर श्रंखला के सतत बहकर आने वाली बर्फ से पानी मिलता है. यह नदियां जल विद्युत उत्पादन का महत्वपूर्ण स्रोत है.

जलवायु

उत्तराखंड राज्य में ठंडी में गर्मी में दोनों अपने-अपने मौसम में भीषण रहता है. जनवरी सबसे ठंडा महीना होता है. जब तापमान में उत्तर में 0 से नीचे और दक्षिण में पूर्व से लगभग 5 डिग्री सेल्सियस हो जाता है. यहां मई के महीने में अधिक गर्मी पड़ती है. इसके बाद भारतीय उपमहाद्वीप के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कम ही गर्म साबित होता है. राज्य में मानसून आने का समय जुलाई से सितंबर है. जो दो तिहाई भाग दक्षिण पश्चिमी मानसून से आता है.

हालांकि अन्य महीनों में भी कुछ वर्षा हो जाती है. यह थोड़ी बहुत पश्चिमी विक्षोभ सहवहनीय वर्षा या पर्वतीय अनुकूलन जो पहाड़ी क्षेत्रों की विशेषता है के द्वारा होती है. किसी भी मौसम की वर्षा की स्थानीय पर्वती को ठीक ठीक नहीं समझा जा सकता है. फिर भी पहाड़ी ढलान ओं के संदर्भ में ऐसा हवाओं के कारण वर्षा की दिशा बदलने से होता है. पूर्व और दक्षिण पश्चिम 610 से 678 की तुलना में उत्तरी क्षेत्र के मध्य भाग में जाता 1374 मिली में वर्षा होती है. बरसात के मौसम में घाट की तलहटी में आने वाली बाढ़ और बार-बार होने वाले भूस्खलन यहां की आम समस्याएं हैं. राज्य के उत्तरी भाग में अमूमन दिसंबर और मार्च माह में हिमपात होता है. इसका वार्षिक औसत 3 से 5 मीटर रहता है.

उत्तराखंड की वनस्पति

इस राज्य में प्रमुख रूप से 4 तरह के वनक्षेत्र मिलते हैं. पहला सुदूर उत्तर में आल्पीय घास के मैदान, दूसरा मुख्य हिमालय में शीतोषण वन, तीसरा निम्न हिमालय में उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन और चौथा शिवालिक वह भाबर क्षेत्र में कटीली झाड़ियों वाले वन. सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य के 60% से भी ज्यादा भू भाग पर वन पाए जाते हैं. वास्तविक प्रतिशत इससे कम है. वनों की लकड़ियों का प्रयोग ईंधन व इमारतों में लगाने के लिए किया जाता है.

जंगलों में व्यापक तौर पर पशुओ द्वारा घास की चराई की छूट मिली हुई है. इस राज्य में स्थाई चारागाह है मात्र 4% के करीब भूभाग पर ही है. शीतोषण वनों में पाए जाने वाले वृक्षों की आम प्रजातियां हिमाली देवदार, हिमाली ब्लू पाइन चीड़ की एक प्रजाति सिल्वर फर देवदारु की एक प्रजाति, चेस्टन हिमराई पहाड़ी, पीपल, सदाबहार है. उप पर्वतीय क्षेत्र में साल, सागवान, शीशम के उष्णकटिबंधीय प्रणपाती वन और दक्षिण में ढाक, बबूल और झाड़ी दार वन पाए जाते हैं.

प्राणी जीवन

उत्तराखंड के प्राणी जीवन में भिन्नता पाई जाती है. इसके बाद भी यह काफी संपन्न है. यहां पर बाघ, तेंदुआ, हाथी, जंगली सूअर, रीछ, मगरमच्छ, कबूतर फाकता, जंगली बतख, तीतर, मोर, नीलकंठ, बटेर और कठफोड़वा आदि पशु पक्षियों को देखा जा सकता है. यह खेद जनक है शेर और गैंडे जैसी कुछ प्रजातियां अब नहीं देखने को मिलती है. वन्य जीवन के संरक्षण राज्य ने राष्ट्रीय उद्यान और अनेक अभ्यारण स्थापित किए हैं. जिसमें कॉर्बेट नेशनल पार्क भी शामिल है.

उत्तराखंड का जनजीवन

राज्य के जनसंख्या वितरण में एकरूपता देखने को नहीं मिलती है. लिंगानुपात प्रति हजार पुरुषों में 939 महिलाओं का है. हिंदू बहुल 87% इस राज्य में मुसलमान दूसरे स्थान पर है. शेष सिख, जैन, ईशाई, बौद्ध धर्मो को मानने वाले है. कुल जनसंख्या का 17% अनुसूचित जातियों का और 3% अनुसूचित जनजातियों का है. राज्य की राजकीय भाषा हिंदी है हिंदी और उर्दू के शब्दों से युक्त हिंदुस्तानी यहां की बोलचाल की भाषा है. और राज्य भर में व्यापक रूप से समझी जाती है. यहां को स्थानीय भाषाओं में गढ़वाली, कुमाऊनी, पंजाबी और नेपाली है. यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में 77% जनसंख्या रहती है. यहां के ग्रामीण क्षेत्रों का आवाज अक्षरा स्तोया सड़कों के किनारे छोटे और एक पंक्ति में बने गांव के रूप में होते हैं. साधारण तय सभी घर दो मंजिले बने होते हैं. निचली मंजिल के एक हिस्से में मवेशी रखे जाते हैं.

अधिकांश मकान लगभग एक जैसे आकार के स्थानीय पत्थर और मिट्टी के गारे के रूप में इस्तेमाल करके बनाए जाते हैं. छते आमतौर पर अनगढ़ सलेट की टाइलों या लोहे की लहर चादर से बनाई जाती है. यद्पि इन घरों में आधुनिक सुख सुविधाएं कम ही होती हैं. लेकिन नगरों के पास के गांव में आधुनिकरण की प्रक्रिया साफ देखी जा सकती है. सीमेंट से प्लास्टर किए हुए मकान खड़ा बिछी हुई सड़कें बिजली और टेलीविजन व वीडियो समेत उपरोक्त का सामान ग्रामीण क्षेत्र में पारंपरिक जीवन में बदलाव का रहे हैं. इस राज्य में शहरों में रहने वाले लोगों की संख्या कुल आबादी का 23% है. इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है. कि यहां शहरों का विकास काफी कम हुआ है. राजधानी देहरादून के अलावा अधिकांश नगर छोटे हैं.

शहरों की विशेषता

उत्तराखंड के शहरों की एक विशेषता यह है कि यह छोटे होने के बाद भी सौंदर्य व धार्मिक महत्व से परिपूर्ण होने के कारण पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. तीर्थ स्थलों में बदरीनाथ विष्णु, केदारनाथ शिव, पंच प्रयाग, गंगोत्री,यमुनोत्री, हेमकुंड, सिरकंडा देवी मंदिर, दुर्गा शक्ति हरिद्वार और ऋषिकेश उल्लेखनीय है. पैदल यात्रा के शौकीन गंगोत्री यमुनोत्री और गोमुख जैसे अनेक तीर्थ स्थलों पर फूलों की घाटी रूपकुंड, डोडीताल ऊंचाई पर स्थित सुंदर झील, हरकी धुन , पिंडारी ग्लेशियर और बहुत से हरे भरे चरागावो की यात्रा करते हैं. आराम तलब पर्यटकों के लिए मसूरी, नैनीताल रानीखेत, कौसानी, अल्मोड़ा और ओली बहुत ही उपयुक्त स्थान है.

2022 उत्तराखंड में कितने जिले है और उनके नाम?

  • हरिद्वार
  • देहरादून
  • अल्मोड़ा
  • बागेश्वर
  • चम्पावत
  • चमोली
  • नैनीताल
  • टिहरी गढ़वाल
  • उधम सिंह नगर
  • उत्तरकाशी
  • पिथौरागढ़
  • रुद्रप्रयाग
  • पौड़ी गढ़वाल
वसुधारा बद्रीनाथ उत्तराखंड
वसुधारा बद्रीनाथ उत्तराखंड

उत्तराखंड की संस्कृति

सांस्कृतिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड प्रमुख तहत 2 इकाइयों में बांटा गया है. प्रथम गढ़वाल जो केदारनाथ का दृश्य है. और द्वितीय कुमायूं जो कुंपावत आर अर्थात पालनहार भगवान विष्णु को कछुए के रूप में अवतरित होने की भूमि मानी जाती है. कुछ ऐसे प्रमाण प्राप्त हुए हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि हिमालय के इन क्षेत्रों में ऐतिहासिक काल के दौरान मानव का निवास था. इनमें पाषाण, चित्रकला, शीला आवाज पुरापरस्त और महापाषाण उपकरण व अन्य वस्तुएं शामिल है. यहां के प्राचीन पहाड़ी राज्य विभिन्न कारणों से आश्चर्य चाहने वालों की शरण स्थली रहे थे. लिखित ग्रंथों के अनुसार यहां शक, कोल-मुण्डा, नाग,खस, हुण, किरात,गुर्जर, और आर्य समेत अनेक जातियों का निवास था. कोल और किरातों के बाद गढ़वाल और कुमाऊं हिमालय क्षेत्र में पूर्व वैदिक रिवाजों का अस्तित्व ज्ञात होता है.

उत्तराखंड के धार्मिक स्थल

उत्तराखंड को यदि धार्मिक स्थल कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि यहां धार्मिक स्थल काफी है. हिंदू धर्म के सर्वाधिक पवित्र मंदिरों और तीर्थ स्थलों में से कुछ यहां पाए जाते हैं. राज्य में सिख बौद्ध और इस्लाम जैसे धर्मों का सतीत्व आपसी भाईचारे पर टिका है. यमुनोत्री, गंगोत्री केदारनाथ और बद्रीनाथ यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिमी क्षेत्र में 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां की इष्ट देवी यमुना को हिंदू ग्रंथों में विशेष महत्व दिया गया है. इन की मूर्ति का निर्माण काले संगमरमर से हुआ है. यमुना नदी समीप के यमुनोत्री हिमनद से निकलती है. मंदिर में गंधक के सोते का तालाब है. गंगोत्री मंदिर 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. जो सुंदर देवदार और चीड़ के पेड़ों से घिरा है. यहां नदी में आधा डूबा हुआ प्राकृतिक पाषाण शिवलिंग भी है.

जिसके प्रति धार्मिक आस्था बहुत अधिक है. पुराककथाओं के अनुसार शिव ने यहां बैठकर देवी गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था. केदारनाथ मंदिर में भगवान शंकर की पूजा होती है. जो 3580 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. पत्थर की चेट्टीपट्टी गांव से बना यह मंदिर हजार साल से ई ज्यादा पुराना माना जाता है. मंदिर में मंडप और गर्भगृह है. गर्भगृह में शाकवाकार पाषाण आकृति स्थित है. मंदिर के द्वार के बाहर नदी बेल की मूर्ति स्थापित है. यहां अलकनंदा नदी के किनारे 3130 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का घर माना जाता है. जंगली सरसफल के नाम पर इस जगह का नाम बद्री पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि काले ग्रेनाइट से बनी विष्णु की प्रतिमा को आदि शंकराचार्य जी ने यहां स्थापित किया था. मंदिर के समीप ही गंधक के गर्म पानी का स्रोत है जो कुछ विशेष महत्व रखता है.

त्योहार

क्योंकि यह राज्य उत्तर प्रदेश का ही एक अभिन्न अंग था. इसलिए यहां के भी अधिकांश त्योहार और अवकाश हिंदू का चार्ट पर आधारित है. और उत्तराखंड के कुछ महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों और अवकाशों में बुराई के प्रतीक रावण पर भगवान श्री राम के विषय के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला दशहरा है. धन की देवी लक्ष्मी को समर्पित दीपावली भगवान शिव की आराधना का दिन शिवरात्रि रंगों का त्योहर होली और भगवान श्री कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले जन्माष्टमी शामिल है.

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था

इस राज्य की अर्थव्यवस्था प्रमुख रूप से कृषि पर निर्भर है. परंतु पहाड़ी राज्य होने के कारण यहां कृषि योग्य भूमि की कमी है. कामकाजी जनसंख्या का 4/5 से भी अधिक भाग कृषि कार्य में सलंगन है. इस राज्य में संपूर्ण क्षेत्रफल के 12% भाग में कृषि कार्य किया जाता है. गहरी ढलान के ऊपर सीढ़ीनुमा खेत बनाने पड़ते हैं. और सीढ़ीनुमा खेती की कुछ सीमाएं हैं. सिंचाई की व्यवस्था करना एक कठिन कार्य है. किसान इस बात की सावधानी रखते हैं. कि निचले स्तर का सिंचाई के लिए सिंचाई का पानी ऊपरी स्तर पर रहे परिणाम स्वरूप कृषि योग्य भूमि का लगभग 87% एक बार से अधिक किया जाता है.

दलहन तिलहन और सब्जियां आम फसलें हैं. अनाज में चावल सबसे प्रिय पसंद है. जिसके बाद गेहूं का स्थान आता है. विभिन्न क़िस्म का मोटा अनाज शुष्क अनुवाद ढलानों पर उगाया जाता है. राज्य के दक्षिण भाग में स्थित तराई के इलाके में हल्की ढलानों पर ट्रैक्टर का उपयोग किया जा सकता है. उत्तराखंड में गन्ना बहुत ताय में उगाया जाता है. राज्य में औद्योगीकरण के लिए महत्वपूर्ण खनिज और ऊर्जा संसाधनों की कमी है. खनिज के नाम पर केवल सिलिका और चूना पत्थर ही उल्लेखनीय मात्रा में मिलते हैं. यहां जिप्सम, मेघना साइट, फस्फोरिट, बॉक्साइट के छोटे भंडार हैं.

History and Tourist Places of Uttarakhand

उत्तराखंड पहाड़ी राज्य की बारहमासी नदियां जल विद्युत का महत्वपूर्ण स्रोत है. लेकिन इस ऊर्जा स्रोत की अपार संभावनाओं को अभी कुछ कम आंका गया है. झरनों का उपयोग करने वाले छोटे विद्युत केंद्रों के अलावा टिहरी बांध भागीरथी नदी पर निर्माणाधीन जल शक्ति को काम में लाने वाली सबसे बड़ी परिजनों में शामिल है. इस उत्तराखंड में वन क्षेत्र को भी आर्थिक संसाधन माना जाता है.

जल शक्ति और वन संसाधनों के दोहन के उपन्यास के प्रणव को विरोध का सामना करना पड़ा है. वनों द्वारा निर्माण व इंजन की लकड़ी और प्लाईवुड कागज में माचिस जैसे अनेक औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चा माल प्राप्त होता है. प्राकृतिक रूप से आकार पाई लकड़ियों से बनी हस्तशिल्प कृतियां राज्य में व्यापक तौर पर उपलब्ध है. राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे. वन लगाने के कार्यक्रमों के परिणाम स्वरुप कुछ हद तक उत्पाद बनने से अन्य उत्पादों के औद्योगिक उपकरण को प्रमोशन मिला है.

उत्तराखंड में पशुपालन

पशुपालन कार्य को इस राज्य में काफी महत्व दिया गया है. दक्षिण के तराई क्षेत्र को पशुपालन का केंद्र माना जा सकता है. क्योंकि डेयरी उद्योग में सहायक सर्वाधिक पशु ही मिलते हैं. वैसे तो यहां के सभी गांव में पशु पाए जाते हैं. परंतु पहाड़ों में बकरी और भेड़ पालन की सर्वाधिक पालन ही सर्वाधिक होता है. मौसम के अनुसार फलने फूलने वाले घास के मैदानों की तलाश ऋतु प्रवास का कारण बनती है. यहां गढ़वाल के गद्दीयो जैसे कुछ विशेष समुदाय हैं. जो ऋतु प्रवास के लिए जाने जाते हैं. पशुपालन से इनके मालिकों को अतिरिक्त आय होती है. और कारीगरों को कारीगरों को अतिरिक्त का मिलता है. राज्य भर में ऊनी वस्त्रों और सावधानी से बनाई गई चमड़े की वस्तुओं का उत्पादन होता है.

यहां पर उद्योगों का विकास नाममात्र का ही है. कुछ उद्योग इकाइयों देहरादून के पास स्थित हैं. चुना पत्थर की खदानों के प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी के परिणाम स्वरुप इलाके की कई खदानें बंद होने की कगार पर हैं. ऋषिकेश में दवाइयों की एक बड़ी फैक्ट्री है. दक्षिणी जिलों में चीनी की कई मिले हैं, उत्तराखंड में बिजली और कोयले के उत्पादन का कोई मजबूत आधार नहीं है. इसलिए नेशनल पावर ग्रिड इसकी मांग पूरी करती है. जलीय विद्युत परियोजना पूरी हो जाने पर उत्तराखंड की विधि उत्पादन की स्थिति में व्यापक सुधार होने की संभावना है.

परिवहन

भौगोलिक संरचना के कारण उत्तराखंड में रेल मार्गों का अधिक विकास नहीं हो सका. वर्तमान में राज्य के मैदानी क्षेत्रों तक की रेल मार्ग सीमित है. अधिकतर यातायात सड़क मार्ग द्वारा संचालित होता है. यातायात के साधन बस, ट्रक, जीप व अन्य छोटे वाहन हैं. राज्य में लगभग 25000 किलोमीटर लंबी सड़कें पक्की लंबी सड़के हैं. किसी भी क्षेत्र के विकास में रेल यातायात का महत्वपूर्ण योगदान होता है. रेल मार्ग द्वारा भारी समान अधिक मात्रा में आसानी से भेजा जा सकता है. भारतीय रेल हमारी सामाजिक व सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है. रेल मार्ग दो प्रकार के होते हैं छोटी व बड़ी लाइन. पर्वतीय क्षेत्रों में रेलमार्ग ना होने के कारण राज्य के दक्षिणी भाग में रेल मार्गों के अंतिम पड़ा है देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, काठगोदाम।

यातायात के छेत्र में वायु मार्ग का महत्व बढ़ गया है. अधिक दूरी को कम समय में पूर्ण करने की दृष्टि से यह साधन बहुत बहुत बड़ा महत्वपूर्ण है. परंतु हवाई अड्डे के लिए बड़े क्षेत्र की आवश्यकता होने के कारण राज्य में हवाई अड्डों की स्थापना दिवस की वर्तमान में राज्य में 4 हवाई पट्टियां हैं. गोचर बद्रीनाथ, फुलबाग, पंतनगर, जोली ग्रांट, देहरादून है.

उत्तराखंड में घूमने लायक जगह कौन कौन सी है?

  • जोगेश्वर- इसे प्राचीन मंदिर के रूप में जाना जाता है.
  • चौखूंटी- इसे खाद शोध केंद्र हिमालय दर्शन व बाग बगीची के लिए जाना जाता है.
  • काठगोदाम- इसे मंदिर, मुख्य हिंदू तीर्थ स्थल आदि के रूप में जाना जाता है.
  • गोविंदघाट- इसे हेमकुंड का प्रवेश द्वार फूलों की घाटी आदि के लिए जाना जाता है.
  • हरिद्वार- से गंगा घाट आश्रम सात पवित्र हिंदू शहरों में से एक मंदिर आदि के लिए जाना जाता है.
  • हेमकुंड- इसे मुकेश सिख तीर्थ स्थल झील मंदिर आदि के लिए जाना जाता है.
  • जोशीमठ- इसे आदिवासी हिंदू तीर्थ स्थल मंदिर आदि के लिए जाना जाता है.
  • केदारनाथ- केदारनाथ के मंदिर मुख्य हिंदू तीर्थ स्थल आदि के लिए जाना जाता है.
  • गंगोत्री- इसे हिंदू तीर्थ स्थल, मंदिर, पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल आदि के रूप में जाना जाता है.
  • पिंडारी- इसे हिमालय के प्राकृतिक स्थल और फूलों के लिए जाना जाता है.
  • यमुनोत्री- इसे गर्म स्त्रोत, मंदिर, हिंदू तीर्थ स्थल, पवित्र यमुना नदी का उद्गम स्थल के लिए जाना जाता है.
  • फूलों की घाटी- इसे प्राकृतिक सौंदर्य आदि के लिए जाना जाता है.
  • उत्तरकाशी- इसे पर्वतारोहण संस्थान पहाड़ स्थल मंदिर आदि के लिए जाना जाता है.
  • श्रीनगर- इसे मंदिर खरीदारी के लिए खरीदारी की जगह के लिए जाना जाता है.
  • ऋषिकेश- इसे आश्रम, मंदिर, हिंदू तीर्थ स्थल आदि के लिए जाना जाता है.
  • पिथौरागढ़- इसे पहाड़ी स्थल के रूप में जाना जाता है.
  • नंदप्रयाग- इसे हिंदू तीर्थ स्थल मंदिर के रूप में जाना जाता है.
  • करणप्रयाग- इसे मंदिर, हिंदू तीर्थ स्थल आदि के लिए जाना जाता है.
  • कांवेट- इसे राष्ट्रीय उद्यान के रूप में जाना जाता है.
  • कसोनी- इसे भारत का स्विट्जरलैंड बर्फीली चोटियां आश्रम आदि के रूप में जाना जाता है.
  • पिंडारी- इसे हिमालय सौंदर्य तथा फूलों के लिए जाना जाता है.
  • देहरादून- इसे मसूरी जाने के लिए प्रवेश द्वार और राज्य की राजधानी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है.
  • पनुवानौला- इसे मंदिर के रूप में जाना जाता है.
  • मसूरी- इसे बाग बगीचे मछली पकड़ना मुख्य पहाड़ी मनोरंजन ट्रैकिंग आदि के लिए जाना जाता है.
  • चंपावत- इसे कुमाऊ की पुरानी राजधानी, प्राची निर्माण कला आदि के लिए जाना जाता है.
  • देवप्रयाग- इसे मंदिर, हिंदू तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है.
  • चमोली- इसे पहाड़ी स्थल के रूप में जाना जाता है.
  • नरेंद्र नगर- इसे पहाड़ी स्थल के रूप में जाना जाता है.
  • बद्रीनाथ- इसे गर्म स्रोत, मुख्य हिंदू तीर्थ स्थल मंदिर आदि के लिए जाना जाता है.
  • लैंसडाउन- इसे पहाड़ी स्थल के रूप में जाना जाता है.
  • चकराता- इसे स्थल के रूप में जाना जाता है.
  • पंतनगर- कृषि विश्वविद्यालय के लिए जाना जाता है.
  • रानीखेत- इसे भी पहाड़ी स्थल के रूप में जाना जाता है.
  • अल्मोड़ा- इसे मंदिर, आश्रम, पहाड़ी स्थल, ट्रैकिंग बर्फ देखने का शुरुआती स्थल आदि के लिए जाना जाता है.

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संत तिरुवल्लुवर की जीवनीसेवा मूर्ति ठक्कर बापा की जीवनी
स्वामी रामतीर्थ जी की जीवनीसंत माधवाचार्य जी की जीवनी
संत वल्लभाचार्य जी की जीवनीमत्स्येंद्रनाथ जी की जीवनी
राजर्षि अंबरीश की जीवनीदिव्यदृष्टा संजय की जीवनी
ठाकुर बिल्वमंगल की जीवनीगुरु तेग बहादुर की जीवनी
सप्तऋषियों की जीवनीमलूकदास जी की जीवनी
निम्बार्काचार्य जी की जीवनीसंत शेख सादी की जीवनी
भक्त प्रह्लाद की जीवनीमहारथी कर्ण की जीवनी
भक्त बालक ध्रुव की जीवनीजिज्ञासु नचिकेता की जीवनी
महारथी कर्ण की जीवनीगुरु भक्त अरुणी की जीवनी
भक्त उपमन्यु की जीवनीकृष्ण सखा उद्धव की जीवनी
महावीर स्वामी की जीवनीओशो की जीवनी
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1857 ईस्वी क्रांति और उसके महान वीरों की जीवनी और रोचक जानकारी

1857 ईस्वी क्रांति के महान वीरों की गाथा1857 की क्रांति में महान रानियों का योगदान
अजीजन बेगम की जीवनीअकबर खान की जीवनी
अज़ीमुल्लाह खान की जीवनीपृथ्वीराज चौहान III की जीवनी
आनंद सिंह जी की जीवनीअवन्ति बाई लोधी की जीवनी
अमरचंद बांठिया जी की जीवनीस्वामी दयानंद सरस्वती जी की जीवनी
बंसुरिया बाबा की जीवनीतात्या टोपे की जीवनी
मंगल पांडे की जीवनीमहारानी तपस्विनी की जीवनी
बेगम हजरत महल की जीवनीगोविंद गिरि की जीवनी
भास्कर राव बाबासाहेब नरगुंडकर कौन थेकुमारी मैना की जीवनी
महारानी जिंदा कौर की जीवनीवीर सुरेंद्र साय की जीवनी
झलकारी बाई की जीवनीवृंदावन तिवारी की जीवनी
तिलका मांझी की जीवनीसूजा कंवर राजपुरोहित की जीवनी
पीर अली की जीवनीबाबू कुंवर सिंह की जीवनी
ईश्वर कुमारी की जीवनीठाकुर कुशल सिंह की जीवनी
उदमी राम की जीवनीचौहान रानी की जीवनी
जगत सेठ रामजीदास गुड़ वाला की जीवनीजगजोत सिंह की जीवनी
ज़ीनत महल की जीवनीजैतपुर रानी की जीवनी
जोधारा सिंह जी की जीवनीटंट्या भील की जीवनी
ठाकुर रणमत सिंह की जीवनीनरपति सिंह जी की जीवनी
दूदू मियां की जीवनीनाहर सिंह जी की जीवनी
मौलवी अहमदुल्लाह फैजाबादी की जीवनीखान बहादुर खान की जीवनी
गोंड राजा शंकर शाह की जीवनीरंगो बापूजी गुप्ते की जीवनी
बरजोर सिंह की जीवनीराजा बलभद्र सिंह की जीवनी
रानी तेजबाई की जीवनीवीर नारायण सिंह जी की जीवनी
वारिस अली की जीवनीवलीदाद खान की जीवनी
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की जीवनीनाना साहब पेशवा की जीवनी
राव तुलाराम की जीवनीबाबू अमर सिंह जी की जीवनी
रिचर्ड विलियम्स की जीवनीबहादुर शाह ज़फ़री की जीवनी
राव रामबख्श सिंह की जीवनीभागीरथ सिलावट की जीवनी
महाराणा बख्तावर सिंह की जीवनीअहमदुल्लाह की जीवनी
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भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल

जम्मू कश्मीर का इतिहास और पर्यटन स्थलहिमाचल प्रदेश का इतिहास और पर्यटन स्थल
पंजाब का इतिहास और पर्यटन स्थलहरियाणा का इतिहास और पर्यटन स्थल
उत्तराखंड का इतिहास और पर्यटन स्थलपश्चिम बंगाल का इतिहास और पर्यटन स्थल
झारखंड का इतिहास और पर्यटन स्थलबिहार का इतिहास और पर्यटन स्थल
उत्तर प्रदेश का इतिहास और पर्यटन स्थलराजस्थान का इतिहास और पर्यटन स्थल
मध्य प्रदेश का इतिहास और पर्यटन स्थलछत्तीसगढ़ का इतिहास और पर्यटन स्थल
उड़ीसा का इतिहास और पर्यटन स्थलगुजरात का इतिहास और पर्यटन स्थल
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भारत के प्रमुख युद्ध

हल्दीघाटी का युद्धहल्दीघाटी का युद्ध 1576 ईचित्तौड़गढ़ किला
विश्व की प्राचीन सभ्यताएंझेलम का युद्धकलिंग युद्ध का इतिहास
1845 ई. में सिखों और अंग्रेजों का युद्धभारत चीन युद्ध 1962कश्मीर का इतिहास और युद्ध 1947-1948
सोमनाथ का युद्धतराइन का प्रथम युद्धतराइन का दूसरा युद्ध
पानीपत का प्रथम युद्धपानीपत की दूसरी लड़ाईपानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 ई
खानवा की लड़ाई 1527नादिरशाह का युद्ध 1739 ईसवीप्लासी का युद्ध 1757 ई
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हल्दीघाटी का युद्धहल्दीघाटी का युद्ध 1576 ईचित्तौड़गढ़ किला
विश्व की प्राचीन सभ्यताएंझेलम का युद्धकलिंग युद्ध का इतिहास
1845 ई. में सिखों और अंग्रेजों का युद्धभारत चीन युद्ध 1962कश्मीर का इतिहास और युद्ध 1947-1948
सोमनाथ का युद्धतराइन का प्रथम युद्धतराइन का दूसरा युद्ध
पानीपत का प्रथम युद्धपानीपत की दूसरी लड़ाईपानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 ई
खानवा की लड़ाई 1527नादिरशाह का युद्ध 1739 ईसवीप्लासी का युद्ध 1757 ई

Youtube Videos Links

आदिगुरु शंकराचार्य की जीवनीhttps://youtu.be/ChQNNnW5BpI
महादानी राजा बलि की जीवनीhttps://youtu.be/Xar_Ij4n2Bs
राजा हरिश्चंद्र की जीवनीhttps://youtu.be/VUfkrLWVnRY
संत झूलेलाल की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=oFiudeSc7vw&t=4s
महर्षि वाल्मीकि की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=PRg2D0b7Ryg&t=206s
संत ज्ञानेश्वर जी की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=-zo8M3i3Yys&t=38s
गुरु गोबिंद सिंह की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=amNaYHZm_TU&t=11s
भक्त पीपा जी की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=5MEJPD1gIJw
गुरुभक्त एकलव्य की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=jP5bUP6c2kI&t=232s
कृष्णसखा सुदामा की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=Y2hAmKzRKt4&t=217s
मीराबाई की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=d6Qe3dGN27M&t=3s
गौतम बुद्ध की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=ookD7xnURfw&t=4s
गुरु नानक जी की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=mHui7KiZtRg&t=21s
श्री कृष्ण की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=9bSOn2TiAEg&t=1s
भगवान श्री राम की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=aEaSpTMazEU&t=52s
मलूकदास जी की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=ALYqc0ByQ8g
श्री जलाराम बापा की जीवनीhttps://www.youtube.com/watch?v=s2xbAViUlfI&t=6s
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FAQs

Q- उत्तराखंड की स्थापना कब हुई?.

Ans- उत्तराखंड की स्थापना 9 नवंबर 2000 में किया गया था.

भारत की संस्कृति

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