Biography of Bhishma Pitamah- दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह की जीवनी (Biography of Bhishma Pitamah) और उनकी रोचक जानकारी. दोस्तों आप यहाँ जानेगे भीष्म पितामह कौन थे?. भीष्म पितामह किसके पुत्र थे, और इन्होने भीष्म प्रतिज्ञा क्यों ली थी. भीष्म पितामह ने कितने दिन बाणों की शैया पर बिताये?. साथ ही दोस्तों जानेगे, भीष्म पितामह को कौन-कौन से वरदान प्राप्र्त थे. उन्होंने परशुराम से युद्ध क्यों लड़ा?. तो दोस्तों चलते है और जानते है भीष्म पितामह की अदुभुत और आश्चर्यजनक जानकारी.
भीष्म पितामह कौन थे?
दोस्तों भीष्म हस्तिनापुर के राजा शांतनु के पुत्र थे, माता भागीरथी गंगाजी से उनका जन्म हुआ था. वे द्यो नामक नवम वस्तु के अवतार माने जाते हैं. उनका बचपन का नाम देवव्रत था. दोस्तों भीष्म पितामह अपने पिता की इच्छा पूर्ण करने के लिए आजीवन अविवाहित रहने की दृढ़ प्रतिज्ञा ली थी. इस दृढ़ भीषण प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ा था. भीष्म पितामह को अपनी इच्छा से मरने का वरदान प्राप्त था, उनकी इच्छा के बगैर उनको कोई भी नहीं मार सकता था.
भीष्म पितामह अपनी दृढ़ प्रतिज्ञ शक्ति, साहस, पौरुष, वचनपालन, विद्वता आदि गुणों से सम्पूर्ण संसार में माने जाते हैं. इतिहास ने भीष्म को इन श्रेष्ठ चारित्रिक गुणों के होते हुए भी क्षमा नहीं किया. क्योंकि उन्होंने भरी सभा में एकवस्त्रा द्रौपदी के चीरहरण को नहीं रोका. यद्यपि भीष्म की यह प्रतिज्ञा थी, कि जिसका अन्न खाओ, उसके प्रति अपना कर्तव्यपालन पूरी निष्ठा से करो, जो कि भीष्म ने किया. इसी कारण वे अपवाद का विषय बने, किन्तु मरते दम तक अपने वचनपालन के लिए कौरवों का साथ दिया था. इतना अवश्य कहा जा सकता है कि भीष्मजी का चरित्र भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अद्वितीय ही था. उनके विलक्षण त्याग, ज्ञान की गौरवगाथा इतिहास में अमर रहेगी.
Summary
नाम | भीष्म पितामह |
उपनाम | देवव्रत |
जन्म स्थान | हस्तिनापुर, मेरठ |
जन्म तारीख | माघ कृष्णपक्ष की नवमी |
वंश | कौरव |
माता का नाम | भागीरथी गंगाजी |
पिता का नाम | राजा शांतनु |
पत्नी का नाम | शादी नहीं की |
प्रख्यात | दृढ़ भीषण प्रतिज्ञा के कारण |
पेशा | शासक संरक्षक |
बेटा और बेटी का नाम | कोई नहीं |
गुरु/शिक्षक | भगवान परशुराम |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | हस्तिनापुर, मेरठ, उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू सनातन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु स्थान | कुरुक्षेत्र, हरयाणा |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Bhishma Pitamah (भीष्म पितामह की जीवनी) |
देवव्रत (भीष्म पितामह) को कौन सा वरदान प्राप्त था?
स्त्री-सुख एवं राज्य-सुख का त्याग कर देने वाले भीष्म को उनके पिता ने यह वरदान दिया. कि तुम्हारी इच्छा के बिना मृत्यु तुम्हें कभी नहीं मार पायेगी. महाभारत के युद्ध में भीष्म की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका रही. उनकी प्रतिज्ञा के कारण आज भी लोग दृढ़ प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से जानते है.
भीष्म बाल ब्रह्माचारी, अत्यन्न तेजस्वी, शस्त्र-शास्त्र में निपुण, अनुभवी, महान् ज्ञानी, वीर तथा दृढ़ निश्चयी महापुराष थे. उनमें शौर्य त्याग, तितिक्षा, क्षमा, दया, शम, दम, सत्य, अहिंसा, सन्तोष, शान्ति, बल तेज, न्यायप्रियता, नम्रता, उदारता, लोकप्रियता, स्पष्टवादिता, साहस, ब्रह्मचर्य विरति, ज्ञान-विज्ञान, मातृ-पितृभक्ति, गुरुसेवा आदि सभी सद्गुण थे. वे भगवान् कृष्ण के रूप-स्वरूप, तत्त्व से पूर्णत: परिचित, परमज्ञानी व्यक्ति थे. बाल ब्रह्मचारी भीष्म में क्षत्रियोचित सभी गुण विद्यमान थे.
भीष्म पितामह ने सदैव अविवाहित रहेंगे की भीष्म प्रतिज्ञा क्यों ली थी?
देवव्रत (भीष्म) की सौतेली माँ सत्यवती को डर सत्ता रहा था, की बड़े होने पर वे हस्तिनापुर के राजा बनेंगे. इस लिए देवव्रत (भीष्म पितामह) ने अपनी सौतेली माता सत्यवती को वचनबद्ध दिया था. कि वे आजीवन अविवाहित रहेंगे, और कभी भी हस्तिनापुर का नरेश नहीं बनेंगे अर्थात सिंहासन नहीं संभालेंगे. देवव्रत को भीष्म नाम उनके पिताजी द्वारा दिया गया था.
देवव्रत ने अपने पिता को हस्तिनापुर के शासन के प्रति हमेशा ईमानदार और उसकी रक्षा और सेवा का वचन दिया था. देवव्रत की अपनी इसी प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ा. देवव्रत को उनके पिता शांतनु ने छ मृत्यु का वरदान दिया था. अर्थात हस्तिनापुर का सिहासन जब तक एक योग्य राजा के हाथों में नहीं छोड़ देते तब तक वह मृत्यु को प्राप्त नहीं करेंगे.
भीष्म पितामह के गुरु कौन थे! और उनकी परशुरामजी से युद्ध क्यों हुआ?
दोस्तों भीष्म पितामह वीर पुरुष थे, उन्होंने शस्त्र-विद्या परशुरामजी से सीखी थी. परशुरामजी ने एक बार भीष्म पितामह पर काशीराज की कन्या से विवाह करने हेतु जोर डाला. तो भीष्म पितामह ने सत्य की रक्षार्थ बड़ी नम्रता से यह विवाह करने से इनकार कर दिया. परशुरामजी द्वारा डराने व धमकाने पर भीष्म ने कहा: ”मैं भय, दया, धन के लोभ और कामना से अपने छत्रिय धर्म का त्याग नहीं करूंगा. आपने जो क्षत्रियों को 21 बार पराजित किया, उस समय भीष्म पितामह जैसा कोई छत्रिय पैदा नहीं हुआ होगा. नहीं तो युद्ध में मैं आपके घमण्ड को चूर-चूर कर देता.
भीष्म पितामह की यह बात सुनकर परशुराम क्रोधित हो गये. और परशुरामजी भीष्म के मध्य पूरे 23 दिनों तक युद्ध चला. युद्ध में परशुराम भीष्म को परास्त नहीं कर पाये. अन्त में देवर्षि नारद व गंगाजी के समझाने पर परशुराम ने युद्ध छोड़ा. महाभारत के 18 दिनों में भीष्म ने कौरव पक्ष के सेनापति के पद का अकेले दायित्व निर्वहन किया. इसके बाद शेष 8 दिनों में 8 सेनापति बदले गये थे.
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह का क्या योगदान था?
महाभारत के युद्ध आरम्भ के तीसरे दिन भीष्म पितामह ने बड़ा ही प्रचण्ड संग्राम किया. तब भगवती ने कुपित होकर घोड़े की रास हाथ से छोड दी. और सूर्य के समान तेजयुक्त कृष्ण सुदर्शन चक्र लेकर कूद पड़े. भगवान् कृष्ण के प्रलयंकारी रूप को देखकर भीष्म जरा भी भयभीत व अविचलित नहीं हुए.
भीष्म पितामह अपने धनुष की डोरी को बजाते हुए बोले: हे देवाधिदेव, हे चक्रपाणि, हे सबको शरण देने वाले. मैं आपको प्रणाम करता हूं, आप मुझे बलपूर्वक रथ से नीचे गिरा दीजिये, मैं आपके हाथों मारा जाऊंगा. इस लोक व परलोक में मेरा कल्याण होगा, आप स्वयं मुझे मारने दौड़े हैं. इससे मेरा गौरव तीनों लोकों में बढ़ गया है.
दोस्तों उसी समय अर्जुन ने श्रीकृष्ण के चरण पकड़ लिये, और उन्हें पीछे लौटाया. महाभारत के युद्ध के नवें दिन की बात है, भगवान् कृष्ण ने देखा कि भीष्म ने पाण्डव सेना में प्रलय-सा मचा रखा है. भगवान् कृष्ण घोड़े की रासे छोड्कर कोड़ा हाथ में लेकर भीष्म की ओर दौड़े. भगवान् के तेज से पग-पग मानो पृथ्वी फटने लगी.
उसी समय कौरव पक्ष के वीर घबरा उठे और भीष्म ‘मरे-मरे’ कहकर चिल्लाने लगे. हाथी पर झपटते हुए सिंह की भाती अपने भगवान् को अपनी ओर आते देखकर भीष्म तनिक भी विचलित नहीं हुए. और उन्होंने धनुष खींचकर कहा: ”हे देवाधिदेव ! आपको नमस्कार है.
हे यादव श्रेष्ठ आइये, आइये, आरन इस महायुद्ध में मेरा वध करके मुइाए वीरगति दीजिये. हे देवाधिदेव श्रीकृष्ण ! आज आपके हाथों मरने से मेरा लोक में सर्वथा कल्याण हो जायेगा. हे गोविन्द ! युद्ध में आपके इस व्यवहार द्वारा मैं त्रिभुवन में सम्मानित हो गया हूं. हे निष्पाप ! मैं आपका दास हूं, आप मुझ पर जी भरकर प्रहार कीजिये.
भीष्म पितामह की मृत्यु क्यों और कैसे हुई?
जब महाभारत के युद्ध भगवान श्री कृष्ण भीष्म पितामह को मारने दौड़े, तब अर्जुन ने दौड़कर भगवान् के हाथ पकड़ लिये, पर भगवान् रुके नहीं और उन्हें घसीटते हुए आगे बड़े. अन्त में अर्जुन के प्रतिज्ञा की याद दिलाने और सत्य की शपथ खाकर भीष्म को मारने की प्रतिज्ञा करके भगवान् लौटे. महाभारत युद्ध में 10 दिन तक महायुद्ध करने पर जब भीष्म मृत्यु की बात सोच रहे थे. तब आकाश में स्थित ऋषि और वसुओं ने भीष्म से कहा: “हे तात ! तुम जो सोच रहे हो, वही हमें रुचिकर है”.
इसके बाद शिखंडी के सामने बाण न चलाने के कारण बाल ब्रह्मचारी भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से शर-शैथ्या पर गिर पड़े. गिरते समय भीष्म ने सूर्य को दक्षिणायन में देखा. इसीलिए उन्होंने प्राण त्याग नहीं किया. गंगाजी ने महर्षियों को हंस रूप में उनके पास भेजा.
भीष्म पितामह कहा: मैं उत्तरायण सूर्य आने तक जीवित रहूंगा और उपयुक्त समय पर प्राग त्याग का. भीष्म के शरीर में ऐसी दो अंगुल भी जगह नहीं बची थी, जहां-अर्जुन के बाण न बिंधे हों. सिर्फ उनका सिर नीचे लटक रहा था. उन्होंने तकिया मांगा, दुर्योधन बढ़िया कोमल तकिया लाया.
भीष्म ने कहा: ”वीरों के लिए ये तकिए वीर शैय्या के योग्य नहीं हैं. अन्त में अर्जुन से कहा: ”बेटा ! मेरे योग्य तकिया दो. अर्जुन ने तीन बाण उनके मस्तक के नीचे इस प्रकार मारे कि उनका सिर ऊंचा उठ गया और वे बाण भीष्म के तकिए का काम देने लगे.
भारत के प्रमुख युद्ध
इस पर भीष्म पितामह बड़े प्रसन्न हुए और कहा: “हे देवाधिदेव ! क्षात्र धर्म में दृढ़तापूर्वक स्थिर रहने वाले क्षत्रियों को रणभूमि में प्राण त्याग करते समय शर-शैय्या पर इस प्रकार सोना चाहिए. भीष्मजी बाणों से घायल होकर शर-शैय्या पर पड़े थे. यह देखकर बाण निकालने वाले कुशल वैद्य बुलवाये गये.
इस पर भीष्म पितामह ने कहा: “मुझेको तो क्षत्रियों की परमगति मिल चुकी है. अब इन वैद्यों की क्या आवश्यकता है ?” घाव के कारण भीष्म की दाहिनी ओर पृथ्वी में अर्जुन ने पार्जन्यास्त्र मारा. उसी जल को पीकर भीष्मजी तृप्त हो गये. महाभारत का युद्ध सगाप्ते हो जाने पर युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण को लेकर भीखा के पास गये.
भीष्म पितामह ने कितने दिन बाणों की शैया पर बिताये?.
सब बड़े-बड़े ब्रह्मवेत्ता, ऋषि-मुनि वहां उपस्थित थे. श्रीकृष्ण को देखकर भीष्म पितामह ने उन्हें प्रणाम किया. श्रीकृष्ण ने भीष्म से कहा: ”उत्तरायण आने में अभी समय है. इतने में आपने धर्मशास्त्र से जो ज्ञान प्राप्त किया है, उसे सुनाकर युधिष्ठिर का शोक दूर कीजिये.
18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 10 दिन तक लगातार भीष्म पितामह लड़े थे. भीष्म के युद्ध कौशल से व्याकुल पाण्डवों को स्वयं पितामह ने अपनी मृत्यु का उपाय बताया. 58 दिन बाणों की शैया पर बिताये जाने के बाद. भीष्म ने कहा: “घावों से व्याकुल मेरा शरीर प्राण छोड़ देने को व्याकुल हो रहा है. मुझे क्षमा करें, मुझसे बोला नहीं जाता. तब प्रेम से छलकती हुई आंखों से भगवान् गद्गद होकर बोले: ”हे भीष्म ! तुम्हारी मूर्च्छा, ग्लानि, दाह, व्यथा, मोह सब कुछ नष्ट हो जायेंगे. तुम्हारी बुद्धि निश्चयात्मिका हो जायेगी.
तुम्हारा मन नित्य सत्वगुण में स्थिर हो जायेगा. तुम धर्म या जिस किसी विद्या का चिन्तन करोगे, उसी को तुम्हारी बुद्धि बताने लगेगी. श्रीकृष्ण ने कहा: मैं स्वयं उपदेश न करके तुमसे करवाता हूं जिससे मेरे भक्त की कीर्ति व यश बड़े. श्रीकृष्ण की कृपा से भीष्म के शरीर की सारी वेदनाएं नष्ट हो गयीं. अठारवें दिन शर-शैय्या पर रहने के बाद सूर्य के उत्तरायण होने पर भीष्म ने प्राण त्यागने का निश्चय किया.
देवव्रत (भीष्म पितामह) अंतिम समय
जब भीष्म पितामह ने भगवान् कृष्ण से कहा: ”अब मुझे शरीर त्यागने की आज्ञा दीजिये. तब भीष्म पितामह ने योग के द्वारा वायु को रोककर क्रमश: प्राणों को ऊपर चढ़ाना प्रारम्भ किया. प्राणवायु जिस अंग को छोड्कर ऊपर चढ़ती थी. उस अंग के बाण उसी क्षण निकल जाते थे.
क्षण-भर में भीष्म पितामह के शरीर से सब बाण निकल गये थे. अब उनके शरीर पर एक घाव भी न रहा, और प्राण ब्रह्मारन्ध्र को भेदकर ऊपर चले गये. लोगों ने देखा कि ब्रह्मारन्ध्र से निकला हुआ तेज देखते-देखते आकाश में विलीन हो गया.
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FAQs
Ans- भीष्म पितामह की माता जी का नाम गंगा जी था और पिता जी का नाम राजा शांतनु था, जो हस्तिनापुर मेरठ के राजा थे.
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