भारतीय इतिहास में पानीपत का तीसरा युद्ध मराठो एवं अहमद शाह अब्दाली के मध्य हुआ था. यह युद्ध उस समय हुआ था, जब मुगल शासन की जड़े निर्बल होकर सूखने लगी थी. उन दिनों देश में मराठों ने चारों ओर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया था. ऐसा लगने लगा था, कि सारा भारत मराठों के हाथ में आ जाएगा और गुलामी की बेड़ी टूट जाएगी. परंतु पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की पराजय हुई, पराजय के साथ मराठो वर्चस्व भी समाप्त हो गया था. दोस्तों आपके मन में पानीपत के तीसरे युद्ध के बारे में बहुत सवाल होंगे जैसे, पानीपत का युद्ध क्यों हुआ था. पानीपत के तीसरे युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे. और अंत में मराठों ने इस युद्ध में कैसे पराजय झेली थी. तो दोस्तों चलते है, और जानते है. पानीपत के तीसरे युद्ध (Third Battle of Panipat 1761 AD) की रोचक और अद्भुत जानकारी.
अहमद शाह अब्दाली कौन था?
अहमद शाह अब्दाली उर्फ़ दुर्रानी का जन्म सन 1722 ईस्वी में अफगानिस्तान के हेरात नगर में एक अब्दाली जनजाति में हुआ था. दुर्रानी अहमद शाह अब्दाली के पिता का नाम मोहम्मद जमान खान था. जो अब्दाली जनजाति के मुखिया थे. अब्दाली की मां का नाम जरगुन बेगम था. और अहमद शाह अब्दाली की पत्नी का नाम हज़रत बेग़म था. इनके एक पुत्र था जिसका नाम तिमूर शाह दुर्रानी (तैमूरलंग) था. 1747 जब अहमद शाह अब्दाली राजा नहीं बना था, तब वह फारसी सम्राट नादिरशाह के नेतृत्व में एक घुड़सवार सेना के जनरल के रूप में कार्य किया करता था.
नादिर शाह की मृत्यु के बाद 1747 में अहमद शाह अब्दाली को अफगानिस्तान का राजा घोषित किया गया. इसके बाद अहमद शाह अब्दाली ने अफगान कबीलों और सहयोगियों को एकजुट करके पूर्व में मुगल एवं मराठा साम्राज्य पर आक्रमण किया था. और पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों को पराजित कर भारत में अपनी सत्ता स्थापित की थी. 16 अक्टूबर 1772 ईस्वी में अहमद शाह अब्दाली की मृत्यु करर्क रोग से हो गयी थी. अहमद शाह अब्दाली का मकबरा वर्तमान अफगानिस्तान के कंधार में स्थित है.
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पंजाब पर मराठों पेशवाओ का अधिकार कैसे हुआ था?
अहमद शाह अब्दाली अपने पुत्र तैमूरलंग को दिल्ली में ही छोड़ गया था. उन दिनों महाराष्ट्र में पेशवाओ का राज्य था. पेशवा का भाई रघुनाथ राव, गाजीउद्दीन की सहायता करने के लिए दिल्ली गया हुआ था. जब उसे वहां से अवकाश मिला तो उसने पंजाब में भी मराठों का राज्य स्थापित करने का विचार किया. रघुनाथ राव मराठों की सेना लेकर पंजाब जा पहुंचा था.
पंजाब में तैमूरलंग का शासन था. मराठों की सेना पंजाब पहुंची, तो तैमूरलंग पंजाब का शासन छोड़कर भाग गया. बड़ी सरलता के साथ ही पंजाब में भी मराठों का शासन स्थापित हो गया. यद्यपि मराठों का शासन पंजाब में केवल चार पांच दिनों तक की रहा. पर यह बात तो सत्य है कि उन दिनों कटक से लेकर अटक तक और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुंदर तट तक मराठों के नाम की जय बुलती थी. रघुनाथराव पंजाब का शासन एक मराठा सरदार को देकर वापस महाराष्ट्र लौट गया था.
अहमद शाह अब्दाली का पंजाब पर आक्रमण
जब पेशवा रघुनाथराव पंजाब का शासन एक मराठा सरदार को देकर वापस महाराष्ट्र लौट गया था. अहमद शाह अब्दाली को जब यह है समाचार मिला तो. उसने पुनः भारत पर आक्रमण कर दिया. इस खबर को सुनकर मराठों ने अपने आप ही पंजाब का शासन छोड़ दिया. अहमद शाह अब्दाली ने बड़ी शांति के साथ सहारनपुर के पास यमुना नदी को पार किया. पेशवा के कानों में जब यह समाचार पड़ा तो उन्होंने अहमद शाह अब्दाली के युद्ध करने के लिए एक बहुत बड़ी सेना भेजी. पेशवा के चचेरे भाई सदाशिव राव भाऊ के हाथों में सेना की कमान थी. सदाशिव राव वीर तो था, पर अनुभवी नहीं था. उसकी सहायता के लिए पेशवा का पुत्र विश्वास राव भी उसके साथ था. मार्ग में राजपूतों की सेना भी मराठों से जा मिली. भरतपुर का राजा सूरजमल अपने 20000 जाट सैनिकों के साथ आ पहुंचा.
सदाशिव राव भाऊ द्वारा राजा सूरजमल और मल्हराव होल्कर की सलाह को अनसुना करना
इस प्रकार मराठों, जाटों एवं राजपूतों की सेना के मिलने से शक्ति की त्रिवेणी प्रभावित होने लगी. भरतपुर के राजा सूरजमल बड़ा अनुभवी वीर साहसी योद्धा एवं शासक था. उसने सदाशिव राव भाऊ को सलाह दी कि उसका सारा सामान भरतपुर (राजस्थान) के दुर्ग में रख दिया जाए. और मराठा युद्ध प्रथा के अनुसार शत्रु को परेशान किया जाए. दूसरे शब्दों में उसकी सलाह का तात्पर्य यह था, कि अब्दाली से आमने-सामने युद्ध के बजाय छापामार युद्ध किया जाए. परंतु सदाशिव राव भाऊ ने सूरजमल की सलाह पर ध्यान नहीं दिया.
इसका कारण यह था कि सदाशिव राव भाऊ को अपनी शक्ति पर गर्व था. सूरजमल ने सदाशिव राव भाऊ के इस व्यवहार से अपने आप को अपमान का अनुभव समझा. उसने दिल्ली में अपनी सेना अलग कर ली, और उसके बाद अपनी सेना लेकर भरतपुर लोट गया था. मल्हारराव होल्कर ने भी सदाशिवराव को यही सलाह दी. पर उसकी सलाह भी उसने नहीं मानी, उसने कहा तुम जाति के गड़रिये हो राजनीति की बातों को तुम क्या जानो. सूरजमल की भांति मल्हारराव होल्कर ने भी अपमान का अनुभव किया, फलस्वरूप मल्हारराव होल्कर भी अपनी सेना अलग कर ली.
मराठा पेशवा सदाशिव राव भाऊ का दिल्ली पर आक्रमण और विजय
पंजाब पर अधिकार करने के बाद अहमद शाह अब्दाली दिल्ली की और बढ़ा. उस समय उसे रोहिल्ला तथा अवध के नवाब का सहयोग भी प्राप्त था. अहमद शाह अब्दाली ने बरारघाट के बाद दत्ता जी सिंधिया को 1 जनवरी 1760 के दिन पराजित करके उनका वध कर दिया था. फिर मल्हारराव होल्कर को भी 4 मार्च 1760 को बुरी तरह पराजित किया.
जब मराठा सरदार पेशवा को इस पराजय का पता चला. तब उसने मराठा प्रभाव को उन्हें उत्तर की ओर स्थापित करने के लिए अपने विख्यात सेनापति सदाशिव राव भाऊ को तैनात किया. 14 मार्च 1760 को सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में मराठा सेना ने दिल्ली के किले पर अपना अधिकार कर लिया तथा अपनी सेना का शिविर भी वही लगा लिया था. इस प्रकार मराठों ने दिल्ली पर अपनी विजय पताका फेरा दी थी.
अहमद शाह अब्दाली उर्फ़ दुर्रानी की दिल्ली पर मोर्चाबंदी
दूसरी तरफ अहमद शाह अब्दाली का शिविर अनूपशहर (बुलंदशहर उत्तर प्रदेश) में लगा हुआ था. उसने अपनी दो सैन्य टुकड़ी को दिल्ली के शाहदरा के निकट कुंजपुर में तैनात कर रखा था. कुंजपुर में खाद्य सामग्री का पर्याप्त भंडार था. अतः मराठों ने अपनी खाद्य वस्तु की पूर्ति के लिए कुंजपुर पर भी आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में कर लिया. जिससे आपूर्ति समस्या का समाधान भी उन्हें मिल गया था. उसी समय उत्तरी भारत की स्थानीय जनता भी मराठों से नाराज थी, क्योंकि मराठी सेना लूटपाट मचाते थे. आम जनता मराठी शासन के प्रति भी भयभीत थे.
अहमद शाह अब्दाली ने बागपत (उत्तर प्रदेश) के निकट यमुना नदी पार करके सोनीपत (हरियाणा) में अपना सैनिक पड़ाव डाला. जिससे मराठा सेना का दिल्ली से सीधा संपर्क समाप्त हो गया था. क्योंकि उस समय मराठा कुरुक्षेत्र से लौट रही थी. तो रास्ते में उसे तरावड़ी (करनाल) में अहमद शाह अब्दाली के सैन्य शिविर की सूचना मिली. सदाशिव राव भाऊ ने आगे बढ़कर पानीपत के के ऐतिहासिक युद्ध क्षेत्र में अपना सैन्य शिविर लगा दिया. मराठी भी अपनी मोर्चाबंदी में लग गए. अहमद शाह अब्दाली ने भी मराठों की मोर्चाबंदी से 8 मील दूर अपनी मोर्चाबंदी कर ली थी.
Third Battle of Panipat 1761 AD
दोनों पक्ष एक दूसरे की आपूर्ति सेवा ठप करने में लग गए. ताकि युद्ध के निर्णय को अपने पक्ष में किया जा सके. इस नाकेबंदी में अब्दाली को सफलता मिली. मराठों की आपूर्ति व्यवस्था पर अंकुश लगा दिया गया, तथा मराठों की रसद सामग्री समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा. इस दौरान वह अपने गुप्तचरो द्वारा मराठों की गतिविधियों पर भी निगरानी करता रहा. दोनों पक्षों के मध्य छोटी-छोटी मुठभेड हुई, जब कभी कही से भी मराठों की रसद सामग्री आती. तो अब्दाली की सेना उसे रास्ते में ही लूट लेती थी. जिससे मराठा सेना व्याकुल होने लगी.
सिख सरदारों ने भी मराठा सेना को एक दो बार रसद सामग्री भेजी. परंतु अब्दाली ने अपना एक छोटा दस्ता भेज कर, मराठों को खाद्य सामग्री भेजने के लिए मना कर दिया. 16 दिसंबर की एक मुठभेड़ में गोविंद पंत मारा गया. तथा उसका सिर काटकर सदाशिव राव भाऊ के पास भेजा गया. अब निर्णायक संग्राम के अतिरिक्त मराठों के पास कोई उपाय नहीं बचा था. अतः निराश एवं मजबूर मराठा सैनिकों ने निर्णायक युद्ध के लिए 14 जनवरी 1761 ईस्वी को अपने शिविरों से बाहर निकल पड़े.
पानीपत के तीसरे युद्ध 1761 ई में मराठों की सेना कितनी थी?
पानीपत के तीसरे युद्ध 1761 ई (Third Battle of Panipat 1761 AD) में मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में सेना इस प्रकार थी. पैदल सैनिक 15000, घुड़सवार सैनिक 55000, भारी तोपें 200. इसके साथ ही इब्राहिम खां गर्दी के नेतृत्व में भी एक सैन्य टुकड़ी थी. जो फ्रांसीसी सेनापति बुशी द्वारा प्रशिक्षित थी. उसमें निम्न दल थे, पैदल बंदूकधारी 9000, कुशल घोड़े सवार सैनिक 2000, हल्की तोपें 40. मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ ने मध्य भाग की सेना को अपने अधीन रखा था. तथा दाये पक्ष में जसवंत राव शमशेर बहादुर के नेतृत्व में सेना तैनात की. बाय पक्ष में शिवदेव पटेल, राम जी गायकवाड तथा इब्राहिम खां गर्दी के नेतृत्व में सेना लगाई. उसने मुख्य सैन्य दल के सामने सबसे आगे की ओर अपनी भारी तोपों को लगाया. अपनी सेना के चारों ओर खाई खोदकर तथा तोंपो को लगाकर अपनी मोर्चाबंदी.
1761 ई पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमद शाह अब्दाली की सेना कितनी थी?
इसके साथ ही अब्दाली के पास उसके अपने नियंत्रण में कुछ आरक्षित सैनिक इस प्रकार थे. 1200-1200 सैनिक के 24 दस्ते थे. पैदल बंदूकधारी सैनिक 10,000, ऊंट सवार सैनिक 2000 थे. अहमदशाह अब्दाली ने अपनी सेना की सामरिक संरचना अत्यधिक विस्तार से की थी. जिससे मराठा सेना उसके पक्षों की घेराबंदी आसानी से न कर सके. उसकी सेना लगभग 7 मील की लंबाई तथा 2 मील की चौड़ाई में अर्धचंद्राकार कार खड़ी थी. सेना के केंद्रीय भाग का नेतृत्व वजीरे आला शाहबली खां अहमद खां, बरखुद्दार खां तथा अमीर बेग के द्वारा किया जा रहा था. जबकि बाय पक्ष का नेतृत्व नजीबउददौला तथा सुजादोल्ला साहब एवं शाहपसन्द कर रहे थे. मुख्य दल के सामने तथा आगे तोप खाना लगाया गया था. तथा मुख्य सैन्य दल के पीछे आरक्षित सेना के रूप में हजार हजार सैनिकों की तीन टुकड़िया तैनाती थी. सबसे पीछे अहमद शाह अब्दाली का आरक्षित शिविर था.
पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 ईस्वी कैसे शुरू हुई?
14 जनवरी 1761 ईस्वी को प्रातः काल मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ ने अपनी तोपों की गर्जना के साथ पानीपत की तीसरी लड़ाई (Third Battle of Panipat 1761 AD) को प्रारंभ किया. बाय पक्ष का नेतृत्व कर रहे इब्राहिम खां गर्दी ने अपने अधीन दो दलों को अब्दाली के दाये पक्ष को उलझाने रखने के लिए लगा दिया. तथा अन्य सात दलों को लेकर आगे की ओर दुश्मनो के दाएं पक्ष से आ भिड़ा. हमले से उसने अब्दाली के दाएं पक्ष में कहर डहा दिया. परंतु इधर मराठा घोड़े सवार सेना नहीं होने के कारण वह इसका पूरा लाभ नहीं उठा सका. इसके बावजूद उसने 3 घंटे के इस संघर्ष में अब्दाली सेना के लगभग 8000 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. साथ ही उसे अपने 6 दलों को भी खोना पड़ा.
इसी समय अब्दाली के सेनापति बरखुरदार खान ने अपनी घुड़सवार सेना द्वारा आक्रमण करके इब्राहिम खां गर्दी को घायल कर दिया. जिसे अब्दाली की सेना पर बढ़ता दबाव समाप्त हो गया. मराठा सेना का केंद्रीय भाग सदाशिवराव भाउ और शिवदेव पटेल के नेतृत्व में जयघोष के साथ ही अफगान सेना के मध्य भाग पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा. तो मध्य भाग में भी भीषण संघर्ष शुरू हो गया. इस भयंकर लड़ाई में अफगान सेना के लगभग 3000 अब्दाली सैनिक भी मौत के घाट उतार दिए गए. जिससे अफगान सेना में एक बार तो अफरा तफरी का महोहल बन गया था.
Third Battle of Panipat 1761 AD
यह देखकर अब्दाली के सेनापति नजीबुल्लाह ने बंदूकों से फायर करके मराठा घुड़सवार सेना को परेशान ही नहीं किया बल्कि अपनी घुड़सवार सेना शाहपसन्द के नेतृत्व में भेज कर उसे बुरी तरह से कुचल दिया. अहमद शाह अब्दाली ने जब देखा की मराठा सैनिक बुरी तरह थक चुके हैं. तथा भूख एवं प्यास से व्याकुल हो उठे हैं. तो उसने अवसर का लाभ उठाते हुए अपनी सेना के आरक्षित दलों व सेना के द्वारा उन पर तीव्र प्रहार किया कर दिया. जिससे मराठा सेनापति विश्वासराव वीरगति को प्राप्त हो गया. तथा सदाशिव राव की स्थिति डोल गई. उसने अपनी सेना के दाएं पक्ष को बुलाया परंतु दाएं पक्ष का नेतृत्व कर रहे सिंधिया इस आक्रमण को देखकर इतने भयभीत हो गए थे. कि उनकी हिम्मत टूट गई और वह मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए और युद्ध का निर्णय अफ़गानों के पक्ष में सफल नजर आने लगा.
अतः मराठों की इस बड़ी कमजोरी का लाभ उठाते हुए अहमद शाह अब्दाली ने अपनी शेष आरक्षित सेना को भी बुला कर अंतिम आक्रमण का आदेश दिया. जिसके फलस्वरूप युद्ध क्षेत्र में भीषण नरसंहार हुआ. तथा चारों ओर से घिरी मराठा सेना के कुछ सैनिक तो भाग खड़े हुए. तथा शेष को तुरंत ही कत्ल कर दिया गया. अब्दाली की सेना ने भागते हुए मराठा सैनिकों का लगभग 20 मील तक पीछा किया और उन्हें भी पकड़ कर मार डाला गया.
Panipat (पानीपत) की तीसरी लड़ाई से भारत के इतिहास में क्या प्रभाव पड़ा था?
पानीपत के इस ऐतिहासिक युद्ध का परिणाम अफगान सेनापति अहमद शाह अब्दाली के पक्ष में हो गया. पानीपत के युद्ध के साथ-साथ भारतीय इतिहास के भारतीय युग का अंत हो गया था. इतिहास का अध्ययन करने वालों को इसके बाद दूर पश्चिम से आए हुए व्यापारी शासकों की प्रगति मात्र से ही सरोकार रह जाता है.
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FAQs
Ans- अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर सन् 1748 ईस्वी तथा 1767 ई. के बीच सात बार आक्रमण किये थे. सबसे पहला आक्रमण 1748 ई. में पंजाब पर किया, जो असफल रहा, सन 1749 ईस्वी में उसने पंजाब पर दूसरा आक्रमण किया और वहाँ के गर्वनर ‘मुईनुलमुल्क’ को परासत किया. सन 1752 ईस्वी में नियमित रुप से पैसा न मिलने के कारण पंजाब पर उसने तीसरा आक्रमण किया. उसने भारत पर चौथी बार आक्रमण ‘इमादुलमुल्क’ को सज़ा देने के लिए किया था. दोस्तों सन 1753 ई. में मुईनुलमुल्क की मृत्यु हो जाने के बाद इमादुलमुल्क ने ‘अदीना बेग ख़ाँ’ को पंजाब को सूबेदार नियुक्त किया. अहमद शाह अब्दाली ने अपना सबसे बड़ा हमला सन 1757 ईस्वी में जनवरी माह में दिल्ली पर किया, 23 जनवरी, 1757 को वह दिल्ली पहुँचा और दिल्ली शहर क़ब्ज़ा कर लिया.
Ans- अहमद शाह अब्दाली के बेटे का नाम तैमूरलंग था.
Ans- पानीपत में पहली लड़ाई (युद्ध) 21-अप्रैल-1526 ईस्वी में इब्राहिम लोधी और और बाबर के मध्य हुई थी. इस युद्ध में बाबर की जित हुई और मुग़ल सम्राज्य की नीव रखी गयी थी. पानीपत की दूसरी लड़ाई 05 नवम्बर 1556 को हेमू और अकबर के मध्य हुई, इसमें अकबर ने जीत हासिल की थी. पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ की सेना के मध्य हुई, जिसमे अहमद शाह अब्दाली की जीत हुई.