दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है Biography of Adikavi Maharishi Valmiki In Hindi आदिकवि वाल्मीकि जी वो रोचक जानकारी जिसके बारे में शायद ही आज से पहले आपको पता होगी. तो दोस्तों बने रहे हमारे साथ अंत तक महर्षि वाल्मीकि जी की आश्चर्यजनक जानकारी के लिए . दोस्तों आदि’ का मतलब (अर्थ) होता है “पहला” प्रथम (अनंत) और ‘कवि’ का अर्थ होता है ‘काव्य का रचयिता’. वाल्मीकि जी ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य रामायण की रचना की थी, यही कारण है कि महर्षि वाल्मीकि आदिकवि कहलाए. मित्रों आदिकवि वाल्मीकि जी एक डाकू से महात्मा बन जाने की प्रेणादायक कहानी है. आपको बचपन से रत्नाकर के नाम से जाना जाता था.
महर्षि वाल्मीकि जी बचपन से ही चोरी डकैती में लग गए थे, जवान होते होते इनके इलाके से जाने वाले राह-चलता आदमी को लूटना इनका काम था. जंगल में लूट पाट से इनका बहुत खौफ हो गया था. वाल्मीकि को रहीगरो से लूटपाट के बाद उनकी विवशता/लाचारी से कभी ह्रदय विचलित नहीं हुआ और धीरे धीरे इनका आंतक बढ़ता गया. लूट की कमाई से अपने परिवार का पालन – पोषण करने वाले वाल्मीकि जी इसी को अपने जीवन का सत्य समझ बैठे थे.
Biography of Adikavi Maharishi Valmiki (आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जीवनी)
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि को बचपन से रत्नाकर के नाम से पुकारा जाता था. इनके पिता जी का नाम सुमाली/प्रचेता और ब्रम्हा जी का पुत्र कहा जाता है. आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी की माता का नाम चर्षणी देवी था. आपको बचपन में एक भिलानी ने अपहरण कर लिया था, जिसके बाद इनका भरण पोषण पोषण भील जाति के लोगों ने ही किया गया था. जिस कारण उन्होंने भीलों की परंपरा को अपनाया और आजीविका के लिए डाकू बन गए. अपने परिवार के पालन पोषण के लिए वे राहगीरों को लुटते थे, एवम जरुरत होने पर मार भी देते थे. इस प्रकार महर्षि वाल्मीकि जी दिन प्रतिदिन अपने पापो का घड़ा भर रहे थे.
आदिगुरु शंकराचार्य जी की जीवनी
Summary
नाम | आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी |
उपनाम | रत्नाकर |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश कानपुर के निकट बिठूर गांव |
जन्म तारीख | — |
पुस्तक | रामायण संस्कृत में |
वंश | भील |
माता का नाम | चर्षणी देवी |
पिता का नाम | सुमाली/प्रचेता और ब्रम्हा जी का पुत्र कहा जाता है |
पत्नी का नाम | — |
बेटा और बेटी का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | नारद मुनि और विष्णु जी |
भाई | भृगु |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | आदि काल |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Adikavi Maharishi Valmiki In Hindi (आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी की जीवनी) |
महर्षि ऋषि वाल्मीकि कौन थे?
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण की रचना की थी. वे ऋषि प्रचेता के पुत्र थे और आदिवासी भील जाती में इनका पालन पोषण हुआ. पहले डाकू थे और बाद में महान कवि और रामायण के रचियता हुए.
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी की डाकू से संत बनने की कहानी
एक बार देवधि नारद उस क्षेत्र से नारायण नारायण का जाप करते हुए कहा जा रहे थे जहां पर वाल्मीकि का आतंक राज कायम था. दवर्षि नारद को एक सामान्य व्यक्ति की तरह वाल्मीकि ने डराया-धमकाया कि उनके पास जो कुछ भी है, वह चुपचाप वाल्मीकि जी को दे, उस समय नारद जी हंसते हुए बोले-मेरे पास क्या है, जो तू लूट लेगा. प्रभु नाम के सिवा मेरे जीवन की कोई सार्थकता नहीं ये जो तुम लूटकर धन आदि इकट्ठा कर जो पाप कर रहे हो किसलिए?. वाल्मीकि ने उत्तर दिया मेरे फॅमिली के लिए. तब नारदजी ने पूछा- इस पाप में तुम्हारे बेटे-बहू पारिवारिक सदस्यों की कितनी भागीदारी है. वाल्मीकि जी बोले- ” मेरे इस पाप में सबकी बराबरी की हिस्सेदारी है.
तब नारद जी बोले भ्रमित मानव!, तुम अभी अपने घर जाओ और पाप की हिस्सेदारी के बारे में पूछकर आओ. वाल्मीकि ने देवर्षि नारद को एक पेड़ से बांध दिया और घर पर जाकर सभी से पाप की हिस्सेदारी विषयक प्रश्न दोहराया सभी से उन्हें य उत्तर मिला कि सभी उसके धन में तो हिस्सेदारी कर सकते हैं, किन्तु पाप में हिस्सेदारी स्वयं उसके अकेले की ही है. इस सत्य का बोध होते ही, वाल्मीकि जी ने नारद जी से इसकी मुक्ति का उपाय पूछा देवर्षि नारद ने उन रामनाम का जाप मन्त्र दिया. बस फिर क्या था, भूखे प्यासे रहकर रत्नाकर ने राम की बजाय मरा-मरा का जाप करना प्रारम्भ किया क्योंकि उनके कानों को लूट के समय यही शब्द सुनने की आदत थी.
महर्षि वाल्मीकि जी संत और रामायण लिखने की कहानी
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी वर्षों सदी गरमी और वर्षा की परवा किये बिना तपस्या करते रहे. यहां तक कि उनके शरीर पर दीमकों ने अपना घर बना लिया था. धारा उनका शरीर दीमकों की बाबी (बाल्मीक) से ढंक गया तब वहां से गुजर रहे ब्रह्माजी ने तपस्वी के वेश में उस पर कमण्डल से जल छिड़का वाल्मीक अब डाकू से सन्त बन गये थे. तपस्वी का जीवन बिताते – बिताते एक बार वाल्मीकि जी ने भागीरथ गंगा के जल में स्नान करने के बाद एक पेड़ पर क्रौंच पक्षी के जोड़े को प्रेमालाप करते देखा तभी एक शिकारी ने उन पर तीर चला दिया एक साथी के मरते ही दूसरा साथी क्रौच करुण विलाप करने लगा.
महर्षि वाल्मीकि ने इस पीड़ा से व्यक्ति होकर शिकारी को सर्वस्व सत्यानाश हो का श्राप दे डाला. इसके साथ ही उनके मुख से संस्कृत का मां ! निषाद से प्रारम्भ होकर एक श्लोक फूट पड़ा और वहीं से फूट पड़ी काव्य लेखन की अपनी अन्तर्दृष्टि और कल्पना से मर्यादा पुरुषोत्तम राम के सम्पूर्ण जीवन पर आधारित एक ऐसे महाकाव्य की रचना कर डाली. रामायण के नाम से विख्यात इस महाकाव्य को आज भी बड़ी श्रद्धा के घरों में पढ़ा जाता है.
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी के मुख से स्वतः ही श्लोक निकल पड़ा जो इस प्रकार था :
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥
अथार्थ जिस कालदुष्ट ने भी यह घृणित कार्य किया, उसे जीवन में कभी सुख नहीं मिलेगा. उस दुष्ट ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया हैं. इसके बाद महाकवि महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की थी.
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जीवनी से क्या सीख मिलती है?
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी भगवान् राम के परमभक्त होने के साथ – साथ श्रेष्ठ मानवीय गुणों से युक्त सन्त भी हुए थे. दुष्ट से सज्जनता की ओर हृदय परिवर्तन होने के चमत्कार ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी. उत्तरप्रदेश कानपुर के निकट बिठूर गांव में आज भी ऋषि वाल्मीकि की तपोभूमि के चिह्न मिलते हैं. आश्रम की इस पवित्र भूमि में प्रवेश करते ही कहा जाता है कि तत्कालीन समय में हिंसक प्राणी भी अपने मूल स्वभाव को भूलकर प्रेमभाव से रहते थे. इसी पवित्रता की अनुभूति आज भी होती है.” रामचरितमानस ” जैसे श्रेष्ठ , पवित्र रामकथा लेखन की प्रेरणा तुलसीदासजी ने वाल्मीकि रामायण से ही ली थी.
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FAQs
Ans- वाल्मीकि जी का जन्म अश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था, इस दिन को हिंदू पंचांग में वाल्मीकि जयंती कहा जाता है.
Ans- मर्यादा पुरुष अयोध्या के राजा राम पर लिखित पुस्तक रामायण जो संस्कृत में लिखित पहला महाकाव्य के रचियता थे.
Ans- महर्षि वाल्मीकि जी का जन्म भारत के उत्तर प्रदेश के कानपूर में हुआ माना जाता है.
Ans- आदि काल.