संत श्री माधावाचार्य जी आध्यात्मिक चेतना की जागृति लाने वाले ऐसे सन्त थे. जिन्होंने कर्म को मानव जीवन का मूलभूत अंग तथा सिद्धान्त माना था. माधावाचार्य जी का कहना था, कर्म की श्रेष्ठता से मानव पुनर्जन्म के कष्टों से मुक्ति पा सकता है. वे अद्वैतवाद के विरोधी और द्वैतवाद के समर्थक थे. संत माधवाचार्य भारत में भक्ति आन्दोलन के समय के सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिकों में से एक थे. वे पूर्णप्रज्ञ व आनन्दतीर्थ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं. वे तत्ववाद के प्रवर्तक थे जिसे द्वैतवाद के नाम से जाना जाता है. द्वैतवाद, वेदान्त की तीन प्रमुख दर्शनों में एक है. हम यहाँ संत माधवाचार्य जी की जीवनी (Biography of Sant Madhvacharya). और उनसे जुड़ी वो रोचक जानकारी शेयर करेंगे, जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, संत श्री माधवाचार्य की आश्चर्यजनक जानकारी.
माधवाचार्य जी कौन थे? संत माधवाचार्य जी की जीवनी
संत श्री माधवाचार्य जी का जन्म दक्षिण भारत के बेलग्राम (पाजक, उडुपी कर्नाटक) में विक्रमी सवंत 1285 (1238 ईस्वी) को माघ शुक्ल सप्तमी को हुआ था. माधवाचार्य जी को बचपन में वासुदेव के नाम से जाना जाता था. उनके पिता जी का नाम भट्टनारायण तथा माता वेदन्ती देवी थीं. 11 वर्ष की अवस्था में गुर पक्षाचार्यजी से संन्यास की दीक्षा ग्रहण कर वेदान्त का अध्ययन किया था. अद्वैतवाद के विरोधी और द्वैतवाद, अर्थात् आत्मा और परमात्मा के अलग-अलग अस्तित्व पर विश्वास रखने वाले माधवाचार्य वैष्णव थे. उनके द्वारा स्थापित सम्प्रदाय को ब्रह्म सम्प्रदाय कहा जाता है. उनके वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी आज भी पूरे भारत में मिलते हैं.
सन्त माधवाचार्य जी के प्रमुख धार्मिक कार्य
माधवाचार्य जी ने 11 वर्ष की अवस्था में अच्युतप्रेक्ष जी से संन्यास की दीक्षा ग्रहण कर वेदान्त का अध्ययन किया. उनके गुरु ने उन्हें दिग्विजय हेतु जाने के लिए रोकने हेतु गंगा को सामने के सरोवर में प्रकट किया था. तथा उत्तर भारत की यात्रा करते हुए वे बद्रीकाश्रम गये, बदरिकाश्रम उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल के अन्तर्गत एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थल है. जहाँ किसी समय नर-नारायण ऋषियों ने तपस्या की थी. वहां शालिग्राम की तीन मूर्तियां वेदव्यास से प्राप्त कीं थी.
सन्त श्री माधवाचार्य जी ने 8 मन्दिरों का निर्माण करते हुए वैष्णव भक्ति का प्रचार किया। उनका कहना था, भगवान् विष्णु सर्वोच्च तत्त्व हैं. जीव उनके ही अधीन रहकर कार्य करता है. और मोक्ष को प्राप्त कर सकता है. वेद का समस्त तात्पर्य विष्णु जी है. माधवाचार्य ने द्वारिकाधीश की आज्ञानुसार समुद्र से भगवान कृष्ण की मूर्ति निकालकर उडुपी में प्रतिष्ठित की. इस स्थान को परमतीर्थ मानकर अनुयायी यहीं मोक्ष प्राप्ति हेतु आते है. यहीं से संत श्री माधवाचार्य परमधाम की यात्रा को चले गये थे.
श्री माधवाचार्य जी के प्रमुख सामाजिक कार्य और अंतिम समय
सन्त माधवाचार्य जी शंकर मत के अनुयायी अच्युतप्रेक्ष नामक आचार्य जी से इन्होंने विद्या ग्रहण की थी. और गुरु के साथ शास्त्रार्थ कर इन्होंने अपना एक अलग मत बनाया था. जिसे “द्वैत दर्शन” कहते हैं. इनके अनुसार विष्णु भगवान ही परमात्मा हैं. रामानुज की तरह इन्होंने श्री विष्णु के आयुधों, शंख, चक्र, गदा और पद्म के चिन्हों से अपने अंगों को अंलकृत करने की प्रथा का समर्थन किया था. सन्त माधवाचार्य ने भारत के लगभग भाग में भरमण किया था. उन्होंने अनेक मंदिर और मठो की स्थापना की थी. देश के विभिन्न भागों में इन्होंने अपने अनुयायी बनाए.
माधवाचार्य जी ने उडुपी में कृष्ण के मंदिर की स्थापन की थी. जो उनके सारे अनुयायियों के लिये तीर्थस्थान बन गया है. यज्ञों में पशुबलि बंद कराने का सामाजिक सुधार इन्हीं की देन है. दोस्तों सन् 1317 ई में 79 वर्ष की अवस्था में इनका देहावसान हुआ था. नारायण पंडिताचार्य कृत सुमध्वविजय और मणिमंजरी नामक ग्रंथों में मध्वाचार्य की जीवनी ओर कार्यों का पारंपरिक वर्णन मिलता है. परंतु ये ग्रंथ आचार्य के प्रति लेखक के श्रद्धालु होने के कारण अतिरंजना, चमत्कार और अविश्वसनीय घटनाओं से पूर्ण हैं। अत: इनके आधार पर कोई यथातथ्य विवरण मध्वाचार्य के जीवन के संबंध में नहीं उपस्थित किया जा सकता.
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FAQs
Ans- सन्त माधवाचार्य का जन्म पाजक, उडुपी कर्नाटक में हुआ था.