भारत के इतिहास में पानीपत में तीन बार निर्णायक युद्ध हुए. प्रथम बार 1526 में इब्राहिम लोदी और बाबर के मध्य युद्ध. और सन 1556 ईस्वी में अकबर और आदिलशाह के बीच में तथा तृतीय युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच में हुआ था. इनके परिणाम स्वरूप शासन में बड़ा उलटफेर हुआ था. अंत इन युद्धों को निर्णायक देना ठीक है. हम यहाँ पानीपत की दूसरी लड़ाई (Second Battle Of Panipat) की वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, पानीपत की दूसरी लड़ाई (Second Battle Of Panipat) आश्चर्यजनक जानकारी.
पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी को पराजित किया था. प्रथम बार के युद्ध से भारत में अफगानों के शासन का अंत हो गया था. और मुगल शासन की उत्पति और बाबर ने मुगल शासन की नींव डाली थी. उसने इब्राहिम लोदी को पराजित करके दिल्ली और आगरा पर अधिकार तो कर लिया पर वह अपने शासनकाल में मुगल शासन को सुदृढ़ नहीं कर पाया. उसने राणा सांगा और इब्राहिम लोदी को युद्ध में हरा तो दिया पर विरोद्ध की अग्नि को शांत नहीं कर पाया और स्थति अनुकूल नहीं हो सकी.
Second Battle Of Panipat
थोड़ी उम्र में बाबर का स्वर्गवास हो गया, जिस समय उसका मृत्यु हुई मुगल शासन अस्थिरता की स्थिति में था. सन 1530 इसी में बाबर की मृत्यु हुई तो उसमें उसका पुत्र हुमायूं केवल 23 वर्ष का था. उसने शासन की बागडोर अपने हाथों में ली तो सुरि वंस के शासक शेरशाह ने उसे चैन से नहीं रहने दिया. उसने उसे युद्ध में पराजित करके इधर उधर भटकने के लिए बाध्य कर दिया. उसके हाथों में नाममात्र की सत्ता रह गई थी. उसके बेटे अकबर का जन्म अमावस्या के दिन हुआ था. कहा जाता है जब अकबर का जन्म हुआ तो उनके पास अपने सैनिकों को देने के लिए कुछ नहीं था.
पानीपत का दूसरा युद्ध (लड़ाई) कब और किसके मध्य हुई?
दोस्तों पानीपत का दूसरा युद्ध 5 नवम्बर 1556 को उत्तर भारत के हरियाणा राज्य में सूरी वंश के आदिल शाह सूरी शासक की और से हिंदू सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य उपनाम हेमू जो आदिल शाह सूरी का सेनापति और अकबर की सेना के बीच पानीपत के मैदान में लड़ा गया था. मुग़ल शासक अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खान के लिए यह एक निर्णायक युद्ध जीत थी. पानीपत के दूसरे युद्ध के फलस्वरूप दिल्ली पर वर्चस्व के लिए मुगलों और अफगानों के बीच चलने वाला संघर्ष अन्तिम रूप से मुगलों के पक्ष में हो गया, और अगले तीन सौ वर्षों तक भारत पर मुगलों के पास ही रहा.
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पानीपत का द्वितीय युद्ध
अशांति और अभाव की स्थिति में अकबर का पालन पोषण हुआ. हुमायु की की मृत्यु के बाद अकबर ने शासन की बागडोर अपने हाथों में ली तो उसके पास नाम मात्र की सत्ता थी. उसके चारों ओर अदिलशाह का रोब और दबदबा फैला हुआ था. स्थिति बड़ी नाजुक थी, पर अकबर बड़ा समझदार और बुद्धिमान था. उसने बुद्धिमानी से भी उस नाजुक स्थिति का सामना किया. उसने बुद्धिमानी से स्थिति को अनुकूल बनाया. अकबर ने शासन की बागडोर अपने हाथ में लेते ही आदिल शाह ने विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया. वह अकबर को जमने नहीं देना चाहता था. उसके पास बहुत बड़ी सेना थी. हेमचंद्र उसका सेनापति था, उसको लोग हेमू के नाम से पुकारते थे. वह जाति का वेस्य था पर बड़ा बहादुर था. उसने कई युद्ध में विजय प्राप्त करके अपूर्व कृति प्राप्त की थी.
हेमचंद्र विक्रमादित्य उर्फ हेमू कौन था?
हेमू आदिल शाह सूरी का सेनापति था, वह जाति का वेस्य था पर बड़ा बहादुर था. उसने कई युद्ध में विजय प्राप्त करके अपूर्व कृति प्राप्त की थी. शेरशाह सूरी के वंशज मोहम्मद आदिलशाह के मुख्य सेनापति हेमू तथा बाबर के वंशज अकबर व उसके मुख्य संरक्षक बैरम खां के मध्य 05 नवंबर 1556 ईसवी में पानीपत की दूसरा युद्ध लड़ा गया. शेरशाह सूरी वंश का अंतिम शासक आदिलशाह था. जिसने अपना जीवन भी सुख में व्यतीत करना सिखा था. परंतु योग्य सेनापति हेमू ने अपनी अन्य सैन्य प्रतिभा के द्वारा अफगानों को एक बार पुनः उन्नति के शिखर पर पहुंचाने का प्रयास किया. जिसके लिए उसे लगभग 22 लड़ाइयां लड़नी पड़ी पड़ी थी. तथा सभी में सफलता प्राप्त की. हुमायूं की मृत्यु जिस समय हुई थी. उस समय उसका बेटा अकबर राजधानी दिल्ली में नहीं था.
वह बैरम खां के साथ किसी राज्य के कार्य के लिए पंजाब की ओर गया हुआ था. उसे बादशाह की मृत्यु की सूचना कलानौर गुरदासपुर पंजाब में प्राप्त हुई, जिससे अकबर को आघात लगना स्वाभाविक था. परंतु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बैरम खान शोकसभा के साथ भी शहजादा अकबर को विधिपूर्वक दिल्ली का बादशाह नियुक्त कर दिया. इस समय अकबर की आयु मात्र 13 वर्ष की थी जिसके रक्षक का कार्य बैरम खां ने स्वय संभालने का संकल्प लिया.
5 नवम्बर 1556 पानीपत की दूसरी लड़ाई?
जब बैरम खां को यह समाचार मिला कि हेमू अपनी सेना सहित दिल्ली आ पंहुचा है. तो वह इसका सामना करने के लिए पंजाब से आकर दिल्ली के निकट पानीपत हरियाणा के मैदान की ओर आगे आ गया. उसने तोप खाने की अधिकांश टुकड़ी के साथ हरावल को सामना करने के लिए पानीपत भेजा. अकबर की सेना की अग्रिम टुकड़ी का नेतृत्व अली कुली खां शायवानी ने किया. इस प्रारंभ लड़ाई में अकबर की सेना ने हेमू की टुकड़ी को कूटनीतिक चालों एवं साहसिक योजना के द्वारा पराजित कर दिया. जिसके परिणाम स्वरूप हेमू के सैनिक अपनी तोपे को छोड़कर मैदान से भाग खड़े हुए.
जब हेमू को इस बात का पता चला, तो उसने अपनी प्रतिभा एवं धैर्य के साथ अपनी सेना को एकत्रित किया. तथा युद्ध का सामना करने के लिए आगे बढ़ा. किन्तु हेमू की सेना के हाथ से तोप खाना जा चुका था, इस प्रमुख हथियार के हाथ से निकल जाने के कारण ही हेमू को बड़ी हानि उठानी पड़ी. 5 नवंबर 1556 ईस्वी के इस ऐतिहासिक युद्ध का श्री गणेश अफ़ग़ान एवं मुगलों की प्रतिष्ठा का प्रतीक था.
पानीपत के दूसरे युद्ध में किसके सैनिक जायदा थे?
अकबर की सेना की तुलना में हेमू की सैनिक संख्या कई गुना अधिक थी. भारतीय सेना पति हेमू की सेना में कुल सैनिक लगभग एक लाख थे. जिसमें 30,000 राजपूत सैनिक तथा से अफगान पैदल तथा घुड़सवार सैनिक थे. इसी के साथ ही लगभग 1500 हाथी सैनिक भी थे. जिन पर सवार योद्धा धनुधारी तथा बंदूकधारी थे. हाथी भी सुरक्षा कवच धारण किए हुए थे. हेमू ने अपनी सेना का समर तांत्रिक फैलाव इस प्रकार किया था.
दाया भाग शाही खां काकर के नेतृत्व में, बाया भाग रमिया के नेतृत्व में, तथा मध्य भाग स्वय हेमू के नेतृत्व में. मुगल सेनापति अकबर की सेना में कुल 20000 घुड़सवार सैनिक साथ ही अफगानों से जीती हुई तोप थी. अकबर ने अपनी सेना का समर तांत्रिक फैलाव इस प्रकार किया था. दाया भाग सिकंदर खां उजबेक के नेतृत्व में, बाया भाग अब्दुल्ला खां उजबेक के नेतृत्व में, मध्य भाग अली कुली खां के नेतृत्व में. अग्रिम भाग हुसैन कुली खां तथा शाहकुली महराम के नेतृत्व में.
पानीपत के दूसरे युद्ध में हेमू और अफ़ग़ान सूरी वंश के हार के कारण क्या थे?
5 नवंबर 1556 को हेमू ने आक्रमण की पहल की. सर्वप्रथम अपनी हाथी सेना के साथ मुगलों की सेना के दोनों पक्षों पर हमला बोल दिया. जिससे मुंगल सेना एक बार बुरी तरह भयभीत हो गई. और स्थिति को ध्यान में रखते हुए बड़े धैर्य पूर्वक तेजी से हट गई. ताकी हाथियों के हमले से बचाव किया जा सके. अकबर की सेना की गतिशील घोड़े सेना ने सामने से करने के बजाय दोनों पक्षों पर अपनी गतिविधि तेज कर दी. तथा अपने कुशल धनुषधारी घुड़सवार सेना के द्वारा हेमू के सैनिकों को घायल करना शुरू किया. जब हेमू की सेना इधर उधर हटने लगी तो. मुगल सैनिकों ने उनके सामने है तथा पीछे से अपना आक्रमण जारी रखा. मुगल घोड़े सवार धनु धारियों ने अपने के तीरों से हेमू की सेना के हाथियों के पैरों तथा भावों को हताहत करना शुरू कर दिया.
मुगल सेना के मध्य भाग में प्रतिरक्षात्मक पंक्ति बना रखी थी. जिसके कारण हेमू की सेना के ऊपर दूर से ही धनुष बाण का प्रयोग करते रहें. तथा हेमू की सेना के हाथी वह घोड़े सवारी मुगल सेना के मध्य भाग पर आक्रमण नहीं कर पा रहे थे. इस दौरान मुगल सेनापति अली कुली का ने अपने तोप खाने को मध्य भाग से निकालकर हेमू की सेना के मध्य भाग में पीछे से आक्रमण कर दिया. इसी समय हेमू अपनी सेना का निरीक्षण कर रहा था. जब उसे इस आक्रमण की जानकारी मिली तो. उसने अपनी जोरदार सैन्य शक्ति के साथ मुगल सेना के इस आक्रमण को विफल करने का प्रयास किया.
Second Battle Of Panipat
हेमू ने अपने साथियों एवं घुड़सवार सेना द्वारा मुगल सेना के मध्य भाग को कुचलने का जोरदार प्रयास किया. जिसके परिणाम स्वरुप उसे बहुत हानि उठानी पड़ी. क्योंकि मुगलों की तोपों के धमाकों के कारण हाथी भड़क गए. तथा सेना भी अपनी शक्ति का सही प्रदर्शन नहीं कर पा रही थी. इसी समय हेमू की सेना के दाएं भाग का नेतृत्व कर रहे शाही खां काकर तथा सहयोगी भगवानदास मौत का शिकार हो गए. लेकिन हेमू ने लड़ाई को जारी रखा. दुर्भाग्यवंश उसी समय एक तीर तेजी के साथ हेमू की आंख से आ लगा. जिससे वह बुरी तरह घायल हो गया, घाव गहरा होने के कारण वह बेहोश होकर गिर पड़ा. जैसे ही हेमू के गिरने की सूचना उसके सिपाहियों को मिली तो. हेमू की सेना में भगदड़ मच गई, इस प्रकार अकबर को इस पानीपत के दूसरे युद्ध में सफलता प्राप्त हुई.
हिंदू सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) की मृत्यु कैसे हुई?
मुगल सैनिक मूर्छित हेमू को पकड़कर अकबर के समक्ष ले गए. इसी समय क्रूर मुगल सेनापति बैरम खां ने मूर्छित अवस्था में ही हेमू का सिर काटकर अलग कर दिया. हेमू के सिर को काबुल भेजा गया, लेकिन उसके शव को दिल्ली के प्रमुख द्वार पर लटका दिया गया. जिससे अन्य राज्य विरोधी शक्तियों को सिर उठाने का साहस ना हो सके.
इस युद्ध में हेमू की सेना के लगभग 10,000 से अधिक सैनिक मौत के घाट उतार दिए गए. तथा लगभग 1500 हाथियों को पकड़कर मुगलों ने अपने अधिकार में कर लिया. इस प्रकार भारत के भाग्य का निर्माण मुगलों के पक्ष में हो गया. इतिहासकार आरसी मजूमदार ने इस संदर्भ में लिखा है. हेमू की मृत्यु हो जाने से भारत में हिंदू राज्य अथवा पठान राज्य स्थापित होने की संभावना बिल्कुल समाप्त हो गई. और भारत निर्माण कार्य मुगलों के सुपुर्द हो गया.
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FAQs
Ans- पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर 1556 को मुंगल और सूरी वंस के मध्य लड़ी गयी थी. जिसमे मुग़ल सम्राट अकबर की जीत हुई.