महाऋषियों में कुछ ऐसे ऋषि हुए हैं. जो अध्ययन, अध्यापन, योग्यता, दीर्घायु मंत्रकर्ता, ऐश्वर्यवान, दिव्यदृष्टियुक्त, आयु में वृद्धि ऐसे 7 गुणों से युक्त होते हैं. इस लिए उन्हें सप्तऋषि कहा जाता है. सप्तऋषि अपने संकलक से उत्पन्न है. प्रदेश मन्वंतर में विभिन्न-विभिन्न सप्त ऋषि होते हैं. मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, वशिष्ठ यह सातों महर्षि ब्रह्मा जी के द्वारा मन से रचे गए हैं. अत्यंत तेजस्वी और बुद्धिमान है, प्रजापति होने के कारण इन्हें सप्तब्रह्म भी कहा जाता है. हम यहाँ महान सप्त ब्रह्म पुत्रों और ऋषियों की जीवनी (Biography of Saptarishi Marichi Angira Atri Pulastya Pulaha Kratu Vashistha). और रोचक जानकारी शेयर कर रहे है, जिनके बारे में आप अबसे पहले अनजान थे.
सप्तर्षियों का जीवन परिचय
प्रत्येक मन्वंतर जाने पर सप्तऋषि बदल जाते हैं. मन्वंतर की व्यवस्था धर्म और लोकरक्षण के लिए भिन्न-भिन्न सप्तऋषि होते हैं. इसी प्रकार सभी सप्तऋषि महायोगी, सिद्धपुरुष, तेजस्वी तथा ब्रह्मा द्वारा मन से उत्पन्न होते हैं. जिनका महत्व आकाश में सप्तऋषि तारों के रूप में भी चिरंतन है.
Summary
नाम | मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, वशिष्ठ |
उपनाम | मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, वशिष्ठ |
जन्म स्थान | भारत |
जन्म तारीख | सतयुग, त्रेता, द्वापर युग |
वंश | – |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | — |
पत्नी का नाम | — |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | – |
रचना | – |
पेशा | – |
पुत्र और पुत्री का नाम | महर्षि कश्यप, बृहस्पति, दत्तात्रय, चंद्रमा, दुर्वासाजी, रावण, कुंभकरण और विभीषण |
गुरु/शिक्षक | – |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | भारत |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | संस्कृत, हिंदी |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | — |
जीवन काल | — |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Saptarishi Marichi Angira Atri Pulastya Pulaha Kratu Vashistha (सप्तर्षि मारीचि अंगिरा अत्रि पुलस्त्य पुलह क्रतु वशिष्ठ की जीवनी) |
ऋषि मरीचि का जीवनी परिचय
मरीचि भगवान के अंशावतार माने जाते है. इनकी कई पत्नियां हैं, जिसमें प्रधान दक्ष प्रजापति की पुत्री संभूति और धर्म नामक ब्राह्मण कन्या है. इनकी संतति का विस्तार व्यापक है. महर्षि कश्यप इन्हीं के पुत्र हैं. ब्रह्मा जी ने सबसे पहले ब्राह्मण पुराण इन्हीं को दिया. ये सदा सर्वदा सृष्टि की उत्पत्ति और पालन कार्य में लगे रहते हैं. सभी पुराणों वेदों तथा महाभारत में इनका प्रसंग वर्णित है.
अंगिरा ऋषि का जीवन परिचय
अंगिरा ऋषि बड़े तेजस्वी महर्षि है. इनकी कई पत्निया है. बृहस्पति का जन्म इनकी शुभा नामक पत्नी से हुआ था.
अत्रि ऋषि का जन्म परिचय
अत्रि ऋषि दक्षिण दिशा की ओर रहते हैं. अनुसूया इन्हीं की धर्मपत्नी थी. भगवान श्री रामचंद्रजी ने इन्हीं का वनवास के समय उद्धार किया था. अनुसूया जी ने सीता जी को भाती भाती के गहने, कपड़े प्रदान कर सती धर्म का महान उपदेश दिया था. जब अत्री जी को ब्रह्मा जी ने प्रजा विस्तार के लिए आज्ञा दी. तब वे अपनी पत्नी अनुसूया सही ऋज्ञ नामक पर्वत पर जाकर तप करने लगे. इनके घोर तप से इन्हें भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त हुआ. इनके मस्तक की योगाग्नि से तीन लोक जलने लगे. इस पर ब्रह्मा जी, विष्णु जी, महेश जी ने प्रकट होकर इन्हें वर मांगने को कहा. तब उन्होंने तीनों के समान तेजस्वी पुत्र की कामना की. तीनों के अंश से 3 पुत्र हुए, जिनमें भगवान विष्णु के अंश दत्तात्रय, ब्रम्हाजी के अंश से चंद्रमा और शिवजी के अंश से दुर्वासाजी का जन्म हुआ था.
पुलस्त्य ऋषि का जन्म परिचय
ये बड़े ही धर्मपरायण तपस्वी थे, योग विद्या के आचार्य थे. जब ऋषि पराशर जी राक्षसों के विनाश के लिए बड़ा यज्ञ कर रहे थे. तो पराशर जी को इन्होंने यज्ञ रोकने को कहा. यज्ञ रोक दिए जाने पर उन्होंने पराशर जी को समस्त शास्त्रों के ज्ञान का आशीर्वाद दिया. इनकी सन्ध्या, प्रीतिचि, प्रीति, हविर्भू नामक तीन पत्नियां थी. जिनसे कई पुत्र हुए, अगस्त्य, निदाघ, ऋषि इन्ही के पुत्र थे. विश्रवा भी उनके पुत्र थे, जिनसे रावण, कुंभकरण और विभीषण का जन्म हुआ था.
पुलह ऋषि की जीवनी
ये ज्ञानी महर्षि हैं, इन्होंने महर्षि सनन्दन से जो ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त किया। उसे ही ऋषि गौतम को सिखाया था. इनकी क्षमा तथा गति नामक पत्नियों से अनेक संताने हुई थी.
क्रतु महर्षि की जीवनी
क्रतु महर्षि एक ज्ञानी महर्षि थे. इन्होंने क्रिया और सनन्ती से विवाह किया था. इनके साठ हजार बालखिल्य ऋषि थे. ये समस्त ऋषि भगवान सूर्य के रथ के सामने मुँह करके स्तुति करते हुए चलते है.
महर्षि वशिष्ठ की जन्म परिचय
महर्षि वशिष्ठ एक तपस्वी, तेजस्वी, क्षमाशील ऋषि थे. इनकी पत्नी का नाम अरुंधति बड़ी ही साध्वी और पतिव्रता नारी थी. भगवान राम के दर्शन और संगति पाने के लिए इन्होंने सूर्यवंशीयों की पुरोहिती स्वीकार की थी. कहा जाता है, कि एक बार गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच तपस्या बड़ी है या सत्य संगति (सत्संग) इस बात पर ठन गई थी. वशिष्ट बोले सत्य संगति बड़ी है. विश्वामित्र ने कहा तप बढ़ा है. दोनों पंचायत कराने शेष नाग भगवान के पास पहुंचे. शेष भगवान पृथ्वी का भार अपने सिर पर उठाए हुए थे. वह बोले आप दोनों बारी-बारी मेरे सिर पर रखी हुई पृथ्वी को थोड़ी देर उठाइए.
सर्वप्रथम तपस्या पर घमंड करने वाले ऋषि विश्वामित्र ने अपने 10000 बरस की तपस्या का फल देकर पृथ्वी को सिर पर उठाना चाहा. पर उठा ना सके पृथ्वी कांपने लगी थी. अब वशिष्ठ जी की बारी थी, उन्होंने अपने आधे क्षण के सत्संग का फल देकर पृथ्वी को सहज ही उठा लिया था. इस उदाहरण से विश्वामित्र ने सत्संग को ही बड़ा माना. वशिष्ट जी समस्त प्रकार की सिद्धियों से युक्त गृहवासियों के सर्वश्रेष्ठ हैं अतः इनका नाम वशिष्ठ पड़ा. विश्वामित्र ने इनके सौ पुत्रों का वध कर दिया था. तो भी इन्होंने उनके प्रति किसी प्रकार का प्रतिशोध भावनी नहीं रखी. महादेव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें ब्राह्मणों का आधिपत्य प्रदान किया था.
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FAQs
Ans- मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, महर्षि वशिष्ठ प्रमुख सप्तऋषियों में गिने जाते है.