Biography of Mahavir Swami || महावीर स्वामी का जीवन परिचय

By | December 26, 2023
Biography of Mahavir Swami
Biography of Mahavir Swami

जब भारतीय उपमहाद्वीप में धर्म में जाति-पांति तथा कर्मकाण्डों का जब बोलबाला हो रहा था. तब ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म से कुछ ऐसी शाखाएं प्रस्फुटित हुईं. जिन्होंने जाति तथा आडम्बरविहीन मानवतावादी धर्म की नींव रखी. इनमे से जैन धर्म का भी विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है. जैन धर्म के प्रणेता महावीर स्वामी थे, उनको जैन धर्म का 24वां तथा अन्तिम तीर्थकर माना जाता है. हम यहाँ महावीर स्वामी की जीवनी (Biography of Mahavir Swami). महावीर स्वामी की शिक्षाए, उनके विचार एवं कार्य की वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अबसे पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, महान तपस्वी महावीर स्वामी की आश्चर्यजनक जानकारी.

जैन धर्म अपने सिद्धान्तों के आधार पर तो एक आदर्श धर्म है. किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से नियमों तथा तपस्या की कठोरता एवं प्रचारको तथा सम्राटों के संरक्षण व प्रचार के अभाव में यह उत्तरोत्तर पतनोम्मुख हो गया. इसके समकक्ष प्रचलित बौद्ध धर्म अधिक व्यावहारिक व सरल होने के कारण लोकप्रिय हो चला था, जिसके फलस्वरूप जैन धर्म की उपेक्षा-सी हो गयी. महावीर स्वामी की पुत्री प्रियदर्शनी तथा दामाद से मतभेद होने के कारण उन्होंने अलग धर्म संघ बना लिया, जिसके कारण तथा अन्य कारणों से यह धर्म प्रभावित हुआ. किन्तु एकता, संगठन, साहित्य तथा दर्शन की दृष्टि से यह धर्म भारतीय धर्मो में श्रेष्ठ स्थान रखता है. जैन धर्म का कठोरता से पालन करने वाले अनुयायी आज भी भारतवर्ष में विद्यमान हैं.

महावीर स्वामी कौन थे? महावीर स्वामी का जीवन परिचय (Biography of Mahavir Swami)

महान तपस्वी महावीर स्वामी का जन्म वैशाली (बिहार) के समीप कुण्डग्राम में सन 527 ई॰ पू॰ एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था. चैत्र महीने की त्रयोदशी के दिन को वैशाली गणतंत्र के क्षत्रियकुंड के विस्तार में हुआ था. महावीर स्वामी का जन्म इक्षवाकु वंश में हुआ था. स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ था, जो ज्ञात्रिक कुल के राजा तथा कुण्डग्राम के राजा थे. उनकी माता का नाम त्रिशला था, जो लिच्छवी वंश के राजा चेटक की बहिन थीं. राजपरिवार में उत्पन्न होने के कारण उनका प्रारम्भिक जीवन सुख-सुविधाओं से पूर्ण था. उनका विवाह यशोदा नामक कन्या से हुआ था, जिनसे उनकी एक पुत्री हुई थी. माता-पिता की मृत्यु के उपरान्त 30 वर्ष की अवस्था में वर्द्धमान महावीर ने संन्यास ग्रहण करने का विचार किया. गृहत्याग कर उन्होंने 12 वर्ष तक घोर व कठिन तपस्या के पश्चात् ऋजुगालक नदी के तट पर कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति की थी.

Summary

नाममहावीर स्वामी
उपनामसन्मति, वर्धमान, महावीर, जितेन्द्र
जन्म स्थानकुण्डग्राम, वैशाली, बिहार
जन्म तारीखईसा से 599 वर्ष पहले
वंशइक्षवाकु
माता का नामत्रिशला
पिता का नामराजा सिद्धार्थ
पत्नी का नामयशोदा
उत्तराधिकारीप्रियदर्शनी
शिक्षाएंअहिंसा, अनेकान्तवाद, अपरिग्रह
भाई/बहन
प्रसिद्धिजैन धर्म के 24वें तीर्थंकर,
रचनाउपांग ग्रन्थ की रचना
पेशाजैन धर्म के प्रचारक (प्रवर्तक)
पुत्र और पुत्री का नामप्रियदर्शनी
गुरु/शिक्षकपार्श्वनाथ
देशभारत
राज्य क्षेत्रबिहार
धर्मजैन धर्म
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषाप्राकृत भाषा, हिंदी
मृत्यु527 ईसा पूर्व
जीवन काल72 वर्ष
पोस्ट श्रेणीBiography of Mahavir Swami (महावीर स्वामी जी का जीवन परिचय)
Biography of Mahavir Swami

तीर्थंकर महावीर स्वामी के अन्य नाम

तीर्थंकर महावीर ने कठोर तप के माध्यम से अपने जीवन को सफल बनाया था. स्वामी महावीर के दुसरे भी कई सारे नाम है जैसे की सन्मति, महावीर और वर्धमान. उनके हर नाम के रखने के पीछे एक कहानी रही है. जिसकी वजह से उनके ये नाम रखे गए थे. महावीर स्वामी का वर्धमान नाम इस लिए लिए रखा गया था, क्योकि उनके जन्म के पश्यात उनके साम्राज्य में अधिक ज्यादा उन्नति हुई थी. साथ ही साथ राज्य का विकास भी हुआ था. जबकि महावीर नाम उनका बचपन से ही तेज, साहसी और बलशाली होने के कारण रखा गया था. महावीर स्वामी ने अपनी इच्छाओ और सभी इन्द्रियों पर अपनी पकड़ बना ली थी. जिसकी वजह से उनको जितेन्द्र कहा जाता है.

महावीर स्वामी जैन धर्म के कौनसे तीर्थंकर थे?

दोस्तों माना जाता है, महावीर स्वामी जी जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर थे. तीर्थंकर मतलब मानव होते हुए, भगवान का रूप या भगवान का संदेशवाहक. जैन साहित्य के अनुसार जैन धर्म आर्यों के वैदिक धर्म से भी पुराना है. जैन धर्म के विद्वान महात्माओं को ‘तीर्थकर’ कहा जाता था. ऐसा माना जाता है कि महावीर स्वामी से पहले 23 जैन तीर्थंकर कर हुए थे. पहले तीर्थंकर ऋषभदेव और 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे.

महावीर स्वामी ने 42 वर्ष की अवस्था में ज्ञान प्राप्त कर. उन्होंने अपने जीवन का 30 वर्ष का समय धर्म-प्रचार में व्यतीत कर दिया। वाराणसी (काशी), अंग, मगध, मिथिला, कौशल में घूमकर जैन धर्म का प्रचार किया. महावीर ने पावापुरी में जैनधर्म की स्थापना करने के बाद नालन्दा के घोषाल से मुलाकात की, जो एक महत्त्वपूर्ण घटना थी. 599 ई॰ पू॰ में वर्ष की आयु में पावापुरी, जिला नालंदा, बिहार में निर्वाण प्राप्त किया था.

तीर्थंकर महावीर स्वामी के विचार एवं कार्य

महावीर स्वामी का जैन धर्म एक समानतावादी, कर्मवादी धर्म था. जिसमें आचरण की शुद्धता, नियमों के पालन आदि पर विशेष बल दिया गया था. अनीश्वरवादी, कर्मवादी इस धर्म में पांच अणुव्रत-अहिंसा सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य आदि के पालन पर जोर दिया गया है. कैवल्य पद मोक्ष प्राप्त करने के लिए व्रत तथा तपस्या को भी महत्त्व दिया गया है. उनके अनुसार अहिंसा इसका मूलाधार है. सम्यक विचार, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण इस धर्म का सार व तीन नेत्र हैं. अपना कर्तव्य करो, जहां तक हो सके मानवीय ढंग से करो. सभी जैनी धर्म कर्म और मोक्ष में विश्वास रखते हैं. जैन धर्म-दिगम्बर और श्वेताम्बर-दो सम्प्रदायों में अपनी विचारधारा के आधार पर बंट गया.

दिगम्बर साधु दशा को ही वस्त्र मानते हैं. वे वस्त्र धारण नहीं करते हैं. जबकि श्वेताम्बर केवल श्वेत वस्त्र धारण करते हैं. जैनधर्म का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है. जैन धर्म के अनुसार आत्मा जीवों के रूप में, देवताओं के रूप में भी आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसी हुई है. इसी से छुटकारा पाकर कैवल्य पद प्राप्त किया जा सकता है. तथा मोक्ष की प्राप्ति करना इसका ध्येय है. इस धर्म के अनुसार प्रत्येक आत्मा में अनन्त शक्ति होती है. जैन धर्म का मानवमात्र के लिए यह सन्देश है, कि वह रचय की सहायता से पूर्णता को प्राप्त करें.

महावीर स्वामी और कर्मकाण्ड

एक बार महावीर स्वामी ने जश्वीय ग्राम में ब्राहाणों के कर्मकाण्ड का तर्कपूर्ण खण्डन किया था. जिन ग्यारह ब्राह्मण याज्ञिकों को उन्होंने परास्त किया था, वे बाद में जैन धर्म में सम्मिलित हो गये. स्त्री और पुरुष दोनों ही उनके शिष्य थे. महावीर स्वामी ने जिस संघ का गठन किया था, वह भिक्षु-गिक्षुणी, श्रावक-श्राविका चार भागों में बटा हुआ था. भिक्षु पुरुष संन्यासी थे, भिक्षुणियां नारी संन्यासिनी होती थीं. श्रावक गृहस्थ होकर संघ के सदस्य होते थे. इसी तरह नारी श्राविका भी गहरथन होती थी. भिक्षु और भिक्षुणिओं को पांच महाव्रतों का पालन करना होता था. और श्रावक-श्राविकाओं को अणुव्रत का पालन करना होता था. संन्यास ग्रहण करने के सरकार को निष्कमण सरकार कहते थे. यह संस्कार माता-पिता तथा किसी अभिभावक की अनुमति से ही सम्पन्न होता था.

जैन धर्म साहित्य

जैन साहित्य प्राकृत भाषा में रचे गये हैं. इसमें लिखे महावीर स्वामी के मौलिक उपदेश 14 ग्रन्थों में संकलित हैं. जिसे उपांग या मूलसूत्र कहा जाता है. दोस्तों जैन साहित्य को प्रमुखत: 6 भागों में विभक्त किया जा सकता है. 1. द्वादश अंग, 2. द्वादश उपांग, 3. दश प्रकीर्ण, 4. षष्ट छेद सूत्र, 5. चार सूत्र और 6. विविध सूत्र.

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FAQs

Q- महावीर स्वामी की पुत्री का क्या नाम है?

Ans- महावीर स्वामी की पुत्री का नाम प्रियदर्शनी है.

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