Biography of Rantidev Ji | रंतिदेव जी का जीवन परिचय

By | December 18, 2023
Biography of Rantidev Ji
Biography of Rantidev Ji

दोस्तों हमारी भारतभूमि पर ऐसे-ऐसे दानवीरों की भूमि रही है. जिन्होने परोपकार के लिए ही नहीं. अपितु भगवान द्वारा ली गयी परीक्षा के लिए अपना सर्वस्व दान कर दिया था. ऐसे दानवीरों में दानवीर कर्ण, सत्यवीर हरिश्चन्द्र, राजा शिवि, महाबली राजा बलि का नाम आता है. इस कड़ी में राजा रंतिदेव का नाम भी बड़े आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है. हम यहाँ राजा रंतिदेव जी की जीवनी (Biography of Rantidev Ji). और उनसे जुड़ी हुई वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, राजा रंतिदेव जी की अद्भुत और आचर्यजनक जानकारी.

रंतिदेव जी कौन थे? और उनका जीवन परिचय

दोस्तों चंद्रवंशी संस्कृति नामक राजा के दो पुत्र थे. उनमे से गुरु और एक थे रंतिदेव वे बड़े ही प्रतापी और दयालु थे. रंतिदेव जब भी किसी गरीब को कष्ट में देखते थे. अपना सर्वस्व दान कर देते थे. यहां तक कि उन्हें जो कुछ भी मिलता, वे उसे भी दान कर देते थे. एक बार राज्य में अकाल पड़ा था तब रंतिदेव ने अपना सब कुछ दान कर दिया था.

रंतिदेव का जीवन चरित्र हम सभी को इस बात का सन्देश देता है. कि ईश्वर अपने सच्चे भक्तों की बार-बार कठिन परीक्षा लेते हैं. ईश्वर को हमेशा अपने सच्चे भक्त की तलाश होती है. एक साधक एवं भक्त को भी ईश्वर की तलाश होती है. ईश्वर द्वारा ली गयी परीक्षाओं में जो खरा उतरता है, अपना धैर्य एवं संयम नहीं खोता है. वही परीक्षा में सफल होता है, यह भी सच है कि परोपकारी एवं दानी व्यक्ति ही पूरी दुनिया पर अपना राज कायम कर सकता है.

Summary

नामरंतिदेव
उपनामराजा रंतिदेव
जन्म स्थानधरमपुरी, उत्तर प्रदेश
जन्म तारीख
वंशचंद्रवंशी, भरत वंशीय सम्राट
माता का नाम
पिता का नामराजा संस्कृति
पत्नी का नाम
प्रसिद्धिदयालु, परोपकार, दानी
पेशाराजा, सेवक
बेटा और बेटी का नाम
गुरु/शिक्षकविष्णु
देशभारत
राज्य छेत्रउत्तर प्रदेश
धर्महिन्दू वैदिक
राष्ट्रीयताभारतीय
मृत्यु
पोस्ट श्रेणीBiography of Rantidev Ji (रंतीदेव जी की जीवनी)
Biography of Rantidev Ji

राजा रंतिदेव की विष्णु भगवान द्वारा परीक्षा

दोस्तों एक बार ब्रह्मा और समस्त देवताओं ने विष्णु भगवान से पूछा कि उनका सबसे बड़ा भक्त कौन है. विष्णु भगवान ने बताया की राजा रंतिदेव उनका सबसे बड़ा भक्त है. उसने अपना राज्य छोड़कर 48 दिनों तक बिना कुछ खाए पिए मेरा का नाम जपा था. रंतिदेव को विश्वास था कि विष्णु सभी मानव जीवन में है. देवताओं ने रंतिदेव की परीक्षा लेने का निश्चय किया की लंबे उपवास के बाद वह अपना भोजन किसी को देता है अथवा नहीं.

जब रंतिदेव भोजन करने ही वाला था. कि एक ब्राह्मण प्रकट हुआ, और रंतिदेव से भोजन मांगने लगा. रंतिदेव ने उसे अपना आधा भोजन दे दिया. ब्राह्मण उसे आशीर्वाद देता हुआ चला गया. इसी तरह से सभी देवता के रूप बदल बदल कर रंतिदेव के पास गए और उसने भोजन मांगते रहे। रंतिदेव सबको अपना भोजन बांटता रहा. यम उसके सामने एक अस्पृश्य और प्यासे व्यक्ति के रूप में पहुंचे. रंतिदेव ने उसे अपना सारा पानी दे दिया. सभी देवता बहुत प्रसन्न हुए. विष्णु भी रंतिदेव के सामने प्रकट हुए और उन्होंने उसे मोक्ष प्रदान कर दिया, जिससे वह सभी सांसारिक सुख दुखों से मुक्त हो गया.

रंतिदेव का त्याग और दान

रंतिदेव ऐसे दानवीर थे जो पूरे अड़तालीस दिनों तक भूखे-प्यासे रहे और भगवान विष्णु का नाम जपते रहे. भूख-प्यास से पीड़ित शक्तिहीन राजा का शरीर कांपने लगा. उन्हें उनचासवें दिन कहीं से भोजन प्राप्त हुआ. वे भोजन ग्रहण करना ही चाहते थे. कि एक ब्राह्मण अतिथि उनके सामने आ खड़ा हुआ. भूखे पेट अन्नदान करना महादान होता है. रंतिदेव ने श्रद्धापूर्वक उस ब्राह्मण को अन्न दान में दिया.

शेष बचा हुआ अन्न वे अपने परिवार को बांटकर ग्रहण करना चाहते थे. कि एक शूद्र अतिथि याचक उनके द्वार पर आ खड़ा हुआ. राजा ने उसे अन्नदान दिया ही था कि वह बोला: ”मेरे साथ मेरा कुत्ता भी भूखा है. उसके लिए भी अन्न चाहिए राजा रंतिदेव ने बचा हुआ अन्न उस शूद्र अतिथि और उसके कुत्ते को दे दिया. तत्पश्चात् उसे नमस्कार किया. अब उनके पास एक मनुष्य की प्यास बुझे इतना ही जल रखा हुआ था. राजा उस जल को पीना ही चाहते थे कि अकस्मात् एक चाण्डाल आकर रंतिदेव से कहने लगा: ”महाराज ! मैं बहुत अधिक थका हुआ हूं. मुझ अपवित्र नीच को पीने के लिए थोड़ा-सा जल चाहिए.

उस राक्षस की दीन-करुण याचना सुनकर राजा रंतिदेव ने अपने हाथ का पानी भरा प्याला उस चाण्डाल को दिया. और उससे कहा: ”मैं आठों सिद्धियों की कामना नहीं करता. केवल इतना ही चाहता हूं कि मैं ही सब प्राणियों के अन्तःकरण में स्थित होकर उनके दु:खों को दूर करूं, जिससे वे दुःखरहित हो जायें.

भगवान की परीक्षा से रंतिदेव को क्या हुआ?

एक दीन प्राणी को, जिसके प्राण जल बिना निकल रहे थे, मैंने उसे जीवन रूपी जल दिया. इससे तो मेरी भूख-प्यास, कष्ट, दीनता, शोक, विषाद सब कुछ मिट गये. राजा रंतिदेव ने अपने ऐसे उद्‌गार व्यक्त किये ही थे कि भगवान् ब्रह्मा, विष्णु महेश भी महाराज रंतिदेव की परीक्षा लेने हेतु मायावी रूप धरकर ब्राह्यण का वेश धारण कर पृथ्वीलोक पर आ पहुंचे. उन्होंने भी राजा रंतिदेव की परीक्षा ली. इन परीक्षाओं में रंतिदेव के संयम, धैर्य, ईमानदारी, परोपकारिता आदि को देखकर ब्रह्मा, विष्णु महेश अत्यन्त प्रसन्न हुए. उन्होंने अपने ब्राह्मण के वेश का त्याग करके यथार्थ रूप धारण किया. राजा रंतिदेव ने उनके प्रत्यक्ष दर्शन कर, उन्हें श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया.

तीनों देवताओं के कहने पर भी रंतिदेव ने अपने लिए कोई वर नहीं मांगा. क्योंकि उन्होंने तो अपनी तृष्णाओं को जीतकर परम शक्ति की वह दशा प्राप्त कर ली थी. जहां पर कोई इच्छा शेष नहीं रह जाती है. इच्छा होती भी है, तो वह परम शक्ति के दर्शन मात्र की. उसके बाद भगवान विष्णु ने राजा रंतिदेव को मोक्ष प्रदान की और वे इस सांसारिक जीवन के जीवन मरन के बंधन से मुक्त हो गए थे.

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FAQs

Q- रंतीदेव कौन थे?

Ans- रंतिदेव एक दानवीर राजा थे, एक बार उनके राज्य में भीषण अकाल पडा. लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए. रंतिदेव ने राज-कोष और राज्य के अन्न-भण्डार आम जनता के लिए खोल दिए थे.

Q- रंतिदेव के कितने भाई थे?

Ans- रंतिदेव के एक भाई और था जिसका नाम गुरु था.

भारत की संस्कृति

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