मित्रों Biography of Krishnasakha Sudama- मित्रों इस मायावी संसार में मित्रधर्म का निर्वाह करने वाले बहुत हुए है. किन्तु एक अति वैभव शक्ति सम्पन और एक अतयन्त गरीब और निर्धन दोस्ती की मिसाल कृष्ण जी और सुदामा जी के अलावा कही नहीं मिलती है. दोस्तों हमारी भारतीय संस्कृति में कान्हा (कृष्ण जी) और सुदामा जी मित्रता एक निराली घटना है. दोस्तों जब जब मित्रता की बात होती है तो द्वापर युग वाली कृष्ण-सुदामा की मित्रता की मिसाल देना नहीं भूलते. हम यहाँ शेयर करने जा रहे है. सुदामा कौन थे?. और सुदामा जी, कृष्ण जी को कैसे जानते थे. इसके साथ आप जानेगे कृष्ण जी ने सुदामा जी को कैसे गरीबी से बहार निकाला. और किस के कहने पर सुदामा जी कान्हा जी से मिलने मथुरा गए थे. ऐसे तमाम सवालो के जवाब आपको इस पेज पर मिलेंगे, इस लिए पाठको से निवेदन है, इस पेज को अंत तक पढ़े.
सुदामा जी कौन थे?
दोस्तों सुदामा जी एक गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया था. आपका जन्म पोरबंदर गुजरात में हुआ था. जब भगवान कृष्ण जब अवन्ती (मध्यप्रदेश) में महर्षि संदीपन के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने के लिये गये थे. तब गरीब ब्राह्मण सुदामा भी वहीं पढ़ते थे. वहाँ भगवान कृष्ण से गरीब सुदामा की भेंट हुई थी, और बाद में उनमें गहरी मित्रता हो गयी थी. यहाँ आप लोगो ने आश्रम में रहते हुए, समस्त प्रकार की शिक्षाओ का अध्यन किया था. सुदामाजी अपनी ब्राह्मणव्रती के अनुसार खाने-पिने की चीजों में विशेष रुचि रखते थे.
Summary
नाम | सुदामा |
उपनाम | कुचेला (दक्षिण भारत में) |
जन्म स्थान | पोरबंदर गुजरात |
जन्म तारीख | अज्ञात |
वंश | राक्षसराज दम्भ |
माता का नाम | सत्यवती/सुमति |
पिता का नाम | सुधामय/आत्मदेव |
पत्नी का नाम | सुशीला |
पेशा | भिक्षा मांगना |
बेटा और बेटी का नाम | तोष |
गुरु/शिक्षक | गुरु संदीपनि जी |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | गुजरात |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | कृष्ण के प्रिय मित्र सुदामा का वध भगवान शिव ने ही किया था |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Krishnasakha Sudama (कृष्ण जी और सुदामा की मित्रता) |
कृष्ण जी से सुदामा जी की दोस्ती कैसे हुई थी?
दोस्तों जैसा आप जानते ही हो श्रीकृष्ण यदुवंश के राजकीय परिवार से थे और भगवान विष्णु के अवतार थे. लेकिन यह सामाजिक-आर्थिक स्थिति का अंतर उनकी शिक्षा के मध्य नहीं आया. क्यों की सुदामा और कृष्ण ने उज्जयिनी के सान्दीपनि आश्रम सभी विद्यार्थी गुरु की सब प्रकार से सेवा करते थे. दोस्तों कहाँ जाता है एक बार श्रीकृष्ण जी और सुदामा जी गुरु सान्दीपनि मुनि के कहने पर लकड़ी लेने के लिए पास के जंगल में गये थे.
वहां जंगल में बारिश होने लगी और वे एक पेड़ के नीचे रुक गए. सुदामा जी के पास नाश्ते के लिए थोड़ा पोहा था. जग के सर्वज्ञ ज्ञाता श्रीकृष्ण जी ने अफने साथी सुदामा जी से कहा कि वह भूखे हैं. सुदामा जी ने पहले तो कहा कि उनके पास कुछ नहीं है. हालांकि, श्रीकृष्ण की अवस्था को देखते हुए सुदामा जी ने उनके साथ अपना नाश्ता आधा आधा बांटा. तब भगवान कृष्ण ने उन्हें कहा कि पोहा उनका पसंदीदा नाश्ता है. इस तरह श्रीकृष्ण जी और सुदामा जी की दोस्ती आगे बढ़ी.
श्री कृष्ण के बालसखा सुदामा और उनका चरित्र
एक बार गुरुमाता जी ने सुदामा जी को यह कह कर चने दिए थे की तुम और कृष्ण जी बाट कर ये चने खा लेना. पर सुदामा जी ने ऐसा नहीं किया, वे पोटली को छुपाते रहे और स्वयं ही वो चने खा लिए थे. कान्हा को जब इस बात का पता गुरुमाता से पता चला तो वे सुदामा जी की अभिलाषा पर मुस्करा दिए थे.
वे अपने इस बालसखा को कहते भी तो क्या?. क्योकि खेलने-कुदने, जलक्रीड़ा, वनविहार आदि में तो सुदामा जी श्री कृष्ण जी के साथ रहते थे. इधर से शिक्षा पूर्ण होने के बाद, श्री कृष्ण जी तो अपने मामा और चांडाल कंस के अभिमान चूर करने के लिए मथुरा आ गए थे. उधर सुदामा जी शिक्षा पूर्ण करके अपनी जन्म भूमि लोट कर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर गए थे.
मित्रों सुदामा जी की पत्नी अत्यंत पतिव्रता, लज्जाशील और सुशील और सदबुदिशालीन थी. पति की सेवा में ही पूर्ण निष्ठा और अनुराग रखती थी. एक दिन सुदामा जी ने अपनी पत्नी बताया द्वारका धीश श्री कृष्ण उनके साथ आश्रम में पढ़े है और वे उनके बालसखा है. ऐसे सुनकर सुदामा जी की पत्नी ने उनको कृष्ण जी मिल कर अपनी गरीबी दूर करने का आग्रह किया. सुदामा जी पहले तो तैयार नहीं हुए, बाद में पत्नी के बार बार निवेदन पर वो द्वारका जाने को मान गए.
सुदामाजी का धर्म संकट
सुदामा जी की पत्नी ने अपनी गरीबी दूर करने के लिए श्रीकृष्ण से मिलने के हठ को देख कर बोले. हे! ब्राह्मणी तुम ने तो आठो पहर यही रट लगा रखी है, द्वारिका जाओ! द्वारिका जाओ! और कृष्ण से मिलो. अगर में तुमरा कहना नहीं मानु तो मुझे दुःख होगा. और अपनी गरीबी देख कर सोचता हुए इस हाल में कैसे जावु. उनके महल के द्वारपाल मुझे अंदर जाने देंगे या नहीं !. और जावू भी तो मेरे पास उनको भेट देने के लिए कुछ नहीं है. यहाँ तक पांच दाने अनाज के भी नहीं है. ऐसा सुनकर ब्राह्मणी अपनी पड़ोसन के पास जा पहुंची और उससे पाव सेर चावल उधार लेकर सुदामा जी को देते हुए द्वारिका जाने हेतु तैयार किया.
द्वारका नगरी में श्री कृष्ण जी का सुदामाजी जी से मिलन
गरीब सुदामा जी जब स्वर्णनगरी द्वारका को देख कर आँखे चकरा गयी थी. यहाँ के भवन एक से बढ़ कर एक थे. यहाँ के राजभवन के बहार खड़े पहरेदार भी देवताओ जैसे कपडे पहने हुए थे. गरीब सुदामा जी ने पहरी से पूछा “दीनदयालु श्रीकृष्ण का भवन कहा है”. जब पहरी से सुदामा जी से परिचय पूछा और दौड़ कर श्री कृष्ण जी को गरीब ब्राह्मण का नाम और दसा बया की. उंसने कान्हा को बतलाया एक ब्राह्मण जो सिर पर न पगड़ी है, कपडे उसके फटे और पेरो में उसके चपल भी नहीं है उसका नाम सुदामा है और आपको अपना बचपन का सखा पुकार रहा है. ऐसा सुनते ही, श्रीकृष्ण जी अपने राज कार्य छोड़ कर जैसे थे उसी हालत में सुदामा जी से मिलने दौड़ पड़े और अपने बचपन के दोस्त पैर छूकर गले लगा लिया था.
ऐसा दृश्य द्वारकापूरी में पहली बार हो रहा था. नेत्रों में आंसू लिए करुणा भाव में कृष्ण जी ने सुदामा जी से उनकी कुशलता जानी और अपने साथ महल में ले गए. और उनसे पूछा हे! दोस्त तुम को पेरो बिवाई पड़ी है. तुम ने यहाँ तक आने के लिए बहुत कस्ट किया है. तुम इतने दिनों कहा थे. राज महल में पटरानियों ने सुदामा जी के पैर धोये और उनका भव्य स्वागत किया.
अंतर ययामि श्रीकृष्ण जी ने अपनी भाभी द्वारा दिए गए कच्चे चावलों की भेट मांगी. तब सुदामा जी थोड़े सँकोच करते हुए वो पोटली खोली और अपने दोस्त कृष्ण जी को दे दी. कान्हा के साथ साथ उनकी रानियों ने भी वो चावल बड़े चाव से खाये, और उसी के साथ उनको जो देना था वो सुदामा जी को दे दिया था.
सुदामाजी की खीझ
अपने बचपन के सखा श्री कृष्ण जी से मिल वापस आते समय सुदामाजी को मन ही मन एक नराजगी थी. की द्वारका धीस ने उसको बदलने में कुछ नहीं दिया. वो मन ही मन बड़बड़ा रहे थे. स्वागत तो इतना अच्छा किया पर दिया कुछ नहीं, और अब अपनी ब्राह्मणी को जा कर क्या बोलूगा की कृष्ण ने उसको कुछ नहीं दिया. और खुद तो लोगो के घरो से माखन चोरी करता और खाता था और आज राजा बन गया तो घमंडी हो गया है. भला माखन चोर कैसे किसी गरीब की हेल्प कर सकता है. ऐसे ही विचारो में होते हुए जब सुदामा जी अपने घर के पास पहुंचते है तो देखते है.
सुदामाजी का वैभव– जब सुदामा जी अपने गांव आते तो देखते है, उनका गांव भी श्रीकृष्ण जी नगरी द्वारिका जैसे बड़े बड़े महलो और सुख सुविधा हो गयी है. एक बार तो सुदामा जी सोचे कही रास्ता तो नहीं भटक गया हु. आगे जाकर देखते है, उनकी पत्नी ब्राह्मणी भी रानियों जैसे कपडे में है और उनकी भी दासिया ने घेर रखा है. कहाँ तो उन्हें खाने के लिए मोटे चावल नहीं नशीब नहीं होते थे. और आज प्रभु की मेहर से इतना वैभव-संपन्न उन्हें मिला था. वे भी अपनी नगरी के राजा बन गए थे.
श्री कृष्ण जी और सुदामा जी के प्रेम की कहानी
कृष्ण और सुदामाजी की मित्रता की यह कथा बहुत ही भावपूर्ण और मार्मिक है. जिसमे श्री कृष्ण के अतुल्य मैत्री भाव और परिचय मिलता है. साथ ही दोस्तों सुदामा जी के भी मित्रभाव का उधारण मिलता है. आज भी आप कही फ़ोन की रिंग टोन और रेल यात्रा के दौरान ये गाना जरूर सुनते होंगे. ‘अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो……
अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो,
दर पे सुदामा गरीब आ गया है।
भटकते भटकते ना जाने कहाँ से,
तुम्हारे महल के करीब आ गया है॥
ना सर पे हैं पगड़ी, ना तन पे हैं जामा,
बतादो कन्हिया को नाम है सुदामा।
इक बार मोहन से जाकर के कहदो,
मिलने सखा बदनसीब आ गया है॥
सुनते ही दोड़े चले आये मोहन,
लगाया गले से सुदामा को मोहन।
हुआ रुकमनी को बहुत ही अचम्भा,
यह मेहमान कैसा अजीब आ गया है॥
और बराबर पे अपने सुदामा बिठाये,
चरण आंसुओं से श्याम ने धुलाये।
न घबराओ प्यारे जरा तुम सुदामा,
ख़ुशी का समा तेरे करीब आ गया है॥
अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो,
दर पे सुदामा गरीब आ गया है।
भटकते भटकते ना जाने कहाँ से,
तुम्हारे महल के करीब आ गया है॥
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FAQs
Ans- भगवान श्री कृष्ण और सुदामा जी अवंती में महर्षि संदीपनी के आश्रम में एक साथ शिक्षा प्राप्त की थी.
Dear sir . First off all .. Namaste . Jaya shri krishna.
Sir aapne bahut achchha likha hai. Aage bhi isi tarah se rochak aur prerak tatthya .. laaeeye jisase . Ham aap se kuchh seekh same..
Very nice sir
God bless you sir
Thank You Sir
सुदामा की पत्नी का नाम वशुन्धरा दिखाया गया है घारावाहिक मे और जीवन परिचय मे सुसीला बताया गया है सुसीला तो परसुराम की गाय का नाम था
सर मेने कभी एक पुस्तक पढ़ी थी, महान संत और माहत्मा उसमे सुशीला लिखा था. और में इस पर सर्च करुंग और ठीक करने की कोसिस करूँगा, आप हमको ठीक करने के लिए आपका धन्यवाद