दोस्तों स्वामी दादू दयाल जी ने कबीर साहब जी को अपना गुरु मानते हुए उन्होंने लिखा है. “साचा सबद कबीर का, मीठा लागै मोहि” दादू सुनतां परम हित, कैसा आनन्द होहि”. दोस्तों जिस तरह भारत में कबीर साहब, रहीम और भिखारीदास का सन्त कवियों में श्रेष्ठ स्थान है. उसी तरह दादूदयाल धर्म प्रचारक समाजसुधारक कवि थे. मध्यकालीन साधकों में उनका स्थान प्रमुख था. अपनी सीधी-सादी वाणी में लिखे उनके दोहे जहां आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, वहीं सामाजिक दृष्टि से उनमें मानवमात्र के प्रति सहानुभूति और एकता का सन्देश मिलता है. हम यहाँ महान साधु और समाज सुधारक स्वामी दादू दयाल जी की जीवनी (Biography of Swami Dadu Dayal). और उनसे जुड़ी हुई वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है सन्त स्वामी दादू दयाल जी की अद्भुत जानकारी.
संत स्वामी दादू दयाल जी का जीवन परिचय
संत कवि दादू दयाल जी हिन्दी के भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख सन्त कवि थे. इन्होंने एक निर्गुणवादी संप्रदाय की स्थापना की, जो ‘दादूपंथ’ के नाम से ज्ञात है. दादू दयाल जी के जन्म के बारे में इतिहासकारो का एक तबका तो कहता है. कि दादू दयाल एक ब्राह्मण को अहमदाबाद की साबरगती नदी में जो बहता हुआ बच्चा मिला, वह दादूदयाल था.
दादू दयाल जी का जन्म फागुन सुदी आठ बृहस्पतिवार संवत् 1601 (सन् 1544 ई.) गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था. इनका बचपन का नाम महाबलि था. उनकी जाति के बारे में कहा जाता है कि वे मुसलमान थे. और 12 वर्ष की अवस्था से सत्संग तथा योग-साधना करने के लिए निकल पड़े. वे विवाहित थे, और उनके दो पुत्र गरीबदास तथा मिस्कीनदास नामक दो पुत्र और दो पुत्रियां नानीबाई तथा माताबाई थी. दादू दयाल सांसारिक जीवन का त्याग कर वे ईश्वरभक्ति में रम गये थे. आपके पिता जी का नाम लोदीराम और माता जी का नाम बसी बाई था. उन्होंने अपना अधिकांश जीवन सांभर राजस्थान राजपूताना में व्यतीत किया एवं हिन्दू और इस्लाम धर्म में समन्वय स्थापित करने के लिए अनेक पदों की रचना की थी.
Summary
नाम | स्वामी दादू दयाल |
उपनाम | महाबलि |
जन्म स्थान | अहमदाबाद |
जन्म तारीख | सन् 1544 ई. |
वंश | दादूपंथ |
माता का नाम | बसी बाई |
पिता का नाम | लोदीराम |
पत्नी का नाम | — |
प्रसिद्धि | दादूपंथ स्थापना, नागा फौज की स्थापना |
पेशा | संत, कवि |
बेटा और बेटी का नाम | पुत्र गरीबदास तथा मिस्कीनदास, दो पुत्रियां नानीबाई तथा माताबाई |
गुरु/शिक्षक | बुड्ढन |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | गुजरात, राजस्थान |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 1603 ईस्वी |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Swami Dadu Dayal (स्वामी दादू दयाल की जीवनी) |
संत कवि दादू दयाल जी का जीवन और सामाजिक कार्य
दादू दयाल जी सांसारिक जीवन का त्याग कर वे ईश्वरभक्ति में रम गये. संवत 1660 (1603) ईस्वी में वे महाप्रस्थान कर गये थे. उनके जाने के बाद दादू पंथ की गद्दी उनके दोनों पुत्रों ने संभाली. सन्त दादूदयाल जी ने धार्मिक एकता का पाठ लोगों को पढ़ाया. वे बड़े दयालु और साधु पुरुष थे. क्रोध कभी उन पर हावी नहीं हो पाया था. लोग उन्हें दयालु के नाम से जानते थे. कुछ दुष्ट लोगों ने उनकी दयालुता की परीक्षा लेने के लिए उन्हें साधना में लीन देखकर उनकी कोठरी को ईंटों से चुनवा दिया. लोगों को जैसे ही यह पता चला, तो उन्होंने फौरन दीवार गिराकर दुष्टों को सजा देनी चाही पर दादू ने उन्हें ऐसा करने से मना किया था.
उन्होंने अपना अधिकांश जीवन राजस्थान के सांभर के आस पास में व्यतीत किया. एवं हिन्दू और इस्लाम धर्म में समन्वय स्थापित करने के लिए अनेक पदों की रचना की. उनके अनुयायी न तो मूर्तियों की पूजा करते हैं. और न कोई विशेष प्रकार की वेशभूषा धारण करते हैं. वे सिर्फ़ राम का नाम जपते हैं और शांतिमय जीवन में विश्वास करते हैं. यद्यपि दादू पंथियों का एक वर्ग सेना में भी भर्ती होता रहा है, और वे सच्चे देश भक्त के मार्गदर्श्क है. दादूपंथ के अनुयायी भगवा वस्त्र धारण कर हाथ में तुम्बा रखते हैं. उनकी याद में आज भी नारायणी गांव में वार्षिक मेला लगता है.
दादू दयाल जी की कृतियाँ
दादूदयाल ने 20 हजार पद और साखियों की रचना की, जिनमें “हरडे वाणी”, ”अंग वधू” (साखी, पद्य, हरडेवानी, अंगवधू) आदि शिष्यों द्वारा संग्रहित हैं. उनकी भाषा सरल ब्रजभाषा है. दोस्तों कहाँ जाता है, एक बार अकबर बादशाह बादशाह ने उन्हें फतेहपुर सीकरी बड़े आदर के साथ बुलाया था. बादशाह अकबर ने उनसे पूछा था कि खुदा की क्या जात है?. तब दादूदयाल ने कहाँ था. ”इशक अलाह की जाती है, इसका अलाह को रंग इसक अलाह मौजूद है, इसक अलाह को अंग. अकबर बादशाह उनके इस उत्तर से बहुत खुश हुए. दादू ने श्रेष्ठ चारित्रिक गुणों के साथ-साथ ईश्वर भक्ति हेतु नम्रता को विशेष महत्त्व दिया.
संत कवि दादू दयाल जी की मृत्यु कब और कहाँ हुई थी?
दोस्तों संत दादू दयाल जी की मृत्यु जेठ वदी अष्टमी शनिवार संवत् 1660 (1603 ई.) को हुई. जन्म स्थान के सम्बन्ध में मतभेद की हो सकता है पर उनकी मृत्यु अजमेर के निकट नारायणी गाँव में हुई थी. वहाँ ‘दादू-द्वारा’ बना हुआ है, दयाल जी के जन्म-दिन और मृत्यु के दिन वहाँ पर हर साल मेला लगता है. संत दादू की इच्छानुसार उनके शरीर को भैराना की पहाड़ी पर स्थित एक ग़ुफ़ा में रखा गया. और जहाँ इन्हें समाधि दी गयी थी. इसी पहाड़ी को अब ‘दादू खोल’ कहा जाता है, जहाँ उनकी याद में अब भी हर साल दो बार मेला लगता है. जिसमे दूर दराज से उनके अनुयायी आते है.
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FAQs
Ans- संत दादू दयाल द्वारा लिखित कृतियों साखी, पद्य, हरडेवानी, अंगवधू है.
Ans- बुड्ढन नामक एक अज्ञात वृद्ध संत संत कवि दादूदयाल के गुरु थे, तथा ग्यारह वर्ष की आयु में वे इनके गुरु बने थे.
Ans- रज्जब, संतदास, जगनदास, इत्यादि इनके प्रमुख शिष्य थे.