महर्षि दधीचि ऋषि यों में अत्यंत सम्मान एवं श्रद्धा से पूजा जाते हैं. असुरों का नाश करने के लिए देवताओं तथा ऋषि-मुनियों ने भी बहुत कुछ त्याग किया. किंतु दधीचि एक ऐसे ऋषि थे, जिन्होंने जीवित रहते हुए भी अपने शरीर का त्याग कर देवताओं के लिए अपना अमूल्य त्याग दिया. दोस्तों हम यहाँ महात्यागी महर्षि दधीचि की जीवनी (Biography of Maharishi Dadhichi). और उनसे जुड़ी वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है महर्षि दधीचि ऋषि अद्भुत जानकारी.
दधीचि ऋषि कौन थे? दधीचि ऋषि का जीवन परिचय
दोस्तों दधीचि ऋषि बहुत माने हुए तपस्वी थे. आपके पिता जी का नाम महान ऋषि अथर्वा जी और माता का नाम शांति देवी था. दधीचि ऋषि ने अपना संपूर्ण जीवन शिव की भक्ति में व्यतीत किया था. वे एक ख्यातिप्राप्त महर्षि थे, तथा वेद-पुराणों और शास्त्रों के ज्ञाता थे. साथ ही आप परोपकारी और बहुत दयालु थे. नैमिषारण्य उत्तर प्रदेश के सीतापुर में महर्षि दधीचि ऋषि का आश्रम था. महर्षि दधीचि ऋषि की पत्नी का नाम ‘गभस्तिनी’ था. अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा के द्रष्टा महर्षि पिप्पलाद इनके पुत्र हैं. उन्होंने अश्विनीकुमारों को मधु विद्या का उपदेश किया व देवरक्षण हेतु अस्थिदान किया. माता दधिमथी ऋषि दधीचि की बहन थी.
Summary
नाम | महर्षि दधीचि ऋषि |
उपनाम | दध्यंच, दधीचि |
जन्म स्थान | नैमिषारण्य |
जन्म तारीख | भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी |
वंश | ब्राह्मण |
माता का नाम | शांति देवी |
पिता का नाम | ऋषि अथर्वा जी |
पत्नी का नाम | गभस्तिनी |
प्रसिद्धि | जीवित रहते हुए भी अपने शरीर का त्याग करना |
पेशा | ऋषि |
बेटा और बेटी का नाम | पिप्पलाद |
गुरु/शिक्षक | गुरु शुक्राचार्य |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | सीतापुर, उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू सनातन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | — |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Maharishi Dadhichi (महर्षि दधीचि की जीवनी) |
महर्षि दधीचि ऋषि का त्याग
त्वष्टा का पुत्र वृत्रासुर देवताओं का पुरोहित और असुरों का भांजा था. वह यज्ञ भाग का हिस्सा देवताओं को तो प्रत्यक्ष देता था. किंतु असुरों को यज्ञ भाग छिपा छिपाकर देता था. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन त्वेष्टा से कहा बहन तुम्हारा पुत्र वृत्रासुर देवताओं के प्रत्यक्ष भाग देता है. और हमें छिपा कर देता है, जिसके कारण हम दुबले होते जा रहे हैं. इस प्रकार वृत्रासुर को ऐसा करने से मना किया कि तू मातुल पक्ष का नाश क्यों करता है.
इधर वृत्रासुर हिरण्यकश्यप के पास गया कि ब्रह्मपुत्र वशिष्ठ ने हिरण्यकश्यप को श्रॉफ दे दिया. कालांतर में हिरण्यकश्यप उसी श्रॉफ के वशीभूत होकर मारा गया. इधर अपनी गलती समझ आने पर वृत्रासुर तप करने लगा. उसके तप को भंग करने के लिए इंदर ने अप्सरा भेजी. वृत्रासुर बहुत जल्दी अप्सराओं के मोह जाल में फस गया. वृत्रासुर ने अप्सराओं कहा तुम देवताओं के पास क्यों जाती हो. मेरे पास जो मंत्र है उसका जाप करते ही मेरा प्रभाव देखना.
दधीचि ऋषि ने देवताओं की रक्षा कैसे की थी?
ऐसा कहते हैं कि ऐसा कहते है उस मंत्र का जाप करते ही वृत्रासुर के सिर के तीन भाग हो गए. उसने एक मुख से सोमरस का पान, दूसरे से अन्न और तीसरे से देवताओं का भक्षण करना प्रारंभ कर दिया. तब उसके बढ़ते हुए शरीर को देखकर देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. और उनसे कहा हमारी संख्या कम हो रही है. और अब राक्षस अधिक हो जाएंगे. इधर वृत्रासुरने अमरावती पर भी अपना अधिकार कर लिया था. परन्तु वृत्रासुर को दिए गए श्रॉफ के अनुसार उसका वध किसी पवित्र आत्मा की हड्डियों के औजार से ही हो सकता था. ब्रह्मा जी के कहे अनुसार सभी देवता भूगुपुत्र दधीचि के पास पहुंचे. उन से प्रार्थना की कि वे अपनी अस्थियों का दान कर दे. दधीचि ने शरीर की नर्वसता को जानते हुए आसन लगा लिया, और शरीर का त्याग कर दिया.
उनके शरीर का त्याग करते ही विश्वकर्मा ने उनकी हड्डियों का अमोद्य अस्त्र बना दिया. इस प्रकार उसे वृत्रासुर का नाश हुआ भारतीय संस्कृति में असीम निस्वार्थ तथा लोक कल्याणकारी त्याग के उदाहरण स्वरूप त्याग को अत्यधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है. दधीचि ऋषि सच में महान त्यागी ऋषि थे.
भारत के महान साधू संतों की जीवनी और रोचक जानकारी
1857 ई. की क्रांति के महान नायकों की जीवनी और रोचक तथ्य
भारत के प्रमुख युद्ध
भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल
Youtube Videos Links
FAQs
Ans- महर्षि दधीचि के पिता महर्षि अथर्वा एवं माता का नाम (शांति) चिति था.
Ans- महर्षि दधीचि ऋषि की पत्नी का नाम गभस्तिनी था.
Ans- महर्षि पिप्पलाद महर्षि दधीचि ऋषि के पुत्र थे.