दुनिया के सबसे बड़े धनुर्धर एकलव्य का जीवन परिचय | Gurubhakt Eklavy

By | December 17, 2023
Biography of Gurubhakt Eklavya
Biography of Gurubhakt Eklavya

दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, दुनिया के सबसे बड़े धनुर्धर एकलव्य जी की जीवनी (Biography of Gurubhakt Eklavya).और उनके चमत्कार. मित्रों बहुत से लोगो के सवाल है जैसे. एकलव्य के गुरु कौन थे. Eklavya ने धनुर्विद्या कहां से सीखी और एकलव्य का जन्म कहाँ हुआ. और Eklavya (एकलव्य) की मृत्यु कैसे हुई. और Eklavya Ki Guru Dakshina की Kya Kahani है. तो मित्रों आप यहाँ जानेगे Biography of Gurubhakt Eklavya की सम्पूर्ण जानकारी इस लिए बने रहे हमारे साथ अंत तक.

https://www.youtube.com/watch?v=jP5bUP6c2kI&t=147s

एकलव्य कौन थे?

मित्रों इस संसार में अनेक गुरु-भक्त शिष्य हुए हैं. जिन्होंने अपनी अन्ध गुराभक्ति से इतिहास रचा, किन्तु न तो एकलव्य जैसा शिष्य हुए हैं. जिन्होंने गुरुभक्ति की ऐसी कठिन परीक्षा दी होगी और न ही गुरु द्रोणाचार्य जैसा कोई ऐसा गुरु हुआ होगा, जिसने अपने शिष्य की ऐसी परीक्षा ली होगी. गुरुभक्त एकलव्य भील जाति का था. उसकी गुरु द्रोणाचार्य के प्रति बड़ी भारी श्रद्धा थी. वह द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखने गया किंतु निषाद जाति का होने से द्रोणाचार्य ने उसे धनुर्विद्या नहीं सिखायी. यद्यपि एकलव्य की श्रद्धा सकाम ही थी, फिर भी उसको यह विश्वास था कि ʹद्रोणाचार्य मुझको शिष्य नहीं बनाते हैं तो कोई बात नहीं. मैंने उनको गुरु बना लिया है, अतः उनके शिष्य उनसे जो लाभ उठा रहे हैं, वह लाभ मैं भी उठा लूँगा.ʹ वह द्रोणाचार्य के चरणों में प्रणाम करके वन में चला गया.

वहाँ उसने द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनायी और उसी में आचार्य की सर्वोच्च भावना करके नियमपूर्वक स्वयं ही धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा. गुरु की ओर एकटक देखता, ध्यानस्थ होता और धनुर्विद्या के अभ्यास में लग जाता. उस परम श्रद्धा के प्रभाव से उसने धनुर्विद्या में ऐसी कुशलता प्राप्त कर ली कि जिसे देखकर अर्जुन और स्वयं द्रोणाचार्य भी चकित रह गये.

Biography of Gurubhakt Eklavya (गुरुभक्त एकलव्य की जीवनी)

भील वनवासी हिरण्यधनु की रानी सुलेखा और पिता व्याधराज हिरण्यधनु के घर एक पुत्र को जन्म हुआ जिसका नाम “अभिद्युम्न” रखा गया. बचपन में यह बालक “अभय” के नाम से जाना जाता था. बचपन में जब “अभय” शिक्षा के लिए अपने कुल के गुरुकुल में गया तो अस्त्र शस्त्र विद्या मेँ बालक की लगन और एकनिष्ठता को देखते हुए गुरू ने बालक को “एकलव्य” नाम से संबोधित किया. भील व्याधराज हिरण्यधनु के इस पुत्र को जन्म से ही धनुर्विद्या में बहुत रुचि थी. उसने स्वयं के बल पर धनुष चलाने की विद्या सीखी थी.

Summary

नामअभय/अभिद्युम्न
उपनामएकलव्य
जन्म स्थानगवेरपुर प्रयागराज
जन्म तारीखमहाभारत काल जून का महीना
वंशभील
माता का नामरानी सुलेखा
पिता का नामहिरण्यधनु
पत्नी का नामसुणीता देवी
पेशाधनुर्धर
बेटा और बेटी का नामकेतुमान
गुरु/शिक्षकद्रोणाचार्य जी
देशभारत
राज्य छेत्रउत्तर प्रदेश
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
मृत्युएकलव्य का वध द्वारका में कृष्ण के हाथों हुआ
पोस्ट श्रेणीBiography of Gurubhakt Eklavya (एकलव्य का जीवन परिचय)
Biography of Gurubhakt Eklavya

अद्वितीय धनुर्धर एकलव्य कैसे बने!

कहाँ जाता है, एक बार बालक एकलव्य जंगल में कही जा रहे थे. एकलव्य को एक कुत्ता मिला, जो जोर-जोर से भौंक रहा था. एकलव्य को अपने सामने पाकर कुत्ता और जोरों से भौंकने लगा. एकलव्य को कुत्ते का इस तरह से लगातार भौंकना कुछ अच्छा नहीं लगा. एकलव्य को देखकर वह और जोर-जोर से भौंकने लगा. इससे क्रोधित होकर एकलव्य ने उस कुत्ते पर अपना बाण चला-चला कर उसके मुँह को बाणों से भर दिया. एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी, किन्तु बाणों से बिंध जाने के कारण उसका भौंकना बन्द हो गया.

कुत्ता अपने मुंह में उन बाणों को लेकर इधर-उधर घूम रहा था. उसी जंगल की राह में उसे अर्जुन और द्रोणाचार्य दिख पड़े, कुत्ता उनके सामने आ खड़ा हुआ. कुत्ते के लौटने पर जब अर्जुन ने धनुर्विद्या के उस कौशल को देखा तो वे द्रोणाचार्य से बोले- “हे गुरुदेव! इस कुत्ते के मुँह में जिस कौशल से बाण चलाये गये हैं, उससे तो प्रतीत होता है कि यहाँ पर कोई मुझसे भी बड़ा धनुर्धर रहता है”.

एकलव्य को गुरु द्रोणाचार्य द्वारा धनुर्विद्या के लिए क्यों मना किया गया!

उन्हीं दिनों भील वनवासी हिरण्यधनु नामक निषाद का पुत्र एकलव्य भी धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से द्रोणाचार्य के आश्रम में आया, किन्तु कर्ण के समान ही निम्न वर्ण का होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया. निराश होकर एकलव्य वन में चला गया. उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मानकर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा. एकाग्रचित्त से साधना करते हुए अल्पकाल में ही वह धनु्र्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया था.

गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य की परीक्षा कैसे ली थी?

गुरु द्रोणाचार्य ने जब एकलव्य के मुख से यह सुना, तो उन्होंने एकलव्य से कहा: “तुम तो धनुर्विद्या में पारंगत हो गये हो. अत: तुम्हें गुरुदक्षिणा देनी होगी.” एकलव्य ने कहा: ”जो आज्ञा गुरुदेव !” द्रोण ने कहा: ”किन्तु तुम यह दे न सकोगे. एकलव्य अपनी गुरुभक्ति एवं वचन पालन पर दृढ़ रहा और उसने कहा: ”आप प्राणों से अधिक कुछ न मांगेंगे न गुरुदेव!”.

गुरु द्रोण ने कहा: ”मुझे गुरुदक्षिणा में तुम्हारे दाहिने हाथ का अंगूठा चाहिए. एकलव्य ने पूजा की थाल में गुरु के चरणों पर अर्पित करने के लिए कुछ पुष्प रखे और अपने दाहिने हाथ का अंगूठा काटकर गुरु को दक्षिणा में समर्पित कर दिया. इस तरह गुरु द्रोण ने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाते हुए धनुर्विद्या पर उच्च जाति का अधिकार बनाये रखा.

क्या अर्जुन को भी गुरु द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या सिखाई थी?

दोस्तों उस युग में आचार्य द्रोणाचार्य पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों को अस्त्र-शस्त्र की विधिवत शिक्षा प्रदान कर रहे थे. उन राजकुमारों में अर्जुन के अत्यन्त प्रतिभावान तथा गुरुभक्त होने के कारण वे द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे. गुरु द्रोणाचार्य का अपने पुत्र अश्वत्थामा पर भी विशेष प्यार था. इसलिये धनुर्विद्या में वे भी सभी राजकुमारों में अग्रणी थे, किन्तु अर्जुन अश्वत्थामा से भी अधिक प्रतिभावान थे.

एक रात्रि को गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में जब सभी शिष्य भोजन कर रहे थे, तभी अकस्मात हवा के झौंके से दीपक बुझ गया. तब राजकुमार अर्जुन ने देखा अन्धकार हो जाने पर भी भोजन के कौर को हाथ मुँह तक ले जाता है. इस घटना से उन्हें यह समझ में आ गया कि निशाना लगाने के लिये प्रकाश से अधिक अभ्यास की आवश्यकता है. तब राजकुमार अर्जुन ने रात्रि के अन्धकार में भी लक्ष्य भेदने का अभ्यास करना आरम्भ कर दिया. गुरु द्रोण उनके इस प्रकार के अभ्यास से अत्यन्त प्रसन्न हुए. उन्होंने राजकुमार अर्जुन को धनुर्विद्या के साथ ही साथ गदा, तलवार आदि शस्त्रों के प्रयोग में भी निपुण कर दिया था.

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FAQs

Q- एकलव्य गुरु द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा में क्या दान दिया था?

Ans-भील बालक एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा में अपना दाहिने हाथ का अंगूठा दान दिया था.

Q- एकलव्य कहाँ के राजा थे?

Ans- एकलव्य अपने पिता की मृत्यु के उपरांत श्रृंगबेर राज्य के राजा बने थे.

Q- भील बालक एकलव्य का वध किसने और क्यों किया?

Ans- सैकड़ों यादववंशी योद्धाओं को रोकने वाले एकलव्य का वध श्री कृष्ण ने किया था.

Q- एकलव्य जी किस जाति के थी?

Ans- द्रोणाचार्य भगत एकलव्य निषादराज हिरण्यधनु के पुत्र थे, निषाद नामक एक जाति आज भी भारत में निवास करती है के वंसज थे.

The Tourism Department of India

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