Biography of Raja Harishchandra And Interesting Facts. दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, भारत में त्रेता युग के राजा हरिश्चंद्र की जीवनी और उनके रोचक तथ्य. मित्रो जब जब बात सत्य और ईमानदारी की आती है तो राजा हरिश्चंद्र का नाम सबसे ऊपर आता है. दोस्तों हम यहाँ हिंदी में राजा हरिश्चंद्र जी की पत्नी का नाम और राजा हरिश्चंद्र पुत्र नाम और रोचक जानकारी यहाँ शेयर कर रहे है. इस लिए आपको इस पेज को अंत तक पढ़ना चाहिए.
राजा हरिश्चंद्र की जीवनी (Biography of Raja Harishchandra)
हरिश्चंद्र का जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन हुआ था. आप अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा सत्यव्रत के पुत्र थे. आप अपनी ईमानदारी और कई कष्टों को सहने के लिए प्रसिद्ध हैं. अयोध्या के राजा हरिश्चन्द्र महाप्रतापी होने के साथ-साथ सत्य और त्याग के कारण सतयुग में देवताओं में भी पूजनीय थे. राजा हरिश्चंद्र को अपने जीवन में उन्होंने बहुत मुस्किलो का सामना करना पड़ा था. पर राजा हरिश्चंद्र कभी भी अपनी ईमानदारी से डगमगाए नहीं. हरिश्चंद्र जी को पहले पुत्र नहीं था, लेकिन उनके कुलगुरु वशिष्ठ के कहने से उन्होंने वरुणदेव की आराधना की और रोहित नाम का पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन यह शर्त थी. राजा हरिश्चंद्र को यज्ञ में अपने पुत्र की बलि देनी पड़ेगी. उन्होंने यह प्रतिज्ञा नहीं की तो उन्हें जलोदर रोग हो जाने का अभिशाप दिया गया था.
नाम | हरिश्चन्द्र |
उपनाम | भारतेंदु हरिश्चंद्र |
जन्म तारीख | पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा |
जन्म स्थान | अयोध्या उत्तर प्रदेश |
वंश | सूर्यवंशी |
पूरा नाम | सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र |
पत्नी का नाम | तारामति (तारा) |
बेटा और बेटी का नाम | बेटा रोहित (रोहिताश) |
माता का नाम | घृताची |
पिता का नाम | सत्यव्रत (त्रिशंकु) |
गुरु/शिक्षक | कुलगुरु वशिष्ठ |
प्रसिद्ध | अपने वचन पर अटल और ईमानदारी के लिए |
राज्य छेत्र | अयोध्या |
धर्म | सनातन (हिन्दू) |
राष्ट्रीयता | भारत |
मृत्यु | Update Soon |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Raja Harishchandra And Interesting Facts (राजा हरिश्चंद्र की जीवनी) |
दोस्तों वैसे तो भारतीय संस्कृति त्याग, बलिदान और सत्य के आदर्शवादी सिद्धान्तों पर आधारित है. जिनमे दानी कर्ण, राजा बाली, रंतिदेव जहां अपने महान दान कर्म के कारण पूजनीय हैं, वहीं राजा हरिश्चन्द्र अपने सत्य और महान त्याग के कारण भारतभूमि पर युगों-युगों तक श्रद्धा और आदर के साथ आदर्श बने रहेंगे.
सत्यवादी हरिश्चन्द्रजी का सत्य एवं त्याग की कहानी
दोस्तों एक बार सत्यवादी हरिश्चन्द्र जी प्रजा का हाल जानने के लिए भ्रमण करते हुए एक ऐसे स्थान पर पहुंचे, जहां एक स्त्री करुण स्वर में विलाप (रोना )कर रही थी. राजा ने उसके दुःख का कारण पूछा, तो उस औरत ने ऋषि विश्वामित्र की तपस्या को बताया. उनको ऋषि विश्वामित्र की तपस्या न करने का अनुरोध किया. प्रजाहितैषी राजा हरिश्चन्द्र ने विश्वामित्र के समक्ष उपस्थित होकर उनको वहां तप न करने हेतु विनयपूर्वक प्रार्थना की. तप के इस तरह भंग होने पर विश्वामित्र क्रोधित हो उठे और उनोहोने राजा हरिश्चन्द्र से बदला लेने के लिए एक सुवर का रूप लेकर हरिश्चन्द्र के राज्य में खूब नुकसान किया.
वह सुवर हरिश्चन्द्र के सैनिकों के वश में नहीं आ रहा था. अत: सैनिकों ने हरिश्चन्द्र से जाकर सारा हाल कह डाला. तब हरिश्चन्द्र रथ पर सवार होकर उस सुवर के पीछे-पीछे हो लिये. तेजी से दौड़ता हुआ सुवर उन्हें जंगल में ले गया. राजा हरिश्चन्द्र वन में दूर तक पीछा करते हुए राजा राजमहल से काफी दूर तक निकल आये थे. वे रास्ता भी भूल चुके थे, तब थकित-भ्रमित हरिश्चन्द्र एक पेड़ के नीचे चिन्तामग्न होकर बैठ आराम कर रहे थे. वहां वृद्ध ब्राह्मण का वेश बदलकर विश्वामित्र ने उनका हाल पूछा. राजा हरिश्चन्द्र ने सविस्तार उन्हें सारी घटना कह डाली.
अयोध्या राजा हरिश्चंद्र जी की परीक्षा और दक्षिणा
वृद्ध ब्राह्मण का वेश बदले विश्वामित्र ने राजा को उसके राज महल का रास्ता इस सर्त पर बताया की जो वो दान में मांगेंगे, उन्हें वह देना ही होगा. राजा हरिश्चंद्र तैयार हो गए और उनको अगले दिन राज महल में आने को बोला. अगले दिन वृद्ध ब्राह्मण राज महल आया और राजपाट मांग लिया. इस प्रकार विश्वामित्र हरिश्चंदर के राज्य के मालिक हुए. जब बात दक्षिणा की आयी तो विश्वामित्र ने कहाँ मुझे ढाई भार सोना भी देना होगा. तब राजा हरिश्चंद्र ने अपने राज कोस से सोने की मुद्रा देने के आदेश दिए पर अब राजा विश्वामित्र तो बोले आप ऐसा नहीं कर सकते है. क्यों की यहाँ का राजा में हु. इसी कारन राज्य पर तुम्हारा अधिकार नहीं रहा है.
हरिश्चन्द्र ने कहा की आपकी बात सच्ची है, विश्वामित्र ने कहा की अगर आप दक्षिणा नहीं दे सकते तो मना कर दिजिये नहीं तो शाप दे दूंगा. तब हरिश्चन्द्र ने कहा की मुझे थोडा वक्त दीजिये क्योकि में आपकी दक्षिणा दे सकू. विश्वामित्र ने वक्त तो दिया, लेकिन धमकी दी अगर वक्त पर दक्षिणा न मिली तो में तुम्हे शाप देकर भस्म कर दूंगा हरिशचंद्र को भस्म होने से ज्यादा वक्त पर दक्षिणा देने पर अपने अपयश का बहुत भय था. उसके पास सिर्फ एक उपाय था. अपने आप को बेचकर दक्षिणा दे, उनके समय में मानवो को पशुओ जैसे ख़रीदा और बेचा जाता था. राजा ने खुद को काशी में बेचने का संकल्प कर लिया.
Amazing Facts Of Raja Harishchandra
- हरिश्चंद्र एक सत्यवादी, निष्ठावान एवं शक्तिशाली सम्राट थे.
- राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य के लिए अपने पुत्र, पत्नी और खुद को बेच दिया था.
- राजा हरिश्चन्द्र का विभिन्न ग्रंथों में उल्लेख मिलता है, उसमे मार्कण्डेय पुराण भी शामिल है.
- सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र पौरणिक ग्रंथों और वेद पुराणों के आधार पर न्यायी,धार्मिक और सत्यप्रिय राजा थे.
- राजा हरिश्चंद्र पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन सूर्यवंश में जन्मे थे.
- आप अपने दानी स्वभाव की वजह से विश्वामित्र कोअपना सम्पूर्ण राज्य को दान में दे दिया था.
- हरिश्चंद्र ने राजसूय यज्ञ किया था, और चारों दिशाओं के राजाओं को रणभूमि में हारके चक्रवर्ति सम्राट बने थे.
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FAQs
Ans- राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य के लिए अपने पुत्र, पत्नी और खुद को बेच दिया था, साथ ही अपने वचन के लिए अपना राज्य भी दान कर दिया था.
Ans- राजा हरिश्चंद्र पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन सूर्यवंश में जन्मे थे.
Ans- राजा हरिश्चंद्र के पुत्र का नाम रोहिताश था.
Ans- क्षत्रिय सूर्यवंशी.
Ans- रोहिताश्व.