Biography of Pannadhay- दोस्तों हम यहाँ आज ऐसी सख्शियत की जीवनी के बारे में बताने जा रहे है. जिन्होंने सिसोदिया राजवंश को जीवन धन प्रदान करने में. वहां की पन्नाधाय का महाबलिदान कभी विश्वमत विस्मृत नहीं किया जा सकता. जब तक राजस्थान में राजपूतों का वर्चस्व कायम है. और जब तक यह दुनिया कायम है. तब तक उस महान नारी के महाबलिदान को इतिहास उसी प्रकार जिन्दा रखेगा जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश हमें अपनी उपस्थिति से परिचित करवाता है. दोस्तों आप यहाँ जानेगे पन्नाधाय की जीवनी (Biography of Pannadhay), पन्नाधाय ने कैसे राजकुमार उदयसिंह को दासी पुत्र बनवीर से बचाया. और पन्नाधाय ने कैसे मेवाड़ के राजकुमार की परवरिश की थी आदी.
यह बात तब की है‚ जब चित्तौड़गढ़ का किला आन्तरिक विरोध और षड्यंत्रों में जल रहा था. मेवाड़ का भावी राणा उदय सिंह बहुत छोटा था. तब मेवाड़ का राजा दासी पुत्र बनवीर जो उदयसिंह के पिता के चचेरे भाई भी था. उदयसिंह के पिता की हत्या के बाद दोनों भाइयो विक्रमादित्य और उदयसिंह को मारने का अवसर ढूंढने लगा. उदयसिंह की माता जो एक युद्ध के बाद जोहर कर लिए था. उनको पहले से संशय हुआ तथा उन्होंने उदय सिंह को अपनी खास दासी व उदय सिंह की धाय पन्ना को सौंप कर चली गयी थी. अब उदय सिंह का लालन पालन धाय माँ के पास ही होता था.
माँ पन्ना धाय राणा साँगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं. पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं. अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्ना धाय का जन्म कमेरी गावँ में हुआ था. राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना ‘धाय माँ’ कहलाई थी. धाय माँ का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ पले बड़े हुए थे. उदयसिंह को पन्ना धाय ने अपने पुत्र के समान पाला था. पन्नाधाय ने उदयसिंह की माँ रानी कर्मावती रानी पद्मिनी जैसे, एक के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था. पन्ना धाय ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की. माँ पन्ना धाय चित्तौड़ के कुम्भा महल में रहती थी.
Biography of Pannadhay (पन्नाधाय की जीवनी)
पन्नाधाय का जन्म पाण्डोली गांव चित्तौड़गढ़ 8 मार्च 1490 मंगलवार को हुआ था. पन्ना धाय या धाय मां पन्ना गुर्जर राणा सांगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं. अपने बेटे चंदन के प्राणों का बलिदान कर उदयसिंह के प्राण बचाने वाली पन्नाधाय अपने इस बलिदान के कारण पूरी दुनिया में जानी जाती है. और ऐसी घटना पुरे संसार में और कही नहीं मिलती है.
पन्नाधाय कौन थी?
दोस्तों पन्ना धाय राणा साँगा के पुत्र राणा उदा, उदयसिंह की धाय माँ थीं. पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं. अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्ना धाय का जन्म कमेरी गावँ मेवाड़ में हुआ था. राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना ‘धाय माँ’ कहलाई थी. पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे. उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था. पन्नाधाय ने उदयसिंह की माँ रानी कर्मावती के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था. पन्ना ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की जो चित्तौड़ के कुम्भा महल में रहती थी.
Summary
नाम | पन्नाधाय |
उपनाम | धाय माँ |
जन्म स्थान | पाण्डोली गांव चित्तौड़गढ़ |
जन्म तारीख | 8 मार्च 1490 मंगलवार |
वंश | गुजर्र |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | हरचंद जी हांकड़ा (गुर्जर) |
पति का नाम | सूरजमल चौहान (गुर्जर) |
पेशा | धाय माँ |
बेटा और बेटी का नाम | चन्दन |
प्रसिद्धी | स्वामिभक्ति |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | राजस्थान, मेवाड़ |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 1550 ईस्वी के आस पास |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Pannadhay (पन्नाध्याय की जीवनी) |
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पन्ना धाय का बलिदान (Panna Dhai’s Ka Balidan)
मित्रों 1527 ईस्वी में जब मुगल शासक बाबर से भरतपुर के पास खानवा के युद्ध में मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह अथवा महाराणा सांगा की विशेषण पराजय हुई थी. तथा उनको अनेकों गंभीर घाव लगे थे. जिसके कारण कुछ समय पश्चात उनकी दुखद मृत्यु हुई थी. उनकी मृत्यु के पश्चात उनका जेष्ठ पुत्र विक्रमादित्य मेवाड़ राज्य की गद्दी पर बैठा. महाराणा का दूसरा पुत्र राणा उदय सिंह उस समय केवल 2 से 3 वर्ष का बालक की था. जो पन्ना नाम की एक राजपूत महिला की परवरिश में पल रहा था. विक्रमादित्य एक विवेक हीन अयोग्य अकर्मण्य उदंड एवं विलासिता प्रिय राजा था.
जो हमेशा अपने उन सभी सम्मानीय सरदारों का अनादर किया करता था. जिनका उसके पिता महाराणा संग्राम सिंह काफी आदर किया करते थे. मेवाड़ राज्य की दशा ऐसे अयोग्य शासक के कारण अत्यंत खराब हो चुकी थी. वहां के शासक विक्रमादित्य को इसकी कोई चिंता नहीं थी. तथा वह अपना सारा समय नाच रंग भरी मोहब्बत सोबत के व्यक्तियों के साथ बिताता था. तब मेवाड़ के कुछ बुद्धिमान सरदारों ने राज्य हित में विक्रमादित्य को हटाकर किसी दूसरे राजकुमार को राजा बनाना उचित समझा. राजा संग्राम सिंह अथवा राणा सांगा का दूसरा पुत्र उदय सिंह उस समय एक छोटा शिशु ही था. इस कारण उन सरदारों ने कुछ समय के लिए शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने हेतु संघ राणा सांगा सिंह के एक और पुत्र जो कि एक दासी से उत्पन्न हुआ था.
मेवाड़ के राज सिंहासन पर कुछ समय के लिए बिठाया था. कि वह बड़ा होने पर उदय सिंह को राज सत्ता सौंपी जा सके उस दासी पुत्र का नाम बनवीर था. जब वह मेवाड़ का विधीगत शासक बन गया था. तब उसके मन में यह विचार आया कि उदय सिंह के वयस्क होते ही मुझे हटा दिया जाएगा। इसलिए उसने राज्य के उन दोनों वारिसों को मौत के घाट उतारना मुनासिब समझा ताकि मेवाड़ की सदा सदा उसके हाथ में रहे.
बनवीर द्वारा उदय सिंह हत्या करने आना और पन्ना धाय का बलिदान
अतः एक रात्रि बनवीर ने अपने उन दोनों प्रतिद्वंद्वियों की हत्या की योजना बनाई. और वह हाथ में नंगी तलवार लेकर पहले विक्रमादित्य के महल में गया और उसकी हत्या कर दी. फिर वह संग्राम सिंह (महाराणा सांगा) के दूसरे पुत्र उदय सिंह के कक्ष की और बड़ा जहां पन्नाधाय शिशु उदय सिंह का पालन पोषण कर रही थी. रात्रि में पन्नाधाय अपने कक्ष में बैठी थी. तथा राजकुमार उदय सिंह सो रहा था पास यही एक दूसरी सैया पर पन्नाधाय का अपना समय का पुत्र चन्दन भी सो रहा था. उसकी उम्र भी ठीक राजकुमार उदय सिंह के समक्ष ही थी.
पन्नाधाय की एक दासी ने घबराहट भरी मुद्रा में उसे यह सूचना दी कि दासी पुत्र बनवीर, विक्रमादित्य की हत्या हत्या करके अब छोटे राजकुमार की हत्या करने के लिए इसी और आ रहा है. इसे सुनकर पन्नाधाय क्षण को को तो सुन अवस्था में हो गई किंतु दूसरे ही पल उसने अपने मन में यह संकल्प लिया कि वह किसी भी कीमत पर राजकुमार उदय सिंह के प्राणों की रक्षा करेगी. अतः शीघ्र ही पन्नाधाय ने सोते हुए राजकुमार को पास ही रखें एक सब्जी के बड़े डाले में छुपा दिया और उसे घास फूस और पत्तों से ढक दिया। तथा उस डाले को एक अति विश्वसनीय व्यक्ति के द्वारा महल से बाहर निकाल दिया.
तथा अपने पुत्र चन्दन को राजकुमार के स्थान पर सुला दिया इतने में बनवीर हाथ में नंगी तलवार लिए कक्ष में दाखिल हुआ. उसने ऊंचे स्वर में चिल्ला कर कहा कहां है राजकुमार!! दुःख और स्वाभिमान से पीड़ित तथा उन संभावित खतरों से परिचित उस महान नारी ने जो आने वाले महानतम दुखों के एहसास से व्याकुल हो रही थी. तथा उस कठिन संकट से उसका कंठ अवध हो गया था. किंतु अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक पन्नाधाय ने हाथ के इशारे से राजकुमार की जगह अपने पुत्र की तरफ इशारा कर दिया। अगले ही क्षण एक आवाज सुनाई दी दुष्ट बनवीर ने तलवार के एक ही वार से सोते हुए उस बालक शिशु का काम तमाम कर दिया था. जिसे व राजकुमार समझ बैठा था.
इस प्रकार उस महान कर्तव्य प्राण नारी पन्नाधाय ने अपने कर्तव्य के ऊपर पक्ष में बलिदान दिया. जो संपूर्ण विश्व में आदित्य एवं अति दुर्लभ है. वह महान नारी अपने पुत्र की मृत्यु पर आंसू भी निकाल सकी. क्योंकि कर्तव्य ने उसे ऐसा करने से रोका रोक रखा था. वास्तव में ऐसी मिसाल मिलना दुनिया में दुर्लभ है. इसके पश्चात शीघ्र ही इस महान नारी ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर अपने कक्ष तक तथा किले से बाहर निकलकर राजकुमार उदय सिंह को कमलगिर के सुरक्षित दुर्ग में पहुंचा कर उसके प्राणों की रक्षा की थी.
उदयसिंह मेवाड़ के राजा कैसे और कब बने
कुछ वर्षों के उपरांत जब मेवाड़ के प्रसिद्ध सरदारों को इस सच्चाई का पता चला कि महाराणा संग्राम सिंह का असली वारिस पुत्र उदय सिंह जीवित है. तब सब सरदारा ने मिलकर दुष्ट बनवीर से युद्ध लड़ा और उसे पराजित करके उदय सिंह को मेवाड़ के राज सिंहासन पर बैठाया. पराजित दुष्ट बनवीर दक्षिण की ओर भाग गया और इस प्रकार करते हुए प्रणाम पन्ना धाय के बलिदान स्वरूप उदय उदय सिंह के प्राणों की रक्षा तथा मेवाड़ का राज सिंहासन उसके सही बारिश को प्राप्त हुआ. इतिहास उस्मान नारी पन्नाधाय और उसके महान बलिदान को कभी भूल नहीं सकेगा वास्तव में पन्नाधाय अमर हो गई. तेरह वर्ष की आयु में मेवाड़ी उमरावों ने उदयसिंह को अपना राजा स्वीकार कर लिया और उसका राज्याभिषेक कर दिया. उदय सिंह 1542 में मेवाड़ के वैधानिक महाराणा बन गए.
महाराणा उदयसिंह और मुगलों का संघर्ष
इस प्रकार पन्नाधाय द्वारा जीवन धन प्राप्त करने के पश्चात राणा संग्राम सिंह का पुत्र उदय सिंह चित्तौड़गढ़ के राज सिंहासन पर बैठा. और मेवाड़ राज्य का स्वामी बना किंतु अभी उसकी योजनाओं का अंत नहीं हुआ था. उसने अभी कुछ ही वर्ष आसन किया था. कि मुगल सम्राट अकबर की कुदृष्टि उसके इस शांत प्रदेश पर पड़ी वह अपने साम्राज्य विस्तार के लिए प्रयत्नशील था गोंडवाना की विजय के पश्चात अब उसने राजस्थान के सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित प्रतिष्ठित मेवाड़ राज्य के अपने समृद्धि का विस्तार करना चाहता था. दूसरा कारण यह भी था कि अकबर की शक्ति के आगे राजस्थान के अनेक राजपूत नरेश्वर ने अपने घुटने टेक दिए थे.
और उसकी अधीनता स्वीकार करके अपनी बेटियों तक शादी कर दी थी. शायद यही एक कारण रहा हो कि राजस्थान के जिन राजाओं ने उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी. अपनी व्यक्तिगत इरशाद जलन के कारण अकबर को मेवाड़ के विरुद्ध विरुद्ध युद्ध के लिए प्रोत्साहित किया हो. कारण कुछ भी रहा हो लेकिन अकबर इस बार दृढ़ प्रतिज्ञ होकर मेवाड़ की विजय प्राप्त करने के लिए सेना के साथ. इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह 30 अगस्त 1567 को युद्ध यात्रा पर आगरा से निकल पड़ा था.
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FAQs
Ans- पन्नाधाय ने राजकुमार उदयसिंह की रक्षा दासी पुत्र बनवीर से की थी.
Ans- पन्ना धाय का जन्म 8 मार्च 1490 मंगलवार को कमेरी गावँ मेवाड़ हुआ था.