History and Tourist Places of Rajasthan | राजस्थान

By | September 19, 2023
History and Tourist Places of Rajasthan
History and Tourist Places of Rajasthan

पश्चिम व पश्चिमोत्तर भारत में पाकिस्तान से उत्तर व पूर्वोत्तर में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से, पूर्व व दक्षिण-पूर्व में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से दक्षिण-पश्चिम में गुजरात राज्य से घिरे इस राज्य के बारे में लोगों का मानना है. की इसका नामक राजपूतों या राजाओं की बहुलता के कारण राजस्थान रखा गया है. इसके बांसवाड़ा जिले के दक्षिणी सिरे से होकर कर्क रेखा गुजरती है. लगभग 8 करोड की जनसंख्या वाले राजस्थान का विस्तार 342239 किलोमीटर के क्षेत्रफल में है. जो छेत्र फल की दृस्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य है. जिसकी राजधानी जयपुर है. हम यहाँ राजस्थान का इतिहास और पर्यटन स्थल (History and Tourist Places of Rajasthan) की वो अद्भुत और रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में शायद आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, राजस्थान की आश्चर्चकित जानकारी.

राजस्थान का अभिप्राय है, राजाओं का निवास स्थल, इसे पहले राजपूताना राजपूतों (राजा के पुत्रों) का देश कहते थे. देश को आजादी मिलने से पहले इसमें 18 रियासतें दो जागीरे ब्रिटिश शासित अजमेर, मेवाड़, रियासत व मुख्य सीमा के बाहरी क्षेत्र के कुछ हिस्से शामिल थे. सन 1947 के बाद रियासतों वह जागीरो का भारत में विभिन्न चरणों में एकीकरण हो गया. वह इस राज्य को राजस्थान नाम दिया गया. 1 नवंबर सन 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम के प्रभावी होने के साथ ही राज्य का वर्तमान स्वरूप अस्तित्व में आया था.

राजस्थान के जिलों का इतिहास और पर्यटन स्थल और रोचक जानकारी

झुंझुनू जिले का इतिहास और झुंझुनू क्यों प्रसिद्ध हैझुंझुनू के प्रसिद्ध घूमने लायक जगह
चूरू जिले का इतिहास और चूरू क्यों प्रसिद्ध हैचूरू के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल
नागौर जिले का इतिहास और नागौर क्यों प्रसिद्ध हैबीकानेर जिले का इतिहास और बीकानेर क्यों प्रसिद्ध है
सीकर जिले का इतिहास और सीकर क्यों प्रसिद्ध हैटोंक जिले का इतिहास और टोंक क्यों प्रसिद्ध है
जोधपुर जिले का इतिहास और जोधपुर क्यों प्रसिद्ध हैकोटा जिले का इतिहास और कोटा क्यों प्रसिद्ध है
अजमेर जिले का इतिहास और अजमेर क्यों प्रसिद्ध हैबूंदी जिले का इतिहास और बूंदी क्यों प्रसिद्ध है
भीलवाड़ा जिले का इतिहास और भीलवाड़ा क्यों प्रसिद्ध हैबारा जिले का इतिहास और बारा क्यों प्रसिद्ध है
झालावाड जिले का इतिहास और झालावाड क्यों प्रसिद्ध हैश्रीगंगानगर जिले का इतिहास और श्रीगंगानगर क्यों प्रसिद्ध है
हनुमानगढ़ जिले का इतिहास और हनुमानगढ़ क्यों प्रसिद्ध हैपाली जिले का इतिहास और पाली क्यों प्रसिद्ध है
सिरोही जिले का इतिहास और सिरोही क्यों प्रसिद्ध हैशेखावाटी का इतिहास
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राजस्थान का इतिहास (Raajasthaan ka itihaas)

राजस्थान राजपुताना राज्य हमेशा खुशियों में रहा है. राजस्थान का इतिहास भी बहुत पुराना है. पुरातात्विक प्रमाणों से यह ज्ञात होता है. कि लगभग 100000 साल पहले प्रारंभिक मानव बनास नदी व उसकी सहायक नदी के तटों पर निवास करते थे. हड़प्पा, सिंधु व उत्तर हड़प्पा संस्कृतिओं 3000 से 2000 ईसवी पूर्व के अवशेष कालीबंगा, आहार व गिलुंद में प्राप्त हुए है. कालीबंगा से मिले मिट्टी के बर्तनों को कार्बन डेटिंग के अनुसार 2700 ईसवी पूर्व का निर्धारित किया गया है. बेरात के पास दो अशोक कालीन शिलालेख लगभग 250 ईसवी पूर्व जिससे यह ज्ञात होता है कि संभवत है उनका शासन पश्चिम दिशा से राज्य के एक हिस्से। तथा इसके बाद राज्य के संपूर्ण या एक भाग पर रोमन, सीरियाई, गुप्त, हूण और एक राजपूत शासक हर्षवर्धन आदि का शासन रहा.

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7वी से 11वी सदी के राजस्थान का इतिहास

सातवीं से 11 वीं सदी के मध्य इस राज्य में अनेक राजपूत राजवंशों का उदय हुआ जिनमें गुर्जर- प्रतिहार भी थे. जिन्होंने सिंध के अरब आक्रमणकारियों को रोक कर रखा. राजा भोज प्रथम ने 1836 से 1885 के शासनकाल में गुर्जर प्रतिहार राज्य हिमालय से नर्मदा नदी तक. और निचली गंगा घाटी से सिंध तक था. इस साम्राज्य के विखंडन के पश्चात 10 वीं शताब्दी तक राजस्थान में अनेक राजपूत वंश सत्ता में आए. प्रतिहारों के जागीरदार गुहिलों ने सन् 940 में अपने को स्वतंत्र घोषित कर मेवाड़ आधुनिक उदयपुर के निकटवर्ती क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया. 11 वीं शताब्दी तक राज्य के पूर्वी भाग चौहान बड़ी शक्ति बनकर उभरे, जिनकी राजधानी पहले अजमेर बाद में दिल्ली रही. आगे की शताब्दियों में अन्य राजवंश जैसे कच्छवा, भाटी, वह राठौड़ इस क्षेत्र में स्वतंत्र राज्य के रूप में शासन किया.

1192 में तराइन के दूसरे युद्ध के साथ ही इस राज्य का इतिहास नवीन युग में प्रवेश किया. पृथ्वीराज तृतीय के नेतृत्व वाली राजपूत सेना पर मोहम्मद गौरी की विजय ने, न केवल उत्तरी भारत में मुसलमानों को मजबूती से स्थापित किया. बल्कि गंगा के मैदानों से राजपूत शक्ति का विनाश भी कर दिया. जैसे जैसे मुस्लिम शासक दक्षिण और पश्चिम की ओर गुजरात के पारंपरिक मार्ग की ओर बढ़े. राजस्थान के राजपूताना राज्य घिरते चले गए. अगले 4 सदियों तक दिल्ली स्थित केंद्रीय शक्ति ने क्षेत्र की राजपूत शक्तियों को दबाने का बार-बार असफल प्रयास किया. हालांकि सम्मान इतिहास व सांस्कृतिक परंपरा होने के बावजूद राजपूत एक होकर शत्रुओं को निर्णायक मौत देने में सफलता नहीं प्राप्त कर पाए.

16 वीं सदी के राजस्थान का इतिहास

16 वीं सदी के प्रारंभिक दौर में मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह (महाराणा सांगा) के नेतृत्व में राजपूत शक्ति अपने चरम उत्कृष्ट पर पहुंची थी. लेकिन मुगल आक्रमणकारी बाबर के साथ में भीषण युद्ध में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. और संयुक्त राजपूत राजनीति का अल्पकालिक प्रताप तीव्र गति से समाप्त हो गया. विशेषकर राजधानी इतिहास के इस दौर से ही राजपूतों की शूरवीर रूमानी छवि उभरती है. जिन्होंने मुस्लिम आक्रमणकारियों से अपने परिवार सम्मान और धर्म की रक्षा की.

16वी सदी के अंतिम चरण में मुगल साम्राज्य की बागडोर इस वंश के महान शासक अकबर के हाथ में थी. अकबर ने कूटनीति व सैनिक अभियानों के माध्यम से वह प्राप्त कर सके, जो उनके पूर्वगामी में केवल शक्ति के बल पर हासिल नहीं कर पाए थे. मुगल सेना द्वारा चितौड़गढ़ और रणथंबोर पर कई सैन्य अभियानों के बाद सन 1567-68 में घेरकर नष्ट कर दिया गया. इसके अकबर ने अनेक राजपूत राजवंश के साथ संधिया भी की, इसके लिए उन्होंने कई राजपूत राजकुमारियों से स्वयं या अपने उत्तराधिकारीओं के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए.

मुगल वह राजपूतों के मध्य वैवाहिक संबंधों का सिलसिला आगे भी 18वीं सदी के शुरू तक चलता रहा. यह उल्लेखनीय है कि बादशाहा जहांगीर और शाहजहां की माताएं राजपूत थी. इस प्रकार राजस्थान के अनेक राजपूत राज्यों को उनके महत्वपूर्ण सैनिक संसाधनों को बिना किसी खर्चे के और सैनिक अभियान के मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया. इसके अतिरिक्त कुछ राजपूत राजाओं जैसे आमेर जयपुर के मानसिंह और मारवाड़ जोधपुर के जसवंत सिंह ने शाही मुगल सेना में वफादारी वह सम्मान के साथ काम किया. अकबर के अधीन क्षेत्र के राजपूत राज्यों को मुगल साम्राज्य की प्रशासनिक इकाई अजमेर सूबे के तहत एक साथ संगठित किया गया.

18वीं सदी के राजस्थान का इतिहास

18वीं सदी प्रथम दशक अर्थात सन 1707 में मुगल वंश के सबसे कूट शासक औरंगजेब की मृत्यु हो जाने के बाद भरतपुर एक राजपूत राज्य के रूप में उभरा जिसका विकास एक जाट विजेता ने किया. लेकिन सन 1803 तक राजस्थान के अधिकांश हिस्से पश्चिम मध्य भारत के मराठा राजवंशों को कर देने लगे. तत्पश्चात 19वीं सदी के दौरान भारत में अंग्रेजों का आगमन हुआ. और उन्होंने मराठों को परास्त किया और राजपूत राज्यों को राजपूताना रियासत में संगठित कर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित की. राजपूताना में भारतीय सरकार का प्रतिनिधित्व एक राजनैतिक अधिकारी करता था. जो गवर्नर जनरल का एजेंट था, और अजमेर मेवाड़ की छोटी रियासत का चीफ कमिश्नर भी था. उसके मातहत अनेक प्रेसिडेंट ऑफ राजनीतिक एजेंटों को विभिन्न राज्यों में नियुक्त किया गया था.

19वीं सदी राजस्थान का इतिहास

इसी समय देश में राष्ट्रीय राष्ट्रवाद की विचारधारा ने जन्म लिया हिंदू धर्म को अपने पुरातन पवित्र रूप में पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से स्वामी दयानंद सरस्वती ने उदयपुर में सत्यार्थ प्रकाश की रचना की. जिसने राजपूताना में हलचल पैदा कर दी. जैन मुनियों और विद्वानों ने भी महत्वपूर्ण वैचारिक आंदोलनों ने जन्म लिया. अजमेर राजनीतक गतिविधियों का केंद्र रहा, राष्ट्रवादी नेताओं में अर्जुन लाल सेठी, माणिक्य लाल वर्मा, गोपाल सिंह और जयनारायण व्यास जैसे महान लोग सम्मिलित थे. जब सन 1947 में देश ब्रिटिश प्रशासन से मुक्त हो गया.

और स्वतंत्र लोकतांत्रिक सरकार गठित हो गई. तब राजस्थान के राजपूत रियासत वह जागीरो का विभिन्न चरणों में एक इकाई के रूप में एकीकरण किया गया. उन्हें पहले मत्स्य संघ राजस्थान संघ जैसे छोटे समूह में समूह वध किया गया. जिन्हें सन 1949 में वृहद राजस्थान की स्थापना के लिए शेष राज्यओं के साथ मिला लिया गया. सन 1950 में भारतीय सविधान का प्र्वतन होने के साथ ही राजस्थान भारत का अभिन्न अंग बन गया. राजपूत राजकुमारों ने अपनी राजनीतिक शक्ति केंद्र सरकार के हाथों सौंप दी. हालांकि उन्हें मूल उपाधि कुछ विशेषाधिकार प्रिवीपर्स के अधिकार प्राप्त रहे. सन् 1970 में भूतपूर्व वस्तुओं के शासकों के विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया गया.

History and Tourist Places of Rajasthan
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राजस्थान में कितने जिले है? उनके नाम?

  1. जयपुर जिला
  2. झुंझुनू जिला
  3. बीकानेर जिला
  4. बूंदी जिला
  5. चित्तौड़गढ़ जिला
  6. अजमेर जिला
  7. अलवर जिला
  8. बांसवाड़ा जिला
  9. बाड़मेर जिला
  10. भरतपुर जिला
  11. भीलवाड़ा जिला
  12. चूरु जिला
  13. झालावाड़ जिला
  14. जोधपुर जिला
  15. डूंगरपुर जिला
  16. गंगानगर जिला
  17. जैसलमेर जिला
  18. जालौर जिला
  19. कोटा जिला
  20. नागौर जिला
  21. पाली जिला
  22. सवाई माधोपुर जिला
  23. टोंक जिला
  24. उदयपुर जिला
  25. सीकर जिला
  26. सिरोही जिला
  27. बारा जिला
  28. करौली जिला
  29. धौलपुर जिला
  30. प्रतापगढ़ जिला
  31. दोसा जिला
  32. हनुमानगढ़ जिला
  33. राजसमंद जिला

राजस्थान के प्रमुख घूमने लायक जगह और पर्यटन स्थल

राजस्थान के कुछ पर्यटन स्थलों को संक्षेप में निम्न प्रकार प्रस्तुत किया गया है.

  • देशनोक- इसे करणी देवी मंदिर, चूहों का मंदिर जिनको काबा कहते के लिए जाना जाता है.
  • अलवर- इसे संग्रहालय, दुर्ग, महल आदि के लिए जाना जाता है.
  • देलवाड़ा- इसको जैन मंदिर व तीर्थ स्थल के लिए जाना जाता है.
  • बयाना- इसे ऐतिहासिक दुर्ग के लिए जाना जाता है.
  • फोय सागर- इसे झील पर पर्यटन स्थल और मछली पकड़ने के लिए जाना जाता है.
  • डीग- इसे महल, दुर्ग, बाग बगीचे आदि के लिए जाना जाता है.
  • चित्तौड़गढ़- इसे वीरों का शहर, दुर्ग, मंदिर, महल, स्मृति स्थल विजय स्तंभ आदि के लिए जाना जाता है.
  • गजनेर- इसे वन्यजीव अभ्यारण के लिए जाना जाता है.
  • दाराह- इसे वन्य जीवन के लिए जाना जाता है.
  • बरौली- – इसे प्राचीन मंदिर के लिए जाना जाता है.
  • एकलिंगजी- इसे प्राचीन मंदिर के लिए जाना जाता है.
  • अहर- इसे प्राचीन राजधानी का पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन के लिए जाना जाता है.
  • बिजोलिया- इसे मंदिर, दुर्ग, कलाकृतियां के लिए जाना जाता है.
  • अचलगढ़- इसे दुर्ग,मंदिर, झील के लिए जाना जाता है.
  • बूंदी- इसे झील पर दुर्ग के लिए जाना जाता है.
  • गेटोर- इसे मकबरा महल के लिए जाना जाता है.
  • अकल काठ फॉसिल पार्क- इसे 180 करोड़ पुराने फॉसिल्स के लिए जाना जाता है.
  • माउंट आबू- इसे पहाड़ी मनोरंजन, हिंदू तीर्थ स्थल, मंदिर बाग बगीचे, नौका विहार के लिए जाना जाता है.
  • नागौर- इसे दुर्ग के लिए जाना जाता है, इसको औजारों की नगरी भी कहते है.
  • झुंझुनू-इसे शेखावाटी की राजधानी, खुली जगह में कला दीर्धा के लिए जाना जाता है.
  • रणथंबोर दुर्ग- इसे मंदिर, राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर रिजर्व के लिए जाना जाता है.
  • सम- इसे बालू के टिब्बे, सफारी आदि के लिए जाना जाता है.
  • सांभर- भारत की सबसे बड़ी नामक झील, नक्की झील के लिए जाना जाता है.
  • सांगानेर- इसे वस्त्र ठप्पा, छपाई महलो के खंडरो के लिए जाना जाता है.
  • सरिस्का- इसे वन्यजीवों अभ्यारण्य के लिए जाना जाता है.
  • उदयपुर- झील, महल, हस्त कला, संग्रहालय आदि के लिए जाना जाता है.
  • गाल्टा- इसे मंदिर पर्यटन स्थल, खनिज स्त्रोत आदि के लिए जाना जाता है.
  • चुरू- इसे हवेलियां भित्ति चित्र, मरुस्थल, मनोरंजक आदि के लिए जाना जाता है.
  • झालावाड़- इसे संग्रहालय प्राकृतिक मरुभूमि आदि के लिए जाना जाता है.
  • जैसलमेर- इसे मरुस्थलीय नगर, महल पुस्तकालय, भवन, दुर्ग, मकबरा, भेड़ के बालों की हस्तकला के लिए जाना जाता है.
  • कांकरोली- इसे तीर्थ स्थल के लिए जाना जाता है.
  • जयपुर- इसे गुलाबी नगरी, मध्ययुगीन नगर निर्माण का सुंदर नमूना, दुर्ग, महल, प्राचीन विद्यालय, हस्तकला संग्रहालय के लिए जाना जाता है.
  • झालरापाटन- इसे घंटियों का शहर, प्राचीन गुफाएं मंदिर आदि के लिए जाना जाता है.
  • मंडोर- इसे प्राचीन राजधानी, महल व मंदिरों के भग्नावशेष, बाग इत्यादि के लिए जाना जाता है.
  • नाथद्वारा- इसे हिंदू तीर्थ स्थल के लिए जाना जाता है.
  • जमवारामगढ़- इसे वन्यजीव अभयारण्य, झील पर पर्यटन स्थल के लिए जाना जाता है.
  • कुंभलगढ़- इसे प्राचीन दुर्गा मंदिर विस्तार वन्यजीव अभयारण्य के लिए जाना जाता है.
  • पिलानी झुंझुनू- शिक्षा केंद्र, भित्ति चित्र आदि के लिए जाना जाता है.
  • पुष्कर- इसे हिंदू तीर्थ स्थल, ब्रह्मा जी का मंदिर, मेला आदि के लिए जाना जाता है.
  • रणकपुर- इसे जैन मंदिर व शिल्प कला के लिए जाना जाता है.
  • केलादेव राष्ट्रीय उद्यान- इसे भारत का सबसे बड़ा पानी में पक्षियों का अभ्यारण्य आदि के लिए जाना जाता है.
  • ओसिया- इसे प्राचीन हिंदू व जैन मंदिर,बालू के टिबो के लिए जाना जाता है.
  • कोटा- – इसे औद्योगिक केंद्र, संग्रहालय आदि के लिए जाना जाता है.
  • जोधपुर- दुर्ग, संग्रहालय, महल हस्तकला, मकबरा, मंदिर आदि के लिए जाना जाता है.
  • जयसमंद- इसे एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील, पर्यटन स्थल आदिवासी आदि के लिए जाना जाता है.
  • बीकानेर- इसे दुर्ग, महल, संग्रहालय, मरुस्थल नगर, हस्तकला, मंदिर आदि के लिए जाना जाता है.
  • भरतपुर- पक्षी अभयारण्य – इसे दुर्ग महल, संग्रहालय आदि के लिए जाना जाता है.
  • अजमेर- इसे प्राचीन राजधानी महल, मंदिर जो जयपुर से 11 किलोमीटर दूर है. तथा मोहिदीन चिश्ती की दरगाह, मायो कॉलेज, संग्रहालय, दुर्गे, झील के लिए जाना जाता है.
  • सिलीसेढ़- इसे महल, झील, मछली पकड़ने के लिए जाना जाता है.
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शेखावाटी की चित्रकला

भू-आकृति एवं जलवायु

राजस्थान की भू-आकृति कुछ इस प्रकार है. यहां स्थित अरावली की पहाड़ियां राज्य को दो भागो में बाट देती है. दक्षिण पश्चिम में 1722 मीटर ऊंचा गुरु शिखर माउंट आबू से पूर्वोत्तर से खेतड़ी झुंझुनू तक एक रेखा बनाती हुई गुजरती है. राज्य का लगभग 3/5 भाग इस रेखा के पश्चिमोत्तर में व शेष 2/5 भाग दक्षिण पूर्व में स्थित है. राजस्थान के यह दो बार प्राकर्तिक विभाजन है. बेहद कम पानी वाला पश्चिमोत्तर भूभाग रेतीला और अनुउत्पादक है. इस क्षेत्र में विशाल भारतीय रेगिस्तान (थार) आता है. सुदूरपश्चिम और पश्चिमोत्तर के रेगिस्तानी क्षेत्रों में पूर्वी दिशा की भूमि अपेक्षाकृत आवासीय और उपजाऊ है, जो कृषि के लिए उपयोगी है.

दक्षिण पूर्वी क्षेत्र जिसका क्षेत्रीय स्वरूप काफी भिन्नता लिए हुए हैं. अपेक्षाकृत समुद्र तल से 350 मीटर ऊपर अधिक उपजाऊ है. मेवाड़ की पहाड़ी राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है. दक्षिण पूर्व में कोटा, बूंदी जिले का एक बड़ा क्षेत्र पहाड़ी पठारी पूर्वी का निर्माण करता है. और इन जिलों के पूर्वोत्तर भाग में चंबल नदी के प्रवाह के साथ साथ क्षेत्र बंजर भूमि है. आगे उत्तर की ओर का क्षेत्र समतल होता जाता है पूर्वोत्तर भरतपुर जिले में समतल भूमि यमुना नदी के जल और बेसिन का एक अंग है.

राजस्थान में अरावली की पहाड़ियां का क्या महत्व है

राजस्थान में अरावली का काफी महत्व है. यह इस राज्य के सर्वाधिक महत्व वाले जल विभाजक का निर्माण करती है. इस पर्वत श्रृंखला के पूर्व में जल का बहाव पूर्वोत्तर की और है. जैसा कि राज्य की एकमात्र बड़ी बारहमासी नदी चंबल का प्रवाह है. बनास नदी इसकी प्रमुख सहायक नदी है. यह नदी कुंभलगढ़ के निकट अरावली से निकलती है. वह मेवाड़ पठार के समस्त जल प्रवाह को संग्रहित करती है.

आगे उत्तर में बाणगंगा जयपुर के निकट निकलने के बाद विलुप्त होने से पहले एक पूर्व दिशा में यमुना की ओर बहती है. अरावली के पश्चिम में लूनी ही एकमात्र नदी है जो अजमेर की पुष्कर घाटी से निकलती है. और 320 किलोमीटर पश्चिम दक्षिण पश्चिम दिशा में बहती हुई कच्छ के रण तक जाती है. शेखावाटी क्षेत्र में लूनी बेसिन का पूर्वोत्तर हिस्सा आंतरिक हुआ है. वह खारे पानी की झीलों के लिए काफी प्रसिद्ध है. इनमें सांभर साल्ट लेक सबसे बड़ी है. सुदूर पश्चिम में वास्तविक मरुस्थल बंजर भूमि व रेत के टीलों के क्षेत्र हैं. जो विशाल भारतीय रेगिस्तान की ह्रदयस्थली का निर्माण करते हैं.

राजस्थान के कौन-कौन से जिलों में रेगिस्तान है?

राज्य के जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, झुंझुनू, सीकर, पाली व नागौर जिले में राज्य के पश्चिमोत्तर के रेतीले मैदान स्थित हैं. यहां लवणीय व छारीय मिट्टी की प्रमुखता है. पानी दुर्लभ है लेकिन 100 मीटर की गहराई पर मिल जाता है. मिट्टी व रेत में कैल्सियम की मात्रा पायी जाती है. यहां मिट्टी में नाइट्रेट की उर्वरता को बढ़ाते हैं. जैसा कि इंदिरा गांधी नहर (भूतपूर्व राजस्थान नहर) के क्षेत्र में देखा गया है.

पानी की पर्याप्त आपूर्ति से खेती-बाड़ी प्राय संभव हुई है. मध्य राजस्थान के अजमेर जिले में मिट्टी रेतीली है. चिकनी मिट्टी की मात्रा तीन 9% के बीच मिलती है. इस राज्य के पूर्वी जिले जयपुर और अलवर में बलुआ दोमट रेतीली चिकनी मिट्टी मिलती है. कोटा, बूंदी, झालावाड़ क्षेत्र में मिट्टी सामान्यतः काली व गहरी और अधिक समय तक नम रहती है. उदयपुर, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा व भीलवाड़ा जिलों के पूर्वी क्षेत्रों में मिश्रित लाल व काली मिट्टी है. जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में लाल और पीली मिट्टी प्रमुखता है.

राज्य राजस्थान की जलवायु

इस राज्य की जलवायु व्यापक भिन्नता लिए हुए हैं. एक और अति शुष्क तो दूसरी ओर आद्र शुष्क क्षेत्र हैं. आद्र क्षेत्रों में दक्षिण पूर्व व पूर्वी जिले आते हैं. पर्वतों के अतिरिक्त सभी स्थलों पर ग्रीष्म काल से में भयंकर गर्मी पड़ती है. वह अधिकतम औसत तापमान 46 डिग्री सेल्सियस रहता है. विशेषता रेगिस्तानी क्षेत्रों में गर्म हवाएं वह धूल भरी आंधियां चलती है. जो काफी कष्टकारी होती हैं. राजस्थान में शीतकाल के दौरान तापमान 15 डिग्री से 20 डिग्री के मध्य रहता है. पश्चिमी रेगिस्तान में कम वर्षा होती है. लेकिन दक्षिण पूर्व में अधिक वर्षा होती है. दक्षिणी पूर्वी राजस्थान अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की पश्चिमी मानसून ग्रीष्मकालीन की दोनों शाखाओं से लाभान्वित होता है. वह क्षेत्र में 90% वर्षा इन्हीं के माध्यम से होती है.

राजस्थान की वनस्पति

राजस्थान में वनों का विस्तार भी काफी है. यहां पाए जाने वाले वन झाड़ीदार होते है. यही इस राज्य की प्रमुख वनस्पति भी है. राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र झाउ और झाउ जैसे शुष्क क्षेत्र के पौधे पाए जाते हैं. पेड़ विरल है और यहाँ अरावली पहाड़ियां वह दक्षिण राजस्थान में ही थोड़े बहुत दिखाई देते हैं.

इस राज्य में अरावली के अलावा और भी कई जिलों में बांध पाए जाते हैं. पर्वतों में जंगलों में तेंदुआ। रीछ, सांभर और चीतल को देखा जा सकता है. नीलगाय भी कुछ हिस्सों में पाई जाती है. मैदानी क्षेत्रों में काले हिरण व जंगली हिरण बहुतायत में हैं. रेगिस्तान को छोड़कर चाहा, बटेर, तीतर और जंगली बतख हर जगह पाए जाते हैं. बीकानेर क्षेत्र रेगिस्तानी तीतर के अनेक प्रजातियों के लिए काफी प्रसिद्ध है. कई अभ्यारण्य ने व वन्यजीव पार्कों को भी इस राज्य में स्थापित किया गया है. इनमें अलवर के निकट सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण्य जैसलमेर के निकट डेंजर नेशनल पार्क का काफी महत्व है.

राजपुताना राजस्थान का जनजीवन एवं संस्कृति

इस राज्य का जन जीवन कुछ अलग प्रकार का है. राज्य के अलवर, जयपुर, भरतपुर व धौलपुर क्षेत्र के मूल आदिवासी लोगों में घुमंतु व्यापारी व शिल्पकार बंजारे, मीना, मिये और कृषि व घरेलू वस्तुओं की मरम्मत व निर्माण कार्य में लगी एक अन्य घुमक्कड़ जनजाति गड़िया लोहार हैं. यहां भील काफी प्राचीन समय से रह रहे हैं. जो प्रमुख रूप से भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर व सिरोही जिला है. वे अपनी धनुर्विद्या के लिए विख्यात है. कोटा जिले के सहारिया एवं मेवाड़ क्षेत्र की प्रभारी पशुपालन एक जनजातियां है.

राजपूतों का राज्य अवश्य था, परंतु वर्तमान समय में इनकी संख्या बहुत कम है. फिर भी राज्य में इसका काफी महत्व है. यह राज्य की जनसंख्या का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. वे अपने योद्धा होने की ख्याति और अपने पूर्वजों पर गर्व करते हैं. ब्राह्मण वर्ग अनेक गोत्रों में विभाजित है. और महाजन व्यापारी वर्ग तो आश्चर्यजनक रूप से अनेकानेक उप समूहों में विभाजित हैं. इन समूहों में कुछ जैन और अन्य हिंदू हैं. राज्य के पूर्व में सैनी जाती के लोग प्रमुख रूप से कृषि कार्य करते हैं, तो उत्तर पश्चिम में जाट गुर्जर प्रमुख रूप से कृषि कार्य करते हैं.

राजस्थान में कोन-कौन सी बोलिया बोली जाती है?

इस राज्य में प्रमुखता राजधानी भाषा बोली जाती है. जो डिंगल से उत्पन भारतीय-आर्य बोलियों को शामिल करती है. इसमें कभी भाट चारणों ने अपने स्वामियों के प्रशस्ति गान गाए थे. चार प्रमुख बोलियों में मारवाड़ी पश्चिमी राजस्थान, जयपुरिया या ढूंढारी (पूर्व दक्षिण पूर्व), मालवी(दक्षिण-पूर्व) और अलवर में मेवाती प्रमुख है. इसका स्थान राज्य की राजकीय भाषा हिंदी है. भरतपुर जिले में बृज भाषा पर मेवाती का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है. राजस्थान में वर्तमान शिक्षा का प्रसार होने के साथ-साथ राजस्थानी भाषा का उपयोग कम होने लगा है. इसके स्थान पर हिंदी, अंग्रेजी भाषा का विस्तार हो रहा है जो हिंदी राज्य की राजकीय भाषा भी है.

राज्य में धर्म

राजस्थान राज्य की बहुसंख्यक आबादी हिंदू धर्म को मानती है. वह साधारण तय यहां ब्रह्मा, शिव, शक्ति, विष्णु, व अन्य देवी देवताओं की उपासना की जाती है. नाथद्वारा कृष्ण भक्तों के वल्लभाचार्य पंत का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है. यहां हिंदू धर्म के सुधारवादी मत आर्य समाज के अनुयायियों के साथ अन्य मतों को मानने वाले भी हैं. जैन धर्म शास्त्र वर्ग का धर्म नहीं रहा लेकिन व्यापारी वह समाज के धनी वर्ग में इस धर्म के अनुयाई हैं. जैन धर्म के तीर्थ स्थलों में महावीरजी, रणकपूर, धुलेव व कारेरा प्रमुख केंद्र हैं. एक अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक संप्रदाय की स्थापना दादू के अनुयाई दादूपंथीयो ने की. दादू ने सभी व्यक्तियों की समानता, शाकाहार, मदिरा का पूर्ण त्याग व जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करने की शिक्षा दी थी. मुसलमानों की संख्या इस राज्य में हिंदुओं के बाद दूसरे स्थान पर है.

इस राज्य में इस्लाम का विस्तार 12 वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा अजमेर विजय के पश्चात हुआ. मुसलमान सूफी संत ख्वाजा मुद्दीन चिश्ती का मुख्यालय अजमेर था. और यही मुसलमान व्यापारी शिल्पकार वह सिपाही गए बस गए. राजस्थान राज्य में सिख व ईसाई भी हैं, मगर इसकी संख्या कम है. क्षेत्रफल के अनुसार इस राज्य की जनसँख्या काफी कम है. यहां का जनसंख्या घनत्व मात्र 200 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है. अधिकांश गांव में नगर अरावली के पर्व में स्थित है. शहरी जनसंख्या ग्रामीण जनसंख्या की अपेक्षा गति से बढ़ रही है. लेकिन फिर भी यहां गिने-चुने बड़े नगर हैं. जिसमें जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर, व अलवर शामिल है. जयपुर, कोटा, उदयपुर, भीलवाड़ा औद्योगिक कांपलेक्स है. जो आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण है.

राजस्थान के गांव कैसे होते है?

राजस्थान के ग्रामीण इलाको में मिट्टी की दीवारों को छत पर से बनी झोपड़ियां हैं. इनमें एक दरवाजा होता है, लेकिन कोई खिड़की या रोशनदान नहीं होता। बड़े गांव में संपन्न किसानों व शिल्प कारों के घरों में एक से अधिक कमरे होते हैं. छप्पर खपरैल की होती हैं, और एक बरामदा वह बड़ा आंगन होता है. जिसके मुख्य दरवाजे से भरी बेल गाड़ी आ जा सकती है. कच्चे फर्श की मिट्टी व गोबर से पुताई होती है. कहीं-कहीं ईट के मकान भी देखे जा सकते हैं. यहां लगभग हर महीने कोई ना कोई धार्मिक उत्सव से होता है. सबसे उल्लेखनीय विशिष्ट उत्सव गणगौर है. जिनमें महादेव पार्वती की मिट्टी को मूर्तियों की पूजा 15 दिन तक सभी जातियों की स्त्रियां द्वारा की जाती है. और बाद में उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है.

विसर्जन की शोभायात्रा में पुरोहित व अधिकारी भी शामिल होते हैं. वह गाजे-बाजे के साथ शोभायात्रा निकलती है. इन अवसरों पर उत्साह व उल्लास का माहौल होता है. अजमेर जिले के समीप आयोजित होने वाला पुष्कर मेला धार्मिक उत्साह व पशु मेले का मिश्रित स्वरूप है. यहां राज्य भर से किसान अपने बेल, ऊंट आदि लेकर आते हैं. तीर्थयात्री मुक्ति की खोज में आते हैं.

कौनसा नर्त्य राजस्थान का प्रमुख नर्त्य है?

राजस्थान में महिलाओं का घूमर नृत्य राजस्थान का प्रमुख नृत्य है. यह नृत्य किसी उत्सव विशेष पर किया जाता है. घेर नर्त्य महिलाओं और पुरुषों द्वारा किए जाने वाला,पनिहारी महिलाओं द्वारा व कच्ची घोड़ी जिसमें पुरुष बनावटी घोड़ी पर बैठ कर ये नर्त्य करते है, जो काफी लोकप्रिय हैं. सबसे प्रसिद्ध गीत खुर्जा है, जिसमें एक ही स्त्री की कहानी है. जो अपने पति को कुरजा पक्षी के माध्यम से संदेश भेजना चाहती है. वह इसकी सेवा के बदले बेशकीमती पुरस्कार देने का वायदा करती है. भारतीय कला में इस राज्य का योगदान काफी है.

और यहां साहित्य परंपरा मौजूद है विशेषकर भाट कविता की चंदबरदाई का काव्य पृथ्वीराज रासो या चंद्रहासा विशेष उल्लेखनीय हैं. जिसकी प्रारंभिक हस्तलिपि 12 वीं शताब्दी की है. मनोरंजन का लोकप्रिय माध्यम ख्याल है. जो एक नृत्य नाटिका है और इसकी जिसके काव्य की विषय वस्तु उत्सव इतिहास व प्रसंगों पर आधारित रहती है. राजस्थान में प्राचीन दुर्लभ वस्तुएं प्रचुर मात्रा में है. जिनमें बौद्ध शिलालेख, जैन मंदिर, किले, शानदार रियासती महल और मंदिर शामिल है.

राजस्थान की अर्थव्यवस्था कैसी है?

राजस्थान की अर्थव्यवस्था में कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इस राज्य से अनाज व सब्जियों का निर्यात भी किया जाता है. वह नियमित वर्ष के बावजूद यहां लगभग सभी प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं. रेगिस्तानी क्षेत्र में बाजरा, गोआ में ज्वार, उदयपुर में मुख्यतः मक्का का उत्पादन काफी मात्रा में किया जाता है. राज्य में गेहूं व जौ का विस्तार अच्छा खासा है. कुछ रेगिस्तानी क्षेत्रों को छोड़कर। ऐसा ही दलहन मटर से व मसूर जैसे खाद्य फलिया, गन्ना व तिलहन के साथ भी हैं. चावल की उन्नत किस्मों को लाया गया है. वह चंबल घाटी और इंदिरा गांधी नहर परियोजना के क्षेत्रों में इससे फसल के कुल क्षेत्रफल में वृद्धि हुई है. कपास व तंबाकू महत्वपूर्ण नकदी फसलें हैं.

हालांकि यहां का अधिकतर क्षेत्र शुल्क व अर्ध शुष्क हैं. फिर भी राजस्थान में बड़ी संख्या में पालतू पशु है. वह भारत में राजस्थान ही सर्वाधिक ऊन का उत्पादन करने वाला राज्य है. ऊँटो वह शुष्क इलाके के पशुओं की विभिन्न नस्लों पर राजस्थान का एकाधिकार है. शुष्क भूमि की प्रमुखता होने के कारण यहां की सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है. राजस्थान में जल की आपूर्ति पंजाब की नदियों पश्चिमी यमुना हरियाणा और आगरा की नहरो उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण में साबरमती पर नर्मदा सागर परियोजनाओं से होती है. यहां हजारों की संख्या में जलाशय, तालाब झील हैं. लेकिन वे सूखे व गाद से प्रभावित हैं. राजस्थान भाखड़ा नांगल परियोजना से पंजाब और चंबल घाटी परियोजना में मध्यप्रदेश का साझेदार राज्य है.

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दोनों परियोजनाओं से प्राप्त जल का उपयोग सिंचाई व पेयजल आपूर्ति के लिए किया जाता है. सन 1980 के दशक के मध्य में स्वर्गीय प्रधानमंत्री की स्मृति में राजस्थान नहर का नाम बदलकर इंदिरा गांधी नहर रखा गया. जो पंजाब की सतलुज और व्यास नदियों के पानी को लगभग 644 किलोमीटर की दूरी ले जाती है. और पश्चिमोत्तर व पश्चिमी राजस्थान की मरू भूमि को सिंचित बनाती है.

राजस्थान में कौन-कौन से खनिज पाए जाते है?

यहां पर खनिज की मात्रा भी पाई जाती है देश के सामरिक जस्ता सीसा पन्ना व गार्नेट का संपूर्ण उत्पादन राजस्थान में ही होता है. देश के जिप्सम व चांदी आज तक उत्पादन का लगभग 90% भाग भी राजस्थान में होता है. यहां के प्रमुख उद्योग वस्त्र, वनस्पति तेल और खनिज व रसायन पर आधारित है. जबकि चमड़े का सामान, संगमरमर की कारीगरी, आभूषण निर्माण, मिट्टी के बर्तन का निर्माण और पीतल का जड़ाऊ काम इत्यादि जैसे हेल्प शिल्प उसे काफी विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है. यहां की अर्थव्यवस्था में उद्योगों का भी योगदान है.

अनेक औद्योगिक इकाइयों को सरकार व अर्ध सरकारी एजेंसी राजस्थान वित्त निगम से पर्याप्त वित्तीय अनुदान प्राप्त हुआ है. राजस्थान का कोटा जिला प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है. यहां नायलॉन और सूक्ष्म उपकरण बनाने की फैक्ट्री के साथ-साथ कैल्शियम कार्बाइड कास्टिक सोडा रेयो टायर के तार निर्माण के संयंत्र भी हैं. उदयपुर में जिंक गलाने का संयंत्र स्थापित है. राजस्थान को बिजली आपूर्ति पड़ोसी राज्यों में चंबल घाटी परियोजनाओं से की जाती है. कोटा के निकट रावतभाटा में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित है.

परिवहन

राजस्थान में यातायात की सुविधा अच्छी है. यहां रेल मार्ग सड़क मार्ग और वायु मार्ग जैसी सभी प्रकार की सुविधाएं हैं. यह देश के प्रमुख हिस्सों से रेल मार्ग व वायु मार्ग से जुड़ा है. यहां के उदयपुर, जयपुर, जोधपुर, कोटा में प्रमुख हवाई अड्डे हैं. जहां से देश के प्रमुख शहरों तक आवागमन किया जाता है.

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FAQs

Q- राजस्थान की राजधानी को किस नाम से पुकारते है?.

Ans- राजस्थान की राजधानी जयपुर है जिसको गुलाबी नगरी के नाम से भी पुकारते है.

भारत की संस्कृति

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