दोस्तों आज से लगभग 446 साल पहले 18-जून-1576 को भीषण गर्मी में राजस्थान के उदयपुर जिले के हल्दीघाटी नामक जगह पर मुगलो और वीर प्रताप की सेना के मध्य आमने सामने की लड़ाई हुई थी. एक तरफ राणा प्रताप अपने स्वाभिमान और अपने राष्ट्र प्रेम के लिए लड रहे थे. तो दूसरी तरफ थे मुगलो के राजा अकबर जिस ने लगभग पूरा भारत जीत लिया था. मित्रों हम यहाँ Haldighati Ki Ladai की वो रोचक जानकारी शेयर करने जारहे है. जिसके बारे में न तो आपको कभी पढ़ाया गया और न कभी आपने सुनी होगी. तो दोस्तों बढ़ते है आगे, हल्दीघाटी की रोचक जानकारी के लिए.
मित्रों हल्दीघाटी मेवाड़, राजस्थान अथवा भारत ही नहीं, ये पुरे संसार की पवित्र घाटी है. जहाँ अपनी जन्म भूमि की स्वाधीनता के लिए देश भगत वीर राजपूतो ने अपना पवित्र रक्त बहाया था. विदेशी इतिहासकार कर्नल जेम्स टोंड लिखते है. महाराणा प्रताप और मेवाड़ के वीर राजपूतो की वीरता और सवदेश प्रेम की भावना से प्रेरित होकर हल्दीघाटी को मेवाड़ की थर्मोपोली और देवारि की रणभूमि को वहां का मैराथन बतलाया है. जहाँ महाप्रतापी राणा के चरणों के चिन्ह पड़े.
Biography of Maharana Pratap
नाम | कुँवर प्रताप जी (श्री महाराणा प्रताप सिंह जी) |
जन्म | 9 मई, 1540 ई. |
जन्म भूमि | कुम्भलगढ़, राजस्थान |
पुण्य तिथि | 29 जनवरी, 1597 ई. |
पिता | श्री महाराणा उदयसिंह जी |
माता | राणी जीवत कँवर जी |
राज्य | मेवाड़ |
शासन काल | 1568–1597ई. |
शासन अवधि | 29 वर्ष |
वंश | सुर्यवंश |
राजवंश | सिसोदिया |
राजघराना | राजपूताना |
धार्मिक मान्यता | हिंदू धर्म |
युद्ध | हल्दीघाटी का युद्ध |
राजधानी | उदयपुर |
पूर्वाधिकारी | महाराणा उदयसिंह |
उत्तराधिकारी | राणा अमर सिंह |
श्री महाराणा प्रताप के घोड़ा नाम | चेतक |
पोस्ट श्रेणी | Haldighati Ki Ladai |
Summary
लड़ाई का नाम | हल्दीघाटी |
लड़ाई की जगह | गोगुंदा |
उपनाम | मेवाड़ की थर्मोपोली |
लड़ाई कब हुई | 18 जून 1570 ईस्वी |
लड़ाई किस के मध्य हुई | चित्तौड़गढ़ के महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर |
राज्य | राजस्थान |
जिला | राजसमंद |
तहसील | राजसमंद |
किस लिए प्रसिद्ध है | हल्दीघाटी के लड़ाई के लिए |
भाषा | हिंदी, मारवाड़ी |
पर्यटक स्थल | चेतक की समाधी, महाराणा प्रताप जी की समाधी, राजसमंद झील |
सांसद का नाम | सुश्री दिया कुमारी |
क्षेत्र | मेवाड़ |
चुनावी क्षेत्र/तहसील | कुंभलगढ़, नाथद्वारा,आमेट, भीम, देवगढ़, रेलमगरा और राजसमन्द |
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अकबर के चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण और विजय
चित्तौड़गढ़ पर राणा प्रताप के पिता जी उदयसिंह का शासन था. अकबर को चित्तौड़गढ़ के आस-पास के छोटे छोटे राज्य जीत चूका था. और कुछ राजपूत राजाओ के साथ शादी करके परिवारीक रिश्ते बना लिए थे. पर अकबर के सामने थे चित्तौड़गढ़ के राजा उदयसिंह जिन्होंने बचपन से ही देशप्रेम कूट-कुट के भरा था. चित्तौड़गढ़ का किला बहुत ही दृढ़ था. क्यों की अब तक किसी ने चित्तौड़गढ़ को फतेह नहीं किया था. अब तक के प्राय सभी आक्रमणकारी उस पर विजय पाने में असफल रहे थे. यह बात अकबर भी जानता था इसलिए उसने केवल चितौड़गढ़ के किले को विजय करने अथवा इसमें ही अपना सारा ध्यान लगाया।
चित्तौड़ के राजा राणा उदय सिंह का पहला पुत्र महाराणा प्रताप थे. तो दूसरा पुत्र शक्ति सिंह अपने पिता से नाराज होकर सम्राट अकबर के साथ था. धौलपुर राजस्थान पहुंचने पर अकबर ने उससे पूछा शक्ति सिंह क्या तुम अपने पिता के विरुद्ध इस युद्ध में हमारी तरफ से युद्ध करोगे?. कहा जाता है कि अकबर ने फिर उसे यह कहा कि राजस्थान के अधिकार नरेश हमारी अधीनता स्वीकार कर ली है. परंतु तुम्हारे पिता उदय सिंह ने अभी तक अपने घमंड के कारण मेरे दरबार में हाजिरी नहीं दी है. इसलिए मैं उसके राज्य पढ़ाई करके जा रहा हूं. शक्ति सिंह को भी अपने राजपूतों की तरह से प्रेम था. इसलिए उसने चुपचाप मुगलो की छावनी छोड़ दी और अपने पिता राणा उदय सिंह को ये समाचार देने शीघ्रता से चित्तौड़गढ़ निकल गया.
Haldighati Ki Ladai
अकबर ने एक अग्रिम जस्ता आसफ खाँ की कमान में मांडल के किले को विजय करने हेतु भेजा आसफ खाँ मांडल और रामपुरा पर अपना अधिकार कर लिया. और फिर वह चित्तौड़ में अकबर के पास पहुंच गया अकबर को अब सूचना मिली कि राणा उदय सिंह चित्तौड़गढ़ की सुरक्षा का उत्तरदायित्व मेड़ता के जयमल को सौंपकर उदयपुर और कुंभलगढ़ की पहाड़ियों में चला गया है. इसलिए अकबर ने सेना की दूसरी टुकड़ी हुसैन कुली खां के नेतृत्व में राणा का पीछा करने और उस पूरे क्षेत्र में लूटपाट करने और आंतकी कार्य करने हेतु भेजा.
राणा उदयसिंह और अकबर के मध्य चित्तौड़गढ़ की लड़ाई
दोस्तों चित्तौड़गढ़ का किला अत्यंत विशाल और मजबूत था उसमें साथ प्रवेश द्वार थे. यह नीचे के मैदान से 400 से 500 फिट ऊंची एक अलग और डालूं नुमा पहाड़ी पर खड़ा है. नीचे इसकी कुल लंबाई 12 किलोमीटर से अधिक है किले की पूरी दिशा में सूरजपोल पक्षियों में रामपुर उत्तर दिशा मेला कोटा वारी दरवाजा तीन महत्वपूर्ण है. राणा उदय सिंह के बुद्धिमान और स्वामी भक्त सरदारों ने अकबर की शक्तिशाली सेना से परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे.इसी वजह से उन्होंने राणा उदय सिंह को सुरक्षित निकालकर कुंभलगढ़ की कठिन पहाड़ियों में भिजवा दिया था. परंतु उदय सिंह ने किले की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम कर दिया था. दुर्ग में जयमल राठौड़ के अधीन 8000 भी राजपूत और कालपी के 1000 कुशल बंदूकधारी किले की सक्रिय थे.
जब युद्ध शुरू हुआ तो हर रोज राणा उदय सिंह की सेना द्वारा मुगलो सेना के डेढ़ सौ से 200 सैनिक रोज मारे जाने लगे. यह बात तो अकबर भी समझ गया कि राणा उदय सिंह को हराना आसान नहीं है. उसने अपने दो तोप खाने और सुरंग बिछाने का आदेश दिया। सुरंग बिछाई गई और पूरी कोशिश की गई कि कैसे भी करके राजपूतों को काबू कर ले. लेकिन वह हर कोशिश में नाकाम होता गया. और बार-बार कोशिश करते करते वह मुख्य द्वार को ही तोड़ पाया.
अकबर की चित्तौड़गढ़ पर जीत
राजपूतों और मुगलो की इस लड़ाई में बहुत खून खराबे की लड़ाई हुई. अंत में इस युद्ध में लाशों के ढेर बन गए और राजपूतों की हार हुई. कहा जाता है कि इस जीत के बाद अकबर ने किले में मौजूद 30,000 से ज्यादा कर्षक (किसानो) और महिलाओं को कुचलकर मारने का आदेश दिया था, जिनमे राज परिवार की महिलाओ ने तो जोहर कर लिया था. अकबर द्वारा कराया गया निर्दोष नागरिकों का हत्याकांड उसकी हिंसक प्रवृत्तियों को उजागर करता है. तथा इसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता. तथा यह उसके यशस्वी जीवन पर एक अति घ्रणित और बदनुमा धब्बा है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता.
चित्तौड़गढ़ से विजय चिन्ह के रूप में अकबर अपने साथ प्रसिद्ध नगाड़े जिनकी ध्वनि मिलो तक सुनाई देती थी. और काली मंदिर का मोमबत्ती दान महल में सजा के रखा जा सके आगरा ले आया. अकबर जयमल राठौड़ और वीर खता की बहादुर से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसके उनके सम्मान में दो काले पत्थर की आदमकद मूर्तियां हाथियों पर गड़वायी।और उन्हें आगरा के किले के दुर्ग के मुख्य द्वार जिसे दिल्ली द्वार भी कहते हैं उस प्रवेश द्वार के दोनों बाजू में इनको स्थापित करवाया. इन दोनों वीरों की मूर्तियों को मूर्ति भंजक औरंगजेब ने अपने राज्य शासन के समय हटवा दिया था. जो कि उसके पूर्वज अकबर महान की महान वीरो के लिए स्नेह पूर्ण सर्धांजलि थी.
अकबर गुजरात विजय और चित्तौड़गढ़ के राजा जगमल
दोस्तों सन 1569 इ से 1572 ईसवी तक सम्राट अकबर गुजरात विजय और अन्य विद्रोह को दबाने में व्यस्त रहा. जिसमें मिर्जाऔ का विद्रोह प्रमुख था. गुजरात में जब उस शांति स्थापित हो गई तो फिर उसे राजस्थान के मेवाड़ राज्य की याद आई. जिसे वह उसके एक तिहाई हिसे को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला चुका था. मेवाड़ की राजधानी चितौड़गढ़ पर उसका अधिकार था मेवाड़ राज्य तब तक एक संयुक्त प्रदेश था. जहां की भूमि वन भूमि के कारण कम उपजाऊ थी. मेवाड़ के राणा उदयसिंह की मृत्यु मात्र 43 वर्ष की आयु में ही दिनांक 28 फरवरी 1572 को हो जाने का उदय सिंह की प्रिया रानी भटियानी का पुत्र जगमल मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा. राणा उदय सिंह का जस्ट पुत्र राणा प्रताप था किंतु उसे राजगद्दी से वंचित कर दिया गया था.
इस अन्याय के विरोध में मेवाड़ के प्रमुख सरदारों ने गोगुंदा में एक बैठक की और सर्वसम्मति से महाराणा प्रताप को मेवाड़ की गद्दी पर बैठा कर उसके सिर पर कांटो भरा ताज रखकर उसे मेवाड़ राज्य की स्वाधीनता और सुरक्षा का जिम्मा सौंपा. राणा प्रताप से यह वचन लिया गया कि वह अपने जीते जी मेवाड़ की रक्षा करेगा और मुगल अधीनता स्वीकार नहीं करेगा. ऐसे राणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 हुआ था. जब उनके पिता उदय सिंह ने चित्तौड़गढ़ सम्राट अकबर के आक्रमण के कारन छोड़ा था.
तब महाराणा प्रताप अपने पिता के साथ विषम परिस्थितियों में जीवन जिया. संभवत ऐसी परिस्थितियों में पले पढ़े प्रताप को इरादों में और मजबूत बनाया होगा. 28 फरवरी 1572 को उनके ऊपर एक संकट की घडी मंडरा रही थी. तब राणा ने यह शपथ ली थी कि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि दे देगा और कभी भी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करेगा.
अकबर द्वारा राणा प्रताप के पास समझौते हेतु शांति दूत भेजना
मुगल सम्राट अकबर कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी सम्राट था. वह अब तक वह सैकड़ों युद्ध लड़ चुका था. और उनके परिणामों से परिचित हो चुका था. इस कारण उसने मेवाड़ की एकमात्र रियासतों ने अभी तक उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी. उसे वह वार्ता के द्वारा ही उन्हें अपनी अधिकता स्वीकार करवाने का निश्चय किया. और जब अकबर वर्ष 1972 में गुजरात विजय कर चुका था तब उसने अपने एक विश्वसनीय सैनिक अधिकारी जलाल खा कोरची को राणा प्रताप के पास संधि हेतु भेजने का निश्चय किया था.
मुगल सम्राट अकबर ने सबसे पहले शांति दूत के रूप में अपने विश्वसनीय सैनिक जलाल खां का को महाराणा प्रताप के पास चित्तौड़गढ़ में भेजा. चित्तौड़गढ़ में जलाल खां का बहुत ही अच्छा स्वागत सत्कार हुए उसे प्रभावित होकर जलाल खां ने राणा प्रताप से विनम्र रिक्वेस्ट करके मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार कर को कहाँ. तब राणा ने कहाँ मिया आपके राजा ने हमारे 30000 निर्दोस किसानो और महिलाओ को मारा है. में मर जावुगा पर कभी मुगल सम्राट की अधीनता स्वीकार नहीं करुगा. और इस प्रकार जलाल खां आगरा खाली हाथ लौटे.
Haldighati Ki Ladai
आगरा खाली हाथ लौटने के बाद अकबर ने दूसरा संदेश शांतिदूत राजा मानसह को भेजा. राजा मानसिंह भी राणा प्रताप को संधि के लिए नहीं मना पाए. दो शांतिदूत खाली हाल दूर जाने के बाद अपने विश्वसनीय और पुराने मित्र और राजा मान सिंह के पिता भगवंतदास को अकबर ने संधि के लिए राणा प्रताप के पास भेजा. भगवंतदास का मेवाड़ में बहुत ही आदर सत्कार हुआ उसे बहुत खुशी हुई. और एकांत में राणा प्रताप से संधि के लिए बोला. तब राणा प्रताप ने भगवान दास जी को कहा न तो तुर्को को अपनी बेटी देनी और न कोई संधि करनी. भगवंतदास खाली हाथ लौट गए.
अब अकबर के पास कोई चारा नहीं था, उसने अपना अंतिम और विश्वसनीय सैनिक और राजा टोडरमल को राणा प्रताप के पास भेजा. महाराणा प्रताप ने भी टोडरमल जी का भव्य स्वागत सत्कार किया लेकिन उन्होंने चित्तौड़ का अभिमान और स्वाधीनता के लिए मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं करी. चारों संदेश वाहक खाली लोट जाने के बाद अकबर को और गुस्सा आया और उसने निश्चय किया कि वह चित्तौड़ से लड़ाई करेगा.
हल्दीघाटी की लड़ाई (Haldighati Ki Ladai)
दोस्तों हल्दीघाटी का युद्ध 1575 ईसवी में गोगुंदा और खमनोर की पहाड़ियों के मध्य मिट्टी का रंग पीला होने के कारण इसे हल्दीघाटी का युद्ध कहते हैं. यह मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप और अकबर के सेनानायक मानसिंह के मध्य हुआ था. हल्दीघाटी की लड़ाई जून की भीषण गर्मी में 18 जून 1570 ईस्वी के प्रातः काल 8:00 बजे युद्ध के लिए दोनों और की सेना एक दूसरे के सामने थी. हल्दीघाटी का युद्ध हल्दीघाटी के प्रवेश स्थल और खमनोर गांव के बीच के मैदान में हुआ था. Haldighati एक अत्यंत संक्रमणीय पहाड़ी क्षेत्र रहा है. हल्दीघाटी की मिट्टी का रंग हल्दी के रंग के समान पीला है. यह हल्दीघाटी का दर्रा लगभग 2:30 किलोमीटर तक फैला हुआ था. यहां की संपूर्ण भूमि कठोर पथरीली तथा कांटेदार झाड़ियों ढकी हुई थी. इस दर्रे के मुहाने पर मुगल सेना नायकों ने अपनी मोर्चाबंदी युद्ध के लिए कर ली थी.
पूर्व में हल्दीघाटी के मुहाने से लेकर दक्षिण पश्चिम में बनास नदी तक मुगल सेना का मध्य भाग तथा दायिनी भाग था. इसमें कुछ मुसलमान सैनिक और कछवा राजपूतों के सैनिक थे. मध्य भाग मानसिंह के अधीन था. इसमें भी कछवा राजपूतों के सैनिक थे. सेना के पीछे सुरक्षित सेना रखी गई थी जो मिहतर खां के अधीन थी. मुगल सेना के पास उन्नत हल्की तोपे थी. इस सेना के अधिकांश सैनिक मध्य एशिया के उजेबीकिस्तान, कजाकिस्तान, सैयद, शेख जादे और भारतीय मुसलमान और राजपूत थे.
हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व किस ने किया?
महाराणा प्रताप की सेना में अग्रिम दल का नेतृत्व हकीम सूर को दिया गया था. हकीम सूर अपने खानदानी शत्रु मुगलों से बदला लेने के लिए राणा के साथ शामिल हो गया था. सेना के दाहिनी पक्ष का नेतृत्व ग्वालियर के भूतपूर्व नरेश राजा रामशाह कर रहे थे. तथा बाया पक्ष मान सिंह जाला सरदार के अधीन था. महाराणा प्रताप अपने अधिकांश वीर सैनिकों को सहित सेना के मध्य भाग का नेतृत्व कर रहे थे. सेना के पीछे हल्दीघाटी के दर्रे के भीतरी भाग में पनरवा के राणा पूंजा के अधीन भील सैनिक थे. राणा ने संकट के समय उपयोग के लिए कोई सुरक्षित सेना नहीं रखी थी. ढ़ाल, तलवार, बरछी और धनुष बाण ही महाराणा प्रताप की सेना के मुख्य हतियार थे.
दोनों सेनाओं में युद्ध में निपुण हाथी भी थे. महाराणा प्रताप की सेना आत्मविश्वास से परिपूर्ण थी और मुगलों से धर्मवीर लड़ने के लिए उत्साहित थी. उनका एक ही लक्ष्य था मुगलों से अपने देश और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की जाए चाहे इसे इसमें भले ही उन्हें अपने प्राणों की आहुति क्यों न देनी पड़े.
बदायूंनी से किस ने कहाँ दोनों और से राजपूत मर रहे है जीत इस्लाम की होगी?
बदायूंनी अकबर का साहित्यकार था, जो हल्दीघाटी युद्ध में खुद उपस्थित था. बदायूंनी के अनुसार हल्दीघाटी के युद्ध के समय महाराणा प्रताप के राजपूत सैनिकों और मुगल सेना के राजपूत सैनिकों के फर्क करना मुश्किल हो रहा था. तब बदायूंनी ने यह बात मुगल सेना के दूसरे सेनापति आसफ खा से पूछा, तब आसफ खां ने कहा कि तुम तो तीर चलाते जाओ राजपूत किसी की और का मारा जाए इसमें इस्लाम का फायदा होगा.
हल्दीघाटी की लड़ाई में मुगल और महाराणा की सेना के पास कितने सैनिक थे?
दोस्तों राजस्थान के भातो और ख्यालों में सुरक्षित एक कथा के अनुसार मुगल राजा मानसिंह के अधीन मुगल सेना में 80000 से अधिक सैनिक थे. और महाराणा प्रताप लड़ाई के दिन रण क्षेत्र में 20000 घोड़े सवार सैनिक थे. कर्नल टॉड के अनुसार महाराणा प्रताप की सेना में 2200 सैनिक थे. मुहणोत नेणसी के अनुसार मानसिंह की सेना में 40000 सैनिक और महाराणा प्रताप की सेना में 9 से 10000 सैनिक थे. अन्य सांधनो से प्रतीत होता कि वास्तव में महाराणा प्रताप सेना में 3000 से अधिक घोड़े सवार सैनिक और 500 से 600 भील सैनिक थे. और महाराणा प्रताप के सेना के अगले दस्ते में लगभग 800 घोड़े सवार सैनिक बताए जाते हैं. और मुगलों के मानसून की सेना में 10000 घोड़े सवार सैनिक बताए जाते हैं. जिनमें 4000 कछवाहा राजपूत सैनिक थे शेष अन्य देशी और विदेशी मुसलमान थे.
हल्दीघाटी का युद्ध हल्दीघाटी के प्रवेश स्थल और खमनोर गांव के बीच के मैदान में हुआ था. घाटी का प्रवेश स्थल या मुहाने से खमनोर गांव दक्षिण पूर्व में लगभग 4 किलोमीटर दूर है. इस युद्ध का प्रारंभ महाराणा प्रताप की सेना के आक्रमण से प्रारंभ हुआ था. ग्रीष्म ऋतु में 18 जून को रात्रि के 4:00 बजे से ही राणा प्रताप की सेना युद्ध के लिए तैयार हो रही थी. सुबह 8:00 बजे महाराणा प्रताप की सेना का अग्रिम दल की हकीम सूर की कमान में हल्दीघाटी के उत्तरी पूर्व मुहाने में शत्रु पर आक्रमण के लिए बाहर निकला. उसके पीछे जी राणा के नेतृत्व में मुख्य सेना भी बाहर आ गई. दक्षिण में राजा रामशाह की सेना के दोनों पक्षों ने तीव्र वेग से मुगलो के पक्ष को परास्त किया और पीछे धकेल दिया.
हल्दीघाटी की लड़ाई में किसकी जीत हुई?
दोस्तों हल्दीघाटी की लड़ाई में किस की जित हुई इसका स्पस्ट परिमाण नहीं मिलता है. लेकिन भारत के कुछ इतिहासकार और विदेश के कुछ इतिहास करो का मानना है. हल्दीघाटी में अकबर जैसे राजा की सेना को कई बार भागना पड़ा था. और कुछ इतिहास करो ने तो पूर्ण रूप से जित का सहरा महाराणा प्रताप जी के सर पर रखा है. तो कुछ विद्वानों ने अकबर को जित घोसित की है. पर यह तो सत्य है, लगभग पुरे भारत पर राज करने वाले अकबर को मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप ने कभी उसकी सवादीनता स्वीकार नहीं करि और अकबर को लोहे के चने चबवाये थे.
महाराणा प्रताप के चेतक की मृत्यु और वीर प्रताप का विलाप
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FAQs
Ans- हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप की सेना में अग्रिम पंक्ति के दस्ते का नेतृत्व हकीम सूर ने किया था?.
Ans- मुंगल सेनापति आसफ खां ने बदायूंनी से कहा जो अकबर का साहित्यकार था.
Ans- चेतक.