Biography of Chaitanya Mahaprabhu | चैतन्य महाप्रभु

By | December 18, 2023
Biography of Chaitanya Mahaprabhu
Biography of Chaitanya Mahaprabhu

दोस्तों चैतन्य महाप्रभु भगवान श्री कृष्ण जी के परम भक्त थे. जीवन भर उनकी साधना और आराधना करते हुए वे उन्हीं में समाहित हो गए. बंगाल की भूमि में रामकृष्ण परमहंस जैसे साधक एवं योगी हुए. वही चैतन्य महाप्रभु भी हुए, जिन्होंने मुगलकालीन समय में हिंदू धर्म के प्रति लोगों की भक्ति और आस्था को मजबूती के साथ बनाए रखा. हम यहाँ चैतन्य महाप्रभु की जीवनी (Biography of Chaitanya Mahaprabhu). और उनसे जुड़ी वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है चैतन्य महाप्रभु जी की अद्भुत जानकारी.

चैतन्य महाप्रभु का वैष्णव संप्रदाय की कृष्ण भक्तों में सर्वप्रमुख स्थान है. मथुरा और वृंदावन रहकर उन्होंने कृष्ण की लीला भूमि में भक्ति का आनंद प्राप्त किया. तथा समस्त भारत में फैलाया और उस समय धार्मिक जागरण का कार्य करके पीड़ित जनता को शांति का संदेश दिया. उनकी भक्ति स्वार्थ न होकर सुखाय अधिक थी.

चैतन्य महाप्रभु कौन थे? और उनका जीवन परिचय

चैतन्य महाप्रभु का जन्म 1407 में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को सिंह लग्न में चंद्र ग्रहण के दिन पचमी बंगाल के नवदीप नामक ग्राम में हुआ था. उनके पिता जी का नाम जगन्नाथ मिश्र और माता जी का नाम सचि देवी था. जो कृष्ण जी के अनन्य भक्त थे. कटु दृष्टि से बचने के लिए उनके माता-पिता ने उनका नाम निमाई रख दिया था. बचपन में जब वे जोर-जोर से रोते तो. यदि कोई हरि का गुण गाता तो वे रोना बंद कर देते थे.

और उनके चेहरे पर एक अलग सा प्रकास हो जाता था. एक बार उनके पिता ने अतिथि आगमन पर भोजन बनवाया था. भगवान को चढ़ाए जाने से पूर्व ही बालक निमाई ने एक कोर खा लिया था. ऐसे ही उन्होंने फिर उठाकर खा लिया जगन्नाथ मिश्र ने उन्हें घर से निकाल दिया था. तीसरी बार ऐसा करने पर उनके पिता जी उन पर गुसा हुए. तब उनको बालक निमाई में भगवान गोपाल कृष्ण जी के दर्सन हुए थे.

Summary

नामनिमाई
उपनामचैतन्य महाप्रभु, विश्वम्भर मिश्र, श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र, गौरंगा, गौर हरि, गौर सुंदर आदि
जन्म स्थानपंचमी बंगाल नवदीप गांव
जन्म तारीख18-फरवरी-1486
वंशमिश्र
माता का नामसचि देवी
पिता का नामजगन्नाथ मिश्र
पत्नी का नामलक्मी देवी और विष्णुप्रिया
प्रसिद्धिधार्मिक जागरण
पेशासाधु, संत
बेटा और बेटी का नाम
गुरु/शिक्षकश्री केशव भारती
देशभारत
राज्य छेत्रपंचमी बंगाल
धर्मवैष्णव संप्रदाय हिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
मृत्यु14-जून-1534 पुरी उड़ीसा
पोस्ट श्रेणीBiography of Chaitanya Mahaprabhu (चैतन्य महाप्रभु की जीवनी)
Biography of Chaitanya Mahaprabhu

बालक निमाई की शिक्षा और गुरु के आदेश की पालना

पिता जगन्नाथ मिश्र ने उन्हें पढ़ने के लिए भेजा. निमाई पढ़ाई में ध्यान नहीं लगाते थे. इसी बीच पिता जगन्नाथ मिश्र का देहांत हो गया. माता शची ने आर्थिक संकट का सामना करते हुए उनका पालन पोषण किया. कहाँ जाता है. कि एक बार माता शची गंगा स्नान के लिए जा रही थी. तो उन्होंने माताजी से चंदन माला की मांग कर ली. माता ने विरोध किया तो घर के सारे बर्तन को फोड़ डाले. चन्दन की माला पाकर ही वे शांत हुए. जब माताजी गंगा स्नान कर लौटी तो निमाई ने उन्हें स्वर्ण लाकर दिया. चैतन्य इस बीच नवद्वीप के न्यायशास्त्री के घर पर अध्ययन हेतु जाया करते थे. उन्होंने न्यायशास्त्र पर एक ग्रंथ लिखा. उनके गुरु न्यायशास्त्री रघुनाथ ने उस ग्रंथ की आलोचना की. तो निमाई ने उसे गंगा में जाकर फेक दिया और पढ़ाई भी छोड़ दी.

निमाई को शास्त्रों का गहन ज्ञान प्राप्त था वह 16 वर्ष की अवस्था में थे. उसी समय केशवभारतीय नाम के कश्मीरी पंडित वहां आये हुए थे. उन्होंने नवदीप के सभी पंडितों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया था. किंतु निमाई ने उसी पंडित के 1 श्लोक में अलंकारिक दोष ढूंढ लिया तो उनका सारा का सारा घमंड जाता रहा. उनका विवाह विष्णुप्रिया (लक्ष्मीप्रिया) नाम की एक सुंदर कन्या से हुआ था. 6 वर्ष तक वैवाहिक बंधन में रहने के बाद उन्होंने सन्यास धारण कर लिया.

पिता के श्राद्ध हेतु जब वे बिहार जिले के गया में गए. तो वहां विष्णु जी के पद चिन्ह के दर्शन कर उनका शरीर इतना रोमांचित हो गया. कि वे उसे देखकर चैतन्यसुन हो गए. वही पूरी में अपना जीवन बिताने की सोचकर वे विष्णु जी के ध्यान में ऐसे अनुमदित हुए की नाम जाप करते करते चिल्लाने लगे. मेरे प्राणों के चोर मेरे कृष्ण कहां हो आप. नवदीप जाने के बदले वे मथुरा चले गए और वहां पर इसके साथ रहकर एक संकीर्तन मंडली बनाई.

निमाई से चैतन्य महाप्रभु कैसे कहलाये?

उनकी वाणी इतनी मधुर और प्रभावशाली थी. कि उनके कृतन और भजनों को सुनकर लोग मंत्रमुग्ध होकर उनके पीछे-पीछे चलने लगते थे. मृदंग मजीरा ढोल आदि के साथ स्वर ताल लेकर साथ हरि नाम जपती जब उनकी मंडली सड़क से निकल पड़ती. तो लोग भी भक्ति सागर में गोते लगाने लगते. एक बार वहां के काजी ने हरि कीर्तन पर रोक लगाने का प्रयास किया किंतु काजी को यह निर्णय वापस लेना पड़ा. हरीनाथ का प्रचार प्रसार करते हुए जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, मैसूर, कर्नाटक, द्वारकापुरी, पंढरपुर फिर जगन्नाथपुरी आ गए. इस तरह आम लोगों में धार्मिक चेतना जागृत कर सन 1590 में 48 वर्ष की आयु में हरि कथा सुनते सुनते हुए जगन्नाथ जी की मूर्ति के पास पहुंच गए और उसी में समा गए.

कहा जाता है कि उन्होंने एक दिन आम की गुठली बोयी थी. एक ही दिन में देखते ही देखते उसमें आम भी लग आए थे. सभी ने आम खाए लेकिन आम ओं की संख्या जस की तस रही. चैतन्य महाप्रभु कृष्ण की आराधना में इस तरह रम गए थे. कि वह नाचते गाते हुए अपनी सुध बुध खो बैठे थे. एक बार ऐसे ही नाचते गाते हुए 18 नाले पार कर आए तब वे चैतन्य कहलाए.

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FAQs

Q- चैतन्य महाप्रभु का जन्म कहाँ हुआ था?

Ans- चैतन्य महाप्रभु का जन्म पचमी बंगाल के नवद्वीप पुर गांव में हुआ था.

भारत की संस्कृति

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