संत वल्लभाचार्य पुष्टि मार्ग के प्रवर्तक तथा अष्टछाप के प्रमुख कवि थे. वल्लभाचार्य जी ने विष्णुस्वामी सम्प्रदाय की स्थापना की. दार्शनिक दृष्टि से इसे शुद्धाद्वैतवाद भी कहा जाता है. साहित्यिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से राम तथा कृष्ण की उपासना का प्रचार करने वाले इस सम्प्रदाय को भक्तिकाल का स्वर्णयुग कहा जाता है. वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी आज भी कृष्णभूमि में मिलते हैं. वल्लभाचार्य के पुत्र गोस्वामी विट्ठलदास भी अपने पिता की तरह ही प्रतिभावान थे. हम यहाँ वल्लभाचार्य जी की जीवनी (Biography of Sant Vallabhacharya). और उनके जीवन से जुड़ी हुई वो जानकारी शेयर करेंगे जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है संत श्री वल्लभाचार्य जी की आचर्यजनक जानकारी.
वल्लभ सम्प्रदाय की सेवा पद्धति व भक्ति पद्धति ने वैष्णव धर्म की आस्था को बनाये रखा, जो गुजरात, राजस्थान में भी अपनी जड़ें जमाये हुए है. अष्टछाप के आठ कवियों में चार वल्लभाचार्य के तथा चार विट्ठलनाथ के समर्थक थे. प्राणीमात्र के प्रति प्रेम व अहिंसा की भावना इस भक्ति मार्ग का आदर्श है. उदार तथा शुद्ध हृदय भक्ति का प्रमुख आधार है. राम और कृष्ण के रूप, गुण, शील और चरित्र का जैसा वर्णन इस युग के कवियों ने किया, वैसा किसी ने नहीं किया.
संत वल्लभाचार्य कौन थे? वल्लभाचार्य जी का जीवन परिचय
संत वल्लभाचार्य भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं. जिनका जन्म सन् 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी को मध्य प्रदेश के रायपुर जिले के चम्पारन नामक स्थान के जंगलों में हुआ था. वल्लभाचार्य जी के पिता कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट जी थे, आपकी माता जी का नाम इलम्मागारू था. आपके दो बहिनें और तीन भाई थे. बड़े भाई का नाम रामकृष्ण भट्ट था, वे माधवेन्द्र पुरी के शिष्य और दक्षिण के किसी मठ के अधिपति थे. वल्लभाचार्य जी के छोटे भाई रामचन्द्र और विश्वनाथ थे, रामचंद्र भट्ट बड़े विद्वान और अनेक शास्त्रों के ज्ञाता थे.
वल्लभाचार्य जी का विवाह पंडित श्रीदेव भट्ट जी की कन्या महालक्ष्मी से हुआ था. वल्लभाचार्य जी के दो पुत्र हुए थे, बड़े बेटे का नाम गोपीनाथ जी जिनका जन्म संवत 1568 की आश्विन कृष्ण द्वादशी को अड़ैल में हुआ था. और छोटे पुत्र विट्ठलनाथ का जन्म संवत 1572 की पौष कृष्ण 9 को चरणाट में हुआ था. दोनों पुत्र अपने पिता के समान विद्वान और धर्मनिष्ठ थे. वल्लभाचार्य जी का देहांत 1530 ई में हुआ था.
Summary
नाम | वल्लभाचार्य जी |
उपनाम | संत वल्लभाचार्य |
जन्म स्थान | मध्य प्रदेश के रायपुर जिले के चम्पारन |
जन्म तारीख | सन् 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी |
वंश | तैलंग ब्राह्मण |
माता का नाम | इलम्मागारू |
पिता का नाम | श्री लक्ष्मणभट्ट जी |
पत्नी का नाम | महालक्ष्मी |
उत्तराधिकारी | विट्ठलनाथ |
भाई/बहन | रामकृष्ण भट्ट छोटे भाई रामचन्द्र और विश्वनाथ थे |
प्रसिद्धि | विष्णुस्वामी सम्प्रदाय की स्थापना (शुद्धाद्वैतवाद) |
रचना | अणु भाष्य’ और वृहद भाष्य’, शिक्षा श्लोक, गायत्री भाष्य, पत्रावलंवन, भागवत की ‘सुबोधिनी’, टीका, भागवत तत्वदीप निबंध |
पेशा | कवि, दार्शनिक |
पुत्र और पुत्री का नाम | गोपीनाथ और छोटे पुत्र विट्ठलनाथ |
गुरु/शिक्षक | श्री विल्वमंगलाचार्य जी और स्वामी नारायणेन्द्र तीर्थ |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | मध्य प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | संस्कृत, हिंदी |
मृत्यु | 1530 ई |
मृत्यु स्थान | दक्षिण के श्री वेंकटेश्वर बाला जी में |
जीवन काल | लगभग 51वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Sant Vallabhacharya |
सन्त वल्लभाचार्य जी की शिक्षा
वल्लभाचार्य जी का अध्ययन संवत 1545 में समाप्त हो गया था. तब उनके माता-पिता उन्हें लेकर तीर्थ यात्रा को चले गये थे. वे उत्तर प्रदेश में काशी से चल कर विविध तीर्थों की यात्रा करते हुए जगदीश पुरी गये. और वहाँ से दक्षिण भारत चले गये थे, दक्षिण भारत के श्री वेंकटेश्वर बाला जी में संवत 1546 की चैत्र कृष्ण 9 को वल्लभाचार्य जी के पिता जी का देहावसान हो गया था. उस समय वल्लभाचार्य जी की आयु केवल 11-12 वर्ष रही होगी.
किन्तु तब तक वे प्रकांड विद्वान और अद्वितीय धर्म-वेत्ता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे. उन्होंने उत्तर प्रदेश के काशी और जगदीश पुरी में अनेक विद्वानों से शास्त्रार्थ कर विजय प्राप्त की थी. उन्हें ‘वैश्वानरावतार कहा गया है. संत वल्लभाचार्य जी वेद शास्त्र में पारंगत थे. श्री रुद्रसंप्रदाय के श्री विल्वमंगलाचार्य जी द्वारा इन्हें ‘अष्टादशाक्षर गोपाल मन्त्र’ की दीक्षा दी गई. त्रिदंड सन्न्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्र तीर्थ से प्राप्त हुई.
सन्त वल्लभाचार्य जी के मत और सिद्धांत
वल्लभाचार्य शुद्धाद्वैतवाद के समर्थक थे, ब्रह्म को माया से अलिप्त मानते थे. ब्रह्म शुद्ध है, जीव मुक्त अणु है, जड़-जगत न तो उत्पन्न होता है, न नष्ट होता है. भगवान के पोषण और प्राप्ति का साधन भक्ति है. मर्यादा और पुष्ट भक्ति ही श्रेष्ठ है. भगवान् को जब रमण करने की इच्छा होती है, तब वे अपने गुणों को तिरोहित करके जीव रूप को अपनी इच्छानुसार धारण करते हैं. वल्लभाचार्य जी के प्रमुख ग्रंथो में ब्रह्मसूत्र का ‘अणु भाष्य’ और वृहद भाष्य’, सुबोधिनी टीका, श्रुंगार मण्डन, अणु भाष्य, पत्रावलंवन, पूर्व मीमांसा भाष्य, गायत्री भाष्य, पुरुषोत्तम सहस्त्रनाम, शिक्षा श्लोक प्रमुख हैं.
वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी आज भी कृष्णभूमि में मिलते हैं. वल्लभाचार्य के पुत्र गोस्वामी विट्ठलदास भी अपने पिता की तरह ही प्रतिभावान थे. इस सम्प्रदाय की सेवा पद्धति व भक्ति पद्धति ने वैष्णव धर्म की आस्था को बनाये रखा, जो गुजरात, राजस्थान में भी अपनी जड़ें जमाये हुए है.अष्टछाप के आठ कवियों में चार वल्लभाचार्य के तथा चार विट्ठलनाथ के समर्थक थे.
प्राणीमात्र के प्रति प्रेम व अहिंसा की भावना इस भक्ति मार्ग का आदर्श है. उदार तथा शुद्ध हृदय भक्ति का प्रमुख आधार है. राम और कृष्ण के रूप, गुण, शील और चरित्र का जैसा वर्णन इस युग के कवियों ने किया, वैसा किसी ने नहीं किया था.
संत वल्लभाचार्य जी के द्वारा रचित प्रमुख ग्रन्थ कौन-कौन से है?
सन्त वल्लभाचार्य जी के प्रमुख ग्रंथो में ब्रह्मसूत्र का ‘अणु भाष्य’ और वृहद भाष्य’, शिक्षा श्लोक, गायत्री भाष्य, पत्रावलंवन, भागवत की ‘सुबोधिनी’, टीका, भागवत तत्वदीप निबंध. एवं पूर्व मीमांसा भाष्य, पुरुषोत्तम सहस्त्रनाम, दशमस्कंध अनुक्रमणिका, त्रिविध नामावली, षोडस ग्रंथ, संन्सास निर्णय, निरोध लक्षण सेवाफल, यमुनाष्टक, बाल बोध, सिद्धांत मुक्तावली, पुष्टि प्रवाह मर्यादा भेद. और सिद्धान्त, नवरत्न, अंत:करण प्रबोध, विवेकधैयश्रिय, कृष्णाश्रय, चतुश्लोकी, भक्तिवर्धिनी, जलभेद, पंचपद्य आदि ग्रंथो की रचना की थी.
वल्लभाचार्य जी की अष्टछाप क्या है?
दोस्तों वल्लभाचार्य जी ने विशिष्टाद्वैत वादी पुष्टिमार्ग की स्थापना की. आगे चलकर उनके पुत्र विठ्ठलनाथ ने अष्टछाप कवियों की परि कल्पना की थी. जिन्हें कृष्ण सखा भी कहा गया है. इनमे चार वल्लभाचार्य के शिष्य भी हैं. सूरदास, कुम्भनदास, परमानन्ददास और कृष्णदास. विट्ठलनाथ के शिष्य नंददास, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी और चतुर्भजदास. वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों का विशेष स्थान हैं.
सन्त वल्लभाचार्य जी की मृत्यु कैसे हुई?
जगत गुरु श्री वल्लभाचार्य जी मध्य काल में सगुण भक्ति के उपासक थे. अग्नि अवतार के रूप में जाने गये. वल्लभाचार्य जी कृष्ण भक्ति शाखा के स गुण धारा के मुख्य भक्त कवि थे. महाप्रभु वल्लभाचार्य के सम्मान में भारत सरकार ने सन 1977 में प्रथम बार भारतीय मुद्रा पर उनके नाम का डाक टिकट जारी किया था. वल्लभाचार्य जी का देहांत 1530 ई में (दक्षिण के श्री वेंकटेश्वर बाला जी में संवत 1546 की चैत्र कृष्ण 9) हुआ था.
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FAQs
Ans- वल्लभाचार्य जी का जन्म मध्य प्रदेश के रायपुर जिले के चम्पारन नामक स्थान के जंगलों में हुआ था.
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