महर्षि रमण एक ऐसे सिद्ध पुरुष थे, जो अपनी मधुर वाणी से सभी को प्रभावित करने की क्षमता रखते थे. भारतीय आध्यात्मिक जीवन में उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था. कहा जाता है कि वह दूसरों की बातों को मन ही मन जानने की विलक्षण क्षमता रखते थे. हम यहाँ महर्षि रमण का जीवन परिचय (Biography of Maharishi Raman). और वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में अब तक अनजान थे. तो मित्रों चलते है और जानते है महर्षि रमण की अद्भुत जानकारी.
रमण महर्षि अंतर्मुखी साधना में लीन ऐसे पुरुष थे. जिन्होंने शरीर की जगह आत्मा को ही प्रमुख माना. उनका कहना था, आप शरीर से जितना काम ले सकते हो उतना लो और बाद में इसे छोड़ दो.
महर्षि रमण कौन थे? और महर्षि रमण का जीवन परिचय
रमण महर्षि का जन्म 30 दिसंबर 1879 को तमिलनाडु के मदुरई में तिरुचुशी गांव के एक सामान्य परिवार में हुआ था. इनका जन्म ‘अद्र दर्शन’, भगवान शिव का प्रसिद्ध पर्व, के दिन हुआ था. जन्म के बाद रमण के माता-पिता ने उनका नाम वेंकटरमण अय्यर रखा था. उनके पिता सुन्दर अय्यर वेंकटरमन मदुरै में वकालत करते थे. इस धर्मनिष्ठ ब्राह्मण की पत्नी अज़गम्मल अतयंत धर्मनिष्ठ महिला थी. रमण पिता सुन्दरम अय्यर की चार संतानों में से दूसरे थे. आपके एक छोटी बहन अलामेलु और दो भाई नागास्वामी, एवं नागासुंदरम थे. बचपन में जब रमण को पाठशाला पढ़ने भेजा तो उनका मन पढ़ाई में लगने की वजाए किसी चिंतन और दर्सन में खो जाता था.
Summary
नाम | महर्षि रमण |
उपनाम | वेंकटरमण अय्यर |
जन्म स्थान | तमिलनाडु के मदुरई में तिरुचुशी गांव |
जन्म तारीख | 30 दिसंबर 1879 ईस्वी |
वंश | अय्यर |
माता का नाम | अज़गम्मल |
पिता का नाम | सुन्दर अय्यर वेंकटरमन |
पत्नी का नाम | — |
भाई बहन | बहन अलामेलु, दो भाई नागास्वामी, एवं नागासुंदरम थे |
प्रसिद्धि | आध्यात्मिक गुरु, समाज सेवा |
पेशा | गुरु |
बेटा और बेटी का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | शिव |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | अरुणाचल |
धर्म | हिन्दू सनातन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 14 -अप्रैल-1950 |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Maharishi Raman (महर्षि रमन की जीवनी) |
रमण महर्षि का आध्यत्मिक जीवन और महान कार्य
एक दिन अपने काका के यहां बैठे हुए उनके मन में अचानक स्वर्ग बोध तथा मृत्यु बोध जाग उठा. अपने शरीर को लंबा करने स्वास को रोक लिया और कहा अब मेरा शरीर मर रह क्या में भी मर रहा हु. दोस्तों महर्षि रमण 17 वर्ष की अवस्था में अरुणाचल चले गए. चरमसत्य की खोज करते करते उनका शरीर काला पड़ गया. केश और नाखून भी बढ़ गए. माँ ने जब उनकी ऐसी दशा देखी तो वे, उन्हें घर चलने का आग्रह करने लगी. शरीर भाव में महर्षि बिल्कुल सुन्न थे. केवल उनका आतम रूप ही जीवित था. जब वे साधना करते बैठते तो उनका शरीर पत्थर की तरह जड़ हो जाया करता था. छिपकली सांप जैसे जीव जंतु उनके शरीर पर रेंगते उन पर इसका कोई असर नहीं होता था.
सभी हिंसक प्राणी महर्षि के चरणों में आकर बैठ जाते थे. मोर, सांप, बंदर, तोते, कौवे, सब उनकी शरण में रहने के बाद अपने अपने घरों को लौट जाते थे. उनको जड़ अवस्था में देखकर लड़के पागल समझ कर उन्हें कंकड़ पत्थर से मारते थे. एक बार तो कुछ चोरों ने उनके आश्रम में धन की खोज में रमण जी की को पिटाई की चोरों की दुष्टता की खबर पाकर पुलिस के आने पर उन्होंने किसी भी प्रकार की शिकायत दर्ज नहीं की. पशु पक्षियों द्वारा काट खाए जाने पर भी उनका व्यवहार उनके प्रति सह्रदय में कोई परिवत्न नहीं आता था.
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FAQs
Ans- रमण महर्षि का जन्म 30 दिसंबर 1879 को तमिलनाडु के पास विरुधुनगर तिरुचुशी गांव में हुआ था.