दोस्तों इस संसार में ऐसे राजा महाराजा तो बहुत हुए है, जिन्होंने ऐश्वर्य एवं शानों-शौकत के अपना जीवन बिताया था. पर कुछ ऐसे राजा महाराजा भी हुए है. जिन्होंने अपने जमीर और आदर्शो के लिए त्याग और बलिदान दिया और सत्यता का रास्ता अपनाया. भारत में मुख्य रूप से सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र, राजा बली और राजा पीपा प्रमुख है. राजा पीपा जी बाद में एक संत के रूप में पूरी दुनिया में जाने गए. हम यहाँ भक्त पीपा जी की जीवनी और चमत्कार (Biography & Miracles of Bhakta Pipa Ji). और उनसे जुड़ी हुई वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है, जिनके बारे में अब से पहले आप अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है संत पीपा जी की जीवन की अद्भुत जानकारी.
भक्त पीपा कौन थे?
भक्त पीपा एक प्रसिद्ध वैष्णव सन्त थे. और वे रामानन्दी सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे. कबीरपंथ के अनुयायी थे. और आपके सारे भजन एवं वाणिया “सन्तवाणी संग्रह” में पदों में संग्रहित है. आपके अनुसार संत दुस्टो के साथ भी सद्व्यवहार करते है. और अपनी सिद्धि और साधना से बुरा आचरण करने वालो का भी ह्रदय परिवर्तन करते है. और वे भी भगतों की कतार में आकर खड़े हो जाते है.
पीपा जी देश के महान समाज सुधारकों की श्रेणी में आते थे. भक्त पीपा का जीवन व चरित्र महान था. आपने राजस्थान में भक्ति व समाज सुधार का अलख जगाया था. संत पीपा ने अपने विचारों और कृतित्व से समाज सुधार का मार्ग प्रशस्त किया पीपा जी निर्गुण विचार धारा के संत कवि एवं समाज सुधारक थे. भक्त पीपा जी ने भारत में चली आ रही चतुर वर्ण व्यवस्था में नवीन वर्ग एवं श्रमिक वर्ग को सृजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
Biography of Bhakta Pipa (भक्त पीपाजी की जीवनी)
भक्त पीपा का जन्म चैत्र शुक्ल पूर्णिम, बुधवार 23 अप्रेल 1426 राजस्थान के गागरोन गढ़ झालावाड़ में माँ लक्ष्मीवती (सफला देवी) और पिता चौहान गौत्र के खींची राजवंश के महाराजा कड़वारा के घर पीपा जी का जन्म हुआ था. आपका बचपन का नाम प्रतापराव खींची था. उच्च राजसी शिक्षा-दीक्षा के साथ इनकी रुचि आध्यात्म की तरफ भी थी, जिसका प्रभाव उनके साहित्य में स्पष्ट दिखाई पड़ता है. किवदंतियों के अनुसार पीपाजी अपनी कुलदेवी से प्रत्यक्ष साक्षात्कार करते थे व उनसे बात भी किया करते थे.
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Summary
नाम | प्रतापराव खींची |
उपनाम | भक्त पीपा |
जन्म स्थान | गागरोनगढ़ झालावाड़ राजस्थान |
जन्म तारीख | 23 अप्रेल 1426 |
वंश | खींची राजवंश |
माता का नाम | लक्ष्मीवती (सफला देवी) |
पिता का नाम | कड़वारा चौहान |
पत्नी का नाम | सीता देवी |
पेशा | राजा, सन्त |
बेटा और बेटी का नाम | कल्याण राव |
गुरु/शिक्षक | काशी के रामानंदाचार्य |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | झालावाड़, कोटा राजस्थान |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | चैत्र माह की कृष्ण पक्ष नवमी |
पोस्ट श्रेणी | Biography & Miracles of Bhakta Pipa Ji (भक्त पीपा जी की जीवनी और चमत्कार) |
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भक्त पीपा संत कैसे बने? क्या वे दर्जी समुदाय से थे?
लोकोक्तियों के अनुसार भक्त पीपा जी शिकार के शौक़ीन थे और अक्सर वे शिकार करने जाते थे. एक दिन उनके सामने से एक हिरण निकली,जिस पर पीपाजी ने तलवार से वार किया, और हिरण के दो टुकड़े हो गये. गर्भवती हरिणी के साथ ही उसका बच्चा भी कट गया. दोस्तों बस यही पीपा जी का जीवन परिवर्तन का क्षण सिद्ध हुआ. वे करुणा के आलोक से जगमगा उठे. उन्होंने रक्तरंजित तलवार वहीँ फेंक दी और वैराग्यवृति धारण कर ली.
राजपाट उन्हें बौने और व्यर्थ लगने लगे. वे फिर अपनी राजधानी गागरोन लौटे ही नहीं, वहीँ कुटिया बनाकर रहने लगे और सुई-धागे से कपड़े सीने लगे. उनके अधिकाँश शिष्य क्षत्रिय ही थे, जो उनकी अहिंसावृति से प्रभावित हुए थे. वे भी सिलाई का काम करने लगे. इस तरह एक पीपावर्गीय समुदाय पैदा हुआ, जो राजस्थान, गुजरात, मालवा मध्यप्रदेश और देश के अन्य भागों में रहते हैं. दर्जी का धंधा करनेवाले इस समुदाय के सारे गौत्र राजपूत समुदाय के हैं. दर्जी समुदाय के लोग संत पीपा जी को आपना आराध्य देव मानते हैं.
भक्त पीपा जी भक्ति निर्गुण समुदाय की थी और करुणा उनके संदेशों का सार है.
जीव मार जौहर करै, खातां करै बखाण।
पीपा परतख देख ले, थाळी माँय मसाँण।।
पीपा पाप न कीजियै, अळगौ रहीजै आप।
करणी जासी आपरी, कुण बेटौ कुण बाप।।
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भक्त पीपा राजा से सन्त कैसे बने?
मित्रों जैसा आपने ऊपर पढ़ ही लिया होगा, सन्त पीपा पहले गगनौरगढ़ झालावाड़ राजस्थान के प्रतापी राजा थे. शक्ति दुर्गा देवी के आराध्य भक्त पीपा जी साधु-सन्तों की आतिथ्य सत्कार का बहुत ध्यान रखते थे. लेकिन एक बार ऐसी घटना घटी की वे साधु-सन्तों के भोजन का प्रबंधन तो उन्होंने उनके आश्रय स्थल पर कर दिए पर खुद नहीं जा पाए. साधुओं ने माँ भगवती के इस भग्त की सदबुद्धी के लिए देवी भगवती से प्रार्थना की थी. रात्रि में ही ऐसा चमत्कार हुआ भगवती राजा के महल में पहुंची और राजा को इस गलती के लिए धिक्कारा. स्वपन में राजा पीपा उठे और माँ भगवती के मंदिर की और निकल पड़े. कहाँ जाता है, मंदिर पहुंचते ही भगवती से माफ़ी मांगी और अपने प्रयाश्चित के लिए वे विश्वनाथ की नगरी काशी जा पहुंचे.
सवेरा होते ही पीपा जी गंगा स्नान कर गुरु रामानन्द से मिलने जा पहुंचे पर, वहां के पहरे द्वारा उनको गुरु रामानन्द नहीं मिलेंगे का सन्देश दिया. पीपा जी ने अपनी राजा वाले कपडे उत्तार कर फिर गुरु रामानन्द जी से मिलना चाहा. पर फिर ऐसा नहीं हो पाया. अंत में गुरु रामानन्द जी ने आदेश दिया पीपा को बोलो कुवे में कूद जाये. गुरु रामानन्द जी का आदेश सुनकर पीपा जी कुव्वे में कुंदने चल पड़े, पर इनको पकड़ कर गुरु रामानन्द के सामने लाया गया. इनकी भगती देख कर गुरु रामानन्द जी ने इनको कृष्ण नाम की दीक्षा दी और इस प्रकार पीपा जी से सन्त पीपा हुए.
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भक्त पीपा जी का सीता देवी के साथ द्वारका में जाना
गुरु रामानन्द से कृष्ण नाम लेकर, सन्त पीपा जी अपने राज्य में आकर एक सन्त की तरह राज्य चलाने लगे थे. तभी एक बार उनको पता चला उनके गुरु रामानन्द जी उनके राज्य में आ रहे है. सन्त पीपा जी ने अपने गुरु देव की पालकी के कन्धा लगाकर अपने नगर में प्रवेश कराया था. गुरु के दर्सन कर राजकाज के प्रति निर्मोही हो राजा ने अपने गुरु से द्वारिका उनके साथ जाने का आग्रह किया. उनकी बारह रानियों में सबसे छोटी राणी सीता देवी भी उनके साथ जाने की जिद करने लगी. पीपाजी अब सीता देवी जी के साथ द्वारिका आ गए. वे श्री कृष्ण और रुकमणी के दर्सन अभिलाषी थे. पर उनको मालूम पड़ा कृष्ण तो द्वारिका नगरी सहित समुन्दर में समाये हुए है.
सन्त पीपाजी अपनी पत्नी समेत समुंदर में कूद पड़े. उनको समुन्दर में श्री कृष्ण जी और रुकमणी जी के दरसण हो चुके थे. वहां से आज्ञा लेकर वे बहार निकले और निकलर द्वारिकापुरी गुरजरात में रणछोड़जी और चिकमजी नामक दो मुर्तिया स्थापित की थी. मित्रों कहाँ जाता है, द्वारकापुरी का कृष्ण मंदिर की स्थापना सन्त पीपा जी ने ही की थी.
सन्त पीपाजी के चमत्कार
जब सन्त पीपाजी द्वारिकापुरी से अपनी पत्नी सीता जी के साथ वहां से तीर्थ यात्रा पर निकल रहे थे तो उनको कुछ मुस्लिम सैनिको ने सीता देवी जी को घेर लिया था. तब सन्त पीपाजी ने श्री कृष्ण जी को ध्यान किया और उनके चम्तकार से दुष्ट सैनिक भाग गए थे. ऐसे ही तीर्थ यात्रा के दौरान एक शेर ने उन पर आकर्मण कर दिया था, पीपाजी ने कृष्ण जी को ध्यान किया और शेर उनके पेरो में लेटने लगा. उसके बाद उस रास्ते में उस शेर ने कभी किसी को परेशान नहीं किया. आगे एक गांव में सन्त पीपाजी ने एक दूकानदार से लाठी मांगी दूकानदार ने लाठी भी नहीं दी और पीपाजी का अपमान करने लगे. भक्त पीपा ने कृष्ण जी का ध्यान किया और वहां बॉस का जंगल खड़ा हो गया. ऐसा चमत्कार देख कर वहां के लोगो ने उनको सन्त मानने लगे और नमस्तक हो गए.
वहां से निकल कर सीता जी और पीपाजी चीधड़ भगत के होते हुए नगर पहुंचे. इस बिच पीपाजी को कुछ सोने की मोहरे प्राप्त हुई थी. जिनको उन्होंने साधु-संतों की सेवा और उनके भोजन पर खर्च कर दी और उनका चोरी हुआ घोडा भी वापस आ गया था. सन्त पीपाजी जिस कुटिया में ठहरे थे, वहां साधु आ जाने पर पीपाजी ने अपनी पत्नी सीता जी को बनिये की दुकान पर भेजा. उस बनिये की कुदृष्टि सीता जी पड़ी, उन्होंने अपनी कुटिया आने का उसको आमंत्रण भेजा. यह बात सीता जी ने पीपाजी को बतायी और घनघोर वर्षा हो रही थी. पीपाजी ने अपनी मलिन दृस्टि डाली और बनिये का मन निर्मल हो गया और उन्होंने सीता जी को माता संबोधित किया.
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FAQs
Ans- भक्त पीपाजी राजस्थान के गागरोन गढ़ झालावाड़ के राजा थे जो बाद में सन्त हुए.
Biography & Miracles of Bhakta Pipa Ji