War of Sikhs and British in 1845 AD || आंग्ल-सिख युद्ध 1845 ई.

By | September 11, 2023
War of Sikhs and British in 1845 AD
War of Sikhs and British in 1845 AD

War of Sikhs and British in 1845 AD. प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेज शक्तिशाली होते हुए चले गए. तथा मुगल सल्तनत कमजोर होती हुई चली गई. भारत में अनेक छोटे-छोटे राजा, महाराजा वह नवाब शासन कर रहे थे. अंग्रेज दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे. अंग्रेज जानते थे, कि दिल्ली को जो शक्ति प्राप्त है, वह अनेक हिंदू व मुसलमान राजा एवं नवाबों से प्राप्त है. अंग्रेज फूट डालकर राजा एवं नवाबों को शक्तिहीन करना चाहते थे. और आवश्यकता पड़ने पर शक्ति का भी प्रयोग करते थे. इस प्रकार अंग्रेजों के पैर भारत में जमते हुए चले गए. अंग्रेज मुगल शासन को समाप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के षड्यंत्र रच रहे थे. भारत में कई हिंदू एवं मुस्लिम राज्य थे.

उनमें से उत्तर-दक्षिण में सिखों का भी एक राज्य था. जो पंजाब से लेकर काबुल तक फैला हुआ था. सिखों का यह राज्य बहुत ही शक्तिशाली एवं वैभवपूर्ण था. सिख जाति और धर्म की स्थापना गुरु नानक जी ने की थी. प्रारंभ में यह जाति विशुद्ध रूप से धार्मिक थी. जो बाद में परिस्थितिवंस सैनिक संगठन की ओर ध्यान देने लगी. इसका मुख्य कारण था, मुसलमान शासकों द्वारा हिंदू एवं सिखों पर अत्याचार करना. जितने अत्याचार मुसलमानों द्वारा सिखों पर किए गए सिख उतने ही शक्तिशाली होते हुए चले गए.

औरंगजेब उन दिनों दिल्ली का बादशाह था. उसने हिंदू एवं सिखों पर अधिक अत्याचार किए. अतः सिखों ने अपनी सैनिक शक्ति को विकसित किया. अतः इस काल में सैनिक शक्ति सिखों की इतनी बढ़ गई थी कि दिल्ली की सत्ता भी उनसे घबराने लगी थी. सिखों की सैनिक शक्ति ने सिख तथा हिंदू धर्म दोनों की रक्षा की, क्योंकि सिख अपने को हिंदुओं से अलग नहीं मानते थे.

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War of Sikhs and British in 1845 AD

सिख साम्राज्य की नींव कैसे पड़ी?

प्रारंभ में सिखों ने जो सैनिक शक्ति प्राप्त की, उसका उद्देश्य मात्र धर्म की रक्षा करना था. परंतु बाद में जब उन्होंने देखा कि मुगल शासन कमजोर पड़ रहा है. तो सिखों ने अपना राज्य स्थापित करने का मन बनाया. बहादुर शाह के शासन से पूर्व सिखों ने कई छोटे-छोटे राज्य स्थापित किये थे. वे सब राज्य आपस में मिल जुल कर रहते थे. उसका कारण था, उनकी धार्मिक भावना तथा मुसलमानों के अत्याचार से सुरक्षा प्राप्त करना था. अतः उनका संगठन मजबूत होता चला गया. उन सभी राज्यों को एक साथ संगठित करने में महाराजा रणजीत सिंह का बहुत बड़ा हाथ था. महाराजा रणजीत सिंह एक बहादुर कूटनीतिज्ञ शासक था. जिसने उन सभी छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की.

अपने राज्य का विस्तार करने से पूर्व अपनी बुद्धिमता के बल पर रणजीत सिंह ने लाहौर के गवर्नर पद का कार्यभार संभाला. जमालशाह आपसे बहुत प्रभावित थे, अतः इन्होंने गवर्नर के रूप में कई बार जमालशाह को अपनी अमूल्य सेवाएं अर्पित की. जमालशाह ने उनकी सेवाओं से खुश होकर उन्हें राजा की उपाधि से विभूषित किया था.

महाराजा रणजीत सिंह कौन थे? उनका का जीवन परिचय

पंजाब के अंतिम महाराजा रणजीत सिंह का जन्म महा सिंह और राज कौर के परिवार में पंजाब के गुजरांवाला वर्तमान पाकिस्तान में 13 नवंबर 1780 को हुआ था. छोटी सी उम्र में चेचक नामक बीमारी की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी चली गयी थी. जब वे 12 साल के थे, तभी उनके पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर आ गया था. महाराजा रणजीत सिंह योग्य कुशल न्याय प्रिय एवं धर्म प्रेमी थे. आज भी पंजाब में उनसे संबंधित अनेक कहानियां प्रचलित हैं जो उनके न्याय एवं योगिता के परिणाम है.

राजा रणजीत सिंह ने छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर एक बहुत बड़े सिख राज्य की स्थापना की थी. इनको मिस्ल कहा जाता था, और इन मिस्ल पर सिख सरदारों की हुकूमत चलती थी. जो आपस में मिलकर रहते थे. रणजीत सिंह के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिस्ल के कमांडर थे, जिसका मुख्यालय गुजरांवाला पंजाब में में था. बाद में इसको लाहौर कर दिया गया था.

पटियाला उस समय पंजाब सिख राज्य की राजधानी थी. महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में सिख, हिंदू, मुसलमान सभी एक साथ मिलकर रहते थे. सिख राज्य होते हुए भी किसी परधर्मालंबी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता था. महाराजा रणजीत सिंह अपनी प्रजा को संतान समतुल्य समझते थे. प्रजा उनका आदर करती थी.

अंग्रेज हिंदू एवं मुस्लिम राज्य को छीनने में लगे हुए थे. सिखों के प्रति भी उन्होंने यही अवधारणा कायम की. अंग्रेजों ने छल कपट से भारत में अनेक इलाकों पर कब्जा कर लिया था. अतः छल कपट से ही वे सिखों की इस रियासत पर आंख गड़ाए बैठे थे. लेकिन वे राजा रणजीत सिंह भय के कारण उन पर आक्रमण करने से डरते थे. उन्होंने कई असफल प्रयास किए, लेकिन पंजाब राज्य की सीमाओं में प्रवेश नहीं कर पाए थे.

पंजाब में अंग्रेजों के सफल होने के क्या कारण थे?

महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद उनकी संतान बहुत छोटी थी. अंत राज्य की बागड़ोर उनकी रानी जिंदा कौर ने अपने हाथो में ली. अंग्रेजी पहले से ही अवसर की प्रतिज्ञा कर रहे थे. उनकी संतान एवं सिखों में आपस में फूट पड़ गई. जिसका अंग्रेजों ने लाभ उठाना शुरू कर दिया. सिखों ने अपनी राजधानी पटियाला से उठाकर लाहौर को बनाया. क्योंकि महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में सारा पंजाब, कश्मीर और पेशावर के आसपास का प्रदेश उनके राज्य में शामिल हो चुका था. महाराजा रणजीत सिंह के समय में अंग्रेजों से संधि हुई थी. उस संधि के अनुसार सतलज नदी के दूसरी भू भाग अंग्रेजों के अधिकार में था.

रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद सिखों के विशाल राज्य अस्त व्यस्त हो गया था. उत्तराधिकारी के प्रसंग को लेकर सिखों में मतभेद थे. अतः वे आपस में झगड़ा करने लगे, अंग्रेज ऐसे अवसर की तलाश में रहते थे. रणजीत सिंह के छोटे पुत्र दिलीप सिंह राज सिंहासन पर बैठे तो खुलकर विद्रोह होने लगा. अंग्रेजों ने अपने लिए इस समय को अनुकूल समझा वे राजनीतिक अड़चनें पैदा करने लगे.

1845 ई. में सिखों और अंग्रेजों का युद्ध

War of Sikhs and British in 1845 AD- उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने फिरोजपुर में फौजी छावनी कायम की, जिसका उद्देश्य सिखों के राज्य पर कब्जा करना था. सिख भी इस फौजी छावनी से आशंकित थे, पर वे मौन रहे. सिख अंग्रेजों से छेड़खानी नहीं करना चाहते थे. क्योंकि अंग्रेजों की शक्ति भी काफी बढ़ चुकी थी. सिख अंग्रेजी से उलझना नहीं चाहते थे. उन्हीं दिनों सिख सैनिकों की एक टुकड़ी सतलुज नदी पार कर अंग्रेजों के भूभाग पर पहुंची. अंग्रेजों को बहाना मिल गया, वे पहले से ही बहाने की तलाश में थे. अतः अंग्रेज सेनापति हेनरी हार्डिज ने युद्ध की घोषणा कर दी. उसने सिखों पर यह आरोप लगाया, कि उनकी सेना की टुकड़ी घात लगाकर अंग्रेजी सेना पर आक्रमण करना चाहती थी. पर वास्तव में बात कुछ दूसरी थी. अंग्रेजी में सिखों की कमजोरी से लाभ उठाकर उन पर आक्रमण करना चाहते थे.

जबकि सिख अंग्रेजों से युद्ध करना नहीं चाहते थे. परंतु हेनरी हार्डिज ने युद्ध की घोषणा कर दी, अपनी सुरक्षा में सिखों को भी युद्ध लड़ना पड़ा. सिखों और अंग्रेजों में लगातार 4 वर्षों तक युद्ध चलता रहा. सन 1845 ईस्वी में युद्ध शुरू हुआ और सन 1849 ईस्वी में सिखों की पराजय के बाद इस युद्ध की समाप्त हुई. चार बार अलग-अलग स्थानों पर अंग्रजो के साथ युद्ध लड़ा गया था. अंग्रेजों की सेना के सेनापति हेनरी हार्डिज तथा गफ थे. जबकि सिखों की सेनापति लाल सिंह व तेजा सिंह थे. अंग्रेजों को सिखों के बीच चार बार लड़े जाने वाले युद्ध में दोनों की अपार क्षति हुई. विश्व इतिहास में ऐसे बहुत कम मोके हुए, जिनमें अंग्रेज सेना के 12 जनरल तथा 800 से अधिक सैनिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा हो.

War of Sikhs and British in 1845 AD

इन युद्धों में सिख सैनिकों के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता. सिख सैनिकों के पास शौर्य एवं सास की कोई कमी नहीं थी. परंतु अंग्रेजों के पास युद्ध सामग्री अत्यधिक मात्रा में थी. सिख सैनिकों की एकता भी समाप्त हो चुकी थी. अतः युद्धों में सिखों की पराजय हुई, पराजय के कारण महाराजा रणजीत सिंह द्वारा स्थापित किया गया राज्य अंग्रेजों के अधीन हो गया था.

अंग्रेजों और सिखों के युद्ध

अंग्रेजों के साथ सिखों के युद्ध (War of Sikhs and British in 1845 AD) को दो चरणों में विभक्त किया जा सकता है. पहला जो सन 1815 ईस्वी सन 1846 ईस्वी के बीच लड़ा गया तथा, दूसरा जो 1846 ईस्वी से लेकर 1849 किसी के बीच लड़ा गया था. दूसरे भाग का युद्ध अधिक भयंकर था. प्रथम भाग का युद्ध में सिख विजई रहे. महाराजा रणजीत सिंह के सेनापति हरी सिंह नलवा था. जिसका खौफ पड़ोसी राज्यों में बराबर बना रहता था. उनकी मौत के बाद सिखों की फौज का सेनापति उनके पुत्र जवाहर सिंह नलवा को बनाया गया. युद्ध में अंग्रेजो को अत्यधिक हानि उठानी पड़ी, लेकिन विजय अंग्रेजों को की मिली. दोनों युद्धों में सिखों की हार के बाद अंग्रेजों का राज्य कायम हो गया था. राजा रणजीत सिंह के राज्य को हड़पने के बाद अंग्रेजों की शक्ति और भी अधिक बढ़ गई थी.

अब अंग्रेजों ने उत्तर पश्चिमी भारत पर अपना कब्जा पूर्ण रूप से कर दिया था. सिखों से युद्ध में अंग्रेजो ने कोहिनूर हीरा प्राप्त किया था. इसके बाद पूरे भारत के स्वामी बन गए थे. 1845 में अंग्रेजों का लाहौर पर अधिकार हो गया था. राजा रणजीत सिंह के पुत्र दिलीप सिंह और राजमाता की पेंशन निर्धारित कर दी गई थी. किंतु मुल्तान के शासन मूलराज के अधिकार के प्रश्न को लेकर दूसरी बार पुनः लड़ाई छिड़ गई. इस लड़ाई का एक कारण यह भी था, कि अंग्रेजों ने राजमाता (जिन्द कौर) को बंदी बना लिया था. दूसरी लड़ाई में जवाहर सिंह नलवा ने अपनी वीरता का परिचय दिया किंतु विजय अंग्रेजों को ही मिली थी.

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FAQs

Q- अंग्रेजों और सिखों के मध्य कितने युद्ध हुए थे?

Ans- अंग्रेजों और सिखों के मध्य दो युद्ध हुए थे, जिनको आंग्ल-सिख युद्ध के रूप में सम्बोधित किया जाता है.

Q- आंग्ल-सिख युद्ध कब हुए थे?

Ans- आंग्ल-सिख युद्ध १८४५ से १८४९ के मध्य लड़े गए थे. जिनमे सिख सेना की हार हुई और अंग्रजो का पंजाब पर कब्ज़ा हो गया था.

Q- कोहिनूर हीरा अंग्रेजों को कहाँ से मिला था?

Ans- पंजाब के अंतिम सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह के युद्ध में हारने के बाद अंग्रजों ने कोहिनूर हीरा भी लूट कर इंग्लैंड ले गए थे.

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