दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, Meera Bai ka jivan parichay और उनके लिखे गीत और दोहे की जानकारी. मित्रों महान कृष्ण भगत प्रेम दीवानी मीरा बाई का जन्म 1499 ईस्वी में मेड़तिया राठौड़ वंश के राव दूदा के चौथे पुत्र रतन सिंह के यहां कुकड़ी गांव मेड़ता नागौर, राजस्थान हुआ था. दोस्तों मीरा बाई अपने माता पिता की इकलौती संतान थी. मीरा बाई के पिता रतन सिंह 12 गांव के जागीरदार थे. दोस्तों मीरा बाई की छोटी उम्र में ही जब वह अल्पवयस्क बच्ची ही थी. तब उसकी माता पिता का देहांत हो गया था. इसलिए उसका लालन-पालन उसके दादा दादी ने किया.
दोस्तों कहा जाता है कि एक अवसर पर जब मीरा बाई अपनी दादी के साथ एक बारात को देखने गई थी तब मीरा बाई ने घोड़े पर चढ़े हुए दूल्हे को देखकर कोतूहल पूर्ण मुद्रा में अपनी दादी से पूछा. दादी दादी मेरा दूल्हा कौन है? तब दादी ने उत्तर दिया की तेरा दूल्हा तो गिरधर गोपाल है (श्रीकृष्ण जी).
तो दोस्तों उसी दिन से उस मासूम बालिका मीरा बाई के हृदय पटल पर गिरधर गोपाल की छवि उसके मन मस्तिष्क और हृदय में समा गई थी. और तभी से मीरा बाई अपनी दादी के वचनों को सत्य मानकर उन्हें अपने वर के रूप में वरण कर लिया था. लेकिन दोस्तों देश काल और समाज की रीति के अनुसार मीरा बाई का विवाह 19 वर्ष की आयु में पूज्ये महाराणा सांगा के जेष्ठ पुत्र भोजराज के साथ उनके परिवार वालों ने कर दिया था.
Biography of Meera Bai
नाम | मीरा बाई |
उपनाम | पेमल |
जन्म स्थान | कुकड़ी गांव मेवाड़ नागौर राजस्थान |
जन्म तारीख | 1499 ईस्वी |
वंश | राठौड़ वंश |
माता का नाम | वीर कुमारी |
पिता का नाम | रतन सिंह |
पति का नाम | महाराणा भोजराज |
पेशा | भक्ति |
बेटा और बेटी का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | श्रीकृष्ण जी |
देश | भारत |
राज्य | राजस्थान |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 1546 ई. ( विक्रम संवत् 1603) |
पोस्ट श्रेणी | Meera Bai ka jivan parichay (मीरा बाई का जीवन परिचय) |
परंतु दोस्तों मीरा बाई के हृदय में तो सिर्फ गिरधर गोपाल (श्रीकृष्ण जी) बसे हुए थे. और वह गिरधर गोपाल को प्राण पण से अपना पति मान चुकी थी. इसलिए मीरा बाई ने अपने अलौकिक पति भोजराज को हृदय से कभी स्वीकार नहीं किया था. और दोस्तों ईश्वरीय विधान तो देखिए कि मीरा बाई अपने इस अलौकिक पति (भोजराज) का सुख अधिक समय तक नहीं देख सकी और दो-तीन वर्षों के उपरांत ही वर्ष 1523 ईस्वी में मीरा बाई के पति भोजराज जी का देहांत हो गया.
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मीरा बाई की जीवन परीक्षा और गिरधर जी के चमत्कार
तो दोस्तों पति की मृत्यु के पश्चात मीरा बाई पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. मीरा बाई के ससुर महाराणा सांगा की खानवा के युद्ध में पराजय होने के पश्चात 1528 ईसवी में मृत्यु हो गई थी. तो मित्रो इसके कुछ वर्षों के उपरांत मीरा बाई के काका विरमदेव मालदेव से हार गए थे. दोस्तों हार के कारण वीरमदेव को मेड़ता छोड़कर जाने के लिए विवश होना पड़ा था. और उधर गृह कलह प्रारंभ हो गया और मीराबाई के वैधव्य के कारण मीरा बाई पर जुल्म होने लगे थे.
लेकिन दोस्तों मीरा बाई दुखों के पहाड़ों को पार करते हुए अपने भक्ति मार्ग से विचलित नहीं हुई. और अपने गिरधर गोपाल (श्रीकृष्ण) के प्रेम में दीवानी रही. तो दोस्तों इस कारण मीरा बाई को अनेक प्रकार के परतारणाये और कस्ट झेलने पड़े थे. मित्रों मीरा बाई को विष का प्याला भी पिलाया गया और मित्रो मीरा बाई को नाग की पिटारी भेजकर उनके जीवन का अंत करने का षड्यंत्र भी किया गया था .पर मित्रो हर बार मीरा बाई श्री कृष्ण जी की कृपा से बचती गयी.
और भी तरह-तरह के व्यगवाणो और अपमानो का सामना मीरा बाई को सहने पड़े थे. लेकिन दोस्तों मीरा बाई भगवन गिरधर गोपाल (श्री कृष्ण) की भक्ति और प्रेम में इतनी लीन हो चुकी थी. कि मीरा बाई को इस अलौकिक दुनिया की कोई परवाह और शुधी नहीं थी. मीरा बाई अपने पति (भोजराज) के स्वर्गवास के बाद सती नहीं हुई थी. इसलिए दोस्तों मीरा बाई को अपार कष्ट झेलने पड़े क्योंकि दोस्तों उस समय राजपूत समाज में स्त्री को सती होने पर परिवार के गौरव की बात मानी जाती थी. मीरा बाई का कहना था कि उनका पति(श्रीक्रष्ण) तो अजर अमर है तो फिर मैं क्यों सती होउ.
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मीरा बाई का मेवाड़ से वृंदावन धाम मथुरा जाना
मित्रों जैसा आपने ऊपर पढ़ा मीरा बाई पर मेवाड़ में दिनों दिन जुलम और उत्पीड़न बढ़ते जा रहे थे. और श्रीकृषण जी की कृपा से वो बचती जा रही थी. तब मीरा जी ने तंग आकर पुष्कर मेड़ता होती हुई वृंदावन धाम मथुरा पहुंची. और इस बिच उन्होंने बहुत से दोहे और कृष्ण प्रेम पर सुंदर गीतों की रचना की. मीरा बाई के भजन उनकी आत्मा से निकली हुई आवाज थी. इसलिए वे आध्यात्मिक मधुर एवं कर्णप्रिय है. उन्होंने वृंदावन में ही शायद इन पंक्तियों की रचना की होगी.
अली मने लागे वृंदावन नी को।
घर-घर तुलसी, ठाकुर पूजा, दर्शन गोविंद जूको।।
मीराबाई द्वारा रचित ग्रंथ
- मित्रों मीराबाई द्वारा चार ग्रंथों की रचना की थी. जो इस प्रकार है. इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन मीराबाई की पदावली नामक ग्रंथ में किया गया है.
- नरसी का मायरा
- एक गीत गोविंद टीका
- राग गोविंद
- राग सोरठ के पद
मीरा बाई का वृंदावन से द्वारिका जाना और अन्तिम समय
जब मीरा बाई वृंदावन पहुंची तो उनको ज्ञात हुआ कि उनके प्रीतम कृष्ण तो अब मथुरा वृंदावन त्याग कर द्वारिका में जाकर बस गए हैं. तब कृष्ण प्रेम में पागल मीरा बाई अपने गिरधर गोपाल कृष्ण की शरण में द्वारका जा पहुंची. और कृष्ण भक्ति में रम हो गई. सुना है मेवाड़ के राणा ने उन्हें मेवाड़ वापस बुलाने हेतु अपने ब्रह्मणों दूत को द्वारिका गुजरात में भेजे थे. परंतु मीरा बाई कभी मेवाड़ नहीं लौटी. द्वारका मंदिर में ही अपने प्रीतम कृष्ण की भक्ति करती हुई वह वही रुकी रही. और विक्रम सावंत 1604 से सो 1548 ईस्वी को वह परलोक सिधार गई.
लोग कहते हैं कि मंदिर से अदृश्य होने के पश्चात उनके शरीर अथवा सब को कोई पता नहीं चला. हो सकता है समुंदर ने उन्हें आगोश में ले लिया हो उन्होंने अनेक भक्ति रस के ग्रंथों की रचना की थी मीरा बाई पूर्ण रुप से कृष्ण गिरधर गोपाल के प्रेम में समर्पित हो गई थी. ऐसी कृष्ण प्रेम की कहानी पुरे भारत में और कही नहीं मिलती है.
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FAQs
Ans- मीरा बाई का जन्म कुकड़ी गांव मेवाड़ राजस्थान में हुआ था.
Article Written By– Meera Bai ka jivan parichay. इस आर्टिकल को संदीप सिंह शेखावत गांव नांद जिला झुंझुनू राजस्थान ने लिखा है. पाठको से निवेदन है, इस आर्टिकल से सम्बंदित कोई भी शंका हो तो हमे कमेंट बॉक्स में लिखे. हम जल्दी से जल्दी आपके सवालो के जवाब देने की कोसिस करेंगे. साथ ही दोस्तों आपको ये आर्टिकल अच्छा लगा तो अपने मित्रों के साथ भी जरूर शेयर करे.