स्वामी रामतीर्थ हिन्दू धर्म उद्घोषक के साथ-साथ सच्चे भारतीयता के भी प्रबल उद्घोषक थे. रामतीर्थ जी ने हिन्दू धर्म और अध्यात्मिका क्षेत्र में अपना सिक्का पूर्व से पश्चिम विदेशियों को भारत कि संस्कृति, योग और संस्कृति से परिचित कराया था. उनके नाम पर आज भी भारत देश में स्थापित कई मिशन एवं संस्थाएं धर्म, आध्यात्म व सामाजिक सुधार का कार्य कर रही हैं. हम यहाँ स्वामी रामतीर्थ जी की जीवनी (Biography of Swami Ramtirtha). और उनके जीवन से जुड़ी वो रोचक जानकारी शेयर करेंगे, जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है, और जानते है स्वामी रामतीर्थ जी की आश्चर्यजनक जानकारी.
स्वामी रामतीर्थ कौन थे? रामतीर्थ स्वामी जी का जीवन परिचय
दोस्तों स्वामी रामतीर्थ का जन्म ब्रिटिश भारत में पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) के गुजरांवाला जिले के मराली गांव में एक गोस्वामी ब्राह्मण परिवार में 22 अक्टूबर सन् 1873 को दीपावली के शुभ दिन हुआ था. रामतीर्थ जी के पिता का नाम गोस्वामी हीरानंद था. गोस्वामी हीरानंद जी की आर्थिक दशा अच्छी न थी. और वह पुरोहिताई करके गुजारा करते थे. रामतीर्थ जी के दादा गोस्वामी रामलाल ज्योतिष-विद्या के अच्छे जानकार थे. बचपन में रामतीर्थ जी की माता का स्वर्गवास हो गया था, रामतीर्थ जी पालन-पोषण इनकी बुआ के यहाँ हुआ था. उसके बाद भगत धन्नाराम ने उनकी शिक्षा का भार अपने पर लिया था.
आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हुए स्वामी रामतीर्थ ने एण्ट्रेंस की परीक्षा पंजाब प्रान्त में प्रथम आकर उतीर्ण की थी. स्वामी रामतीर्थ भारत देश के एक महान संत, देशभक्त, कवि और शिक्षक थे. उन्होंने अपने आध्यात्मिक और क्रांतिकारी विचारों से भारतवासियों को ही नहीं, बल्कि अमेरिका और जापान के लोगों को भी अत्यंत प्रभावित किया और संसार में भारत का नाम ऊंचा किया था.
स्वामी रामतीर्थ शिक्षा
एण्ट्रेंस की परीक्षा पंजाब प्रान्त में प्रथम आकर उतीर्ण की पिता गोस्वामी हीरानंद की इच्छा के विरुद्ध कॉलेज में भरती हुए. स्कूल की फीस, पुस्तक आदि का खर्च उन्होंने छात्रवृत्ति, ट्यूशन तथा सादगीपूर्ण जीवनशैली अपनाकर पूर्ण किया था. कॉलेज BA (Beachler Of Arts) में वे में प्रथम आये, फिर MA की परीक्षा भी रामतीर्थ जी ने अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की थी.
उनके अच्छे अंकों के कारण कॉलेज के प्रिंसिपल उन्हें भारतीय लोक सेवा (ICS) बनाना चाहते थे. लेकिन उन्होंने स्वाभिमानपूर्ण जीवन जीने के साथ-साथ मानव सेवा का मार्ग चुना. कुछ दिनों बाद वे कॉलेज में गणित के प्रोफेसर बन गये.1857 में लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में नेताओं के बड़े-बड़े भाषण सुनकर उन्हें लगा कि केवल कोरे भाषण से कुछ नहीं हो सकता.
रामतीर्थ से स्वामी रामतीर्थ कैसे बने? और विदेशों में हिन्दू धर्म का प्रचार कैसे किया?
दोस्तों वर्ष 1897 रामतीर्थ जी के जीवन का टर्निंग पॉइंट रहा, जब लाहौर में एक कार्यक्रम में उन्हें स्वामी विवेकानन्द का भाषण सुनने का मौका मिला. स्वामी विवेकानन्द जी के ओजपूर्ण विचारों को सुनकर रामतीर्थ के मन में देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरने की भावना उत्पन्न हुई. इसी भावना के चलते प्रोफ़ेसर रामतीर्थ स्वामी रामतीर्थ बन गए.
स्वामी रामतीर्थ के आदर्श थे, स्वामी विवेकानन्द जी. समय के साथ धीरे-धीरे उन पर कृष्णभक्ति का ऐसा गहरा प्रभाव छाने लगा. कि वे उत्तराखण्ड के जंगलों की ओर निकल पड़े. नौकरी छोड़ दी, 1901 के मथुरा धर्म सम्मेलन की उन्होंने अध्यक्षता की थी. 1902 में टिहरी नरेश ने उनके लिए गंगा किनारे एक आश्रम बनवा दिया था. टिहरी नरेश के कहने पर वे जापान में हुए धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए चले गये. वहां उनके भाषणों का व्यापक प्रभाव पड़ा, इसके अलावा रामतीर्थ जी ने अमेरिका जाकर भी धार्मिक व्याख्यान दिये. अरब के देश मिश्र जाकर भी उन्होंने भारतीय धर्म के साथ साथ इस्लाम की व्याख्या की थी.
सन 1901 में वे अपनी पत्नी एवं बच्चों को छोड़कर हिमालय में एकातंवास के लिए चले गए. और सन्न्यास ग्रहण कर लिया था. हिमालय से उनका नाम तीरथ राम से ‘स्वामी रामतीर्थ’ हो गया. यहीं इन्हें आत्मबोध हुआ. स्वामी रामतीर्थ जी ने किसी को गुरु नहीं बनाया था. पर वे स्वामी विवेकानंद जी से प्रभावित थे. साथ ही इन्होने किसी को अपना शिष्य बनाया था.
स्वामी रामतीर्थ जी के चमत्कार
रामतीर्थ जी ने धर्म तथा आध्यात्म की चेतना अपने देश में ही नहीं। विदेश में भी स्वामी रामतीर्थ जी ने धर्म तथा आध्यात्म की चेतना बड़े ही चाव से फैलाई, वे कुशाग्र बुद्धि के थे. एक बार विद्यार्थी जीवन की घटना है. स्वामी रामतीर्थ जी के अध्यापक ने विद्यार्थियों से छोटी लकीर को बड़ी लकीर में बदलने को कहा. स्वामी रामतीर्थ ने छोटी लकीर को मिटाये बिना उसके समीप ही बड़ी लकीर खींच दी उनकी इस बात से अध्यपक बहुत प्रभावित हुए.
एक बार अमरिकन दौरे पर किसी अमरिकन महिला ने स्वामी रामतीर्थ से पूछा था. कि गोपियों की बीच घिरे रहने वाले कृष्णाजी कैसे पवित्र रह सकते हैं?. इस पर स्वामीजी रामतीर्थ ने उत्तर दिया, व्यक्ति के चरित्र का सम्बन्ध तो उसके विचारों से होता है. विचारों की पवित्रता हमें विचलित नहीं होने देती। जैसे इस समय मैं भी तो महिलाओं से घिरा हुआ हूं. क्या मैं भी अपवित्र हो गया?. स्वामी रामतीर्थ जी का ऐसा सटीक उत्तर सुनकर महिला निरूत्तर हो गयी थी और वही पर उनकी शिष्य हो गयी थी.
रामतीर्थ जी की मृत्यु कब हुई?
स्वामी रामतीर्थ आध्यात्मिक सन्त होने के साथ-साथ विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. वे जापानियों की कर्मनिष्ठा और परिश्रमशीलता से खासे प्रभावित हुए थे. वे भारतीय जन-जीवन में भी इसकी महत्ता को शामिल करना चाहते थे. ऐसा सन्त लोकसेवी, व्यक्तित्व 17 अक्टूबर, 1906 को उनका शरीर शांत हो गया.
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FAQs
Ans- सन् 1891 में ब्रटिश भारत के पंजाब लाहौर विश्वविद्यालय से BA परीक्षा में पुरे प्रान्त भर में सर्वप्रथम आये थे.