दोस्तों हम यहाँ सिखों के अंतिम गुरु गोविन्द सिंह जी की जीवनी पर बहुत ही रोचक जानकारी शेयर करने जा रहे है. इस लिए सभी पाठको से निवेदन है. गुरु गोविन्द सिंह जी की लाइफ की रोचक और अद्धभुत जानकारी के लिए इस पेज को अंत तक पढ़े. Biography Of Guru Gobind Singh- गुरु गोविन्द सिंह जी सिखो के दसवें सिख गुरु होने के साथ साथ एक योद्धा, कवि और दार्शनिक थे. आप सिखो के नौवे सिख गुरु तेग बहादुर के पुत्र थे जिनकी हत्या मुंगल सम्राट औरंगजेब द्वारा दिल्ली के लाल किले के पास सर कलम कर के कर दी गई थी. गुरु तेग बहादुर के पुत्र गोविंदराय भी अपने पिता की तरह धर्मात्मा और संतपुरुष थे. गुरु गोविंद सिंह जी ने भी धर्म की रक्षार्थ अपने आँखों के तारे चार बेटो की कुर्बानी दी थी.
आप पर ओरंगजेब जैसे क्रूर, अन्यायी, कटर और एक सनकी राजा ने अनेक कठोर यातनाये देकर धर्म पंथ से विचलित करना चाहा. वाह रे सत्पुरुष! आपने कभी समझौता नहीं किया. आप खालसा पंथ के पर्वतक के रूप में सिख धर्म में आदर के साथ पूजे जाते है. हालांकि आपने उनके समय उनको न पूज कर मानव की सेवा ही सच्चा धर्म का पाठ पढ़ाया था. आप सिखों के दसवें गुरु कहलाते है.
“सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं,
तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं”
गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी (Biography Of Guru Gobind Singh)
आपका जन्म वर्तमान बिहार की राजधानी पटना में 22 दिसम्बर सन 1666 में माता गुजरी और पिता गुरु तेग बहादुर की इकलौती संतान के रूप में हुआ था. सच्चे गुरु आपका बचपन का नाम गोविन्द राय था. आपके पिता सिखों के नौवें गुरु थे. दोस्तों इनके जन्म के समय इनके पिता जी असम, बंगाल में एक धर्म प्रचार यात्रा पर थे. आपके पिता को हमेशा ही प्रचार अभियान के लिए विभिन्न जगहों का दौरा करना पड़ता था. सन् 1671 में गोबिंद राय अपने परिवार के साथ दानापुर की यात्रा पर गए और अपनी शुरुआती शिक्षा वहीं से प्राप्त की थी. गोविन्द राय जी ने संस्कृत, फारसी और मार्शल आर्ट भी सीखा. इसके बाद 1672 में उनकी आगे की शिक्षा लुधियाना के उत्तर-पूर्व में आनंदपुर में शुरू हुई थी.
आपके पिता जी की मृत्यु के बाद मात्र नौ साल में इन्हे सिख धर्म का दसवां एवं अंतिम गुरु बनाया गया था. साल 1699 की सभा में, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा वाणी की स्थापना की – “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह”. और आपने गुरुग्रंथ साहब को ही आगे गुरु मानने का आदेश दिया था. इस लिए दोस्तों गुरु गोविन्द सिंह जी के बाद सिखों का गुरु “गुरुग्रंथ साहब” ग्रंथ ही गुरु माना जाता है.
गुरु गोबिंद सिंह का इतिहास / सारांश
नाम | गुरु गोविन्द (राय) सिंह |
उपनाम | खालसा नानक,हिंद का पीर और भारत का संत |
जन्म स्थान | पटना बिहार |
जन्म तारीख | 05-01-1666 (05 जनवरी 1666) |
वंश | सोढ़ी खत्री |
माता का नाम | माता गुजरी जी |
पिता का नाम | गुरु तेग बहादुर जी |
पत्नी का नाम | माता जीतो, माता सुंदरी, माता साहिब देवन |
बेटा और बेटी का नाम | जुझार सिंह ,जोरावर सिंह एवं फतेह सिंह, अजीत सिंह |
गुरु/शिक्षक | गुरु तेग बहादुर जी |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | पंजाब, हिमाचल, बिहार, हरयाणा, दिल्ली और नांदेड़ भारत |
धर्म | सिख |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु सन | 07-10-1708 (7 अक्टूबर 1708) |
मृत्यु स्थान | नांदेड़ महाराष्ट्र |
पोस्ट श्रेणी | गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी |
पूर्वाधिकारी | गुरु तेग बहादुर |
उत्तराधिकारी | गुरु ग्रंथ साहिब |
लड़ाईया | भंगानी,नादौन, गुलेर, आनंदपुर की लड़ाई (1700), आनंदपुर (1701 & 1704), निर्मोहगढ़, बसोली, चमकौर का प्रथम युद्ध (1702), सरसा नदी की लड़ाई (1704),चमकौर दूसरी लड़ाई |
गुरु गोबिंद सिंह जी की लिखी गयी पवित्र सिख धर्म ग्रंथ और रचनाएँ
आपके द्वारा रचियत प्रमुख रचनाये इस प्रकार है, खालसा महिमा, चण्डी चरित्र, जाप साहिब, अकाल उस्तत, बचित्र नाटक, शास्त्र नाम माला, अथ पख्याँ चरित्र लिख्यते, ज़फ़रनामा है. आपने पांचवें सिख गुरु,गुरु अर्जन देव जी के द्वारा लिखित आदि ग्रंथ के नाम से सिख ग्रंथ को पूरा किया था. इसमें पिछले गुरुओं और संतों के भजन शामिल थे. दोस्तों इनके द्वारा आदि ग्रंथ को बाद में गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में विस्तारित किया गया था.
मित्रो गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने अंतिम सालो में (1706) एक सलोक, दोहरा महला नौ अंग, और अपने पिता गुरु तेग बहादुर के सभी 115 भजनों के साथ धार्मिक ग्रंथ का दूसरा संस्करण जारी किया. गायन को अब श्री गुरु ग्रंथ साहिब कहा जाता था. श्री गुरु ग्रंथ साहिब की रचना पिछले सभी गुरुओं द्वारा की गई थी और इसमें कबीर आदि भारतीय अनेक संतों की परंपराएं और शिक्षाएं भी शामिल थीं.
दमदमा साहिब में आपने अपनी याद शक्ति और ब्रहमबल से श्री गुरूग्रंथ साहिब का उच्चारण किया और लिखारी भाई मनी सिंह ने गुरूबाणी को लिखा. गुरु गोबिंद सिंह जी रोज गुरूबाणी का उच्चारण करते थे और श्रद्धालुओं को गुरुबाणी के अर्थ बताते जाते और भाई मनी सिंह जी लिखते जाते. इस प्रकार लगभग पांच महीनों में लिखाई के साथ-साथ गुरुबाणी की जुबानी व्याख्या भी संपूर्ण हो गई.
खालसा पंथ की स्थापना कब और किसने एवं क्यों की थी?
When and by whom and why was the Khalsa Panth founded?. वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह” साल 1699 में गुरु गोविन्द सिंह जी ने 30 मार्च 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ (पन्थ) की स्थापना की जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. दरअसल 1675 में, गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता जी गुरु तेग बहादुर जी के पास कश्मीर पंडितों के एक दल ने मुगल सम्राट औरंगजेब के अधीन गवर्नर इफ्तिकार खान के उत्पीड़न से बचाने के लिए कहा. गुरु तेग बहादुर ने पंडितों की रक्षा करना स्वीकार किया. इसलिए उन्होंने औरंगजेब की क्रूरता के खिलाफ विद्रोह किया. औरंगजेब ने उन्हें दिल्ली बुलाया और आगमन पर, तेग बहादुर को इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए कहा गया.
गुरु तेग बहादुर ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो उन्हें और उनके साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था. और 11 नवंबर, 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक के पास अब शीशगंज गुरुद्वारा है के समीप सार्वजनिक रूप से उनका सिर कलम कर दिया गया था.
गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता की अचानक मृत्यु ने उनको मजबूत बना दिया. क्योंकि वे सिख और हिन्दू समुदाय पर औरंगजेब द्वारा दिखाई गई क्रूरता के खिलाफ लड़ने के लिए दृढ़ थे. यह लड़ाई उनके बुनियादी मानवाधिकारों और सिख Hindu समुदाय के गौरव की रक्षा के लिए की गई थी.
खालसा पंथ (खालसा पंथ) की स्थापना कब की थी?
आपने धर्म एवं समाज की रक्षा हेतु ही 30 मार्च 1699 ई. में खालसा पंथ (Khalsa panth) की स्थापना की. आपने एक बलिदान की परीक्षा पास करवाकर पांच प्यारे के नाम के आगे सिंह का टाइटल दिया जिसका मतलब होता है शेर, बनाकर उन्हें गुरु का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन जाते हैं. और कहते हैं-जहां पांच सिख इकट्ठे होंगे, वहीं मैं निवास करूगा. उन्होंने सभी जातियों के भेद-भाव को समाप्त करके समानता स्थापित की और उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी पैदा की.
गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन संघर्ष और लड़ाईया
अपनी छोटी ही उम्र में अपने पिता जी गुरु तेग बहादुर जी को खोने के बाद आप सन 1675 को आप गुरु गद्दी पर विराजमान हुए। आपके दो बेटे साहिबजादा अजीत सिंह,साहिबजादा जुझार सिंह जी चमकौर की लड़ाई (1705) में शहीदी प्राप्र्त कर गए थे. आपके दो बेटे जोरावर सिंह और उनके छोटे भाई फतेह सिंह को आपकी माँ गुजरी के सामने दीवार में चीना दिया गया था. यह देख कर आपकी माँ गुजरी जी अपने पोतो का दर्द देख नहीं सकी और उन्होंने वही प्राण त्याग दिए थे.
और आपने धर्म की रक्षा के लिए खालसा पंथ की इस्थापना की. गुरु गोबिंद सिंह जी ने अनेक लड़ाई लड़ी जिसमे, भंगानी की लड़ाई (1688), नादौन की लड़ाई (1691), गुलेर की लड़ाई (1696), आनंदपुर की लड़ाई (1700), आनंदपुर (1701) की लड़ाई, निर्मोहगढ़ (1702) की लड़ाई, बसोली की लड़ाई (1702). और चमकौर का प्रथम युद्ध (1702), आनंदपुर लड़ाई (1704), सरसा नदी के पास की लड़ाई (1704), चमकौर की लड़ाई (1705) प्रमुख है. इसके आलावा आप हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राजाओ से भी छोटी छोटी लड़ाईया लड़ी और उनको हराया भी.
सिखों के पांच “ककार” “के” नाम का क्या अर्थ होता है?
आप गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को हर समय पांच वस्तुओं को पहनने की आज्ञा दी थी जिसमें केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण शामिल हैं. जिसका पालन एक सच्चे खालसा को करना होता है.
- कारा (कड़ा)- हाथ में पहने जाने वाला कड़ा
- केश- बाल
- कछेरा (कच्छा)-छोटा कच्छा
- कंघा- लकड़ी से बनी बाल संवारने वाली कंघी
- कृपाण- तलवार, छोटा चाकू
श्री गुरु गोविंद सिंह जी के पंज प्यारों के नाम क्या है!
- दया राम-आप लाहौर के एक खत्री परिवार से थे और गुरु के लिए बलिदान के लिए सबसे पहले आगे आये थे.
- धर्म दास- आप दिल्ली के एक जाट परिवार से ताल्लुक रखते थे और आप गुरु के बलिदान के लिए दो नंबर पर आये.
- मोहकम चंद- आप द्वारका के एक दर्जी परिवार से थे.
- हिम्मत चंद- आप जगन नाथ पुरी के रहने वाले थे और आप रसोइया का रोजगार करते थे.
- साहिब चंद-आप बीदर कर्णाटक के रहने वाले थे और आपको संगत का पहला सिख भी पुकारा जाता है.
- इन पांच सिख स्वयंसेवकों को गुरु ने पंज प्यारे या ‘पांच प्यारे’ के रूप में नामित किया था.
गुरु गोविंद सिंह जी का अंतिम समय और मृत्यु
नवाब वजीत खाँ ने दो पठान हत्यारों जमशेद खान और वसील बेग को गुरु के विश्राम स्थल नांदेड़ महाराष्ट्र में अपनी नींद के दौरान गुरु पर हमला करने के लिए भेजा. उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी को सोते हुए को चाकू मार दिया था. गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक हमलावर जमशेद को अपनी तलवार से मार गिराया और दूसरे को संगत के सीखो ने मार दिया. दोस्तों कहाँ जाता है, दिल के पास घाव होने की वजह से गुरु गोबिंद सिंह जी ने 7 अक्टूबर 1708 नांदेड साहिब महाराष्ट्र में दिव्य ज्योति में लीन हो गए.
आप धर्म संस्कृति और देश की आन-बान और शान के लिए पूरा परिवार कुर्बान करके नांदेड महाराष्ट्र में श्री हुजूर साहिबद्ध में गुरुग्रंथ साहिब को गुरु का दर्जा देते हुए इसका श्रेय भी प्रभु को देते हुए कहते हैं. “आज्ञा भई अकाल की तभी चलाइयों पंथ, सब सिक्खन को हुक्म है गुरु मान्यों ग्रंथ”. गुरु गोबिंद सिंह जी ने 42 वर्ष तक जुल्म के खिलाफ डटकर मुकाबला करते हुए सन् 1708 को नांदेड में ही सचखंड गमन कर गए.
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FAQs
Ans- श्री गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें और अंतिम संत सतगुरु थे.
Ans- 30 मार्च 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ (पन्थ) की स्थापना सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने की थी.
Ans- सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने भंगानी की लड़ाई (1688), नादौन की लड़ाई (1691), गुलेर की लड़ाई (1696), आनंदपुर की लड़ाई (1700), आनंदपुर (1701) की लड़ाई, निर्मोहगढ़ (1702) की लड़ाई, बसोली की लड़ाई (1702). और चमकौर का प्रथम युद्ध (1702), आनंदपुर लड़ाई (1704), सरसा नदी के पास की लड़ाई (1704), चमकौर की लड़ाई (1705) प्रमुख है. इनके आलावा भी इन्होने हिमाचल के राजाओ को भी हराया था.