Battle of Khanwa 1527- पानीपत के प्रथम युद्ध 1526 ईस्वी में बाबर ने इब्राहिम लोदी को युद्ध में पराजित कर दिल्ली की सत्ता पर अधिकार कर लिया था. पानीपत का प्रथम युद्ध मुंगलो और पठानों के मध्य हुआ था. उन दिनों मुंगल और पठान दोनों ही एक दूसरे के शत्रु बने हुए थे. राजपूतों ने उनकी आपसी दुश्मनी का लाभ उठाना चाहा. उन्होंने सोचा कि यही समय है, जब हमें अपनी स्वतंत्रता के लिए पुनः प्रयत्न करना चाहिए. उन दिनों राजपूतों में राणा सांगा शूरवीर एवं योद्धा थे. राणा सांगा राष्ट्र प्रेमी व स्वतंत्रता प्रेमी थे. उनके पास एक बहुत बड़ी सेना की थी, जो सास एवं वीरता दिखाने में अपनी समता नहीं रखती थी. राणा सांगा एवं बाबर में एक समझौता भी हुआ था.
परंतु राणा ने उस समझौते की परवाह न करते हुए, स्थिति का लाभ उठाने का प्रयत्न किया. उसने आगरे Agra) के दक्षिण में 200 गांव को अपने अधिकार में कर लिया. आगरा के आस पास के गांवो पर अधिकार होने के कारण राणा सांगा की सैनिक शक्ति अधिक सुदृढ़ हो गयी थी. हम यहाँ खानवा की लड़ाई 1527 (Battle of Khanwa 1527) की वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अब से पहले अनजान थे. तो दोस्तों चलते है और जानते है, खानवा युद्ध की अद्भुत जानकारी.
खानवा युद्ध 1527 बाबर और मेवाड़ नरेश राणा सांगा के मध्य क्यों हुआ?
दिल्ली की सत्ता मुगल बादशाह बाबर के पास थी. बाबर ने राजस्थान के मेवाड़ राजपूत राणा सांगा से मित्रता करने का प्रयास किया. परंतु सांगा ने इस और कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि राणा सांगा की नजर भी दिल्ली के तख्त पर गड़ी हुई थी. उधर इब्राहिम लोदी भी बाबर को अपना शत्रु मानता था. क्योंकि उसने ही लोदी वंश का पतन किया था. अतः इब्राहिम लोदी एवं राणा सांगा के बीच एक समझौता हुआ. जिसमें बाबर को दिल्ली की गद्दी से हटाना था. इसके लिए इब्राहिम लोदी ने राणा सांगा को 10000 प्रशिक्षित सैनिक सेवा में प्रस्तुत किए. खानवा का युद्ध 1527 प्रसिद्ध युद्ध (Battle of Khanwa 1527) मुगल शासक तथा मेवाड़ के राजपूत शासक की चित्तोड़ नरेश राणा सांगा के मध्य लड़ा गया.
राणा सांगा ने सोचा था, कि बाबर लोदी को पराजित करके तथा धन दौलत लूट कर वापस चला जायेगा. तो उसके शासन के लिए मार्ग साफ हो जाएगा. परंतु जब बाबर ने भारत में स्थाई तौर पर बस जाने का निश्चय किया. तो राणा सांगा के सामने बाबर के विरुद्ध युद्ध करने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं बचा था. जिसके परिणाम स्वरूप खानवा का युद्ध 1527 (Battle of Khanwa 1527) आरंभ हुआ. पानीपत के प्रथम संग्राम के बाद बाबर की सेना ने कालपी, बयाना तथा धौलपुर पर अधिकार कर लिया था. जो कि समझौते के आधार पर राणा सांगा के अधिकार क्षेत्र में था. इस प्रकार दोनों के मध्य आपसी मतभेद बढ़ गए.
Battle of Khanwa 1527
इसी समय बाबर ने अपने पुत्र हुमायु की कमान में एक विशाल सेना के द्वारा आगरा पर अधिकार कर लिया, जिससे राणा सांगा और भी विरोधी बन गए थे. राणा सांगा ने एक कूटनीतिक चाल चली जिसमें सुल्तान सिकंदर का लोधी के पुत्र को दिल्ली सतना का दावेदार कर दिया. तथा आक्रमण करके चंदेरी तथा बयाना के किलो पर अधिकार कर लिया. जिससे बाबर अत्यंत सुमित एवं विचलित हुआ, उसने राणा सांगा के विरुद्ध युद्ध करने के दांव पेज शुरू किए. राणा सांगा से निपटने के लिए उसने हुमायूं को आगरा से बुलाया. साथ ही हसन खां मेवाती को भी अपने पक्ष में करने का प्रयास किया.
खानवा की लड़ाई में बाबर ने अपने सैनिकों को धर्म की दुहाई क्यों दी?
बाबर ने राजपूत सेना का मुकाबला करने के लिए अपने सैनिकों को धर्म की दुहाई देकर अल्लाह के नाम पर जिहाद प्रारंभ करने की योजना बनाई। इस योजना के अंतर्गत बाबर ने बाबर ने 17 मार्च 1526 ईस्वी को आगरा के निकट खानवा में अपनी सेना की मोर्चाबंदी शुरू कर दी. बाबर की सेना के पैदल, अशवरोही तथा तोपखाने प्रमुख अंग थे. जिनकी सैनिको संख्या इस प्रकार थी. कुल सैनिक 30,000 के आसपास थी. और बाबर के मित्रों की सेना को मिलाकर लगभग 50000 थी. दाएं बाजू में 5000 घोड़े सवार सैनिक हुमायूं के नेतृत्व में थे. बाएं तरफ 3000 घोड़े सवार सैनिक मेहंदी ख्वाजा के नेतृत्व में थे. केंद्रीय कमान 10000 घोड़े सवार सैनिकों के साथ बाबर के साथ थे. इसी के साथ ही आरक्षित सेना भी थी.
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1527 ईस्वी खानवा के युद्ध में राणा सांगा के सेनापति सिलहदी तोमर विश्वासघात
बाबर की सेना का फैलाव पानीपत के प्रथम युद्ध की भांति था. जिसमें सबसे आगे सामान ढोने वाले लगभग 1000 गाड़ियों को 40-40 फीट की दूरी पर एक पंक्ति के रूप में लगाकर चमड़े की पटियो से बांधा गया था. दो-दो गाड़ियों के बीच में चक्के वाले तिरपाइयो पर ढालो के पीछे बंदूकधारी सैनिक तैनात किए गए. घुड़सवार सेना को युद्ध में आगे बढ़ाने के लिए दोनों तरफ लगभग 60-60 फिट की दूरी छोड़ी गई थी. जिससे राणा की सेना पर सही आक्रमण किया जा सके. बाबर ने अपनी सेना की बड़ी तोपों का नेतृत्व उस्ताद अली कुली को सौंपा, बंदूकधारियों का नेतृत्व मुस्ताक खान के अधीन रखा था. उसने अपनी प्रमुख घोड़े सवार सेना को तीन मुख्य भागों में संगठित किया था.
राजपूत सेना में पैदल सेना में 100000 सैनिक, हाथी सेना में 1000 हाथी थे. राणा की सेना में घोड़े सवार सेना भी थी, सबसे आगे हाथी सेना उसके पीछे घोड़े सेना तथा सबसे पीछे मध्य तथा दाएं बाएं समूह में विभक्त पैदल सेना खड़ी होती थी. उसके पास तोपों का अभाव था. उसने तोपों के विरुद्ध कभी युद्ध नहीं लड़ा था. वास्तविक युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व राजपूत सेना का सिलहदी तोमर नाम का राजपूत सरदार ने विश्वासघात करके लगभग 30000 सैनिकों सहित बाबर की सेना में मिल गया. वह ग्वालियर के उत्तर में स्थित टोंवरघर पथ का रहने वाला था. उसने खानवा के युद्ध में अपना धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बन गया. इससे राणा सांगा की योजना लड़खड़ा गई, उसकी अग्रिम पंक्ति खाली हो गयी थी. राणा सांगा ने पुनः अपनी सेना को पंक्तिबद्ध किया.
खानवा की लड़ाई 1527 में बाबर की विजय के कारण
खानवा के वास्तविक युद्ध के पूर्व बाबर को एक विचित्र कठिनाई का सामना करना पड़ा. जब राजपूत योद्धाओं ने मुगलों के हरावल दस्ते को मार गिराया. तो मुगल सैनिकों में भय व्याप्त हो गया. तत्कालीन ज्योतिषी ने राजपूतों की विजय की भविष्यवाणी करके मुगलों को अत्यंत हतोत्साहित कर दिया था. इन परिस्थितियों में बाबर ने अपनी कुशल से ने प्रतिभा का परिचय दिया. और अपने सैनिकों में उत्साह एवं आत्मविश्वास जागृत करने के लिए समय कभी भी मदिरा न पीने की प्रतिज्ञा की. तथा मदिरा (दारू) के सभी बर्तन एवं भंडार नष्ट करके. अपने सरदारों को संबोधित करते हुए उसने कहा. मेरे साथी सरदारों, प्रत्येक प्राणी जो संसार में आता है उसका विनाश अवश्य होता है. केवल अल्लाह ही अविनाशी व अविचल है. जिसने जीवन के सुख एवं ऐश्वर्य का भोग किया है. उसे अंत में मृत्यु का स्वागत स्वागत करना पड़ेगा.
अंत कलअंकित नाम के साथ रहने की अपेक्षा शान के साथ प्राण दे देना अधिक अच्छी बात है. यदि हम इस रणक्षेत्र में मर जाएंगे, तो शहीद कहलायेगे. और यदि हम विजय होंगे तो उस परमात्मा के पवित्र उद्देश्य की प्राप्ति होगी. इसलिए हमें उस सर्वशक्तिमान के नाम पर शपथ ग्रहण करनी चाहिए कि हम ऐसी शानदार मृत्यु से मुख नहीं मोड़ेगे. सभी सैनिकों ने कुरान की कसम खाकर बाबर का साथ देने का निश्चय किया.
खानवा की लड़ाई 1527 ईस्वी
17 मार्च सन 1527 ईस्वी को राजपूत सेना द्वारा प्रातः काल आक्रमण किया गया. जैसे ही राजपूत सेना ने आक्रमण किया, तो बाबर के तोपखाने ने उनका स्वागत किया. राजपूत सैनिकों ने कभी तोपों सामना नहीं किया था, अतः राजपूत सैनिक भयभीत हो गए तथा अनेकों शहीद हो गए. हाथी सेना गोलों की आवाज से डर गई. मुगलों की सेना में दोनों ओर से दबाव बढ़ने लगा, तब बाबर ने दोनों और नए सैनिकों को लगाया. परंतु राजपूत सेना बड़ी बहादुरी के साथ उनका मुकाबला कर रही थी. इसी दौरान बाबर ने मुस्तफाअली के नेतृत्व में अपने तोप खाने द्वारा सूचना पर फायर करने का आदेश दिया, जिसे युद्ध और भयंकर हो गया.
दूसरी ओर राणा सांगा बाबर का मुकाबला करने के लिए तेजी के साथ आगे बढ़ा. तभी गोली की भांति एक तीर राजपूत सेनानायक राणा सांगा को घायल कर गया. जिससे वही मूर्छित हो गये. राजपूत सैनिकों ने अपने धैर्य एवं साहस का सही परिचय दिया. तथा राणा सांगा को युद्ध क्षेत्र से हटा लिया, ताकि उसका इलाज किया जा सके. राणा सांगा के गंभीर रूप से घायल होने के कारण, अब युद्ध की कमाल सरदार झाला के हाथों में आ गई. जब इस बात का पता राजपूत सेना को लगा तो वे और अधिक घबरा गए। तथा राजपूत सेना तीतर-भीतर हो गई. अंत में बाबर की सेना ने आगे बढ़कर राजपूत सैनिकों पर अपना प्रहार और तेज कर दिया। जिससे राजपूत सेना को पीछे हटने बाध्य होना पड़ा था.
सूरज ढलते ढलते राजपूत सेना हताश होकर भागने लगे. बाबर की सेना ने बयाना, अलवर तथा मेवाड़ तक राजपूत सैनिकों का पीछा किया। तथा 5 किलोमीटर दूर स्थित राणा सांगा के कैंप पर अपना अधिकार जमा लिया. बाबर ने इस युद्ध में सफलता प्राप्त की.
(Battle of Khanwa) खानवा के युद्ध बाद भारत की भूमि पर क्या परिवर्तन आये
खानवा का युद्ध (Battle of Khanwa 1527) राजपूतों के लिए इतना विनाशकारी सिद्ध हुआ. कि कोई विरला ही ऐसी जाती होगी जिसके योद्धा इस युद्ध में काम ना आए हो. इस युद्ध के कारण बाबर की गतिविधियों का केंद्र काबुल के स्थान पर भारत बन गया था. तथा उसने अपने नए राज्य को सुदृढ़ बनाने के प्रयास प्रारंभ कर दिए. इसी के साथ ही राजपूत सैन्य शक्ति का पतन हो गया.
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FAQs
Ans- खानवा के युद्ध से पूर्व राणा सांगा के सेनापति सिलहदी तोमर ने विश्वासघात किया था. वह बाबर की सेना में जा मिला और इस्लाम धर्म अपना लिया.